सन्नाटे में शनाख़्त - भाग 4 (अंतिम भाग) Pradeep Shrivastava द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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सन्नाटे में शनाख़्त - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग -4

“आज भी शाम को इसे ऑफ़िस से लेने गया तो यह बहुत देर से आई, वजह पूछते ही एकदम भड़क गई। रास्ते भर झगड़ती रही, घर पहुँचकर एकदम बिफ़र उठी, हमेशा की तरह मार-पीट पर उतारू हो गई। मैं चुप रहा तब ये शांत हुई। रात को खाने के बाद भी झगड़ा हुआ था। उसके बाद मैं सो गया था। 

“अचानक मुझे लगा जैसे कोई मेरी गर्दन कस रहा है, मेरी आँखें खुलीं तो देखा यह अपने दुपट्टे से मेरा गला कस रही थी। मैं किसी तरह ख़ुद को छुड़ा पाया। अपने को बचाने के चक्कर में ही इतनी चोट-चपेट लगी है। अगर घर में तमंचा और चॉपर है तो वह इसी का होगा। मुझे मारने के लिए ही अपने लवर से लेकर आई होगी।” 

उसकी बातें पूरी होते-होते वाज़िदा की आँखें आश्चर्य से फैल गई हैं, वह अचरज भरी आवाज़ में कह रही है, “तुम्हारी ऐसी झूठी कहानियों से सच्चाई बदल नहीं जाएगी।” फिर तुरंत ही पुलिस ऑफ़िसर से मुख़ातिब हो कह रही है, “सर यह सरासर झूठ बोल रहा है, मनगढ़ंत कहानी बता रहा है। अगर मेरा कोई लवर है तो ये उसका नाम बताए, वह कौन है? कहाँ रहता है? मैं उससे कहाँ मिलती हूँ? इसने मुझे कब देखा? 

“अगर मेरा कोई लवर होगा तो मैं उससे मोबाइल पर भी तो बातें करती होऊँगी, उसकी कॉल डिटेल्स तो मेरे मोबाइल में होंगी, जितने भी नंबरों पर मैं बात करती हूँ, उन सभी नंबरों की कॉल-डिटेल्स निकाल कर आप चेक करवा लीजिए। मेरे ऑफ़िस में भी लोगों से पूछ लीजिए, अगर कहीं कोई बात होगी तो सब सामने आ जाएगी। 

“यह केवल अपने गुनाह छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता जा रहा है, मुझे कैरेक्टरलेस बता रहा है, जबकि सच यह है कि यह मेरे बार-बार विरोध के बावजूद भी हर महीने कम से कम चार-पाँच बार सेक्स-वर्कर्स के पास भी जाता है।” 

दोनों की बातें किसी रोचक क़िस्से की तरह सुन रहे पुलिस ऑफ़िसर को समझ में आ गया है कि मामला थोड़ा जटिल है। अगर घर से हथियार बरामद भी कर लिए जाएँ तो भी गुत्थी आसानी से सुलझती दिखती नहीं है। क्योंकि दोनों ही हथियार एक दूसरे का बता रहे हैं। यह मक्कार आदमी कुछ ज़्यादा ही शातिर लग रहा है। इसकी रिपोर्ट लिखने से पहले इसके झूठ के पीछे का सच जान लेना ज़्यादा ज़रूरी है। यह सोच कर उसने दोनों को ले जाकर तमंचा और चॉपर बरामद भी कर लिया। 

वाज़िदा ने पुलिस को कई और ऐसे प्रमाण दिखाए कि पुलिस को उसकी बातें सच लगीं। तबरेज़ ऐसा कुछ भी नहीं दिखा सका, लेकिन वह जिस तरह से बराबर तर्क दे रहा था, उससे पुलिस ऑफ़िसर ने वापस-आकर दोनों से विस्तार से पूछ-ताछ शुरू कर दी कि दोनों के बीच ऐसी कौन सी बात हुई कि हसबैंड-वाइफ़ होते हुए भी एक दूसरे की हत्या करने पर तुले हुए हैं। 

