काली घाटी - 3 दिलखुश गुर्जर द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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काली घाटी - 3

(दोस्तों इतने दिनों बाद कहानी लाने के लिए क्षमा चाहता हूं)

शिवा- गुरुदेव आप मेरा नाम कैसे जानते है
गुरुदेव मुस्कुराते हुए कहते हैं कि मैं सब जानता हूं
पर कैसे?
ह्म्म मैंने हिमालय की पवित्र गुफाओं में कई सालों तक तपस्या की है,
जिससे मेरे शरीर में कई तरह की सिद्धियां समा गई है
और उन सिद्धियों की मदद से में कुछ भी,कभी भी , कहीं भी देख सकता हूं।
मैं तो यह तक जानता हूं कि तुम किसकी तलाश में भटक रहे हो
और तुम्हारी तलाश अब खत्म हो चुकी है शिवा , में जानता हूं कि तुम्हारे मन में कई सवाल हैं , जिनका जवाब तुम्हें चाहिएं , और अब तुम्हारी यात्रा खत्म हो चकी है में दुंगा तुम्हारे सवालों का जवाब ।
शिवा- हे गुरुदेव, तो बताइए मुझे कौन है वो काली घाटी का राक्षस और क्या चाहता है वो ?
गुरुदेव-शिवा वह राक्षस काकदैत्य है ।
शिवा- काकदैत्य ?
वो क्या होते हैं
गुरुदेव- काकदैत्य,काक दानव के रक्त से उत्पन्न अनुचर हैं,जो संसार में रसकरणी लेने आते हैं।
शिवा- (लेने आते हैं) मतलब वह अकेला नहीं है।
गुरूदेव- नहीं जब सूर्य देव ने काक दानव का अंत करना चाहा था तब काक दानव बच गया था और भीमास्त्र उसकी भुजा को स्पर्श करते हुए निकल गया था।
भुजा को स्पर्श करने से काक दानव के रक्त की बूंदों से दो दैत्यों का जन्म हुआ जो काकदैत्य कहलाये।
सूर्य देव के प्रहार से बचने के बाद काक दानव पाताल में जाकर छिप गया और वचन दिया की आज के बाद वह कभी धरती पर नहीं आयेगा ,
तब सूर्य देव ने श्राप दिया कि जब भी वह धरती पर आएगा उसकी देह सूर्य के तेज से नष्ट हो जायेगी तब से वह पाताल लोक में ही है, लेकिन उसने सैकड़ों बार अपने काक दैत्यों को रसकरणी लेने भेजा है, जिससे वह पृथ्वी पर आ सके और यहां पर राज कर सके।
शिवा- रसकरणी यह क्या होती है?
गुरूदेव कहते हैं - रसकरणी वह बूटी है जो काक दानव को पृथ्वी पर आने में सहायक होगी ।
शिवा- लेकिन वह काक दैत्य काली घाटी में ही क्यों रहता है और उनको रोकने का कोई उपाय? गुरूदेव।
गुरुदेव- उपाय है शिवा, काक दैत्यों को सिर्फ तुम रोक सकते हो
लेकिन अकेले नहीं।
शिवा- में कैसे? और अकेला नहीं अर्थात कोई और भी होगा मेरे साथ किंतु कौन?
गुरुदेव- शिवा समय आने पर सब समझ आ जायेगा,काक दैत्यों को तुम ही रोक सकते हो क्योंकि तुम्हारा जन्म पौष मास के प्रथम रवि
अर्थात सुर्य देव के दिवस के दिन हुआ है,
गुरूदेव सांस लेते हुए कहते हैं
"तुम्हारे अंदर सूर्य देव का अंश है शिवा"
शिवा- लेकिन गुरुदेव में उस काक दैत्य को कैसे खत्म करुं।
मेरे पास तो कोई अस्त्र शस्त्र भी नहीं है।
गुरुदेव- (मुस्कुराते हुऐ कहते हैं) अस्त्र शस्त्र ! शिवा यह सब पहले से ही तय है , तुम अपने बल को जानते नहीं हो ।
सुर्य देव का अंश होना कोई सामान्य बात नहीं है।
शिवा-(शिवा संकोच पूर्वक कहता है) गुरूदेव आप ही बताइए मैं क्या करूं, में किस प्रकार काक दैत्य का संहार कर सकता हूं।
गुरुदेव- तुम्हारा सफर अभी शुरू हुआ है, शिवा।
यहां से सूर्यास्त की तरफ जाना,१ योजन् पश्चात तुम्हें गिरिश नामक पर्वत पर भगवान शिव का मंदिर दिखाई देगा उस पर्वत पर एक प्राचीन गुफा है,उस गुफा में कुछ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है' शिवा '

