मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 16 राज कुमार कांदु द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 16

लघुकथा क्रमांक -42

उधार की चमक
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सौरमंडल में अपने इर्दगिर्द घूम रहे ग्रहों की बात सुनकर धरती के कान खड़े हो गए। बात ही कुछ ऐसी थी।सभी नौ ग्रह अपनी अपनी चमक के बारे में डींगें हाँक रहे थे। शुक्र ने इतराते हुए कहा, "तुम लोग कुछ भी कह लो, लेकिन पूरे सौरमंडल में मेरे जैसा चमकदार कोई ग्रह नहीं।"दूर खड़ा प्लूटो अपनी सर्द आवाज में बोला, "साथियों, ये जो चमकता हुआ सूर्य तुम्हें नजर आ रहा है न, उसकी चमक के पीछे भी मेरा ही हाथ है। जब से मैंने अपनी चमक को नियंत्रित किया है लोगों को सूर्य की चमक दिखने लगी है, नहीं तो पहले सूर्य को जानता ही कौन था ?"

सूर्य का इस कदर अपमान देखकर धरती तमतमा गई, लेकिन सूर्य अपनी पूरी चमक के साथ अब भी मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

(एक आत्ममुग्ध नेता द्वारा महात्मा गाँधी के बारे में की गई टिप्पणी के बाद सृजित एक रचना।)

राजकुमार कांदु

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लघुकथा क्रमांक -43

एक अनोखी रेस

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रेस शुरू हो चुकी थी। खचाखच भरे स्टेडियम में लोग साँस रोककर इस अनोखे रेस को देख रहे थे।

दाल तेज दौड़ते हुए काफी आगे निकल चुकी थी कि तभी अचानक पेट्रोल और डीजल ने अपनी गति बढ़ा दी। 

पेट्रोल डीजल को तेज दौड़ते देख सबसे आगे चल रहे रसोई गैस के सिलेंडर के कान खड़े हो गए। उसने भी अपनी गति बढ़ा दी। रसोई गैस का सिलेंडर अब भी सबसे आगे दौड़ रहा था।

 पेट्रोल और डीजल दाल के करीब पहुँचकर खुदपर इतरा ही रहे थे कि तभी बगल से गुजरते सरसों के तेल की तेज गति देखकर हैरान रह गए। सबको पीछे छोड़ता हुआ सरसों का तेल अब डीजल पेट्रोल से बहुत आगे दौड़ रहा था।

 हमेशा फिसड्डी रहनेवाला आलू भी अब काफी तेज दौड़ने लगा था हालाँकि रेस में अभी भी वह काफी पीछे था। उसकी सहचरी प्याजो रानी अलबत्ता इस दौड़ में उसका साथ निभा रही थी। 

 इस अफलातून दौड़ को देखकर सभी सब्जियाँ भी इस दौड़ में शामिल हो गईं। अब टमाटर भी भला कब तक चुप रहता ?  दौड़ पड़ा वह भी इन सब्जियों के साथ ही रेस में और देखते ही देखते अपनी पूरी बिरादरी को पछाड़कर सबसे आगे लगभग सौ की स्पीड से दौड़ने लगा। तेज दौड़ते टमाटर की कनपटियाँ लाल सुर्ख हो गई थीं, लेकिन उसके चेहरे पर थकान का कोई नामोनिशान नहीं था। 

मैदान में दौड़ रहे इन सभी धावकों में गजब की प्रतिस्पर्धा नजर आ रही थी। इनके अंदर गजब का उत्साह बना हुआ था लेकिन दिल थामकर यह दौड़ देख रही जनता अब बुरी तरह थक चुकी थी। थकान के मारे ये तमाशबीन एक एक कर स्टेडियम से बाहर निकलने लगे। 

कुछ देर बाद धावकों की दौड़ जारी थी लेकिन स्टेडियम खाली हो चुका था। 

राजकुमार कांदु 

लघुकथा क्रमांक 44

मुकदमा 

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अदालत परिसर से बाहर आकर हरिया एक पेड़ के नीचे बैठ गया और फूट फूटकर रोने लगा। अचानक ऐसा लगा जैसे उसे कोई झिंझोड़ रहा हो। उसने नजर उठाकर देखा, सामने एक साँवला सा औसत कदकाठी का युवक खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसके चेहरे पर गजब का तेज और आकर्षण था। उसने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा और बड़ी आत्मीयता से पूछा, "क्या हुआ ?.. क्यों रो रहे हो ?"

" क्या करूँ रोने के अलावा ?" सहानुभूति के दो शब्द सुनकर हरिया एक बार फिर फूट कर रो पड़ा और कुछ देर बाद संयत होकर बताया, "गाँव में मेरे पुश्तैनी खेत पे अनधिकृत कब्जे का मुकदमा पैंतीस साल पहले मेरे दादाजी ने दायर करवाया था। तीस साल बाद तहसील की अदालत में फैसला हमारे हक में सुनाया गया। बता नहीं सकते हमें कितनी खुशी हुई थी..लेकिन इससे पहले कि हमारे खेत हमें वापस मिल पाते उस अनधिकृत कब्जेदार ने इस फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में अपील दाखिल कर दिया। अब पिछले पाँच साल से यहाँ हमें मिल रही है न्याय के नाम पर सिर्फ तारीख पे तारीख। आज तो पड़ोसी से किराए के पैसे उधार लेकर आ भी गया था लेकिन रो इसलिए रहा हूँ कि अगली तारीख पर मैं क्या करूँगा ? मेरे पास अब पैसे तो हैं नहीं और न ही कोई कमाई का जरिया।" कहकर वह फिर रोने लगा। 

वह अजनबी युवक मुस्कुराया। उसके कंधे पर प्यार से हाथ रखकर उसे सांत्वना देते हुए बोला, "धैर्य रखो ! इंतजार का फल मीठा होता है। अब मुझे ही देख लो ! ..पिछले लगभग 170 साल से अपने घर पर चल रहे विवाद की वजह से 45 वर्षों से मुकदमा झेल रहा हूँ।  लेकिन मैं निराश नहीं हूँ !" 

उस युवक की बात सुनकर हरिया चौंका, "हैं !.. क्या कह रहे हो ?.. कौन हो तुम ?" 

"तुम मुझे चाहे जिस नाम से पुकार लो,.. वैसे लोग मुझे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम से जानते हैं !"

राजकुमार कांदु 

मौलिक / स्वरचित