चोरपहरा Kishore Sharma Saraswat द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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चोरपहरा

चोरपहरा

पांडेय जी का एक छोटा सा परिवार था। पति-पत्नी और उनके दो सुपुत्र। प्रतिदिन सुबह सभी को घर से बाहर जाना पड़ता था। बड़े अपने काम से निकल जाते और छोटे विद्या ग्रहण करने। आजकल छोटे की परीक्षाएं चल रही थीं, इसलिये बाहरी लोगों का गाहे-बगाहे घर आना परीक्षा की तैयारी में विघ्न डालता था। माँ और बड़े भैया पहले ही जा चुके थे। इसलिये पिता जी को तरकीब सुझाते हुए छोटा बोलाः ‘

'पिताजी आप काम पर जाते समय बाहर से ताला लगा देना। मैंने दूसरे कमरे के दरवाजे की चिटकनी अंदर से लगादी है। लोग समझेंगे कि हम लोग बाहर गये हुए हैं। ऐसे में कोई परेशान नहीं करेगा और मैं फिर इतमीनान से अपनी परीक्षा की तैयारी करता रहूँगा।'

छोटे की बात का औचित्य पिता जी को भा गया। इसलिये उस पर अनुसरण करते हुए उन्होंने बाहर जाते समय सामने खुलने वाले दरवाजे पर बाहर से ताला जड़ दिया।

दिन के ग्यारह बजे के लगभग पड़ोस में रहने वाली मेडम किसी कार्यवश घर से बाहर आई तो पांडेय जी के घर की खिड़की के शीशे से बाहर निकलती रोशनी को देखकर रूक गई। ओह! ये लोग आज घर से निकलते समय बिजली का बटन बंद करना भूल गए। अब अनावश्यक पूरा दिन बिजली जलती रहेगी और बिना बात के बिजली का बिल बढ़ता रहेगा। परन्तु ऐसे में अब हो भी क्या सकता है। इस सोच के साथ वह इस अध्याय को भूल गई। अभी मुश्किल से एक घंटा भी व्यतीत नहीं हुआ था कि पड़ेास में रहने वाली मिसेज शर्मा ने दरवाजे पर दस्तक दी:

^मेडम! क्या कर रहे हो? कभी दो मिनट के लिए बाहर भी निकल आया करो। सारा दिन परदे में रहना सेहत के लिए ठीक नहीं होता।'

‘'मिसेज शर्मा, क्यों मज़ाक करते हो।' कहते हुए मेडम बाहर लॉन में आ गई और कहने लगीः

‘'आज पता नहीं ये लोग जाते समय क्यों लाइट बंद करना भूल गएI शायद जल्दी में होंगे। जल्दी-जल्दी में अकसर ऐसी भूल हो ही जाती है।'

‘'किस की बात कर रहे हो?' मिसेज शर्मा ने प्रश्न किया।

‘'पांडेय जी की।'

‘'लाइट कहाँ जल रही है? मुझे तो नज़र नहीं आ रही। आपको शायद वैसे ही भ्रम हुआ होगा।'

'मिसेज शर्मा, आप भी क्या बात कर रहे हो। मैंने थोड़ी देर पहले स्वयं अपनी आँखों से कमरे में रोशनी जलती हुई देखी थी। वो देखो! उस कमरे में।' परन्तु ज्योंही मेडम ने मुड़कर कमरे की ओर इशारा किया, रोशनी एकदम गुल थी।

‘'ओह! लगातार जगी रहने से खराब हो गई होगी।' अभी इस बात को समाप्त हुए पाँच मिनट ही हुए थे कि कमरे में किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ सुनाई दी।

‘'यह क्या? भीतर कुछ गड़बड़ जरूर है। लगता है रोशनी वाली आपकी बात सच है। मुझे तो शक है कहीं अंदर कोई चोर न हो। हमारी बातें सुनकर ही उसने रोशनी बंद की होगी।' मिसेज शर्मा ने तर्क दिया।

‘'हूँ! मुझे भी यही लगता है। परन्तु अब यह समय शोर करने का नहीं है। पहले तो चुपचाप से अपने घरों के पीछे वाले और छत के दरवाजे बंद कर लेते हैं। ऐसा न हो कि भागते समय वह हमारे घर में ही घुस जाए।' मेडम दबी आवाज में बोली।

