सन्नाटे में शनाख़्त - भाग 3 Pradeep Shrivastava द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सन्नाटे में शनाख़्त - भाग 3

भाग -3

अंततः तबरेज़ ने उसे दबोच ही लिया है, और दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए हैं, उठा-पटक, लात-घूँसे, दाँत काटने से लेकर बाल खींचने तक पूरे ज़ोरों से चल रहा है, बड़ी बात यह कि वह तबरेज़ से कमज़ोर नहीं पड़ रही है। 

एकाएक बदले उसके इस रूप से हक्का-बक्का तबरेज़ को कई गहरी चोटें लग गई हैं। वह मज़बूत होने के बावजूद वाज़िदा के अति उत्साह, भयानक ग़ुस्से, आक्रामकता के आगे बीस नहीं उन्नीस पड़ने लगा है। 

फिर भी वाज़िदा ने सोचा कि इस तरह मार-पीट करते-करते या तो यह मर जाएगा या मैं ही मर जाऊँगी। यहाँ चीखने-चिल्लाने से भी कोई फ़ायदा नहीं है, दूर-दूर तक कोई सुनने वाला नहीं है। 

यह सोचकर उसने मौक़ा मिलते ही जान-बूझकर उसकी नाक पर ही इतना तेज़ मारा है कि वह दोनों हाथों से चेहरा पकड़ कर बैठ गया है, और इसी बीच उसने चार्जिंग में लगे तबरेज़ के मोबाइल से ही पुलिस को फोन कर दिया है। 

चीख-चीख कर रिक्वेस्ट कर रही है कि ‘जल्दी आइये, नहीं तो मेरा एक्स हस्बेंड मुझे मार डालेगा।’ उसने फोन काटा नहीं है, ऐड्रेस बताती हुई अपनी बात दोहराती जा रही है। पुलिस का नाम सुनते ही तबरेज़ सन्नाटे में आ गया है। वह तुरंत उठकर उसकी ओर लपका, लेकिन वह फोन लेकर बेड के चारों तरफ़ इधर से उधर भाग रही है, चिल्ला रही है, पुलिस वालों को जल्दी आने को कह रही है, फोन का स्पीकर भी ऑन किया हुआ है जिससे तबरेज़ भी सुने। उधर से पुलिस की आवाज़ आ रही है कि हम जल्दी ही पहुँच रहे हैं, आप घबराइए नहीं . . .

ख़ून से लथपथ तबरेज़ को अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे, यहाँ से भाग निकले या फिर . . . उसके शातिर दिमाग़ में वाज़िदा को ही फँसाने की एक तरकीब उभरने लगी है कि ख़ून से लथपथ तो मैं भी हूँ। पुलिस को बताऊँगा कि यह मेरी हत्या करना चाहती थी, मैंने अपने को बचाने की कोशिश की, उसी कोशिश में यह चोट खा गई है।

दिमाग़ में इसी तरकीब को और माँजता हुआ वह एकदम पस्त हो बेड पर बैठ गया है, भागने की नहीं सोच रहा है। उसकी नाक पर चोट ज़्यादा गहरी लगी है। ख़ून बहना बंद ही नहीं हो रहा है। वह अब भी हैरान है कि इसके पास इतनी ताक़त और हिम्मत कहाँ से आ गई। 

वाज़िदा का भी ग़ुस्सा उसकी बातों को सोच-सोच कर अब भी सातवें आसमान पर ही है। उसका मन कर रहा है कि उसके उन हाथ-पैरों को तोड़ डाले जिससे उसने जानवरों की तरह उसे मार कर बेड से नीचे धकेल दिया था। उसकी उस ज़ुबान को काट ले जिससे गंदी-गंदी गालियाँ दीं, लौंडी कहा। 

लेकिन वह ख़ुद भी बहुत चोटें खा चुकी है, इसलिए उसे और पीटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। मन में उसे तमाम अपशब्द कहती हुई सोच रही है कि ‘अब मैं इसे जेल भिजवाए बिना नहीं रहूँगी। इसने मुझे अपनी ज़िन्दगी से निकाला और इस फ़्लैट से बेदख़ल करने की कोशिश की है, जिसमें पैसा मेरा भी लगा हुआ है।’ 

इसके काले जहरबुझे दिल में मेरे लिए इतनी गहरी नफ़रत है, मुझे यह ज़रा भी मालूम होता तो मैं ख़ुद ही, इसे ‘खुला’ (तलाक़) देकर ठोकर मार देती। इसको भी अपने जीवन से वैसे ही निकाल फेंकती जैसे मछली खाते समय काँटों को निकाल फेंकती हूँ। 

