मासिक धर्म Kamini Trivedi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मासिक धर्म

भाग – १

मैं रीया,,,रीया बजाज,,, ।
बालकनी में बैठी गरम चाय की चुस्की लेते हुए मुझे अपनी ही कहानी यानिकि यादें बचपन से लेकर अब तक की याद आने लगी । सोचा चलो लिखते हैं दर्द अपना भी।
हर इंसान के अंदर एक लेखक तो छुपा ही होता है बस जरूरत होती है कुछ ऐसे अवयवों की जो उस लेखक को बाहर ला सके। कभी कुछ हादसे होते है तो कभी कोई प्रेरणात्मक कहानी जो हर किसी के अंदर छुपे एक लेखक को पहचानने में मदद करती है ।

तो आज चाय पीते हुए मेरे अंदर का भी लेखक जाग उठा। मेरा भी लिखने का मन किया। इससे पहले मैने कभी कुछ नहीं लिखा था। फिर भी कोशिश करती हूं । शायद मेरे शब्द और भी किसी के दिल को छू ले या किसी के जज्बातों से मेल खा ले।

मेरे पापा रियांश बजाज और मां दिव्या बजाज । दोनों का प्रेम विवाह हुआ था। दोनों ही एक दूसरे से बेइंतहा मुहब्बत करते थे । शादी बड़ी मुश्किलों से हुई लेकिन आखिर उन्होंने सबको राज़ी करके शादी कर ही ली।फिर भी मां के पापा और पापा की मां दोनों ने उन्हें माफ नहीं किया। फिर भी उन लोगो ने तो शादी करके खुद का अलग घर बसा ही लिया बहुत खुश थे दोनों लेकिन कभी कभी किस्मत धोखा दे जाती है ।

मां प्रेगनेंट हुई पूरा समय अच्छे से निकला लेकिन ९ वें महीने मै उन्हें कुछ कॉम्प्लिकेशन हो गए । जिस वजह से डॉक्टर ने जल्दी से ऑपरेशन करने का सोचा । डॉक्टर ने सारे रिपोर्ट्स देखने के बाद पापा से कहा कि मां और बच्चे में से किसी एक को ही बचा सकते है। पापा ने तो डॉक्टर से कहा कि आप मेरी दिव्या को बचा लीजिए डॉक्टर बच्चा तो बाद में भी हो जाएगा । डॉक्टर ने उनसे कुछ पेपर्स पर साइन लिए और ऑपरेशन के लिए मां को लेे जाया गया। मां बहुत दर्द में थी। पापा बहुत परेशान थे। सभी घरवाले उनकी सलामती की दुआ मांग रहे थे।

मां ऑपरेशन थिएटर में जाने से पहले पापा से कह रही थी। "ये हमें अपने मां पापा का दिल दुखाने की सजा मिल रही है रियु,," पापा ने उनसे कहा , "चिंता मत करो दिव्या सब ठीक हो जाएगा ।"

लेकिन पापा को बार बार मां कि बात याद आने लगी । हां दिल तो दुखाया था उन्होंने अपने पैरेंट्स का लेकिन क्या इतनी बड़ी गलती थी ये की उसकी सजा एक मासूम को मिलेगी। "है भगवान , मेरी पत्नी और बच्चे दोनों को बचा लीजिए आप ,, आप तो सब कुछ कर सकते है ना"पापा ने हॉस्पिटल में रखे भगवान की मूर्ति के सामने प्रार्थना करते हुए कहा।