दोनों ने शीघ्रता से अपने-अपने घरों के दरवाजे अǔछी प्रकार से बंद किये और फिर बाहर निकलकर पुनः अपनी भावी योजना पर विचार करने लगीं। उन्होंने सामने वाले दोनों दरवाजों का निरीक्षण किया। सामने के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था। इसलिये शक बगल वाले दरवाजे पर हुआ। उसे धीरे से धक्का मार कर देखा। अंदर से चिटकनी बंद थी। शंका गहराई। इसलिये आहिस्ता से बाहर की कुण्डी लगादी। ताकि चोर बाहर न निकल पाए। अचानक ख्याल आया कि पीछे के दरवाजे का क्या होगा I  हो सकता है कि शायद चोर ने पीछे के दरवाजे से ही अंदर प्रवेश किया हो। सामने की अपेक्षा पीछे की चैकसी बढ़ाना ज्यादा आवश्यक था। मिसेज शर्मा के घर के बाहर लॉन में माली बागवानी कर रहा था। अतः उसकी सेवाएँ लेना उपयुक्त समझा गया। चैकसी में कोई गड़बड़ न हो जाए, इसलिये पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा उसे सुनाया गया। अपने ऊपर थोपी गई जिम्मेवारी के निर्वहण में माली अपने आप को कुछ असहज महसूस करने लगा। थोड़ा ठिठक कर बोलाः ‘

'बीबी जी, चोर बहुत निर्दयी किस्म के लोग होते हैं। अगर हमारे साथ कोई ऊँच-नीच हो गई तो हमारी गहस्थी को कौन सम्भालेगा I'

‘'अरे बुद्धू! कुछ नहीं होगा। हम जो तेरे साथ हैं। हम तेरे को कोई चोर को पकड़ने के लिए थोड़े न कह रही हैं। तूने तो केवल पीछवाड़े की ओर चैकसी बढ़ानी है। अच्छा पहले एक काम कर। चारदीवारी के पीछे से छुपकर देख कि पीछे का दरवाजा बंद है या खुला। बाकी बात बाद में करेंगे।'

‘'बीबी जी पहले एक डंडा दो। अगर वो सामने पड़ गया तो सिर में ठोक तो दूंगा। ऐसे निहत्थे जाना खतरे भरा है।'

‘'अच्छा-अच्छा देती हूँ।' कहते हुए मिसेज शर्मा भीतर से एक बाँस का मोटा सा डंडा लेकर आई और उसे माली को देते हुए बोलीः ‘

'चुपके से जाना, शोर मत करना।'

‘'ठीक है बीबी जी।'

माली ने अपने दाएँ हाथ से डंडे को बीच से पकड़ा और फिर नीचे झुक कर धीरे-धीरे चलता हुआ चारदीवारी के पीछे पहुँचा। दीवार के ऊपर से सिर उठा कर देखा, पीछे का दरवाजा थोड़ा खुला था। देखते ही माली के होश उड़ गए। चोर के घुसने के रास्ते का पता चल चुका था। वह भागकर वापस आया और फूले हुए सांस के साथ बोलाः

'बीबी जी! चोर पीछे के दरवाजे से ही अंदर घुसा है। मैंने अपनी आँखों से देखा है दरवाजा थोड़ा खुला हुआ है।'

माली की शूरवीरता की कहानी अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि बीच में बाई आकर कूद पड़ीः ‘

'बीबी जी! क्या हुआ?' वह बोली।

'अरे कुछ नहीं, शोर मत करो। तुम दोनों भागकर पीछे जाओ और दीवार की ओट में खड़े हो जाओ। देखो! माली के पास डंडा हैं तुम भी दोनों हाथों में ईंट के ढ़ेले उठा लो। जैसे ही वो बाहर निकले, उसे फुर्ती से चित कर देना। हम दोनों सामने के दरवाजे पर दस्तक देकर उसे बाहर निकलने पर मजबूर करेंगे।'

अब घर के दोनों ओर मोर्चा पूर्णतः जम चुका था। दीवार के पीछे से थोड़ा सिर ऊपर की ओर उठा कर माली, बाई को दरवाजे की तरफ इशारा करके धीरे से बोलाः ‘

'चोर इस दरवाजे से अंदर गया है।'

'अǔछा, अंदर चोर है?'

