ब्रुन्धा-एक रुदाली--भाग(६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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ब्रुन्धा-एक रुदाली--भाग(६)

किशना ने वहाँ उपस्थित लोगों के सामने अपनी बेगुनाही साबित करनी चाही,लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी,वो चीखता रहा चिल्लाता रहा कि मैंने ठाकुर साहब का खून नहीं किया है लेकिन किसी ने उसकी कही बात पर ध्यान ही नहीं दिया और फिर पुलिस आई और उसे गिरफ्तार करके अपने साथ लिवा ले गई....     किशना के गिरफ्तार हो जाने पर ब्रुन्धा ने अपनी माँ गोदावरी से पूछा कि...." बाबा को वो लोग अपने साथ क्यों ले गए हैं"तब गोदावरी ने उससे कहा..."तेरे बाबा को वो लोग कोई जरूरी काम करवाने के लिए ले गए हैं"   और भला गोदावरी ब्रुन्धा के सवाल का क्या जवाब देती,इसके बाद गोदावरी किशना से मिलने शहर गई और जब वो जेल में उससे मिलने पहुँची तो उसकी हालत देखकर वो रो पड़ी,फिर उसने किशना से कहा...."किशना! तूने ऐसा क्यों किया,माना कि मैं ठाकुर साहब से छुटकारा चाहती थी लेकिन ऐसे नहीं,तुझे उनका खून नहीं करना चाहिए था"गोदावरी की बात सुनकर किशना का कलेजा फट गया और वो उससे बोला..."तो तू भी यही समझती है कि ये खून मैंने किया है,गोदावरी! तूने ये सोच भी कैंसे लिया कि मैं उनका खून कर सकता हूँ""तूने नहीं किया ठाकुर साहब का खून तो फिर किसने किया",गोदावरी ने किशना से पूछा....तब किशना बोला..."मुझे नहीं मालूम गोदावरी! कि उनका खून किसने किया है,मैं जब वहाँ पहुँचा तो ठाकुर साहब के सीने में पहले से ही खंजर घुपा हुआ था,उस वक्त मैंने कुछ सोचा नहीं और आननफानन में उनके सीने में लगा खंजर निकाल बैठा और ऐसा करते हुए मुझे ठाकुराइन ने देख लिया ,फिर उन्होंने मुझ पर ठाकुर साहब के खून का इल्जाम लगा दिया","ओह....अब मुझे सब समझ में आ रहा है,तो ये सब चाल ठकुराइन की है,वो ही ठाकुर साहब को अपने रास्ते से हटाना चाहती थी और उन्होंने ही ठाकुर साहब का खून करके इल्जाम तेरे सिर पर थोप दिया", गोदावरी बोली..."तो क्या ठाकुराइन ऐसा कर सकती है",किशना ने गोदावरी से पूछा..."ठकुराइन ने ही ये सब किया है,मैं ये यकीन के साथ कह सकती हूँ",गोदावरी बोली..."लेकिन ठकुराइन के खिलाफ गवाही देगा कौन,खून से भरा खंजर तो मेरे हाथ में था,मैं अगर चीख चीखकर भी खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश करूँ तो कोई भी मेरी बात नहीं मानेगा क्योंकि मेरे पास ठकुराइन के खिलाफ कोई सुबूत ही नहीं है",किशना बोला..."हाँ! तू ठीक कहता है किशना!",गोदावरी बोली..."तो अब मेरा क्या होगा गोदावरी! क्या मुझे यूँ ही जेल में सड़ना पड़ेगा",किशना ने गोदावरी से कहा...."तू चिन्ता मत कर किशना! मैं कुछ करती हूँ शायद कोई रास्ता निकल पाएँ",गोदावरी किशना से बोली..."तू क्या करेगी गोदावरी! तेरी कौन सुनेगा भला,मैं गाँववालों के सामने खूनी साबित हो चुका हूँ,मेरे पक्ष में भला कौन गवाही देगा",किशना ने मायूस होकर गोदावरी से कहा..."हाँ! लेकिन अपनी तरफ से कोशिश करने में क्या जाता है,आगें भगवान की मरजी", गोदावरी ने किशना से   कहा....     