कुछ घंटो बाद ओटी का दरवाजा खुला, डॉक्टर मायूस से बाहर आए। पापा ने उनकी और कदम बढ़ाकर पूछा, "अब कैसी है दिव्या डाॅक्टर?"
"आई एम सॉरी मिस्टर रीयांश हम आपकी पत्नी को नहीं बचा सके। "
"व्हाट? लेकिन डॉक्टर मैने कहा था कि मुझे मेरी पत्नी चाहिए बच्चा तो बाद में भी हो जाएगा।" पापा ने डॉक्टर को कंधों से पकड़ कर झंझोड़ते हुए कहा।
"आप शांत हो जाइए मिस्टर रियांश,, हमने पूरी कोशिश की लेकिन हम उन्हें नहीं बचा सके।लेकिन आपकी बेटी बिल्कुल ठीक है"
पापा पूरी तरह से टूट चुके थे ।उनकी कुछ समझ नहीं आ रहा था । कुछ देर बाद नर्स ने उनके हाथ में एक बेबी लाकर रख दी । वह मैं थी। पापा गोद में लिए मुझे निहार रहे थे । मुझे पाकर तो वो खुश थे लेकिन मां को खोकर दुखी। इसलिए उनके चेहरे पर मुस्कुराहट तो थी लेकिन अनवरत आंसुओ कि बरसात के साथ। ये सब कुछ मेरे पापा ने ही मुझे बताया था।

****†*********†****

पापा मुझे हॉस्पिटल कि सारी फॉर्मलिटी करके घर ले आए । उन्होंने मुझे मां और पिता दोनों का प्यार दिया।

इस बीच कई बार लोगों ने उन्हें दूसरी शादी करने की सलाह भी दी । लेकिन वो मेरे लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहते थे । क्या पता वो मुझे प्यार ना कर पाती। या मेरे साथ बुरा बरताव करती।

मै अब ३ साल की हो चुकी थी पापा ने मेरा स्कूल में एडमिशन कराया और पूरा दिन मेरी देखभाल के लिए स्कूल वालों को ही बोल दीया शाम को ६ बजे पापा मुझे स्कूल से घर लेकर आते । मै कभी कभी नाराज़ होती गुस्सा करती और कई बार रोती भी । क्योंकि मुझे पूरा दिन स्कूल में रहना पड़ता था।

मैंने कई बार उनसे मां के बारे में पूछा लेकिन मै छोटी थी तो जल्दी भूल जाती थी । दूसरे बच्चों की मम्मी को देखकर मुझे मेरी मां बहुत याद आने लगी । अब तक मैं घर रहती थी तो मुझे मां की जरूरत महसूस नहीं होती थी पर अब दूसरों कि माएं उन्हें दुलार करती लेने आती तो मुझे बार बार खयाल आता कि मेरी मां कहां है?


इसी तरह समय गुजरता रहा । पापा मुझे बहुत ज्यादा प्यार करते थे । उन्होंने बिजनेस इस तरह जमा लिया कि अब वो मेरे साथ ज्यादा वक़्त बिता सके । शायद वो महसूस कर रहे थे कि मुझे मां की ज्यादा याद आने लगी है और वो भी बिजी रहते है तो मैं अकेली हो गई हूं। उन्होंने अब मेरे साथ घर पर रहना शुरू किया सारा काम वो घर से संभालते थे । मेरे पापा ने मेरे लिए बहुत त्याग किया लेकिन फिर भी मेरा मां को याद करना उन्हें दुख पहुंचा देता था। वो सोचते थे कि कहीं ना कहीं कोई कमी रह गई कि मै अब भी मां को याद करती हूं जबकि मैंने तो उन्हें देखा भी नहीं । असल मै पापा के प्यार मै कोई कमी नहीं थी लेकिन मां तो मां होती है । कई जगह पर जो काम एक मां कर सकती है वो कभी भी पापा नहीं कर सकते खासकर एक लड़की की ज़िन्दगी में।

अब मैं १३ साल की हो चुकी थी । अचानक एक दिन मैंने महसूस किया कि मुझे पेट में बहुत दर्द हो रहा है। मै सो कर उठी तो मेरी बेडशीट और कपड़ों पर लाल रंग लगा हुआ था । मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा था । ये सब आखिर है क्या? मै बहुत घबरा गई । मुझे लगा शायद मुझे कोई बड़ी बीमारी तो नहीं हो गई ? ब्लड कैंसर? मेरा शरीर डर से कांपने लगा । पसीना बहने लगा । मैंने हिम्मत करके जल्दी से बेडशीट हटाई पापा को पता ना चले इसलिए और उसे बाथरूम में ले जाकर अच्छे से धोकर सूखा दिया । खून का दाग ताज़ा था तो बेडशीट से जल्दी से चला गया। इसी तरह मैने मेरी फ्रॉक और इनरवियर भी वाश की । अब पेट का दर्द बहुत ज्यादा बढ़ गया था और साथ की अब कमर और पैरो मै दर्द होने लगा था । मुझे चक्कर भी आ रहे थे।


