टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 3 Manoj kumar shukla द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 3

इंदिरा गांधी इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर


रात्रि के लगभग 2.40 को मेरे प्लेन की उड़ान थी। लम्बी इंक्वारी कई जगह से गुजरने के बाद समय तो भागता ही नजर आ रहा था। अपना बड़ा लगेज तो जमा कर दिया। अब विभिन्न काउन्टरों पर चेकिंग का काम शेष रह गया था जिसमें काफी समय व भागदौड़ करनी पड़ रही थी। वरिष्ठजनों एवं रोगग्रस्त लोगों के लिए व्हील चेयर की सुविधा रहती है। इस सुविधा को प्राप्त करने के लिए पूर्व सूचना और कुछ चार्ज भी देना पड़ता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि विभिन्न काउन्टर पर लगने वाली लम्बी लाइन से छुटकारा मिल जाता हैं। चेकिंग काम भी जल्द ही निपट जाता है।


गौरव द्वारा श्रीमती और मेरे लिए व्हील चेयर की व्यवस्था करने के बावजूद उसकी उपलब्धता नहीं हो पा रही थी। किसी तरह काफी मान मनौवल करने के बाद एक व्हील चेयर की व्यवस्था हुई। श्रीमती के लिये जरूरी भी था, चूँकि उनकी रीड़ का आपरेशन हो चुका था। अतः मैंने निर्णय लिया मैं पैदल ही चलूँगा। व्हील चेयर में श्रीमती जी को बिठाया और अपना छोटा बैग लेकर मैं पैदल ही चल पड़ा। प्लेन तक पहुँचने और एयर पोर्ट के लम्बे रास्ते को पार करने में मुझे तो पसीना छूट गया। मैंने तो सपने भी नहीं सोचा था कि इतना लम्बा रास्ता होगा। जबकि लगेज के नाम पर साथ में एक छोटा ही बैग था, सभी बड़े बैग जमा कर दिये गये थे।

रात्रि के दो से ज्यादा बज गये थे। समय खिसकता जा रहा था। अभी दो तीन जगह और चेकिंग की लम्बी लाईनों से गुजरना था। व्हील चेयर के होने से सामान्य लोगों की लम्बी लाईनों में लगने से तो मुझको मुक्ति मिल चुकी थी। सीनियर सिटीजन के लिए चैकिंग के लिए लाइनें तो थीं, पर उतनी लम्बी नहीं थीं, जितनी सामान्य जनों के लिए थीं। इसके बाद चालू हुआ लम्बे चैड़े बरामदों को पार करना। वह भी लगभग दो फर्लांग से भी ज्यादा की दूरी थी। जिसे पहली बार एक अनजान व्यक्ति को कम समय में पार कर पाना असंभव था।


लगभग दौड़ते हुए पाँच मिनिट पूर्व ही विमान की सीट तक पहुँच पाया था। मेरी तो दिल की धड़कनें बढ़ गयीं थीं। पर समय पर अपनी सीट पा लेने पर खुशी भी हो रही थी। व्हील चेयर वाले उस लड़के को कुछ इनाम भी दिया, वह भी खुश हो गया। व्हील चेयर का फायदा कई बाधाओं को पार करने में मददगार साबित हुआ। व्हील चेयर पर ले जाने वाले उस लड़के का योगदान सचमुच मेरे लिए अविस्मरणीय रहा।


एरोप्लेन की उड़ान


अब हम लोग अपनी सीट पर बैठ चुके थे। कमर में सीट बेल्ट बाँधने का आदेश हो चुका था। विमान अपने निर्धारित समय पर अपनी उड़ान भरने जा रहा था। ऊपर उठते विमान से पहले अंदर कुछ सिहरन सी हुयी। हमें अपने बचपन के उन दिनों की याद आ गयी जब मेला में लगे हवाई झूले में बैठकर आनंद उठाया करते थे। जब झूला ऊपर की ओर जाता तो शरीर में अजीब सी सिरहन होती।कानों में अजीब सी सन् सन् की आवाज आ रही थी। थोड़ी ही देर में विमान अपने निर्धारित ऊँचाई पर पहुँच चुका तो फिर सब कुछ सामान्य, घर में बैठे आराम-कुर्सी जैसा आराम था। विमान के उद्घोषक द्वारा कमरबेल्ट खोलने के संकेत मिलते ही विमान में लोगों का आना जाना होने लगा।


