‘‘फेस्टिवल आफ इंडिया’’ ‘जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव’
18 जुलाई 2015 को ‘‘फेस्टिवल आफ इंडिया’’ में भाग लेने का एक सुनहरा अवसर मिला। हम लोग सपरिवार कार्यक्रम बना चुके थे। नन्हें वेदांश को चार चके की ट्राली में बैठालकर सभी बस व ट्रेन की सफर करते हुए वहाँ जा पहुँचे। बताया गया कि यह उत्सव प्रति वर्ष ‘हरे कृष्णा सेंटर’ द्वारा दो दिवसीय आयोजित होता है। ‘लेक ओंटोरियो’ के बीचों बीच चारों ओर पानी से घिरे एक बड़े टापू में आयोजित होता है। पानी-जहाज की टिकिट के लिए लोगों की लम्बी लम्बी कतारें नजर आ रहीं थीं। भारी संख्या में भारतीयों और विदेशियों का जमावड़ा हो रहा था। अठारह एवं उन्नीस को यह दो दिवसीय कार्यक्रम था। ‘जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव’ के नाम से उस टापू में अनेक स्वयं सेवी संस्थाएँ खाने पीने की फ्री सेवा उपलब्ध करा रहीं थीं। आपसी सद्भाव व सहयोग की भावना बेमिसाल देखने को मिली। पंजाबी, गुजराती, दक्षिण भारतीय संस्थाएँ बड़े स्नेह प्यार से सबको खिला पिला रहे थे। मानों लगता था कि उन सभी में पुण्य लूटने की होड़ मची है, किसी भी हालत में यह मौका नहीं गवाना चाहते थे। इसमें लगता था काफी होटल व्यवसाय से जुड़े लोग थे, तभी तो उनके पास बड़े बड़े गंज कढ़ाहे बर्तन दिखाइ्र्र दे रहे थे।
जगह-जगह कृष्ण की नृत्य नाटिकाएँ चल रहीं थीं। विदेशी सैलानियों की उपस्थिति भी ज्यादा थी, इस वजह से कार्यक्रम में अंग्रेजी कामेन्ट्री द्वारा उन्हें हमारी संस्कृति, अध्यात्म और धर्म दर्शन से अवगत कराया जा रहा था। लोग बड़े ही इंट्रेस्ट के साथ ये सब देख रहे थे। धार्मिक साहित्य के स्टाल लगे थे। अंग्रेजी में लिखी गीता भागवत किसी न किसी देशी विदेशी के हाथों में अवश्य दिखलाई पड़ जाती थी। हम लोगों ने भी वहाँ जाकर सपरिवार खूब इंन्जवाय किया। भगवान जगन्नाथ स्वामी के दर्शन किये। उस टापू पर बने विशाल गार्डन और जगह जगह रंगीन फवारे को देख कर आनंद उठाया। हरियाली ही हरियाली थी। समुद्र के किनारे रेत में घर बनाने का आनंद उठाया। श्री कृष्ण की नृत्य नाटिकायें देखीं, जिसमें देशी विदेशी कलाकारों का दल प्रदर्शन कर रहा था। उनकी भाव भंगिमा, मेकअप,डायलाक डिलेवरी को देखकर तीव्र उत्सुकता मन में मचल रही थी। यहाँ पर पूर्व में मिल चुके वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. देवेन्द्र मिश्र जी का फोन आया उन्होंने हनुमान मंदिर में स्वामी मोहनदास सेवा समिति द्वारा ब्राम्टन में एक कविसम्मेलन के आयोजन के बारे में बताया और आने का निमंत्रण भी दिया।