मैने मेरी बेस्ट फ्रेंड पूजा को फोन किया।

"हैलो" पूजा की आवाज़ आई।

मेरी समझ नहीं आया उसे कैसे बताऊं। मैंने उसे कहा, "सून पूजा तू अभी मेरे घर आ सकती है क्या?"मेरी दबी और घबराई आवाज़ सुनकर उसने मुझसे पूछा ,

"क्या हुआ रिया तू ठीक तो है ना?"

"वो ना मै आज सुबह उठी तो मेरे बेड पर खून और कपड़ों पर खून लगा था और मुझे पेट दर्द हो रहा है शायद मुझे कोई बड़ी बीमारी हो गई है ।"

पूजा हंसने लगी ।

मै असमंजस में थी कि पूजा हंस क्यों रही है । उसने मुझे बताया, " रिया इसे मासिक धर्म यानिकि पीरियड्स कहते है । ऐसा हर लड़की को हर महीने होता है।तेरा पहली बार है इसलिए तू घबरा गई है। तुझे पता है पिछले ३ महीने से में ३ दिन की छुट्टी लेती हूं या अगर स्कूल आती भी हूं तो बहुत तबियत खराब रहती है मेरी । वो इसी वजह से,, घबराने की कोई बात नहीं है। जब मैं पहली बार हुई थी तो मेरी मां ने मुझे सब समझाया था। तेरी भी मां,,,,, " कहकर वो रुक गई। फिर उसने बात बदलते हुए कहा, "तू तेरे पापा से बात कर और हा बाज़ार में मेडिकल स्टोर से सैनिटरी पेडस खरीद कर ले आ। अभी ना मैं बाहर जा रही हूं मम्मी आवाज़ लगा रही है चल बाय" पूजा ने कहा।

"लेकिन सून,,,,," मै कुछ कहती उससे पहले उसने फोन काट दिया।

मैं ये बात पापा को कैसे बताऊं मै इस असमंजस में थी। मै नहीं बता सकती थी। मुझे शर्म आती है। उस दिन रविवार था। मै पेडस भी कैसे लूंगी मै तो आजतक कभी घर से बाहर अकेली नहीं गई । किससे बोलू यार । मै बहुत उलझन में थी। मेरी दूसरी फ्रॉक भी खराब हो चुकी थी मुझे कुछ रास्ता समझ नहीं आया तो मैंने एक चद्दर के टुकड़े को फोल्ड करके उसे लगा लिया ताकि कम से कम कुछ देर ही सही खून फ्रॉक पर ना आए फिर से मैने फ्रॉक धो दिया । अब दर्द भी काफी बड़ गया था। मै वापिस सो गई थी। अपनी मां कि तस्वीर को अपने साथ लेके। लेकिन सोए सोए में सोच रही थी ।

"काश आज मां होती। वो होती तो मुझे सब समझाती। मुझे कोई परेशानी नहीं होती। मेरे लिए वो पेड भी खरीद देती । और मेरे दर्द का भी उनके पास ज़रूर कोई उपाय होता सोचते सोचते और मां को याद करते करते उनकी तसवीर को बाहों में लिए मै सो गई। पापा मेरे कमरे में आए मां कि तस्वीर के साथ मुझे सोया देख उनके दिल में दर्द उठा । आखिर वो बहुत कोशिश करते थे कि मुझे मां की कमी महसूस ना हो लेकिन फिर भी जैसे जैसे मै बड़ी हो रही थी मुझे मां की ज्यादा ज़रूरत महसूस होने लगी थी।

कुछ देर बाद पापा ने मुझसे कहा, "बेटा आज ब्रेकफास्ट नहीं करना क्या? आज बहुत देर तक सो रही हैं आप"