अस्सी प्रतिशत यात्री हमारे देश के विभिन्न प्रान्तों के ही थे। कुछ पंजाबी ज्यादा नजर आ रहे थे। जो परदेश में अपनों से मेरी तरह मिलने या स्वदेश में मिलकर वापस हो रहे थे। कुछ विदेशी भारत भ्रमण कर स्वदेश की वापसी में थे। कुछ यात्री अपने सामने हर सीट के पीछे लगे टीवी स्क्रीन में फिल्म या मनोरंजक कार्यक्रम देखने का मजा ले रहे थे। कुछ बाथरूम आ जा रहे थे, तो कुछ आधे एक घंटे उड़ान के बाद से ही गहरी नींद में डूब चुके थे। चूँकि जीवन में यह मेरी पहली यात्रा थी इसलिए मेरी आँखों में नींद नहीं एक कौतूहल और विस्मय था।


विमान यात्रा के हर पल को अपने में समेटने का एक अजीब सा उत्साह और उमंग अंदर मचल रहा था। मेरी जहाँ तक नजर जाती लोगों के चेहरों, हाव भाव, क्रियाकलापों और विमान के अंदर की बनावट के साथ ही विमान परिचायकों के सेवा कार्यों को निहार रहा था। जब थक जाता तो खिड़की के बाहर झांकता घुप अंधेरे में कुछ खोजने का प्रयास करता। कभी कभी नीचे जब अपनी नजरों को डालता तो मुझे लाखों जुगनुओं की भाँति टिमटिमाते किसी छोटे बड़े शहर का अहसास करा जाता।

कुछ समय के बाद सूर्योदय हो चुका था। खिड़की से झाँक कर बाहर देखा अद्भुत नजारा था। किसी स्वर्गलोक की परिकल्पना का दृष्य सामने नजर आ रहा था। लगता था, अभी कहीं से नारद हाथ में वीणा बजाते हुए नारायण...नारायण कहते हुए प्रगट होंगे। श्वेत धवल बादलों का नजारा। चारों ओर फैली हुई रुई के विशालकाय उड़ते पहाड़ों का दृष्य जहाँ भी नजर दौड़ाओ, चारों ओर सफेद पहाड़ सा दिखाई पड़ रहा था। इन सबके ऊपर विशालकाय नीला आकाश इन दोनों के बीच में हमारा विमान स्थिर खड़ा होकर हमें किसी स्वर्ग लोक का सिंहावलोकन सा करा रहा था। सामने लगी स्क्रीन में विमान की तीव्रगति हमारी सोच को एकदम झुठला रही थी, सच्चाई से रूबरू कराती नजर आ रही थी।

विमान आकाश में अपनी निरंतर तीव्रगति से उड़ान भर रहा था। हमारे ऊपर वही साफ सुथरा नीला आकाश जो कभी पृथ्वी पर खड़े होकर हमें दिखाई देता है। यहाँ भी वैसा ही नजारा नजर आ रहा था। लगता था जैसे हम सभी को बादलों के ऊपर भी किसी दूसरे लोक में पहुँचा दिया हो। हर सीट के पीछे लगी स्क्रीन में लिखा आ जाता था कि हम जमीन से कितनी ऊँचाई पर एवं किस गति पर हैं। सफर के अभ्यस्त मुसाफिर तो इस खबर से बेपरवाह अपनी पसंदीदा फिल्म देखने में ही व्यस्त थे। तो कुछ मेरे जैसे लोग कल्पनालोक के इस रोमांचभरी दुनिया में अपने आप को खोया सा पा रहे थे।

अनवरत आठ घंटे अपनी सीट पर बैठने से बोर और पंगुपन से मुक्ति के लिये कुछ यात्रीगण क्रमशः उठकर टहलते हुये नजर आते या दैनिक क्रियाओं के लिये लोगों का आना जाना लगा रहता। बीच बीच में विमान के सजे संवरे, सूटेट बूटेट कर्मचारियों द्वारा सीटों की कतार के बीच से स्टील की पहियों वाली गाड़ी में खाने पीने की व्यवस्थाओं को करते हुए देखना एवं हवाई सफर में खाने का लुत्फ उठाना सचमुच बड़ा अनोखा सा लग रहा था। फिल्मों में तो अनेक बार देखने का अवसर मिला था पर वास्तविक दुनियाँ में हमारे जीवन में यह प्रथम अवसर था। तो स्वाभाविक था हमारे लिए अद्भुत और रोमांचक होना।