वाज़िदा ने उन्हें जो कुछ बताया उससे पुलिस स्टॉफ़ को आश्चर्य हो रहा है कि, कैसे-कैसे लोग हैं दुनिया में। क्या धर्मांधता इतनी ताक़तवर है कि वह सच को भी स्वीकार करने से न सिर्फ़ रोक देती है, बल्कि मनुष्य से हिंसक पशु भी बना देती है। 

वाज़िदा ने उन्हें बता रही है कि, “ऑफ़िस से आने के बाद घर पर खाने-पीने से लेकर सोने तक हम-दोनों के बीच बातें होती रहती थीं। यह अपने ऑफ़िस की बताते थे और मैं अपने ऑफ़िस की। एक दिन ऑफ़िस में लंच के दौरान हमारे एक साथी ने मुस्लिमों के सरनेम ख़ान के बारे में बताना शुरू किया। उसके तर्क, उसकी बातें इतनी दिलचस्प होती हैं कि, सभी लोग उसे बड़ी तवज्जोह देकर सुनते हैं, उस दिन भी सुन रहे थे, मैं भी सुनने लगी। 

“उसके हिसाब से मुसलमानों ने मंगोलिया के चंगेज ख़ान से अपने को जोड़ते हुए ख़ान सरनेम लगाना शुरू किया। चंगेज ख़ान को मुसलमान समझने की भूल किए बैठे हुए हैं, जबकि वह मुसलमान था ही नहीं। उसके समय में तो पूरा मंगोलिया, वह ख़ुद तेंग्रे धर्म को मानता था और तेंग्रे मूलतः सनातन धर्म है, जिसे हम लोग आज हिंदू कहते हैं। तेंग्रे धर्म के मानने वाले आकाश, पृथ्वी, देवी देवताओं की पूजा करते हैं।”

वाज़िदा तफ़सील से बताती हुई यह भी कह रही है कि, “उसने चंगेज ख़ान के मक़बरे की फोटो भी गूगल पर दिखाई, जिसमें सच में त्रिशूल और श्रृंगी दोनों ही थे। उसने किसी किताब के कुछ पन्नों और कई कटिंग की फोटो भी अपने मोबाइल में दिखाई। उन लाइनों को पढ़ कर बताया जिसमें यह कहा गया था कि, तेंग्रे सनातन धर्म है और जिसमें आकाश, पृथ्वी, अग्नि की पूजा की जाती है। कज़ाख़िस्तान ने उसी से प्रभावित होकर बड़े सम्मान के साथ अपने राष्ट्रीय ध्वज का रंग आकाशीय नीला रखा है। 

साथ ही यह भी कहा कि समाज को एक एजेंडे के तहत तमाम बातें बताई ही नहीं गईं, सच बताया ही नहीं गया। और इस सनातन देश, समाज से दुराग्रह रखने वाले झूठे इतिहासकारों ने यह झूठ स्थापित कर दिया कि चंगेज ख़ान मुस्लिम था, उसने भारत पर भी हमला कर क़त्लेआम किया था। इसी के चलते ग़लतफ़हमी में अधिकांश लोगों ने उसे इस्लामी हमलावर मान लिया, लोगों ने उसका सरनेम अपना लिया, जबकि यह पूरी तरह से ग़लत है। 

ख़ान मतलब तेंग्रे यानी सनातन धर्म इसलिए जो लोग भी केवल इसी बात को ध्यान में रखकर ख़ान सरनेम अपनाते चले आ रहे हैं, उन्हें इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए और क्योंकि तथ्य अकाट्य हैं तो वह ख़ान सरनेम बदल दें, नहीं तो उन्हें भी सनातनी ही समझा जाएगा।’ 

“उसकी बातों से मैं बहुत इंप्रेस हो गई। उससे मैंने तमाम कटिंग्स व्हाट्सएप पर माँग लीं, उनको पढ़ा। क्रॉस चेक करने के लिए विकिपीडिया पर भी पढ़ा। उसकी बातें सही थीं। मैंने यह सारी बातें इससे की, तो पहले तो यह चुप रहे, लेकिन बाद में बुरा मानने लगे। 

“बात केवल इतनी ही नहीं है। इन्हें सबसे ज़्यादा बुरा मेरी इस बात से लगा कि, इस बार भी रामनवमी के जुलूस पर पिछली कई बार की तरह देश में कई जगहों पर कुछ कट्टर मुस्लिम मज़हबी लोगों ने हमला किया, दंगा, लूटपाट, हत्याएँ आगजनी की। 