पापा की आवाज़ से मैं उठी मैंने धीरे से उठकर नाश्ता किया। मै ऐसी कोशिश कर रही थी कि पापा को कुछ भी पता ना चले। अगले दिन मेरा जन्मदिन था पापा उत्साहित थे आखिर ये मेरा १३ वा जन्मदिन था।

पापा ने कहा "बेटा मैं कुछ ज़रूरी काम से बाहर जा रहा हूं आता हूं ।"

मेरा मन किया पापा से कहूं कि वो मेडिकल स्टोर से पैड लेे आए लेकिन मै घबराई हुई थी मैने पापा से नज़रे नहीं मिलाई और हां में गर्दन हिला दी।

पापा जैसे ही बाहर गए

मैंने अपने गुल्लक में से पैसे निकाले और मेडिकल स्टोर जाने निकली । मेरे हाथ पैर कांप रहे थे । मै कभी भी पापा के बिना घर से बाहर नहीं गई थी। और मुझे चक्कर भी आ रहे थे और कमजोरी भी लग रही थी। सोसायटी के बाहर कुछ दूर चलकर सड़क पार करने के बाद मेडिकल स्टोर था।

मैं जैसे ही सोसायटी के बाहर आई मुझे धूप और गाड़ियों के शोर से चक्कर ज्यादा आने लगे । मै धीरे धीरे अपने कदम बड़ा रही थी मैने अपने हाथ में रखे रुपयों को मुट्ठी में ज़ोर से पकड़ लिया । मुझे बहुत डर भी लग रहा था। थोड़ा चलने के बाद मै आगे बढ़ने की हिम्मत ना कर पाई और भागकर घर मै जाकर रोने लगी ।

मै पसीने से भीग चुकी थी । मेरे घर काम वाली आती थी जिनका नाम शांता बाई था। उन्होंने मुझे देखा तो वो समझ गई कि मै बहुत रोई हूं। मैंने खुद को ठीक किया और कमरे मै चली गई।

जब पापा आए तो शांता बाई ने बताया कि रिया बेबी शायद रोई है।

पापा मेरे कमरे में आए। लेकिन मै सोने का नाटक करने लगी । पापा मेरे पास आए मेरे बालो में हाथ फेर कर वो बाहर चले गए । उनकी भी अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। आखिर सुबह से मुझे हुआ क्या है । वो सोचने लगे । पापा मां कि तस्वीर के सामने खड़े होकर रोने लगे और मां से कहने लगे।

"दिव्या आखिर तुम क्यों चली गई मेरी बेटी की ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी को मै पूरी नहीं कर पा रहा मुझे कोई रास्ता दिखाओ दिव्या । क्या करू मै उसके लिए बताओ मुझे। आखिर उसे हुआ क्या है कैसे पता करू?"

इतना कहकर पापा बालकनी में गए वहां उन्होंने बेडशीट और दो फ्रॉक सुखी हुई देखी। वो सोचने लगे शांता बाई तो अभी आई है कपडे धोना भी बाकी है तो फिर ये।

वो अब कमरे मै आए और उनकी नजर कैलेंडर पर गई उन्हें याद आया कि मैं अब तेरह साल की हो गई हूं। अब उनकी भी कुछ कुछ समझ आ रहा था । उन्होंने मां कि तस्वीर के सामने देखा और मुस्कुराए जैसे वो उन्हें धन्यवाद दे रहे हो कि उन्होंने मां से हेल्प मांगी और मां ने उनकी मदद कर दी समझने मै की आखिर हुआ क्या है ।

****†*****************†****



पापा ने मां कि तस्वीर के सामने देखकर मुस्कुरा कर देखा और वो कमरे से बाहर आ गए । अब वो भी थोड़ा नर्वस थे किस तरह वो मुझसे इस बारे में बात करे सोच रहे थे।पापा जल्दी से घर से बाहर गए वापिस आकर उन्होंने रसोई मै गरम पानी किया और फिर हॉट बैग में भरकर मेरे पास लेकर आए । वो मेरे पास बैठे लेकिन थोड़ा असहज हो रहे थे । कैसे शुरुआत करे उनके मन में खयाल आया।

मै पेट पकड़ कर सोई थी मुझे पता नहीं था पापा कब पास आकर बैठ गए है उन्होंने जब मुझे पुकारा तो मै एकदम से उठकर बैठ गई । मैं नहीं चाहती थी पापा को पता चले । तभी शांता बाई कमरे मै आई और बोली, "साहब चादर और बेबी की फ्रॉक आपने क्यों धो दी मै धो देती ना।"

पापा मेरी तरफ देखने लगे और मै उनकी तरफ । उन्होंने शांता बाई से पूछा, "आपका काम हो गया शांता बाई?"

