सत्या के लिए - भाग 4 (अंतिम भाग) Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सत्या के लिए - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग -4

“जब होश आया तो मैं एक हॉस्पिटल में थी। मेरे हाथ में वीगो लगा हुआ था, दवाएँ चल रही थीं। होश आते ही पुलिस वाले आ गए और मेरा पूरा बयान दर्ज किया। मैंने उन्हें विस्तार से बता दिया कि कैसे मुझे धोखे से फँसाया गया, धर्माँतरित किया गया, बंधक बनाकर परिवार के हर पुरुष ने महीनों से मेरे साथ बलात्कार किया।

हॉस्पिटल में जाँच के दौरान मेरी प्रेगनेंसी भी कंफ़र्म हो गई, क़रीब तीन महीने की होने वाली थी। मैंने डॉक्टर से तुरंत एबॉर्शन के लिए कहा। डॉक्टर ने कहा, ‘कुछ क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही मैं कुछ कह सकती हूँ।’

“मैंने कहा, ‘जो भी हो, जैसे भी हो, आप करिए, मैं एक क्षण को भी जानवरों के अंश को अपने भीतर बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूँ।’

“आख़िर क़ानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करते-करते क़रीब पंद्रह दिन निकल गए, उसके बाद मुझे एबॉर्शन की परमिशन मिल गई। अबॉर्शन के बाद मुझे लगा कि जैसे मैं गंदगी से बाहर आ गई। इस बीच मेरे घर वालों को ख़बर कर दी गई थी, मेरे फ़ादर आ कर मुझे घर ले गए थे।

“इसके बाद से मुक़दमा चलता चला आ रहा है, एक-एक करके छह साल से ज़्यादा निकल गए हैं। कुछ साल बाद ही मुझे महसूस हुआ कि घर पर मेरी वजह से मेरे बाक़ी भाई बहनों की पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ रहा है, रिश्तेदारों, मोहल्ले के लोगों ने हमें एकदम अलग-थलग कर दिया है। मुझे बड़ा दुःख हुआ कि जिहादियों को उनका पूरा समुदाय सिर आँखों पर बैठाता है, और हम-लोग . . .

“नर्क से निकलने के बाद मैंने पूरा ध्यान पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ नौकरी ढूँढ़ने पर दिया, जिससे मैं अपने घर की मदद कर सकूँ। मेरी मेहनत कहें या संयोग मुझे यहाँ इस शहर में नौकरी मिल गई और मैं यहाँ चली आई।

“परिवार के बाक़ी सदस्य देवबंद में ही रहते हैं। मैं घर अब कभी-कभार ही जाती हूँ। पैसा ज़रूर भेजती रहती हूँ। घर से मन इसलिए टूट गया है, क्यों कि कई साल बीत जाने के बाद भी माँ से लेकर बाक़ी सारे सदस्यों का मेरे साथ व्यवहार घटना से पहले जैसा नहीं हो रहा था।

“सब के व्यवहार में एक खिंचाव सा दिखता था। मैं जैसे परिवार पर बहुत बड़ा बोझ बनी हुई थी। इसलिए मैंने सोचा कि दूर रहकर सभी को आराम से रहने दूँ। मगर समस्या यह भी आने लगी कि जब मैं पैसा भेज देती तो मेरे पास कम पड़ने लगे।

“तो मैंने कई और काम भी करने शुरू कर दिए। अपनी इनकम बढ़ाती चली गई। इस बीच मुक़द्दमे की पेशी पर कई बार जाना पड़ता था। लेकिन क्योंकि अब-तक मेरे बयान कोर्ट में भी हो चुके हैं। इसलिए वकील देखते रहते हैं। उन्हें फ़ीस मैं ऑन-लाइन भेजती रहती थी।

“लेकिन कोर्ट में कल जो कुछ हुआ, उससे मैं इतना ज़्यादा परेशान हो गई थी कि बार में कितनी पी रही हूँ, इसका भी ध्यान नहीं था। इसका भी कि अकेली हूँ, ज़्यादा नशा हो गया तो मेरे साथ कोई घटना फिर हो सकती है। यह तो मेरा सौभाग्य था कि आप मिल गए, नहीं तो कल भी पता नहीं क्या होता।”