दोनों ही बेड के एक-एक कोने पर सावधानी से, एक दूसरे पर नज़र रखते हुए पुलिस के आने का इंतज़ार कर रहे हैं। पुलिस बराबर फोन पर बात कर रही है, कह रही है कि ‘हम पहुँच रहे हैं . . .’ और उसके आते ही वाज़िदा ने लपक कर दरवाज़ा खोल दिया है। पता नहीं उसे ख़्याल नहीं रहा या कि उसने जानबूझकर पुलिस को यह दिखाने के लिए कि उसे किस बुरी तरह मारा-पीटा गया है, अपने तार-तार हो गए कपड़ों की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। 

उसे डर यह भी रहा होगा कि अगर वह फटे कपड़े उतारकर दूसरे पहनने लगेगी तो इस बीच तबरेज़ कहीं तमंचा निकालकर उसे गोली न मार दे। लेकिन पुलिस को देखते ही पहले से ही एकदम पस्त हो चुका तबरेज़ ऐसा ड्रामा करने लगा है, जैसे कि वह बेहोश हो गया है। 

दोनों को ख़ून से लथपथ देखकर पुलिस समझ गई है कि घर में बराबर के लड़ाकों के बीच में ख़ूब जम के संघर्ष हुआ है। वह दोनों को लेकर थाने चल दी। इसके पहले वाज़िदा को तार-तार हो रहे सलवार कुर्ता को बदल कर दूसरा पहनने का समय दे दिया। 

बड़ी दूर की सोच कर उसने जान-लेवा संघर्ष की गाथा कहते ख़ून से सने उस सलवार कुर्ते को पॉलिथीन में करके अलमारी में बंद कर दिया। यहाँ तक कि घर के बाहर ताला लगा कर उसकी चाबी अपने ही पास रख ली, तबरेज़ उससे लेना चाहता था लेकिन उसने नहीं दिया। 

पुलिस के होने के कारण तबरेज़ कुछ बोल नहीं सका। बिना हिज़ाब के ही, उसे बाहर चलते देख कर भी, उसे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि उसकी बग़ावत किसी भी सीमा तक पहुँच सकती है, इसका अंदाज़ा उसे उसके हमलों से बख़ूबी हो गया है। उसने मन ही मन यह ज़रूर कहा, काफ़िर कहीं की, तू काफ़िर न होती तो बिना हिज़ाब के ऐसे न चलती। 

पुलिस उन्हें लेकर थाने पहुँची तो वहाँ तबरेज़ आश्चर्यजनक ढंग से एकदम शांत हो गया और मियाँ-बीवी के बीच का झगड़ा बताते हुए उनसे मामले को ख़त्म करने के लिए रिक्वेस्ट की, लेकिन वाज़िदा तुरंत पूरा विरोध करती हुई कह रही है, “यह झूठ बोल रहा है, यहाँ से निकलते ही ये मुझे मार डालेगा। मैं इसके साथ इसलिए भी नहीं जा सकती क्योंकि ये मुझे तलाक़ दे चुका है। अब मेरा हलाला कराए बिना यह मुझे अपना ही नहीं सकता। यह कहेगा भी, तो भी मैं नहीं जाऊँगी क्योंकि मज़हब इसे इसकी इजाज़त ही नहीं देता, आप इसी से पूछ लीजिए, यह मेरा हलाला कराए बिना मुझे अपना लेगा?” 

पुलिस के पूछने पर तबरेज़ ने जो कहा उससे वाज़िदा की आँखें आश्चर्य से फैल गईं हैं। वह अचरजभरी नज़रों से उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही है। उसे ऐसे अचरज में पड़ा देखकर पुलिस ने उससे पूछा, “बताइए आपका क्या कहना है? ये अपनी ग़लतियों की माफ़ी माँगते हुए आपको अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हैं।” 

यह सुनते ही वह जैसे नींद से जागती हुई कह रही, “मुझे इसकी एक भी बात पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। यह एक शातिर कट्टर मज़हबी आदमी है। मज़हब के उसूलों की आड़ लेकर, तीन तलाक़ क़ानून में सख़्ती से मनाही के बावजूद जिस बीवी को तलाक़-ए-बिद्दत दे चुका है, उसका हलाला कराए बिना उसे कैसे अपना लेगा? इसके पीछे मुझे इसकी कोई गहरी साज़िश नज़र आ रही है।”

यह सुनते ही तबरेज़ कह रहा है, “अगर तुम कहोगी तो हलाला भी करवा देंगे, लेकिन अब यह सब बंद करो, घर चलो।” 

