द सिक्स्थ सेंस... - 25 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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द सिक्स्थ सेंस... - 25

कॉलेज शुरू हुये तीन से चार दिन हो चुके थे इसलिये नये दोस्तों में राजवीर के अलावा सुहासी की दोस्ती कुछ लड़कियों से भी हो गयी थी इसलिये लंच ब्रेक होते ही उसकी दो नयी दोस्त उसके पास आयीं और उससे बातें करने लगीं, उन लड़कियों को सुहासी से बातचीत करते देख राजवीर सुहासी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुये अपनी जगह से उठा और चुपचाप क्लास से बाहर चला गया, सुहासी अपनी नयी फ्रेंड्स से बात तो कर रही थी लेकिन उसका ध्यान राजवीर की तरफ ही था!

सुहासी से थोड़ी देर बात करने के बाद उसकी उन दोनों नयी फ्रेंड्स में से एक ने कहा- Suhasi let's go to the canteen for lunch!!

सुहासी ने कहा - Amm.. You please carry on, i am not feeling like to eat anything!!

इसके बाद लंच करने के बाद मिलने की बात कहकर वो दोनों लड़किया वहां से कैंटीन चली गयीं, उनके वहां से जाने के बाद सुहासी फौरन क्लास के बाहर आयी और उसकी नजरें राजवीर को बेतहाशा खोजने लगीं, वो इधर उधर चलते हुये राजवीर को ढूूंढ ही रही थी कि तभी उसकी नजर क्लासेज़ के दूसरी तरफ बने एक गार्डन पर पड़ी और उसने देखा कि गार्डन की एक बेंच पर बैठा राजवीर अपने मोबाइल में कुछ देख रहा था और बार बार हंस रहा था!!

सुहासी ने उसे देखकर राहत की सांस ली और उसके पास जाकर बोली- तुम यहां क्यों आ गये राजवीर? मैं तुम्हे कब से ढूंढ रही हूं!!

सुहासी को देखकर राजवीर ने उससे कहा- ओह हाय, कम सिट!!

राजवीर के बगल में बैठते हुये सुहासी ने कहा- एक बात पूछूं राजवीर?

"हां हां पूछो!!" राजवीर ने कहा..

सुहासी बोली- तुम्हे अकेले रहना जादा पसंद है ना?

सुहासी का सवाल सुनकर राजवीर हल्का सा मुस्कुराते हुये बोला- नहीं ऐसा नहीं है कि मुझे अकेले रहना पसंद है बल्कि बस... आदत सी है!!

सुहासी बोली- अकेले रहने की आदत, ऐसा क्यों?


सुहासी का सवाल सुनकर राजवीर मुस्कुराया और उससे बोला- बस ऐसे ही लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मेरे दोस्त नहीं हैं, इंडिया में मेरे बहुत दोस्त थे बोर्डिंग में लेकिन मुझे दोस्तों के साथ हैंग अराउंड करना, ग्रुप बनाकर खड़े होना और हो हल्ला करना, फालतू के जोक्स, गाली गलौज का इस्तेमाल करके टिपिकल बॉयज टॉक्स करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता इसलिये जब ये सब होने लगता था तो मैं अलग जाकर बैठ जाता था और बस ऐसे ही अकेले रहने की आदत सी पड़ गयी!!

राजवीर की बात सुनकर सुहासी ने कहा- पर लाइफ में कभी ना कभी किसी ना किसी के साथ की जरूरत तो पड़ती ही है ना राजवीर, अकेले रहकर लाइफ तो नहीं गुजारी जा सकती!!

सुहासी ने जिस धैर्य से, सहजता से और सॉफ्ट तरीके से मुस्कुराते हुये अपनी बात कही उसे सुनकर राजवीर को बहुत अच्छा लगा और वो भी ठीक उसी लहजे में मुस्कुराते हुये बोला- अम्म् वैसे तुमसे किसने कहा कि मैं अकेला हूं!! हां मैं अकेला रहता हूं ऐसा सबको लगता है लेकिन मेरे साथ बहुत लोग रहते हैं!!

सुहासी बोली- वो कैसे?

राजवीर ने कहा- पता है सुहासी इस दुनिया में बहुत सारे लोग हैं और हर एक की अपनी एक सोच होती है, सबका एक कैरेक्टर होता है, जिंदगी जीने का सबका एक तरीका होता है, कई बार ऐसा होता है कि हमें किसी इंसान की कोई बात दिल को छू जाती है लेकिन उसकी बाकी बातों से हम मैंटली मैचअप नहीं कर पाते लेकिन वो हमें अच्छे लगते हैं!! मैं बस ऐसे ही कुछ लोगों को अपनी डायरी में उतार कर उनका व्यवहार अपने हिसाब से लिखता हूं और फिर उनसे दोस्ती करके उन्हें हमेशा अपने साथ रखता हूं अपने दिल में... और उनसे बात भी करता हूं!! तो मैं अकेला कैसे हुआ?

राजवीर की गहराई भरी बातें सुहासी को उसके लिये और जादा बेचैन कर रही थीं, वो इतना तो समझ ही चुकी थी कि राजवीर बाकि सबसे बिल्कुल अलग है, जहां एक तरफ बाकि के लड़के एक खूबसूरत लड़की का साथ पाकर उसके साथ जबरदस्ती क्लोज होने की कोशिश करते हैं, पहली ही मुलाकात में मोबाइल नंबर मांगने के लिये दबाव बनाते हैं वहीं दूसरी तरफ सुहासी को महसूस होता था जैसे राजवीर को उसकी खूबसूरती से कोई फर्क ही नहीं पड़ता, वो बस अपनी डायरी में लिखी बातों की वजह से ही उससे बात करता है, उसे देखकर मुस्कुराता है और सुहासी के लिये ये रीज़न काफी था राजवीर से प्यार करने के लिये, जो कि वो करने भी लगी थी!!

क्रमशः