'शू... ' माली ने अपने होंठों पर तर्जनी रखकर उसे चुप रहने का संकेत किया। दीवार के पीछे से ऊपर की ओर झांकते दो अजनबी चेहरे और फिर दरवाजे की ओर इशारा, किसी भले आदमी के मन में शंका पैदा करने के लिये पर्याप्त थे। भीतर बैठे हुए लड़के ने यह पूरा दृश्य खिड़की के शीशे से अपनी आँखों में कैद कर लिया था।

 'अच्छा! तो इन बदमाशों का इतना हौंसला। भरी दोपहर में ही घर में हाथ साफ करना चाहते हैं। एक आदमी है और दूसरी औरत। कोई चिंता नहीं, इन दोनों से तो मैं अकेला ही निपट लूंगा।' अपने मन में यह विचार सोचते हुए उसने बड़ी स्फूर्ति के साथ हाकी-स्टिक उठाई और आक्रमण की मुद्रा में तन कर दरवाजे की ओट में खड़ा हो गया।

‘'साले जैसे ही अंदर प्रवेश करेंगे, एक-एक वार में ही दोनों को धराशायी कर दूंगा।' वह अपने मन में बुड़बुड़ाया। तभी उसे सामने के दरवाजे पर थपथपाने की आवाज सुनाई दी।

'अच्छा! तो ये बात है। इनकी तादात तो दो से ज्यादा लगती है। सामने से यह पुष्टि करते होंगे कि भीतर कोई है या नहींI'

चोरों की गिनती को भांप कर उसकी हिम्मत पस्त होने लगी थी। स्थिति के परीक्षण हेतु उसने खुले दरवाजे की विरल से बाहर की ओर झांक कर देखा। माली भी दीवार के पीछे चैकन्ना होकर खड़ा था। सो दरवाजे के पीछे से झांकते हुए चेहरे को देखकर समझ गया कि चोर बाहर निकलने की फिराक में है। क्योंकि एक-दूसरे से नज़रें मिल चुकी थीं, इसलिये अब छिपने वाली कोई बात नहीं रह गई थीI माली ने अपने दोनों हाथों से डंडे को कस कर पकड़ने के पश्चात ऊपर उठाया। इस नई आई मुसीबत से लड़का घबरा गया। अब क्या किया जाए? दोनों ओर से चोरों से घिर गया हूँ। मम्मी के पास फोन नहीं है और पापा शहर से दूर गए हैं। भैया कालेज से अभी ठहर कर आएंगे। हे मेरे भगवान! अब आप ही रक्षा करना। उसने दरवाजे को मोड़ कर अंदर से अच्छी तरह से बंद कर दिया।

‘'बाई! देखी मेरी हिम्मत। निकाल दी न शेर की हवा। छुप गया न भीतर। अभी तो मैंने डंडा ऊपर उठाया ही था। अगर मेरे हाथ का एक-आध पड़ जाता तो बच्चू चोरी-चारी छोड़ कर किसी मन्दिर में बैठकर अपने पिछले पापों का प्रायश्चित करता दिखाई देता।'

‘'बस-बस रहने दे। शेखचिल्ली कहीं का। मैं साथ खड़ी हूँ तो डींगे मार रहा है। वरना अकेला होता तो तेरी घिग्घी बंध जाती।' बाई मुस्कुराती हुई बोली।

‘'अच्छा-अच्छा! अगर इतनी हिम्मत है तो अकेली खड़ी रह कर दिखला। मैं बीबी जी को बतला कर आता हूँ। बोल जाऊँ मैं?'‘

‘'हाँ हाँ जा, परन्तु जल्दी आना। कभी पीछे से चोर निकलकर भाग न जाए। मुझ से अकेले कुछ नहीं होगा।'

‘ठीक है, हिम्मत रखना। अभी दो मिनट में वापस आता हूँ।' माली भागते हुए चिल्लाने लगा:

 'बीबी जी। बीबी जी।'

‘'क्या है?' मिसेज शर्मा ने धीरे से पूछा।

‘'मैंने चोर को स्वयं अपनी आँखों से देखा है। बड़ी डरावनी शक्ल है उसकी । पीछे के दरवाजे से भागने की कोशिश कर रहा था। मैंने डंडा हवा में लहराया तो भागकर उसने अंदर से चिटकनी चढ़ा ली। अब अंदर दुबक कर बैठा है।'

'अच्छा!  तो हमारा शक सच ही निकला। अब तो कुछ करना ही पड़ेगा। माली तू तुरंत भागकर पीछे चला जा। अगर वो निकल गया तो अब तक की गई पूरी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। तेरा काम उसे पीछे की ओर से भागने से रोकना है। बाकी उसे पकड़वाने की जिम्मेवारी अब हमारी है।'

इतनी बात सुनते ही माली पिछे की ओर भाग गया। अब दोनों महिलाएँ अपनी भावी नीति पर विचार करने लगीं। सभी पड़ोसी अपने-अपने काम से बाहर गए हुए थे। इक्का-दुक्का जो महिलाएँ या बुजुर्ग घर पर थे, वे अपने घर के बाहर वाले दरवाजे बंद करके भीतर आराम फरमा रहे थे। ऐसे में किसी की मदद की अभिलाषा करना एक कोरी कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं था। अतः स्थिति के प्रत्येक पहलू पर विचार करने के पश्चात मेडम, मिसेज शर्मा से बोली: ‘

'तुम्हारा क्या विचार है, अब क्या करना चाहिये?'‘

'आप बोलिये, आपकी क्या राय है?'

