गौतम बुद्ध का जीवन हर किसी के लिए प्रेरणादायी है। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। इनका जन्म 483 ईस्वी पूर्व तथा महापरिनिर्वाण 563 ईस्वी पूर्व में हआ था। बचपन में उनको राजकुमार सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गौतम बुद्ध के जन्म से 12 वर्ष पूर्व ही एक ऋषि ने भविष्यवाणी की थी कि यह बच्चा या तो एक सार्वभौमिक सम्राट या महान ऋषि बनेगा। 35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वह संसार का मोह त्याग कर तपस्वी बन गए थे और परम ज्ञान की खोज में चले गए थे। आइए आज हम आपको सिद्धार्थ के महात्मा बुद्ध बनने तक के सफर के बारे में बताते हैं।जन्मकालबुद्ध का गोत्र गौतम था। बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था। उनका जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ था। बुद्ध के जन्म के सात दिन के भीतर ही उनकी माता का देहांत हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी गौतमी ने किया था। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया था। शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन सिद्धार्थ के पिता थे। सिद्धार्थ के जन्म से पूर्व हुई भविष्यवाणी से परेशान होकर उनके पिता ने उन्हें तपस्वी बनने से रोकने के लिए राजमहल की परिधि में रखा। गौतम राजसी विलासिता में पले-बढ़े, बाहरी दुनिया से आक्रांत, नृत्य करने वाली लड़कियों द्वारा मनोरंजन, ब्राह्मणों द्वारा निर्देशन, और तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती, तैराकी और दौड़ में प्रशिक्षित किए गए थे। कम उम्र में ही उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से करा दिया गया। दोनों का एक पुत्र भी हुआ। जिसका नाम राहुल था।गौतम बुद्ध की वजह से बदल गया इस स्त्री का जीवन, जानें कैसेसिद्धार्थ बचपन से ही अत्यंत करुण हृदय वाले थे। वह किसी का भी दुख नहीं देख सकते थे। इतने प्रयासों के बाद भी, 21 वर्ष की आयु में उनकी अपने राज्य कपिलवस्तु की गलियों में उनकी दृष्टि चार दृश्यों पर पड़ी ये दृश्य थे एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति, एक रोगी, एक पार्थिव शरीर, और एक साधु। इन चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ समझ गए थे कि सब का जन्म होता है, सब को बुढ़ापा आता है, सब को बीमारी होती है, और एक दिन, सब मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इससे व्यथित होकर उन्होंने अपना धनवान जीवन, अपनी पत्नी-पुत्र एवं राजपाठ का त्याग करते हुए साधु का जीवन अपना लिया और जन्म, बुढ़ापा, दर्द, बीमारी, और मृत्यु से जुड़े सवालों की खोज में निकल गए।ज्ञान की प्राप्तिसिद्धार्थ ने अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने शुरू किए। समुचित ध्यान लगा पाने के बाद भी उन्हें इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले फिर उन्होंने तपस्या भी की लेकिन अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। इसके बाद कुछ और साथियों के साथ अधिक कठोर तपस्या प्रारंभ की। ऐसे करते हुए छः वर्ष व्यतीत हो गए। भूख से व्याकुल मृत्यु के निकट पहुंचकर बिना प्रश्नों के उत्तर पाए वह कुछ और करने के बारे में विचार करने लगे थे। एक गांव में भोजन की तलाश में निकल गए फिर वहां थोड़ा सा भोजन गृहण किया। इसके बाद वह कठोर तपस्या छोड़कर एक पीपल के पेड़ (जो अब बोधिवृक्ष के नाम से जाना जाता है) के नीचे प्रतिज्ञा करके बैठ गए कि वह सत्य जाने बिना उठेंगे नहीं। वह सारी रात बैठे रहे और माना जाता है यही वह क्षण था जब सुबह के समय उन्हें पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उनकी अविजया नष्ट हो गई और उन्हें निर्वन यानि बोधि प्राप्त हुई और वे 35 वर्ष की आयु में बुद्ध बन गए।बुद्ध को शाक्यमुनि के रूप में भी जाना जाता है। सात हफ्तों तक उन्होंने मुक्ति की स्वतंत्रता और शांति का आनंद लिया। प्रारंभ में तो वह अपने बोधि के बारे में दूसरों को ज्ञान नहीं देना चाहते थे। बुद्ध का मानना था कि अधिकांश लोगों को समझाना बहुत मुश्किल होगा। मान्यता है कि बुद्ध को स्वयं ब्रह्माजी ने अपने ज्ञान को लोगों तक पहुंचने का आग्रह किया था फिर वह इस पर सहमत हो गए। इस तरह उन्होंने अपना पहला धर्मोपदेश उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास सारनाथ में अपने पहले मित्रों को दिया था।