"जी साहब"

"तो आप आज शामको जल्दी आ जाना"

"ठीक है साहब" कहकर वो चली गई।


पापा से मैं नज़रे चुराने लगी । मुझे पता था पापा मुझसे बेडशीट और फ्रॉक धोने का कारण पूछेंगे क्योंकि इससे पहले मैंने कभी घर का कोई काम नहीं किया था। मै मन ही मन सोच रही थी कि उन्हें क्या कहूंगी। तभी वो बोले, "बेटा,,,,,, समझ नहीं आ रहा,,,,,,, कैसे कहूं,,,,,, लेकिन कहना तो होगा । आज तुम्हारी मां होती तो सुबह से जो तकलीफ़ देख रही हो उसे तुरंत समझ जाती। मैं समझ ही नहीं पाया । आइ एम सॉरी बेटा। "

मै आश्चर्य से पापा की और देखने लगी । पापा आगे बोले, " बेटा आप कब बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला । मेरे लिए तो आप मेरी नन्ही गुड़िया ही हो । मेरी गलती है मुझे आपको इसके बारे में पहले से बताना चाहिए था।" कहकर उन्होंने विराम लिया और फिर बोले, "बेटा ,, इसे मासिक धर्म,, मासिक चक्र, रजस्वला होना या पीरियड्स भी कहते है। ये हर महीने लड़कियों को होता है।"

"पापा ये सिर्फ लड़कियों को क्यों होता है?" मैने उत्सुकता वश पूछा अब मै थोड़ा सा सहज हो रही थी क्योंकि पापा बहुत प्यार से मुझे समझा रहे थे"

"बेटा ,, स्त्री का शरीर हर महीने प्रजनन के लिए तैयार होता है ।आपको डिटेल में इस बारे में आगे कि कक्षा मै आयेगा तब मै आपको डिटेल में भी बताऊंगा अभी बस इतना जान लेे की एक औरत अगर पीरियड्स में होती है मतलब वो मां बनने के लिए तैयार हो चुकी है। आप अभी छोटी है बस इतना समझ लो कि उस के लिए आपके शरीर में हर महीने कुछ बीज आते है जैसे एक पोधे को उगने के लिए बीज होता है। उस तरह जब उन्हें बढ़ने के लिए जगह नहीं मिलती तो आपका शरीर उन्हें बाहर फेंकने लगता है इसलिए आप पीरियड्स में होने लगती है।"

"ऐसा पुरुष में नहीं होता?"

"होता है बेटा पुरुष बीज और स्त्री बीज के मिलने से ही बच्चा पैदा होता है ।लेकिन पुरुष को पीरियड्स नहीं आते लेकिन इसके बारे में अभी मै आपको ज्यादा डिटेल नहीं बता सकता मुझे भी थोड़ा सा साइंस पढ़ना पड़ेगा " कहते हुए पापा हंसने लगे । मैं जानती थी पापा इस बारे में सब जानते है पर अभी मुझे बताना नहीं चाहते इसलिए साइंस पढ़ने का बहाना कर रहे है । मैंने भी फिर उस बारे में ज्यादा नहीं पूछा।

पापा ने एक बैग मुझे दिया उसमे पैड्स थे उन्होंने मुझे उनका फोन दिया और कहा यूट्यूब पर पैड्स केसे पहनते है वो आप देख लीजिए मै अभी वापिस आता हूं।

मैंने उन्होंने जैसा कहा वैसा किया। अब मै काफी अच्छा महसूस कर रही थी। मैं खामखां डर रही थी पापा से शरमाने की जरूरत ही नहीं थी । अब मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