'मेरे विचार में तो अब हमें पुलिस की मदद ले लेनी चाहिये।'

'हाँ...बिलकुल ठीक बात है। यह बात तो हमें पहले ही सोच लेनी चाहिए थी। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। आप यहीं पर रूको, मैं सौ नम्बर पर फोन करके आती हूँ।' यह कहते हुए मिसेज शर्मा पुलिस को टेलिफोन करने के लिए अपने घर में प्रवेश कर गई। भीतर पहुँच कर उसने सौ नम्बर डायल किया तो दूसरी ओर से आवाज आई:

'पुलिस कन्ट्रोल रूम।'

'देखिये भाई साहब, हमारे पड़ोस के घर में एक चोर घुस आया है। हमने बाहर के दरवाजों की कुंडियाँ लगाकर उसे भीतर बंद कर रखा है। अब आप जल्दी से पुलिस फोर्स भेज दीजिये। ऐसा न हो कि कहीं वो दरवाजा तोड़कर भाग जाए।'

'मेडम, पहले आप अपना नाम-पता बतलाने का कष्ट करें। बिना पते के फोर्स को कहाँ पर भेजें।'

'ठीक है भाई साहब, आप नोट कीजिये। मैं बोलती हूँ।' और फिर मिसेज शर्मा ने उसे जल्दी से घर का पता नोट करवा दिया।

संयोग वश उस समय पुलिस स्टेशन में एक समाचार-पत्रा के दो पत्रकार और छविकार भी मौजूद थे। यह बात उनके कानों तक भी पहुँच गई। आनन-फानन में उन्होंने भी अपनी गाड़ी पुलिस वैन के पीछे लगाली। दस मिनट के अन्तराल के पश्चात दोनों गाड़ियाँ घटना स्थल पर पहुँच गई। पुलिस के सिपाहियों ने तत्काल मकान की चारों ओर से घेराबंदी करली। कैमरा मैन सामने वाले दरवाजे के आगे खड़ा होकर अपने कैमरे का फोकस और लाइट स्थिर करने में व्यस्त हो गया, मानो कल प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र के अंक के पहले पन्ने पर उस द्वारा उतारी गई फोटो को ही प्राथमिकता मिलेगी। पुलिस की गाड़ी और उन द्वारा की गई नाकेबंदी को देखकर इधर-उधर से गुज़रने वाले लोग भी इकट्ठा होने लगे थे। बिना असलियत को जाने वे अपने प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही देने लगे। कोई तर्क देता कि शायद किसी का झगड़ा हुआ है। कोई कहता कि अगर झगड़ा हुआ होता तो मकान की चारों ओर से घेराबंदी क्यों की जाती। इसे देखकर तो ऐसा लगता है कि शायद भीतर किसी कुख्यात गिरोह के सदस्य छुपे बैठे हैं। जितनी बातें उतने तर्क। तभी बगल में खड़े हुए लाला जी बोले: ‘

'भाई हाथ कंगन को आरसी क्या, पिटारी में जो भी छुपा है आपके सामने आ जाएगाI'

 अभी यह प्रलाप चल ही रहा था कि छोटे थानेदार साहब ने वाकी-टॉकी  पर अपनी बात समाप्त की और फिर दरवाजे पर जाकर अपने हाथ में पकड़ी हुई बेंत जोर से उस पर मारते हुए दहाड़े: ‘

'बाहर निकल, भागकर कहाँ जायेगा। चारों तरफ पुलिस खड़ी है। तेरी भलाई इसी में है कि तू चुपचाप बिना कोई हुज्जत किए बाहर निकल आ।'