वापसी में पानी के जहाज से टोरेन्टों शहर का भव्य नजारा देख रहा था। यह झील समुद्र के समान विशाल नजर आ रही थी। सामने भव्य बहुमंजिला इमारतों की शंखला नजर आ रही थी। उसके साथ ही सामने टोरेन्टो का विशाल गगन चुंबी टावर जो कि 533.33 मीटर ऊँचा कंक्रीट से बना कम्युनिकेशन एवं आॅब्जर्वेशन के लिये स्थापित किया गया था, नजर आ रहा था। 1976 में बना यह टावर लगातार 32 सालों तक अर्थात 2007 तक दुनिया का सबसे ऊँचा फ्री -स्टैन्डिग स्ट्रक्चर था जो कि अब विश्व में तीसरे स्थान पर गिना जाने लगा है। इसे देखने के लिए हर साल बीस लाख से अधिक लोग आते हैं। सी.ए. का अभिप्राय कैनेडियन नेशनल टावर से है जो कि रेलवे ने बनवाया था। अब यह एक स्वतंत्र संस्था संचालित करती है। शाम को जहाज से सम्पूर्ण तट का मनोहारी दृश्य नजर आ रहा था। यहाँ से तट पर विशाल मछलीघर भी दिखाई दे रहा था। रात्रि को काफी समय के बाद घर वापसी हुयी।
इंटरनेट की वसुधा ,प्रयास ,साहित्यसुधा पत्रिका
इंटरनेट की एक साहित्यक पत्रिका वसुधा यहाँ से निकलती है। जिसे स्नेहा ठाकुर निकालती हैं एक बार जानकी रमण कालेज जबलपुर में उनसे मुलाकात हुयी थी उनका जबलपुर मायका था तो स्वाभाविक है कि उनकी शिक्षा दीक्षा यहीं की रही। श्री मती साधना उपाध्याय ने उन्हे पढ़ाया था। संयोग से उनका कार्ड मेरे पास था। फोन किया तो बहुत ही खुश हुयीं गौरव व मेरे से आधे घंटे तक बातचीत हुयी और घर पर आने का आमंत्रण मिला। उसी क्रम में श्री सुमन घई साहब से बातचीत हुयी इनकी इंटरनेट पत्रिका ‘साहित्य सुधा’ लोकप्रिय है जिसमें सैकड़ों साहित्यकार लेखकों को शामिल किया गया है उसमें मेरी भी रचनाएँ हैं। दूर होने के कारण मिलना कठिन लग रहा था। भविष्य में किसी कार्यक्रम में आकस्मिक मुलाकात ही आशा का विकल्प रह गया था। श्री समीर लाल जी से बातचीत हुयी जो कि जबलपुर के ही थे, अब वहाँ बस चुके हैं।
कनाडा में पन्द्रह अगस्त की धूम धाम
कल पन्द्रह अगस्त था, गौरव ने कहा पापाजी आपको कल यहाँ का पंद्रह अगस्त दिखाने के लिए ले चलेंगे। सुबह से डेन्टास इस्क्वायर में यह कार्यक्रम होता है काफी भारतीय समुदाय के लोग इकट्ठे होते हैं। सभी मिलकर पहले रैली निकालते हैं फिर स्टेज पर कलाकार अच्छा रंगारंग कार्यक्रम करते हैं। मेरा डेन्टास इस्क्वायर तक घूमना प्रायः होता ही रहता था। यह बाजार के बीचों बीच एक बड़ा खुला एरिया था। चारों ओर बड़ी ऊँची-ऊँची बहुमंजिला इमारतें और उन इमारतों में बड़े-बड़े विज्ञापन की फिल्म प्रदर्शन के लिए स्क्रीनें लगीं हुयीं थीं। उनमें दिनभर कुछ न कुछ दिखाया जाता था। जिससे वहाँ चहल-पहल और रौनक बनी रहती थी। पाँच दिशाओं की ओर जाती साफ-सुथरी सड़कें, सामने पाँच छै मंजिलों का विशाल माल सेन्टर पास ही लोकल रेलवे स्टेशन और बस स्टाप का साधन था।
इस खुले एरिया में एक ओर ओपन स्टेज बना था। यहाँ कुछ न कुछ कार्यक्रम होते ही रहते थे , कभी नृत्य,संगीत तो कभी गानों के। दर्शकों के आस पास रंगीन फुहारों के बीच यह सब देखना बड़ा आनंद दायक लगता था। मैं बेसब्री से आने वाली सुबह का इंतजार करता रहा। दूसरे दिन सुबह उठकर श्रीमती जी एवं बहू रोशी ने नाश्ता तैयार कर लिया था। नहा धोकर नास्ता किया और फिर सभी जा पहुँचे वहाँ, डेंटास चैराहे में।