विमान में बैठते ही मेरे पास खिड़की वाली सीट बदलने के लिए एक महिला ने आकर आग्रह भी किया था। पर मैंने भी एक बच्चे की तरह उनके अनुरोध को ठुकरा दिया था। मेरी आँखें बाहर देखते देखते थक जातीं थीं, पर मन नहीं भरता था। वह कहता कि देखो बादलों के उपर की इस दुनिया को यहाँ भी वही पृथ्वी से दिखने वाला नीला आकाश है, इस विशाल आकाश में कितने पृथ्वी जैसे अनेक ग्रह और भी यत्र तत्र अधर में लटके होंगे और इस सौर्यमंडल में यत्र तत्र चक्कर लगा रहे होंगे.... कितना विचित्र है, हमारा यह सौर्यमंडल और हमारे उस प्रभु की जगत संरचना ...

विमान के उद्घोषणा कक्ष से सूचना प्राप्त हुई कि हमारा विमान बेल्जियम के ब्रसल्स हवाई अड्डे पर लेंडिग करने वाला है। आप सभी यात्री अपनी कमर में सीट बेल्ट को पुनः बाँध लें। यहाँ के समय के हिसाब से 7.55 सुबह के हो गये थे। यहाँ सभी यात्रियों की पुनः चेकिंग एवं ढाई घंटे का हाल्ट था। सभी यात्री विमान से उतर कर आवश्यक खाना पूर्ति में लग गये। यहाँ भी अपने पासपार्ट एवं छोटे बैग में रखे सामान की चेकिंग कराने के बाद बरामदे में आकर बैठ गये। समयावधि के बाद पुनः 10.15 पर विमान ब्रसल्स से कनाडा के टोरेन्टो शहर के लिए उड़ान भरने को तैयार हो गया। यहाँ से टोरेन्टो शहर तक के लिए शेष लगभग आठ घंटे की उड़ान थी।

आठ घंटे के पश्चात् हमारा विमान कनाडा के टोरेन्टो शहर के ऊपर लेंडिग के लिए चक्कर काट रहा था। नीचे पूरा शहर नजर आ रहा था। उँची-उँची इमारतों के बीच सड़कें, हरियाली, पेड़-पौधे, झीलें, नदी, तालाब, पहाड़ किसी बड़े केनवास पर किसी चित्रकार द्वारा बनाई सुन्दर पेंटिग की भाँति दृष्टिगोचर हो रहे थे। हरे रंग की कालीन जैसे यहाँ के लोगों ने धरा में जगह जगह बिछा दी हो। लगता था कि यह दुर्लभ दृष्य अपनी आँखों में समेट लूँ। बड़ा ही मनोहारी दृष्य लग रहा था।


अब टोरेन्टो शहर में हमारा विमान लेंडिग करने वाला था। शहर के ऊपर से नजदीक विमान गुजर रहा था। पूरी भूगोलिक स्थिति का एक क्षण अवलोकन हो गया था कि शहर कितना सुंदर होगा। घनी हरियाली के बीच बड़ी-बड़ी ऊँची विशाल इमारतों, मकानों के साथ सड़कों का बिछा जाल, नदियों और विशाल क्षेत्र में फैला जल उसकी विशाल जल समृद्धता का बखान कर रहा था।

अंततः विमान कनाडा के टोरेन्टो शहर के चक्कर लगाता हुआ, हवाई पट्टी पर लेंडिग कर खड़ा हो गया। अब मुझे इस समय अपनी मंजिल पाने के बाद जो खुशी होती है, वह हो रही थी। एक अनजाने शहर, एक अनजान देश, एक अनजाने परिवेश में, मैं अपने आपको अब अकेला खड़ा पा रहा था। मुझे बड़ा रोमांच का अहसास हो रहा था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि कैनेडा की यात्रा करने का ऐसा कभी सौभाग्य मुझे मिलेगा। दूसरी ओर बाहर प्रतीक्षारत अपने बेटे और अपने परिवार से मिलने की खुशी से मन आल्हादित हो रहा था। लगभग डेढ़ दो घंटे में सारी औपचारिकताएँ निभाने के बाद अपना सामान ले मैं बाहर निकला।