वाज़िदा को उसकी बात पर ज़र्रा भर भी यक़ीन नहीं हुआ। उसके दिमाग़ में वह तमंचा और चॉपर फिर आ गए जो तबरेज़ ने घर में छुपा रखा है। वह सोच रही है कि यह इतनी आसानी से सारी बातों के लिए हाँ-हाँ किए जा रहा है, ज़रूर इसके मन में गहरी साज़िश है, यह घर पहुँचते ही मुझे गोली मार देगा और अगर ऐसा नहीं भी हो तो भी अब मैं एक पल को भी इसके साथ नहीं रहूँगी। 

जिसके मन में मेरे लिए यह ज़हर भरा हुआ है कि मैं एक काफ़िर हूँ और इसने मुझे अब-तक अपनी लौंडी बनाकर रखा, यह कर के सवाब का काम किया है, काफ़िर को मारना फ़र्ज़ है, ऐसी सोच से भरा आदमी मुझे अब मौक़ा मिलते ही एक मिनट को भी ज़िन्दा कहाँ छोड़ेगा। 

उसने तुरंत ही कहा, “नहीं, तुम्हारे साथ बिलकुल नहीं चलूँगी।”

पूरी सख़्ती से तबरेज़ को मना करने के बाद वह पुलिस ऑफ़िसर से मुख़ातिब हो कह रही है, “सर यह सरासर सफ़ेद झूठ बोल रहा है, आप लोग इसकी साज़िश को समझने की कोशिश कीजिए। यह किसी भी तरह से एक बार घर ले चलना चाहता है, यह घर पहुँचते ही निश्चित ही मुझे गोली मार देगा, मेरा सिर तन से जुदा कर देगा। घर में तमंचा और बड़ा सा चॉपर छुपा कर रखा हुआ है।” यह सुनते ही ऑफ़िसर के कान खड़े हो गए हैं। 

तबरेज़ एकदम हक्का-बक्का उसे देखने लगा है। उसे यक़ीन हो गया है कि अब बचना मुमकिन नहीं। उसके चेहरे का रंग एकदम उड़ गया है। वाज़िदा पूरा ज़ोर देकर पुलिस ऑफ़िसर से कह रही है, “मुझे इसके ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखवानी है। पहली तो यह कि तलाक़-ए-बिद्दत देना, क़ानून तोड़ना है, इसने क़ानून तोड़ते हुए मुझे पल भर में तीन तलाक़ दिया है। 

“दूसरा इसने मेरी हत्या करने की कोशिश की, अगर आप लोग समय रहते नहीं आ जाते तो जैसे मज़हबी दरिंदों ने अपनी बीवी, लिव इन पार्टनर को काफ़िर मानते हुए दिल्ली में पैंतीस और झारखंड में पचास टुकड़े कर दिए थे, उनकी खाल भी उतार ली थी, यह भी मेरी वैसी ही हालत करता। तीसरा यह मुझे डरा-धमका कर, मेरी इच्छा के ख़िलाफ़, बार-बार मना करने के बावजूद, अननैचुरल रिश्ते बनाता आ रहा है, ज़्यादा विरोध करने पर बुरी तरह पीटता है 

“मैं पक्के तौर पर कह रही हूँ कि इसका भी पूरा मंसूबा यही है, इसी लिए बकरा काटने वाला चॉपर और तमंचा ला कर रखा हुआ है। अगर आपको मेरी बातों पर यक़ीन नहीं है, तो अभी मेरे साथ घर चलिए। आपको दोनों हथियार दिखाती हूँ। 

“इसने मुझे मारना शुरू करने से पहले काफ़िर ही कहा था, चीख-चीख कर कहा कि मुझे काफ़िर मानते हुए ही अपनी लौंडी बनाकर रखा हुआ था, मेरी इज़्ज़त लूट-लूट कर सवाब कमा रहा था, कमा कर अपने जन्नत जाने का रास्ता साफ़ कर रहा था।”

पुलिस ने उसकी इस बात के बावजूद एक कोशिश की कि पति-पत्नी आपसी सुलह से मामले को सुल्टा लें, रिश्ता टूटे नहीं, लेकिन वाज़िदा रिपोर्ट लिखाने की ज़िद पर अड़ गई इसलिए पुलिस ने उसकी रिपोर्ट लिखकर तबरेज़ को गिरफ़्तार कर लिया। 

इस पर तबरेज़ कह रहा है, “मुझे भी रिपोर्ट लिखानी है, ये सब झूठ बोल रही है, मैं इसे नहीं मारना चाहता, मैंने ऐसा कभी सोचा भी नहीं। सच बात तो यह है कि इसके किसी और से अफ़ेयर हैं, मैं उसी के लिए मना करता हूँ तो यह मुझसे झगड़ा करती है।