तमस ज्योति - 21 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 21

प्रकरण - २१

नमस्कार दर्शकों! मैं अमिता एक बार फिर आपसे संवाद करने आ गई हूं। आप देख रहे है हमारा ये कार्यक्रम रुबरु और मेरे साथ है प्रसिद्ध संगीतकार रोशन कुमारजी! ब्रेक में जाने से पहले हमने उनके भाई रईश और भाभी नीलिमा की प्रेम कहानी और उनकी शादी के बारे में जाना। आइए अब जानते हैं रोशनकुमार और फातिमाजी की प्रेम कहानी।

"तो रोशनजी! अब आप हमें अपनी और फातिमा की प्रेम कहानी बताईए। हम सभी आपकी प्रेम कहानी जानने के लिए बड़े उत्सुक हैं।" 

रोशन बोला, "जी ज़रूर अमिताजी! मैं आपको इस बारे में जरूर बताऊंगा। जैसा कि आप सभी जानते है की, मुझे अपनी स्कूल की नौकरी बहुत पसंद आने लगी थी। मुझे अब इस नौकरी में बड़ा ही आनंद आने लगा था।

रईश की शादी के बाद मानो फातिमा हमारे ही परिवार की सदस्य बन गई थी। रईश की शादी का सारा काम भी उसीने संभाल लिया था। इसलिए वह हमारे परिवार के पूरे तौर-तरीकों से परिचित थी। फातिमाने मेहमानों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वह हर चीज़ का बहुत बारीकी से ध्यान रखती थी। फातिमा के प्रति मेरी जो भावना थी उसने मेरे मन के कोने में एक अनोखा स्थान बना लिया था।

जहाँ तक मेरी बात है, भले ही मैंने फातिमा को कभी भी नहीं देखा था लेकिन मुझे उसकी सुंदरता का मन ही मन एहसास होता रहता था। मेरी कल्पना के रंगो से भरी दुनिया में वह बेहद खूबसूरत थी। दर्शिनीने मुझे फातिमा की शक्ल के बारे में जो भी बताया था उसके आधार पर मैंने अपने मन में उसकी एक छवि बनाई थी, जो मुझे बहुत पसंद थी। मैं इसे प्रतिदिन अपने मन की आंखों से देखता था।

रईश की शादी के बाद हमारे परिवार के साथ फातिमा का रिश्ता और भी गहरा हो गया था। अब जब भी मैं स्कूल में छात्रों को संगीत सिखा रहा था, तो बीच-बीच में फातिमा के विचार मेरे मन को घेर लेते थे। मैं उसके बारे में ही सोचता रहता था। फिर अचानक मुझे अपने अंधेपन का खयाल आता और मैं पूरी तरह से छल उठता था। मेरे मन में एक युद्ध सा छिड़ जाता था और मैं सोचने लगता था कि मैं फातिमा के लिए ये क्या सोच रहा हूँ? क्या फातिमा कभी मेरे जैसे अंधे आदमी से प्यार कर सकती है? नहीं! नहीं! कभी नहीं..मुझे फातिमा की जिंदगी बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है.. सिर्फ फातिमा ही नहीं कोई भी लड़की मुझ जैसे अंधे आदमी से क्यों शादी करना चाहेगी? मैं शादी करने का सपना ही गलत देख रहा हूं।

लेकिन इन्सान के मन को कहां कोई लगाम होती है! जितना अधिक मैं इसके बारे में सोचता, उतना ही अधिक मैं फातिमा के प्रति आकर्षित होता चला गया। उस दिन भी मैं वैसे ही फातिमा के ख्यालों में खोया हुआ था तभी मेरे कानों को फातिमा की आवाज सुनाई दी।

फातिमा मेरे पास आकर बोली, "रोशनजी! ममतादेवी आपको ऑफिस में बुला रही हैं।'' 

फातिमा के ये कहते ही मेरे विचार टूटे और मैंने कहा, "फातिमा! ममतादेवी मुझे बुला रही है और वह भी ऐसे समय में? लेकिन क्यों?" 

फातिमाने कहा, "यह तो मैं भी नहीं जानती, लेकिन वह तुमसे किसी बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बात करना चाहती है। उन्होंने मुझसे बस इतना ही कहा है। इससे अधिक तो अब वो ही तुम्हे बता सकती है।"

मैंने कहा, "तो फिर ठीक है। तुम मुझे वहां ले चलो।" 

फातिमा मेरा हाथ पकड़कर मुझे ममतादेवी के कार्यालय में ले गई। ऑफिस पहुँचते ही मैंने ममतादेवी से कहा, "मैडम! आपने मुझे बुलाया? बताईए आपको मुझसे क्या काम था?"