घर के भीतर बेचारा लड़का भयभीत, हतप्रभ और असहाय हुआ बैठा था। यह अब क्या नई मुसीबत आन पड़ी है? उसने खिड़की के एक छोर से परदा हटाकर शीशे से बाहर झांका। बाहर का दृश्य तो एकदम चैंकाने वाला था। पुलिस की गाड़ी, कैमरा थामे एक छविकार और उत्सुकता भरी निगाहें लिए लोगों की भीड़। यह सब क्या है, और ये लोग हमारे घर के सामने ही क्यों खड़े हैं? कहीं वे चोर पुलिस के हत्थे तो नहीं चढ़ गये हैंI अनजाने में न जाने क्या-क्या विचार उसके मन में अपनी जगह बना रहे थे। तभी पुलिस के डंडे ने पुनः किवाड़ पर दस्तक दीI 'बाहर निकलता है कि दरवाजा तोड़ूँ?' छोटे थानेदार साहब गुर्राये।

बेचारा! मरता क्या न करता। मुसीबत तो स्वयं पर आन पड़ी थी। कांपते हाथों से चिटकनी उतार कर किवाड़ को एक ओर हटाया तो उसने अपने आप को उस हजूम के सामने खड़ा पाया। अजनबी निगाहें आँखें फाड़-फाड़कर उसे देख रहीं थीं। पलक झपकते ही कैमरे का फ्लैश चमका और उसकी छवि कैमरे में कैद हो गई।

‘'वाह! क्या गजब की फोटो आई है।' छविकार मुस्कुराया।

‘'यहाँ अंदर क्या कर रहा था?' छोटे थानेदार साहब अपने हाथ में पकड़े डंडे को हवा में लहराते हुए गुर्राये।

‘'परीक्षा की तैयारी कर रहा था।'

‘'किसकी, अपनी या हमारी?'

यह प्रश्न लड़के की समझ में नहीं आया और वह चुप कर गया।

‘'क्यों, चुप क्यों है? बोलता क्यों नहीं? तेरे साथ और कौन-कौन है?'

‘'कोई नहीं है, मैं अकेला हूँ।'

‘'क्या-क्या सामान उठाया है?'

‘'मैं....... क्यों उठाऊँगा सामानI यह तो हमारा अपना घर है।' अब बात लड़के की समझ में आने लगी थी।

‘'क्या यह लड़का सच बोल रहा है?  क्या तुम लोग पहचानते हो इसे?' छोटे थानेदार साहब ने अपने समीप खड़े लोगों से पूछा।

‘'जी नहीं, हम नहीं जानते हैं इसे।' कई आवाजें एक साथ निकली। लोगों के इस उत्तर का अंजाम लड़का बाखूबी जानता था। अतः वह बिना कोई विलम्ब किये बोला: ‘

'हम अभी नये-नये ही आए हैं। इसलिये ये लोग मुझे नहीं जानते। आपको अगर कोई शंका है तो बाजू वाली आँटी से पूछ लो।'

थानेदार ने नज़र घूमा कर अपने बाएं ओर देखा। दोनों महिलाएँ अपने घर के आगे बतिया रही थीं।

‘'क्यों मेडम! आप इस लड़के को पहचानती हो क्या?' वह उन्हें संबोधन करता हुआ बोला।

‘'कौन सा लड़का?' वह उसकी ओर देखती हुई बोली।

'जो इस घर में से निकला है।' थानेदार उस लड़के को उनके सामने लाता हुआ बोला।

'ये तो पांडेय जी का छोटा बेटा है।' वे अपनी गलती पर पश्चाताप करती हुई बोलीं। इन शब्दों के निकलते ही पूरे घटनाक्रम का रोमांच समाप्त हो गया। छविकार ने एक झटके के साथ ही अपना कैमरा समेटना आरम्भ कर दिया। चेहरे के भाव इंगित कर रहे थे मानो उसने किसी अमूल्य वस्तु को खो दिया हो। लोगों की भीड़ छंट कर नगण्य हो गई थी। थानेदार ने प्रश्न किया: ‘   'टेलिफोन किस ने किया था?'

'मैंनेI' मिसेज शर्मा ने उत्तर दिया और फिर दोनों महिलाओं ने उसे पूरे घटनाक्रम का ब्योरा कह सुनाया। लोग सुनकर मुस्कुराने लगे थे। परन्तु छोटे थानेदार साहब पूरे रोआब से लड़के से बोले:‘

'क्यों बे! तूने ऐसा क्यों किया था?'

'मैं घबरा गया था।'

'फिर घबराने का अंजाम देखा? पूरा ड्रामा खड़ा हो गया था तेरी वजह सेI  खैर कोई बात नहीं। बनावटी कवायद ही हो गई। चुस्ती-दुरूस्ती बनाये रखने के लिए ऐसा होना भी लाज़मी होता है। अच्छा मेडम, धन्यवाद! आप दोनों ने एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाया है।' वह गाड़ी में बैठता हुआ बोला।

 

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