शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 8 Kaushik Dave द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • किट्टी पार्टी

    "सुनो, तुम आज खाना जल्दी खा लेना, आज घर में किट्टी पार्टी है...

  • Thursty Crow

     यह एक गर्म गर्मी का दिन था। एक प्यासा कौआ पानी की तलाश में...

  • राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 14

    उसी समय विभीषण दरबार मे चले आये"यह दूत है।औऱ दूत की हत्या नि...

  • आई कैन सी यू - 36

    अब तक हम ने पढ़ा के लूसी और रोवन की शादी की पहली रात थी और क...

  • Love Contract - 24

    अगले दिन अदिति किचेन का सारा काम समेट कर .... सोचा आज रिवान...

श्रेणी
शेयर करे

शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 8

"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"
( पार्ट -८)

( प्यार में नफरत की कोई जगह नहीं अगर घर में कोई व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में है तो घर के लोग ही उसे असली गर्मजोशी दे सकते हैं।)

डॉक्टर शुभम मरीज सोहन को देखकर अपने भाई सोहन की याद आती है।
भाई सोहन बिमार हो जाता है और हेल्थ दिनों दिन बिगड़ती जाती है।
अब आगे 

मम्मी की रो रोकर हालत खराब होती थी । मुझसे देखा नहीं जाता था। मैं भी अकेले में रोता था। मम्मी  सोहन के पास रोती नहीं थी।
अकेले मे रोती थी और मैं मायूस हो कर देखता था।

एक दिन पापा-मम्मी सोहन को शहर के अस्पताल में दिखाने ले गये।  मैं एक पड़ोसी के घर में रह गया था, मनोमन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि मेरा भाई ठीक हो जाए तो अच्छा होगा।

अच्छे डॉक्टर की दवा से सोहन थोड़ा बेहतर होता दिख रहा था।
लेकिन...लेकिन...एक दिन आधी रात को वह फिर चिल्लाकर उठा।
बोला... माँ... माँ, तुम मेरे साथ रहो मुझे डर लग रहा है।

माँ सोहन को दुलार कर सुलाने की कोशिश करने लगी।
लेकिन सोहन इतना डरा हुआ था कि उसे नींद नहीं आ रही थी.
माँ पूरी रात उसके साथ जागती रही।
ये सब मुझे सुबह पता चला.

अगली शाम सोहन का व्यवहार अजीब होने लगा।
उसकी आँखें मुंदने लगीं।  मुंह से झाग निकलने लगा।  माँ को लगा कि सोहन को दौरा पड़ गया है।
माँ सोहन की सेवा करती रही।

दो दिन बाद सोहन सामान्य हो गया।

एक दिन सोहन को डॉक्टर को दिखाने के लिए शहर ले जाना पड़ा।
चूँ कि पड़ोसी बाहर गए हुए थे, पापा-मम्मी मुझे भी अपने साथ ले गए।
माँ के बिना सोहन अकेले शांत नहीं रह पाता था।
लेकिन वह दिन हमारे परिवार के लिए एक सदमा था और साथ ही घर के दो सदस्यों को खोना भी।
मैं आज तक उस सदमे से बाहर नहीं आ पाया हूं।

इसीलिए मैंने डॉक्टर बनने की लाइन चुनी,
और मनोचिकित्सक बन गया।


उस दिन हमने गांव से शहर के लिए बस पकड़ी। अस्पताल का समय हो गया था,  अस्पताल में भी काफी भीड़ थी।  
मैं बैठकर थक गया था। आते जाते मरीजों को देखता रहता।

डेढ़ घंटे बाद सोहन का नंबर आया।
मैं माँ के साथ डॉक्टर के केबिन के बाहर बैठ गया।
पापा सोहन को डॉक्टर के केबिन में ले गए।
आधे घंटे बाद पापा और सोहन बाहर आये।  डॉक्टर द्वारा बताई गई दवा लेनी थी।  लेकिन सरकारी दवा दुकान में सारी दवा उपलब्ध नहीं थी, इसलिए बाजार की दवा दुकान से दवा लेनी पड़ी।

हम अस्पताल परिसर में एक जगह बैठ गये।
पिताजी ने माँ से कहा कि अगर डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा ली जाए तो सोहन ठीक हो जाएगा।  हर पखवाड़े नियमित रूप से दवा लेनी होगी। अगर पन्द्रह दिन में सुधार नहीं हुआ तो पन्द्रह दिन के बाद सोहन को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना होगा।  चिंता मत करो सोहन ठीक हो जाएगा, दवाएँ महंगी हैं लेकिन मैं पैसे का इंतजाम कर लूँगा।

यह सुनकर माँ को चिंता हुई लेकिन यह जानकर माँ को शांति मिली कि सोहन ठीक हो जाएगा।

दोपहर के बारह बज रहे थे, मुझे भूख लग रही थी।
मुझे लगता था कि भाई को भी भूख लगी होगी।
लेकिन भाई का निस्तेज चेहरा देखकर मुझे चिंता हो रही थी।भाई की हालत देखकर मैं उससे बात नहीं कर सका।

माँ ने डिब्बे से घर का बना हुआ  पोहा और गुड़ भी निकाला साथ में थेपला और अचार भी।


माँ ने सोहन को और मुझे खाने के लिए दिया, सोहन को भी भूख लग रही थी।  माँ धीरे-धीरे सोहन को खिलाने लगी।
सोहन खाते खाते मेरी तरफ देखता और इशारे से मुझे भी खानें को कहता था।

मैंने मां से कहा कि आप और पापा भी कुछ खा लें।
लेकिन माँ ने कहा कि नहीं.. अभी नहीं, पहले मेरे बेटे पेटपूजा करेंगे और फिर हम खाना खाएँगे।

हमारे खाने के बाद पापा और मम्मी ने भी खाना खाया।

घर जाने से पहले थोड़ी सी दवाइयां बाजार से लेनी थी।
तो पापा ने हमें हॉस्पिटल के बाहर बस स्टैंड पर बैठा दिया।
और कहा कि सामने दवाई की दुकानें हैं, सड़क पर ट्रैफिक ज़्यादा है इसलिए मैं दवा लेने के लिए अकेले सड़क पार करता हूँ।  सावधान रहें कि बच्चे सड़क पर न निकलें।

यह कहकर पिताजी सड़क पार कर दवा खरीदने दुकान पर चले गये।

माँ सोहन के सिर पर हाथ फिराती और उसे कुछ सीख देती। मैं देखता रहता था।

सोहन को सड़क पर आवाजाही और यातायात देखने में मजा आता था।
तभी उसे सड़क के दूसरी ओर एक गुब्बारे वाला और एक खिलौने वाला दिखाई दिया।
सोहन माँ से गुब्बारे के लिए जिद करने लगा।
माँ सोहन को समझाती रही।
जब तुम्हारे पापा आएँगे तो मैं ले आऊँगा।  लेकिन सोहन की जिद बढ़ती गई।
मैंने अपने भाई से भी कहा कि पापा आएंगे तो हम गुब्बारे ले लेंगे।
लेकिन सोहन को गुस्सा आ गया।
( नये पार्ट‌‌‌ में सोहन क्या करेगा? सोहन अपनी ज़िद पर अड़ा रहता है और और क्या से क्या होगा जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
-कौशिक दवे