पापा वापिस कमरे मै आए और मुझसे पूछा , "आपको कोई तकलीफ़ हो रही है अभी।"

"हां पापा पेट मै कमर मै पैरो मै और सिर में दर्द हो रहा है । सुबह थोड़े चक्कर भी आ रहे थे।"मैंने कहा

"ये हॉट बैग को अपनी कमर पेट के निचले हिस्से पर रखकर बैठिए । आपको आराम मिलेगा ।" पापा ने कहा और चॉकलेट मुझे देकर कहा।

"इस समय में मूड स्विंग होता है । कभी आप अच्छा महसूस करेंगी तो कभी चिड़चिड़ापन होगा , कभी गुस्सा भी आयेगा और हो सकता है बेवजह रोना भी आ जाए। स्ट्रेस रिलीफ़ के लिए चॉकलेट बेस्ट होता है । इसलिए आप चॉकलेट खाइए मै आपके लिए जूस बनाकर लाता हूं।" पापा जाने लगे ।

"पापा,,,, " मैंने कहा। वो पलट कर मेरे पास आए।

मैंने उनका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा कर उनकी गोद में सिर रख कर कहा।

"थैंक यू पापा ,,, यू आर द बेस्ट डैड ऑफ दिस वर्ल्ड,, आइ एम सॉरी पापा ,, आपके होते हुए मुझे मां की क्या ज़रूरत" ये सुनकर उनकी आंख भर आई आखिर मेरे जन्म से अब तक वो यही तो सुनना चाहते थे।

उन्होंने मेरे सर पर हाथ घुमाया और कहा, "बेटा मां की कमी तो मै शायद ना पूरी कर पाऊं लेकिन आप मुझसे अब से कुछ छुपाएंगी नहीं । कैसी भी बात हो । आज से हम फ्रेंड्स है। आपकी मां होती तो आप उनसे सब कह देती ना । वादा करो आप अब से मुझे भी सब बताएंगी। आज आप सुबह से परेशान हो रही है । और मुझे पता नहीं चला।"

"आइ एम सॉरी पापा"

वो मेरे बालों को सहलाते रहे और में चैन से सो गई उन्होंने मुझे बिस्तर पर ठीक से सुलाया और मां की तस्वीर के सामने खड़े होकर बोले, " माफ़ करना दिव्या ,, मै समझ नहीं पाया तुम्हारी बेटी अब बड़ी हो गई । तुम होती तो उसे सब कुछ पहले से बता देती । आज वो ना जाने किस तरह से ये तकलीफ़ देख रही होगी और मेरा ध्यान ही नहीं था । तुमने मुझे जो कुछ भी बताया था वो तो मै उसे समझा ही दूंगा लेकिन आज ही मै इस बारे में पूरी जानकारी पढ़कर उसे समझा दूंगा। "


उसके बाद पापा अपने लैपटॉप पर पीरियड्स के बारे में सबकुछ पढ़ चुके थे। कुछ देर बाद वो मेरे लिए जूस लेकर आए और मुझे सबकुछ जो ज़रूरी था बताया ।


साथ ही पापा ने कहा कि मै दो दिन स्कूल ना जाऊं। टीचर से पापा बात कर लेंगे।

मैं शायद इस दुनिया की सबसे खुशनसीब बेटी थी। जो मुझे ऐसे पापा मिले थे। उन्होंने ३ दिन मेरा बहुत ख्याल रखा और मैंने भी पापा के फोन में ज्यादा से ज्यादा जानकारी पीरियड्स की इकट्ठी कर ली।


स्कूल में पूजा मुझसे मिली उसने मुझसे कहा, "सॉरी रीया उस दिन हम बाहर जा रहे थे सो मै आ नहीं सकी । पर तूने क्या किया फिर।"

मैंने उसे सारी बातें बता दी । पूरा दिन मै केसे रही बाहर स्टोर जाने निकली पर ना जा सकी फिर पापा ने केसे समझाया। सबकुछ

"वाह,, रीया सच में ,, यू आर वेरी लकी"