और तभी एक हवलदार वहाँ आकर बोला कि कैदी से मिलने का वक्त खत्म हो चुका है,इसलिए गोदावरी जेल से बाहर आ गई,गाँव आकर उसने सभी के सामने किशना की रिहाई करवाने की गुहार लगाई  लेकिन कोई भी उसकी मदद करने को तैयार नहीं हुआ और रही हवेली के नौकरों की बात तो ठकुराइन पन्नादेवी ने उन सबके मुँह में मोटी रकम ठूँस दी थी,जिससे सभी की जुबान बंद हो चुकी थी.....     गोदावरी ने अपनी तरफ से हर तरह की कोशिश कर ली लेकिन वो किशना को जेल से रिहाई दिलवाने में कामयाब ना हो सकी और फिर केस अदालत तक पहुँचा,वकील को ठकुराइन पन्नादेवी ने पैसे देकर ठाकुर नवरतन सिंह के खून का कुसूरवार किशना को ठहरवा दिया, चूँकि किशना पेशेवर कातिल नहीं था इसलिए  अंग्रेज जज़ ने किशना को फाँसी की सजा ना सुनाकर उम्रकैद की सजा सुना दी,किशना के जेल जाने पर गोदावरी रोती रही बिलखती रही,लेकिन अब कुछ भी नहीं हो सकता था और अब वो थकहार कर वापस गाँव चली आई....        वो अपनी नन्हीं ब्रुन्धा और बूढ़ी माँ मंगली का ख्याल रखने लगी,क्योंकि अब उसके सिवाय उन दोनों का ख्याल रखने वाला और कोई नहीं था,ऐसे ही दिन गुजरे और एक दिन गोदावरी चक्कर खाकर धरती पर गिर पड़ी, गोदावरी की ऐसी हालत देखकर मंगली परेशान हो गई और भागी भागी वैद्य जी के पास पहुँची और उन्हें बुलाकर घर ले आई,वैद्य जी ने गोदावरी की नब्ज टटोली और उससे बोले...."मंगली! इसे मेरी नहीं ,दाई माँ मन्तो की जरुरत है,शायद तू दोबारा नानी बनने वाली है"     ये खबर सुनकर मंगली को समझ नहीं आ रहा था कि वो रोएँ या हँसे,क्योंकि घर में खाने वाली तीन जान तो वे पहले से ही थी और कमाई का साधन एक ही था और वो था बड़े घरों में जाकर रुदाली बनकर मातम मचाना और वैसे भी रोज रोज कौन मरता है,यही सब सोच सोचकर मंगली का दिल बैठा जा रहा था और फिर वो मन्तो के पास गई और उसे लिवाकर ले आई,वो बस उस खबर को पक्का करना चाहती थी,जब मन्तो ने भी गोदावरी की नब्स टटोली और उसकी जाँच की तो खबर सच्ची निकली,लेकिन अब उस जीव को दुनिया में लाना जरूरी हो चुका था,क्योंकि गोदावरी को चौथा महीना लग चुका था और गोदावरी भी उस बच्चे को रखना चाहती थी,वो इसलिए क्योंकि वो किशना का खून था,क्योंकि वो तो पाँच छः महीनों से ठाकुर नवरतन के पास गई ही नहीं थी,वो इसलिए कि ठाकुर नवरतन का दिल अब किसी और रुदाली पर आ चुका था....     इस दौरान जैसे तैसे गोदावरी ने गर्भावस्था में मजदूरी करके परिवार का भरण पोषण किया,मंगली भी कहीं ना कहीं कोई ना कोई काम ढूढ़ ही लेती थी,लेकिन अब उसका शरीर बूढ़ा हो चुका था और मेहनत वाले काम काज उससे ना हो पाते थे,वो काम करने में जल्दी थक जाती थी.....     इस दौरान गोदावरी किशना से मिलने जेल गई और उसने बताया कि ये बच्चा उसका है,उन दोनों के प्यार की निशानी,गोदावरी की बात सुनकर किशना बहुत खुश हुआ और अपने पुराने सारे दुख दर्द भूल गया,उसने गोदावरी से बच्चे का और अपना ख्याल रखने को कहा....        और फिर एक रात गोदावरी को प्रसवपीड़ा हुई,मन्तो दाईमाँ गोदावरी का प्रसव करवाने आई और काफी दर्द सहने के बाद आखिरकार गोदावरी ने शिशु को जन्म दिया,शिशु के रोने से सौरीघर गूँज उठा और गोदावरी की आँखों में खुशी के आँसू भर आएँ,क्योंकि वो उसकी और किशना की सन्तान थी....

क्रमशः....

सरोज वर्मा....