उसकी बातों ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैंने उससे कहा, “देखिए अदरवाइज़ नहीं लीजिएगा, यह पूछना चाहता हूँ कि आपने ड्रिंक करना कब से शुरू कर दिया।”

यह सुनते ही उसने एक गहरी साँस लेने के बाद कहा, “शुरू नहीं कर दिया, यह भी मेरी बेवक़ूफ़ी का परिणाम है। ऑफ़िस में ज्वाइन किए हुए अभी दो-तीन महीने ही हुए थे कि वहीं काम करने वाली एक लड़की का एक दिन जन्म-दिन था। उसने कहा, ‘घर पर पार्टी है, तुम्हें भी ज़रूर चलना है।’

“मैं कहीं भी जाती-आती नहीं थी, न ही किसी से ज़्यादा बात करती थी। लेकिन वह इतनी हँसमुख इतनी मिलनसार है कि मुझे चुप रहने ही नहीं देती। उसके इस व्यवहार ने मेरे चेहरे पर हर समय तैरती उदासी ख़त्म कर दी थी। उसके घर पर पार्टी में सात-आठ लड़कियाँ थीं। सभी बहुत ही बोल्ड और बिंदास थीं।

“खाने-पीने की चीज़ें होटल से आई थीं। उन सबने कोल्ड-ड्रिंक में पहले से ही शराब मिला रखी थी। मुझे अजीब लगी, लेकिन जब-तक मैं समझी तब-तक काफ़ी पी चुकी थी। और फिर सबने यह कहकर मुझे दो पैग और पिला दी कि जब टेस्ट कर ही लिया है तो आज एंजॉय करो।

“उस दिन मैं रात में बहुत आराम से सो सकी। बाक़ी दिन तो करवटें बदलते ही रात बीतती थी। इसके बाद उस लड़की ने मुझे कई बार घर बुलाया और हर बार पिलाया। जिस दिन पीती, उस दिन मैं बहुत आराम से सोती। बस इसी आराम की ललक ने पीने की आदत डाल दी। पहले दुकान से ख़रीद कर लाती और रात में पी कर सो जाती थी।

“एक दिन उसी लड़की ने अपनी चार-पाँच और सहेलियों के साथ एक बार में पार्टी दी। बार में पीने का मुझे बहुत मज़ा आया। बस उसके बाद महीने में दो-तीन बार पीने के लिए बार जाने लगी। फिर जल्दी ही अकेले ही जाने लगी। रात आराम से बीते इस ललक में पीने की आदत बढ़ती ही चली गई। अब तो बिना इसके लगता है रात ही नहीं होगी।”

“लेकिन डेली पीना, आपको नहीं लगता कि कुछ ज़्यादा हो गया . . .”

“ज़्यादा हो रही है या कम इस तरफ़ कभी ध्यान ही नहीं गया, क्योंकि तकलीफ़ों की हज़ार फाँसें मुझे हमेशा चुभती रहती हैं, आप भी तो . . . क्योंकि आपके चेहरे पर भी मैं बहुत कुछ ऐसा ही लिखा हुआ देखती हूँ।”

उसकी इस बात पर मैं कुछ देर तक उसे देखता ही रह गया। उसने बहुत ही सटीकता से मेरी स्थिति का अंदाज़ा लगा लिया था। मैं उसे देखता हुआ चुप रहा, इसे क्या जवाब दूँ, सच बोलूँ या झूठ। सच बोलता हूँ तो यह मुझे औरतों का भूखा औरतख़ोर समझेगी।

और अभी तक जो इस बात पर विश्वास करके निश्चिंत है कि मैंने इसके कपड़े चेंज करते समय कोई भी अनुचित हरकत नहीं की होगी, इसका वह विश्वास तुरंत चकनाचूर हो जाएगा। मुझे पसोपेश में पड़ा देखकर उसने तुरंत ही कहा, “यदि नहीं बताना चाहते हैं, तो कोई बात नहीं। मैं आप पर कोई दबाव नहीं डालूँगी।”