ममतादेवीने कहां, "हा! मैंने ही तुम्हें बुलाया है। मैं तुमसे एक खास बात करना चाहती हूं। जैसा कि तुम सबको पता है की अगले सप्ताह हमारे विद्यालय के दस साल पूरे हो रहे हैं, तो इस विद्यालय की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर मैं चाहती हूं कि हम इसे बहुत अच्छे से मनाएं। यहां कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहेंगे, इसलिए मैं चाहती हूं कि हमारे छात्र उनके सामने अपना संगीत प्रस्तुत करे। मैं चाहती हूं कि आप कोई भी पांच छात्रों को इसके लिए तैयार करें।"

ममतादेवी की यह बात सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई और खुशी के मारे मैं बोल उठा, "वाह! ये तो आपने बहुत ही अच्छी बात कही है मैडम। मैं निश्चित रूप से पाँच छात्रों को अच्छी तरह से तैयार करूँगा। मैं अपने आप को भाग्यशाली समझूंगा कि आपने यह मौका मुझे दिया।" 

ममतादेवीने फिर कहा, "इस कार्यक्रम में राजनेता तो मौजूद रहेंगे ही लेकिन संगीत विशेषज्ञ और कई अन्य कलाकार भी मौजूद रहेंगे इसलिए छात्रों पर विशेष ध्यान देकर तैयारी करवाना।"

मैंने कहा, "हाँ मैडम। मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा।" 

ममतादेवी बोली, "जी, मुझे आप पर पूरा भरोसा है और इसीलिए यह काम मैंने आपको ही सौंपा है और फातिमा भी इस काम में आपकी मदद करेगी।" 

मैंने कहा, "जी. धन्यवाद।" 

ममतादेवीने कहा, "अब आप जा सकते हैं। याद रखना आपके पास केवल एक सप्ताह है।" 

मैंने कहा, "हां मैडम।" इतना कह कर मैं ममतादेवी के ऑफिस से निकल गया।

बाहर आकर फातिमाने मुझसे पूछा, "रोशन! तुम्हें क्या लगता है? क्या हम सिर्फ एक ही सप्ताह के भीतर पांच छात्रों को तैयार कर पाएंगे? क्या ये वक्त थोड़ा कम नहीं है?"

मैंने कहा, "हाँ, फातिमा! समय कम तो है, लेकिन ममता देवीने हम पर बहुत विश्वास दिखाकर हमें यह काम सौंपा है, इसलिए हमें हार नहीं माननी चाहिए। हमें खुद पर विश्वास रखना चाहिए और प्रयास करते रहना चाहिए। वैसे भी, वो कहावत है न कि, साहस के बिना कोई उपलब्धि नहीं है। इसलिए हार मानकर बैठ जाने की बजाय हमें प्रयास करना चाहिए।"

फातिमा बोली, "सच कह रहे हो तुम। लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम्हे सकारात्मकता से भरपूर इतनी ऊर्जा कहां से मिलती है?”

फातिमा की इस बात का उत्तर देते हुए मैंने कहा, "शायद प्रकृति से? ऐसा कहा जाता है कि भगवान जब हमसे कुछ लेता है, तो बदले में कुछ और देता है। मेरे मामले में भी शायद यही हुआ है। जब एक दुर्घटना में मेरी आंखें चली गईं, तो मैं गहरे अंधेरे में चला गया था। मुझे लगता था कि अब तो मेरी जिंदगी बेकार हो गई है। अब मैं जीना नहीं चाहता था। कभी-कभी मैंने आत्महत्या के बारे में भी सोचा। लेकिन फिर धीरे-धीरे मेरे परिवारने मुझे  संभाला और मुझे फिर से खड़ा होने में मेरी मदद की और खासकर मेरे भाई रईशने।

जब मैंने पूरी तरह से उम्मीद छोड़ दी थी, तो वह रईश ही था जिसने मेरे मन में उम्मीद जगाई थी कि मेरी आंखों की ज्योति जरूर वापस आ जाएगी। जिस दिन यह हादसा मेरे साथ हुआ उसी दिन रईशने तय कर लिया था की वो आंखों पर रीसर्च करेगा और मेरे जीवन में ज्योति जगाएंगा। 

इतना कहते हुए तो मेरी आंखों में आंसू आ गये। यह सुनकर फातिमा भी बोली, "वाकई! आपका भाई बहुत महान है। मैंने उसे देखा है और इसीलिए मैं कहती हूं कि वह जो चाहेगा वह करके ही मानेगा। मैं दुआ करूंगी कि वह अपने रिसर्च में सफल हो और आप एकबार फिर से देख पाए।

मैंने कहा, "हाँ, उम्मीद पर ही तो ये दुनिया कायम है। लेकिन फिलहाल ये सब बातें छोड़ते है और प्रोग्राम की तैयारी पर ध्यान देते है। वक्त बहुत कम है।" 

फातिमा बोली, “हाँ, हाँ तुम सही बोल रहे हो। चलो प्रोग्राम की तैयारी करते है।” 

मैं और फातिमा अब प्रोग्राम की तैयारी करने लगे।

(क्रमश:)