“इस बारे में एक समाचार पढ़ कर मैंने इससे कहा कि, ‘यह सब नहीं होना चाहिए, ग़लत है। आज-तक तो ऐसा कभी नहीं सुनाई दिया कि हिंदुओं ने देश-दुनिया में कभी हमारे किसी त्योहार पर मोहर्रम के किसी जुलूस पर हमला किया हो, आगजनी लूट-पाट, हत्याएँ की हों। 

‘हम लोग यह सब करके दुनिया में अपनी ही इमेज ख़राब करते हैं, ख़ुद को बदनाम करते हैं। सभी को अपना-अपना धर्म मानने, पूजा-पाठ करने देना चाहिए। ऐसा नहीं करना चाहिए कि मंदिर महफ़ूज़ रहे इसके लिए सिक्योरिटी फ़ोर्स लगानी पड़े और मस्जिद बिना फ़ोर्स के ही सुरक्षित रहे’। 

“मैंने यह भी कहा कि किसी भी मुसलमान को यह नहीं भूलना चाहिए कि हम भले ही आज मुसलमान हैं, लेकिन इस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ सकते कि, हमारे पूर्वज भी सनातनी थे, भगवान राम, कृष्ण जैसे सनातनियों के हैं वैसे ही हम मुस्लिमों के भी पूर्वज हैं। 

“इंडोनेशिया को देखो न, दुनिया में सबसे ज़्यादा मुसलमान वहीं पर हैं। वह भी एक सनातनी देश था। वहाँ के लोग आज भी राम को अपना पूर्वज मानते हैं। वहाँ पूरे साल रामलीला का मंचन होता रहता है। वहाँ की करेंसी पर गणेश जी की फोटो होती है। 

“भले ही हमारे पूर्वजों ने तलवार के डर से, या फिर पैसों के लालच में आकर सनातन धर्म छोड़कर इस्लाम मज़हब अपना लिया, लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए, पूर्वज तो बदल ही नहीं सकते। राम ही, सनातनी ही मुस्लिमों के पूर्वज थे, हैं, वही रहेंगे। 

“रामनवमी के जुलूस पर या राम, कृष्ण को ना मानना, पूजा-पाठ, जुलूस पर दंगे करना, वैसा ही है, जैसे अपने अब्बू-अम्मी को तो माना जाए लेकिन उनके अब्बू-अम्मी, अपने पूर्वजों को अपमानित किया जाए, उनसे नफ़रत की जाए। मेरी इन बातों को यह चुपचाप सुनते थे, तो मैं बोलती रहती थी। यह कभी भी खुलकर कोई बात नहीं करते थे। 

“इससे मैं यह अंदाज़ा ही नहीं लगा पाई कि मेरी यह बातें इनको बहुत बुरी लग रही हैं, चुप-चाप ये सिर्फ़ इसलिए सुन रहे हैं, जिससे कि मेरे मन की सारी बातों को यह अच्छी तरह जान समझ सकें कि मेरे मन में क्या है, मैं ऐसी बातें किस हद तक कर सकती हूँ। मैं समझ ही नहीं पाई कि, इसके मन में मेरे लिए ग़ुस्सा, नफ़रत का लावा इकट्ठा होता जा रहा। 

“एक दिन मैंने जब यह कहा कि, ‘देखो यदि पहले किसी भी वजह से कुछ ग़लत होता चला आया है, तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि सच जानने के बाद भी उसे सुधारा न जाए।’ इसका मतलब इन्होंने यह निकाल लिया कि मैं इनसे सरनेम और मज़हब बदलने की वकालत कर रही हूँ। 

“मैं इसे एक तरक्की-पसंद इंसान समझती थी। पहले यह दाढ़ी, टोपी कुछ भी नहीं रखते, पहनते थे। मज़हबी दंगे-फ़सादों पर ग़ुस्सा होते थे, बोलते थे मज़हब का मतलब यह सब थोड़ी न होता है। लेकिन जब से यह एक मज़हबी तंजीम से जुड़े, तब से यह दिन पर दिन बदलते ही चले गए, इतना ज़्यादा और इतनी तेज़ी से बदल गए कि मैं समझ ही नहीं पाई कि मेरी बातों के कारण अब यह मुझे काफ़िर मानने लगे हैं, और काफ़िरों की हत्या करना अपना मज़हबी फ़र्ज़। और मुझ काफ़िर को आज बेइज्जत कर, मार कर आज अपना फ़र्ज़ पूरा करने जा रहे थे। 