मैंने सोचा सच ही बोल देता हूँ, इसके लिए मुझे जो करना था वो मैंने कर दिया। बाक़ी निर्णय इस पर छोड़ता हूँ। इसे मेरे बारे में जो भी राय बनानी हो बनाए। मैं जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, बस हूँ। जब मैंने पत्नी से कुछ नहीं छुपाया तो दुनिया से क्या छुपाना।

अंततः मैंने उसे सच-सच बता दिया कि मैं क्यों रोज़ पीता हूँ। सुन कर वह बड़ी देर तक चुप रही। शायद वह भी मेरी तरह नहीं समझ पा रही थी कि क्या बोले?

उसे शांत देख कर मैंने कहा, “देखिए बातें कैसे विचारों, स्थितियों को क्षण में बदल देती हैं। जब-तक मैंने अपने बारे में आपको नहीं बताया, तब-तक आपकी दृष्टि में मेरी दूसरी तस्वीर थी, बातों को जानते ही वह तस्वीर बदल गई। अब मेरी जो तस्वीर आपके सामने है, वह आपको अच्छी नहीं लग रही है।

“आप निश्चित ही मन ही मन यह सोच रही हैं कि जब औरतों के प्रति मैं इतना कमज़ोर हूँ, कई-कई औरतों से सम्बन्ध रखना मेरी आदत है, तो ऐसे कमज़ोर व्यक्ति ने आपकी बेहोशी की स्थिति का न जाने कैसे-कैसे फ़ायदा उठाया होगा।”

यह सुन कर भी वह चुप रही, तो मुझे लगा कि अब यहाँ से तुरंत चल देना चाहिए। हमेशा सच भी नहीं बोलना चाहिए। यह भी कई बार नुक़्सान पहुँचाता है। मैंने अपना मोबाइल उठाकर जेब में रखते हुए कहा, “आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने आपके साथ कहने को भी कोई अनुचित हरकत नहीं की। मेरी बात पर विश्वास करेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा। अब मैं चलता हूँ। जब आपका फोन आएगा तो मैं यह मान लूँगा कि आपको मेरी बात पर विश्वास है।”

यह कहकर मैं उठने लगा तो उसने रोकते हुए कहा, “बैठिए। कई औरतों में इंट्रेस्ट लेना और सभी औरतों के प्रति गंदी सोच रखना, दोनों को मैं अलग मानती हूँ। कई औरतों में आप इंट्रेस्ट लेते हैं, यह कुछ लोगों की नज़र में ग़लत हो सकता है, जैसे कि आपकी मिसेज़ की नज़र में। लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचती। क्योंकि बीते दिनों में आपसे जितनी बातें हुईं, इसके अलावा बीती रात आपने जो कुछ मेरे साथ किया, उसे देखते हुए मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि औरतों के प्रति आपकी नज़र गंदी नहीं है। इसलिए मैं आपको ग़लत नहीं मानती।

“मेरी जो हालत थी, उसमें आप जो चाहते आराम से कर सकते थे। मेरा पूरा घर भी खुला हुआ था। लेकिन मैंने देखा सब कुछ जैसे का तैसा सुरक्षित है। मैंने ख़ुद को भी चेक किया। मेरे हृदय में जो तस्वीर आपकी पहले थी, बीती रात के आपके कामों से वह बहुत सुंदर बन गई है। इसलिए आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।”

यह सुनकर मुझे ख़ुशी हुई, कि चलो कोई तो इतना ब्रॉड माइंडेड मिला। काश मिसेज भी कुछ ऐसे ही सोचती तो मैं ख़ुद को बार के हवाले नहीं करता, शराब में इस तरह पैसे और ख़ुद को बर्बाद नहीं करता।

उसने मुझसे कहा, “आप तैयार होइए मैं कुछ नाश्ता तैयार करती हूँ।” हमारी बातें चलती रहीं, मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि आख़िर इसने मुझे क्यों रोक लिया?