जाओ ( गुरुदेव शिवा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं)
शिवा गुरूदेव के चरण स्पर्श कर,आशिर्वाद लेता है|
वह कुटिया से बाहर निकलकर एक आशा की किरण के साथ गिरिश नामक पर्वत की तरफ कोई‌ नयी नवेली नदी की तरह अज्ञात लक्ष्य की तरफ निकल पड़ता है।

शाम होते-होते शिवा गिरिश पर्वत के समीप जा पहुंचता है,वह रात्रि को ही पर्वत पर चढ़ने का निश्चय करता है ।
सियारों, गिरगिटों और अन्य जंगली जानवरों की आवाजें शिवा के कानों में गूंज रही थी , लेकिन शिवा को आज कोई नहीं रोक सकता था उसकी चाहत उसके डर से कई गुना बड़ी थी।
घने पेड़ों के बीच से निकली हुई एक छोटी सी पगडंडी जो सर्प के समान लहराती हुई गिरिश के शिखर तक जा रही थी।

शिवा बिना रुके बिना थके लगातार बढ़ता जा रहा था, कुछ देर पश्चात उसे अपने पास झाड़ियों में कुछ सरसराने की आवाजें आती है, शिवा को कुछ समझ नहीं आता है, वह रुक जाता है और झाड़ियों की तरफ एकटक देखने लगता है।

तभी पीछे से वही आवाज आती है
सरसरसरसरसरसरसरसर................................

शिवा अचानक से पीछे मुड़ता है, उसका शरीर पसीने से तरबतर हो जाता है,
हह्ह्ह््ह वह लम्बी लम्बी सांसे लेता है,

भले ही वह सूर्य देव का अंश था, परंतु उसके पास कोई शक्ति या अस्त्र शस्त्र नहीं था, अभी उसे अपनी ताक़त का एहसास नहीं था,

वह एक सामान्य मनुष्य की तरह घबरा जाता है,
अब शिवा के दोनो तरफ से आवाजें आने लगती है
शसरशसरशसरशसरश.........................................

शिवा अब सोचता है मुझे यहां से भागना चाहिए, वह बिना पीछे देखे जोर से उपर की तरफ भागना शुरू कर देता है।

उसने पीछे देखने का कष्ट नहीं किया, वह सिर्फ भागता जा रहा था,

थोड़ी दुर भागने के बाद शिवा का पैर एक पेड़ की जड़ में उलझा और शिवा धड़ाम से नीचे गिर गया,

और जैसे ही शिवा ने अपने पीछे देखा तो दो खूंखार लगड़बग्गे शिवा की तरफ दौड़े आए रहे थे ।

शिवा की सांसे जैसे अटक गई हो ।

किस्मत का भी अनोखा खेल देखो पीछे दो खूंखार जानवर आ रहे हैं और
पैर भी जड़ से टकरा गया।

शिवा ने बिना कुछ सोचे अपना पैर उठाया और दोबारा दौड़ लगाने लगा।

वह पीछे ना देखकर सिधा भाग रहा था।

थोड़ी देर बाद जैसे ही वह बिना कुछ सोचे समझे भगवान शिव के मंदिर में जाकर जाली बंद कर लेता है।

(जाली लोहे का दरवाजा होता है जो कई सारी लोहे की रॉड से बना होता है)

लकड़बग्घे मंदिर के पास आते हैं और कुछ समय पश्चात निराश होकर लौट जाते हैं।

शिवा वहीं बैठा रहता है , वह लंबी लंबी सांसे लेता है और वही बैठ जाता है,

शिवा- सुबह की ........ पहली किरण ........... के साथ........... उस गुफा को ढूंढूंगा।

( दोस्तों हम आपको बताना चाहते हैं, आज से आपको रोज कहानी देखने को मिलेगी तो
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