चारों दिशाओं से भारतीय लोगों के आने का निरंतर क्रम चल रहा था। तिरंगे कलर में ‘‘इंडिया डे फेस्टिवल 2015 ’’के बैनर चारों ओर सजे हुए थे। बीच बीच में स्टेज से हिन्दी-अंग्रजी में इनाउन्समेंट हो रहा था। रैली के लिए लोग इकट्ठा हो रहे थे, अपने-अपने प्रदेश की पारंपरिक पोषाकों के साथ। भारत सरकार के प्रधान कौंसल जनरल श्री अखिलेश मिश्रा सपत्नीक उपस्थित थे। वहाँ के मेयर जाॅन टाॅरी और सांसद आदि देशी विदेशी मेहमान भी थे। बैंन्ड बाजे के साथ ही कई महिलाएँ मंगल कलश लिए खड़ीं थीं। दस पन्द्रह हजार से भी ज्यादा नर नारी और बच्चों का जन सैलाब उमड़ पड़ा था,
अपने-अपने हाथों में तिरंगा लिए हुए। पतांजलि योग पीठ, ब्रम्हाकुमारी आश्रम, जम्मू एंड कश्मीर शारिका फाउन्डेशन, तेलंगा-कनाडा एशोसिएशन, पंजाब, उत्तर प्रदेश, नृत्यकला मंदिर, मयूर कला डाॅन्स एकादमी, केरला एशोसिएशन, गुजराती गरबा टीम, नूपुर म्यूजिकल एवं डान्स स्कूल, कानन भट्ट ग्रुप, रामा डान्स एकेडमी, अफसाना डान्स ग्रुप, हरियाणा डान्स ग्रुप, स्पदंन कला आदि अपने-अपने बैनरों के साथ काफी संख्या में बाल-बच्चे, नर-नारी आ गये थे। भारत के किसी राजधानी में होने वाले हमारे इस राष्ट्रीय त्यौहार का अहसास करा रहे थे। जगह-जगह तिरंगे झंडे,टोपी की दुकानें तो कहीं कहीं नास्ते के स्टाल लगे हुए थे। जलूस तैयार था लोगों के हाथों में संस्थाओं के बैनर नजर आ रहे थे। अपने बैनर लिए बैंड बाजों के साथ अपनी पारंपारिक परिधानों में सभी उत्साह और जोश से लबरेज थे। छः सात हजार लोगों का जलूस तीन चार किलोमीटर का चक्कर लगा कर पुनः उसी स्थान पर लौट आया।
विदेशी अतिथियों ने मंच से अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में भाषण दिया तो सबने दिल खोलकर तालियाँ बजाईं। कार्यक्रम में योगा का प्रदर्शन, देश भक्ति के हिन्दी गाने और भारतीय लोक-नृत्य एक से बढ़कर एक कार्यक्रम देखने सुनने को मिले। जिसे देखकर हर हिन्दुस्तानी का सीना गर्व से फूल गया। विदेशी मेहमानों को भी हिन्दी राष्ट्रीय गानों में थिरकते हुये देखा। उक्त अवसर पर एक सोवेनियर का भी विमोचन हुआ ओर बटी, जिसमें हमारे अप्रवासी भारतीयों की उपलब्धियाँ एवं योगदान का उल्लेख किया गया था। इस तरह हम लोग भाव विभोर हो शाम तक पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम का आनंद लेते रहे।
बस इस कार्यक्रम में एक बात कचोटती रही कि स्थल के उस पार किनारे दस बीस मुसलमान भाई व सिक्ख भाई विरोध के नाम पर हाथों में बैनर लिए जो कि कश्मीरी आजादी और खालिस्तानी समर्थक गद्दार दिखाई दे रहे थे, वे मनहूस नारे लगाते दिख रहे थे। लोग इनको एक बार सरसरी तौर पर उपेक्षा भरी नजरों से देखते फिर अपने उत्सव में खो जाते। यहाँ कनाडा पुलिस बड़ी चैकस दिख रही थी।
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