यह जीवन में इतना बड़ा धोखा खा चुकी है, इसके बावजूद इसने मुझ पर पर इतना विश्वास क्यों कर लिया। यह मुझसे क्या चाहती है।

मैं तैयार भी हो गया। नहाने के बाद काफ़ी फ़्रेश महसूस कर रहा था। तौलिया वग़ैरह सब उसी का यूज़ किया। कॉफ़ी वग़ैरह लेने के बाद हैंगओवर परेशान नहीं कर रहा था। नाश्ता ख़त्म होने के बाद भी हमारी बातें चलती रहीं।

अधिकांश बातें इसी बिंदु पर केंद्रित रहीं कि जिन लोगों ने लव-जिहाद के नाम पर उसकी और उसके परिवार की ज़िन्दगी बर्बाद की है, उन लोगों को चाहे मुक़दमा हाई-कोर्ट क्या सुप्रीम कोर्ट तक जाए, वहाँ तक लड़कर उन्हें ऐसा कठोर दंड दिलवाना है, कि बाक़ी जिहादियों को भी समझ में आ जाए कि ऊपर बहत्तर हूरें तो बाद में मिलेंगी, मिलेंगी भी कि नहीं, पता नहीं, लेकिन उसके पहले डंडे और सलाखें अनगिनत मिलेंगी, यहीं मिलेंगी।

इस पूरे संघर्ष में वह मेरा सहयोग चाहती है। इतना ही नहीं उसकी योजना यह भी है कि अपने जैसे और लोगों को इकट्ठा करके उसके साथ ऐसा संगठन तैयार करूँ, जो समाज में लोगों को लव-जिहादियों को पहचानने, उनसे दूर रहने, शिकार हुए लोगों को क़ानूनी मदद दिलाने, यहाँ तक की समाज के लोगों से मिलकर, यदि उनको आर्थिक मदद की ज़रूरत हो, तो वह भी दिलाई जाए। इस मिशन में बिना देर किए जुटा जाए।

उसने कहा कि “हमें अब एक उद्देश्य-परक जीवन जीना चाहिए। शराब में ख़ुद को तबाह करने से कोई फ़ायदा नहीं, यह मूर्खता से भी बड़ी मूर्खता है।”

मुझे लगा कि यह सही कह रही है। तो मैंने कहा कि “ठीक है, मैं तैयार हूँ इसके लिए।”

फिर कुछ सोच कर वह बोली, “इसके लिए हम-दोनों कितनी गंभीरता से तैयार हैं, इसकी परीक्षा भी इसी समय कर ली जाए।”

यह सुनकर मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, लेकिन कैसे होगी यह परीक्षा?”

तो वह अंदर पूजा की अलमारी से गंगा-जल उठा लाई और कहा, “हम-दोनों यह पवित्र गंगा-जल हाथ में लेकर यह सौगंध लें कि अपने मिशन को कामयाब बनाने के लिए, अपने-अपने परिवार, समाज के जीवन को बेहतर बनाने के लिए, अब कभी भी जीवन में शराब को हाथ नहीं लगाएँगे।”

मैंने उससे पूछा, “क्या वाक़ई आप बिना शराब के रह पाएँगी?”

उसने कहा, आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। माना मैं लम्बे समय से पी रही हूँ, लेकिन मुझे अपनी इच्छा शक्ति पर दृढ़ विश्वास है। मैं लव-जिहादियों को कठोर सज़ा दिलवाने का अपना मिशन हर हाल में पूरा करना चाहती हूँ, लेकिन अकेले पूरा कर पाने में मुझे संदेह है, इसलिए यदि आप साथ देने को तैयार हैं, तो मैं हमेशा के लिए छोड़ने को तैयार हूँ। सब-कुछ आपके ऊपर निर्भर करता है, आप बताइए, आप छोड़ने को तैयार हैं।”

मैंने कहा, “आप ठीक कर रही हैं, जब अनेक साथ चलेंगे तो ज़रूर सफल होंगे, इसलिए मैं पूरी तरह तैयार हूँ। सभ्य-समाज के दुश्मन लव-जिहादियों को सबक़ सिखाने के लिए अब सबक़ो साथ आने का समय आ गया है। सब मिलकर, समाज को गंदा कर रहे, इस गंदे कचरे को समाप्त करने का प्रयास करेंगे, तभी यह ख़त्म होगा।”