मै मुस्कुरा दी।


एक महीने बाद,, मुझे जरा सा भी एहसास नहीं था कि मेरे पीरियड्स आने वाले है आखिर ये दूसरी बार ही था कैसे याद रहता मै स्कूल में थी। हमारी स्कूल कोएड स्कूल था । लड़के और लड़कियां साथ पड़ते थे। स्कूल में अचानक मै पीरियड्स में आ गई मेरे पास पैड्स नहीं थे। मैंने अपनी कुछ सहेलियों से पूछा पर कोई भी पैड्स लेकर नहीं आइ थी । मैं बहुत असहज महसूस करने लगी। मेरी ड्रेस पर दाग लग चुका था । और गर्मी होने के कारण सिर्फ स्कूल ड्रेस के अलावा मेरे पास ऐसा कुछ नहीं था जिससे में दाग छुपा सकू।


मेरी सहेलियों ने मेरी टीचर से बात की । टीचर ने मुझे घर जाने कि परमिशन दे दी। वैसे तो मै अकेले घर नहीं जाती थी इसलिए मेरे स्कूल के ही एक पीयुन को मुझे छोड़ने जाने का कहा। मै नहीं चाहती थी पापा परेशान हो।


जब मै पियुन के साथ क्लास से बाहर निकली तो बाहर लड़को का झुंड खड़ा था । मैं बहुत असहज सा महसूस कर रही थी। पिऊन आगे चला गया मैं धीरे धीरे जा रही थी वो लड़के शायद १० वीं कक्षा के थे। मैं थोड़ा आगे निकली तो उन्होंने मेरी ड्रेस पर लगा दाग देखा वो हंसने लगे । उनमें से एक ने कहा, "लो एक और तैयार हो गई ।"

सभी हंसने लगे।

मुझे रोना आने लगा । उन्हीं में से एक लड़के ने दौड़कर मेरे पास आकर मुझे उसका पिटी यूनिफॉर्म का टीशर्ट दिया और कहा ।

"तुम ये अपनी कमर पर बांध लो सिस्टर,,"

मैं उसकी और देखने लगी।

"चिंता मत करो,, टीशर्ट कल मुझे वापिस कर देना । मैं रघुवीर साहनी १० वीं में बी सेक्शन में हूं।"

मै मुस्कुरा दी। एक ही समय में मैंने दो तरह के लोगों का एक्सपीरियंस कर लिया था ।

ज़िन्दगी कितना कुछ सिखाती है दिखाती है। यह मै सोच रही थी ।

एक लड़का मेरी आंखों में आंसू लेे आया था अगले ही पल दूसरा मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट। ये सब परवरिश का ही अंतर होता है।


मैं उस वक़्त घर जाने के बजाय टीचर के पास गई । और मैंने उनसे कहा, मैम क्या आप मेरे पापा को बुला सकती है।"

उन्होंने पापा को फोन किया पापा तुरंत स्कूल आए।

मैंने उन्हें बताया कि आज क्या हुआ।

उन्होंने मैम से कहा, "मैडम आपकी स्कूल में एक्टिविटी चाहे आप एक दो ना कराए तो चलेगा । लेकिन पीरियड्स की जानकारी हर लडके और लड़की को होनी चाहिए । मेरी बेटी की मां नहीं है ये जब पहली बार पीरियड्स में आई इसने बहुत तकलीफ़ देखी मुझसे बता नहीं पा रही थी । एसी और भी लड़कियां होंगी जिनकी मां ना हो। मेरे खयाल से १२ साल की उम्र में बच्चो को इसकी जानकारी देनी चाहिए और समय समय पर इसके लिए एक क्लास होनी चाहिए। जहां लड़कियों को पीरियड्स का महत्व और उन्हें क्या सावधानियां प्रिकॉशन रखने हो समझाया जाए, क्या करना है सिखाए और लड़को को उनके साथ कैसे पेश आया जाए ये सिखाए। ये मेरी आपसे रिक्वेस्ट है।"