“वह तो शुक्र है ऊपर वाले का कि आप लोग टाइम पर आ गए, और मैं आपके सामने बैठी, अपने ऊपर हुए ज़ुल्म के बारे में बता रही हूँ। ख़्वाबों में भी नहीं सोचा था कि, एक पढ़ा-लिखा आदमी, एक अनपढ़ से भी ज़्यादा कट्टर मज़हबी बन सकता है . . .” 

वाज़िदा की बातें बड़ी लंबी होती चली गईं, तबरेज़ ने उसे कई बार बीच में टोकने की कोशिश की। उसको देख कर लगता कि जैसे वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है और पुलिस न होती तो वह उसके टुकड़े कर डालता। वाज़िदा की बातों, प्रमाणों का उसके पास कोई जवाब नहीं था, लेकिन उसकी भी तमाम बातों को पुलिस ने सुना और उसकी भी रिपोर्ट लिख ली। दोनों को लॉक-अप में बंद कर दिया। इसके पहले उनकी मरहम-पट्टी भी करवा दी थी, क्योंकि दोनों के कुछ ज़ख़्म ज़्यादा गहरे थे। 

रात अपना सफ़र पूरा कर विदा लेने को तैयार है। हवालात के गर्म फ़र्श पर बैठी वाज़िदा सोच रही है कि, यह तो निश्चित ही कई साल के लिए जेल जाएगा, लेकिन मुझे भी कई साल जेल काटनी पड़ेगी। अटेम्प्ट-टू-मर्डर की रिपोर्ट इसने भी लिखवाई है, सारे सुबूत सामने हैं। मेडिकल रिपोर्ट में इसके भी सारे ज़ख़्मों का ब्योरा दर्ज़ होगा। दोनों रिपोर्ट दर्ज़ करा चुके हैं, अब मामला वापस भी नहीं ले सकते। 

एक ही रास्ता है कि कोई क़ायदे का वकील करूँ, वही मुझे बचा पाएगा कि मैं हमलावर नहीं थी। मैंने अपनी जान बचाने की कोशिश की, उसी से यह भी चोटिल हुआ होगा। तमंचा, चॉपर यही ले आया था, यह तो जब इसकी कारगुज़ारियों की पुलिस जाँच करेगी, एक-एक बात खंगालेगी तो यह उस तंज़ीम के कहने पर और जो काले-कारनामे करता आ रहा है, वह भी सामने आएँगे, इसकी मुश्किलों को और बढ़ाएँगे। 

और मेरी भी मुश्किलें कुछ कम होगी क्या? पैंतालीस की उम्र में मर्द से मार-पीट की, खून-खच्चर हुआ, रात हवालात में कटी, अगले कई साल जेल में बीतेंगे, नौकरी चली जाएगी, जेल से छूटूँगी तो एक सजायाफ़्ता के चलते दूसरी नौकरी भी नहीं मिलेगी, सच जानने के बाद तो कोई घर में नौकरानी भी नहीं रखेगा। 

उसे इंस्टाग्राम पर बार-बार देखी एक रील भी याद आ रही है, जिसमें पुलिस एक सनातनी महिला सामाजिक कार्यकर्ता को पकड़ कर सिर्फ़ इसलिए जेल में डाल देती है, क्योंकि उसने अपनी स्पीच में मुस्लिम महिलाओं की बदतरीन हालत के मुताल्लिक़ बोल दिया था कि, “वे सनातनी लड़कों से शादी करके तीन-तीन सौतनों, बच्चे पैदा करने की मशीन बनने, तलाक़, बुर्क़े की क़ैद, पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी आदि तमाम मुश्किलों से मुक्त हो सुन्दर सुखी जीवन जी सकती हैं। मर्द की खेती नहीं उसकी अर्द्धांगनी, देवी बनकर रह सकती हैं।” 

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