फिर हम-दोनों ने अंजुरी में गंगा-जल लेकर अपने लक्ष्य को पाने के उद्देश्य से शराब को हमेशा के लिए त्याग देने का संकल्प लिया, एक-दूसरे को वचन दिया।

यह संकल्प लेने के बाद उसने मुझसे कहा, “आपसे एक और काम के लिए परमिशन चाहती हूँ।”

मैंने कहा, “अरे परमिशन की क्या बात है, बताइए क्या काम है?”

उसने बड़ी भाव-पूर्ण नज़रों से मुझे देखते हुए कहा, “आप यदि अन्यथा नहीं लें, तो मुझे अपनी पत्नी का नंबर दे दीजिए, मैं सही समय पर उनसे संपर्क करके मिलूँगी, और उन्हें समझाऊँगी कि वह आपके पास अपने घर लौट आएँ। अकेले रहकर अपनी और अपने बच्चों के जीवन को, साथ ही आपके जीवन को भी तपती रेत सा कष्ट-दायक न बनाएँ, उसे बर्बाद नहीं करें।

“जीवन में हार्ड-कोर बनने की बजाय थोड़ा सा फ़्लैक्सिबल बनें, जिससे परिवार चलता रह सके, वह टूटे नहीं। और आपसे भी यह रिक्वेस्ट करूँगी कि जब पत्नी है तो उसके साथ ही ख़ुश रहने की कोशिश कीजिए। दूसरों के पास कुछ क्षण का जो रोमांच आप एन्जॉय करते हैं, वह रोमांच एक आग है जो अंततः परिवार को नष्ट करती है। परिणाम आपके सामने है, आपको ज़्यादा कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है।

“और यह भी बहुत ध्यान से सुनिए कि अकेली रहने वाली औरतें लव जिहादियों का सबसे आसान शिकार हैं, ये उन्हें खोजते रहते हैं, उनके हितैषी बनकर छद्म रूप में उनके पास पहुँचते हैं, और फिर उन्हें तबाह करके, उनके टुकड़े करके अपने लिए बहत्तर हूरों का इंतज़ाम करते हैं।

“स्थिति की गंभीरता को समझिए। मैं एक भुक्त-भोगी हूँ, कड़वा सच आपके सामने रख रही हूँ। लव-जिहादी लद्दाख से लेकर केरल तक, ब्रिटेन से लेकर अमेरिका, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा तक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इसलिए बिना देर किए अपने घर को फिर से घर बना दीजिए। पत्नी, बच्चों को ले आइए। मैं आपसे रिक्वेस्ट करती हूँ, हाथ जोड़ती हूँ।”

यह कहती हुई वह बहुत भावुक हो गई उसने मेरे हाथ जोड़ लिए, तो मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा, “आप बिल्कुल सही कह रही हैं। यह शुभ काम आज ही करूँगा।”

इसके बाद उसने एक सामाजिक कार्यकर्ता बनकर पत्नी से बातचीत की, मिलने का समय लिया। उसे बताया कि उसकी संस्था परिवार के विवादों को समाप्त करा कर, उन्हें एक करने का काम करती है। पत्नी ने बहुत ही ना-नुकुर के बाद, शाम को ऑफ़िस के बाहर ही थोड़ी देर मिलने का टाइम दिया। उसने उससे घर पर मिलने से मना कर दिया।

लेकिन बातचीत करने की उसकी शैली से मुझे लगा कि पत्नी भी इंट्रेस्टेड है कि परिवार तपती रेत पर चलने के बजाय सुंदर शीतल स्वच्छ उपवन में सैर करे।

अभी पूरा दिन पड़ा था। सत्या ने घूमने का प्लान बनाया, और मैं उसे गाड़ी में लेकर घूमने निकल गया। उसका नाम सत्या ही है। वास्तव में हम सिर्फ़ घूमने नहीं, बल्कि अपने मिशन की ओर पहला क़दम बढ़ाया, हमने . . .

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