मैम को भी पापा की बात अच्छी लगी ।

उसके बाद हर साल पीरियड्स सब्जेक्ट पर एक सेशन ज़रूर होता था और स्कूल में समय समय पर उसकी जानकारी दी जाती थी। यहां तक कि स्कूल ऑफिस मै पैड्स भी रखे जाते थे। वो लड़का जिसने मेरी हंसी उड़ाई थी उसने मुझसे आकर माफी मांगी जब यही घटना उसकी छोटी बहन के साथ हुई ।

कहते है ना कर्मा तो यही भुगतने पड़ते है । बस जब आप जवाब नहीं देते तो भगवान देते है,, अपने तरीके से ।

इसलिए चुप रहना सबसे अच्छा होता है।


उसके बाद मैं ने पीरियड्स को लेकर कई एक्सपीरियंस किए । लेकिन वो सब इतना महत्त्व नहीं रखता था कभी ज्यादा लिखने का मन हुआ तो फिर से लिख कर बताऊंगी।


फिर मैं कॉलेज में आ गई थी । मेरे कॉलेज का एक बदतमीजी लड़का मेरे पीछे पड़ गया था। एक बार में फिर पीरियड्स में थी और उसे ये पता चला तो उसने उसी समय मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की एक तो पहले ही बॉडी में दर्द हो रहा था और में असहज सी हो रही थी और वो मेरे साथ,,,,, मै बहुत रोई उस वक़्त आखिर एक लड़की को ही ये सब क्यों देखना पड़ता है ? आखिर ये पुरुष भी तो उसी लड़की के पीरियड्स में होने से ही पैदा होते है इनका अस्तित्व भी उसी वजह से तो है फिर क्यों नहीं समझते वो ये सब ?

मन मै ना जाने कितने सवाल थे। क्या हर लड़की को ये सब झेलना पड़ता है ? क्या एक औरत होना गुनाह है? क्या आदमी बस एक स्त्री को इसी के लिए जरूरी समझता है?

अगले ही पल मुझे रघुवीर की याद आई वैसे लड़के भी होते है दुनिया में जो लड़कियों कि इज्जत करते है।


उस समय में बहुत समय तक सामान्य नहीं हो पाई थी । पापा को समझ आ गया था कोई बात तो है । जब उन्होंने पता किया तो उन्हें बहुत गुस्सा आया । उन्होंने मुझे हिम्मत दी बल्कि उस लड़के को सजा भी दी।

पापा ने तब मुझसे कहा था, "बेटा कमजोर तुम नहीं हो ,, वो लड़के है जो अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए औरतों को नीचा देखते है। अगर स्त्री ना हो तो ये दुनिया ही ना हो। एक स्त्री होना शर्म की नहीं गर्व की बात है बेटा । तुम बहुत खुशकिस्मत हो । तुम वो सब अनुभव करोगी जो एक आदमी कभी समझ भी नहीं सकता बेटा । तुम जननी हो एक जीवन को जन्म देने वाली महान स्त्री हो कभी खुद को कमजोर नहीं समझना । अपनी शक्ति को पहचानो। माता कालिका भी स्त्री थी जब गुस्सा हुई तब काली रूप लिया । ज़रूरत पढ़ने पर मां कालिका बनने में हिचकना मत । मै तुम्हारे साथ हूं हमेशा।"

एक बार फिर पापा ने साबित कर दिया कि वो दुनिया के बेस्ट पापा थे। उसके बाद मै कभी कमजोर नहीं पड़ी । आज मै एक गायनेक डॉक्टर हूं। और आज मुझे ये कहानी इसलिए याद आइ क्योंकि आज सुबह ही मै पीरियड्स में आई हूं।

जब एक महीने के लिए भी मेरे पीरियड्स नहीं आते या लेट हो जाते है तो मुझे ऐसा लगता है कहीं मेरी शक्ति तो नहीं चली गई । कहीं भविष्य मै मां बनने में दिक्कत तो नहीं होगी।


सच में महसूस होता है । स्त्री होना गर्व की बात है। स्त्री होना महानता की निशानी है। मैं बहुत खुशनसीब हूं

कि मुझे ये स्त्री जन्म मिला है ।


मेरी कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद😊🙏🙏🙏

अपनी कल्पनाओं से एक छोटा सा हिस्सा ~कामिनी त्रिवेदी ✍️