नक़ल या अक्ल - 17 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 17

17

नकलचोर

 

सभी अधिकारी नन्हें को गौर से देखने लगे तो वह भी घबरा गया। उन्होंने ज़मीन पर गिरी पर्ची उठाई और उससे पूछा,  “मिस्टर निहाल, आप हमारे साथ बाहर आए। वह अपनी व्हील चेयर को खिसकाता हुआ उनके साथ बाहर आ गया। राजवीर और रघु  नन्हें के पकड़े जाने पर मुस्कुराने लगे। वहीँ नन्हें  से पूछताझ  शुरू हो गई,

 

अगर आपने और भी कही पर्ची छुपाई है तो हमें  अभी बता दें।

 

सर आप कैसी बातें कर रहें हैं। मैं मेरिट लाने वाला स्टूडेंट हूँ,  मैं ऐसी  हरकत  क्यों करूँगा।

 

तो फिर यह पर्ची?

 

सर यह मेरी नहीं है और उसने फिर पर्ची को गौर से देखा तो बोला,  और न ही यह मेरी  हैंडराइटिंग  है। मगर अधिकारी उस पर नक़ल करने का इल्जाम  लगाते  रहें ।

 

आपके पैर में  चोट थी,  इसलिए आपने सोचा  कि  चीटिंग  करकर यह पेपर  निकाल लिया जाएँ।

 

सर मेरे पैर में  चोट ज़रूर है,  मगर मेरे दिल में खोट नहीं है। उसने फिर उनसे पेपर करने देने की  विनती की।

 

इस तरह  की बहस नन्हें और अधिरकारियों के बीच होती रहीं । अब दूसरे कमरे में बैठे,  सोनाली  नंदन और हरिहर को भी पता लग गया कि नन्हें फिर कोई मुसीबत में फँस  गया है।

 

किशोर अपने और  राधा के सामने आई समस्या के समाधान के बारे में सोच रहा है। आज उसका मन खेतों में भी नहीं लग रहा है। उसके बापू उसे ठीक से काम न करने के लिए कई बार डाँट  चुके हैं, मगर उसे कोई फर्क नहीं पड़  रहा है। आज वह भी ख़ुद को बहुत बेबस महसूस कर रहा है,  उसे लग  रहा है कि  ज़िन्दगी हमारी  है और फैसला ये सब बड़े कर रहें हैं । इन्हें  दहेज़ का लालच है और वो अपनी लड़की को बोझ समझकर बैठे हैं। जिसे किसी के भी पल्ले बांधा जा सकता है।

 

थोड़ी देर बाद,  वहाँ से रिमझिम गुज़री तो उसने किशोर को खेत के एक कोने में उदास बैठे देखा तो उसके पास ही आ गई। “क्या हुआ,  राधा  से दोबारा मिलना  है?”

 

अब तो मिलने से भी बात नहीं बनेगी,  उसने बुझे मन से जवाब  दिया।

 

क्यों क्या  हुआ?

 

होना क्या है,  अब उसने राधा की कहीं और शादी कराने वाली बात रिमझिम को बताई।

 

यह दहेज़ दीमक की तरह हमारे समाज को खोखला कर चुका है। इसके चपेटे में कई मासूमलड़कियाँ आ चुकी है। मेरी माँ को भी दहेज़ के लिए परेशान किया गया था।

 

क्या मतलब?  अब किशोर उसे सवालियाँ नज़रों से देखने लगा।

 

मुझे ज़्यादा तो नहीं पता,  मगर इतना पता है कि  मेरे दादके अच्छे नहीं थें पर मुझे इस बात की ख़ुशी है कि समाज में  तुम जैसे लड़के भी है जो दहेज़ को लेना ज़रूरी नहीं समझते।

 

वो साहिल भी नहीं समझता। उसने चिढ़ते हुए कहा।

 

उसकी तो मजबूरी है। अगर अपंग  न होता  तो बात करते। अब क्या सोचा है?

 

कुछ समझ नहीं आ रहा । नन्हें का पेपर हो जाए,  फिर कोई रास्ता  निकालते  हैं।

 

वहाँ  पेपर का समय बीतता जा रहा है,  सभी अपना पेपर देने में लगे हुए हैं, मगर निहाल उन अधिकारियों से पेपर देने के लिए लगातार विनती करता जा रहा है। राजवीर और रघु की जो बैसाखी थीं यानी उनकी नकल, अब वो तो उनसे छिन गई है इसलिए वो तुकबंदी करते हुए पेपर करते जा रहें हैं।

 

अब एक अधिकारी  बोला,  “हम तुम्हें यह पेपर  नहीं देने दे सकते।“

 

सर ऐसा  मत करिए,  मैंने  बहुत मेहनत की है। मैं इतने पैसे खर्च करकर यहाँ आया हूँ। अब उसने  उनके आगे हाथ जोड़ लिए।

 

यह तो पहले सोचना चाहिए था।

 

सर यह मेरी नकल नहीं है। वह अब भी अपनी बात पर अड़िग है।

 

फिर बता सकते हो कि किसकी नकल  है?  

 

उसने दोबारा हैंडराइटिंग  देखीं  तो कहा कि सर यह राजवीर की राइटिंग है। 

 

कौन राजवीर ?

 

सर जो अभी इमरजेंसी का कहकर बाहर गया था। अब अधिकारियो का दिमाग ठनका। उन्होंने राजवीर को भी बुला लिया।  रघु को लगा कि आज  तो राजवीर  भाई गए,  जब वह  बाहर आया तो उसने तो साफ़ मना कर दिया। उसने कहा कि “यह मेरी राइटिंग नहीं है और न ही इसका संबंध मुझसे है। यह निहाल झूठ  बोल रहा है।“ दोनों एक दूसरे को घूरने लगे। अधिकारियो ने उससे कुछ लिखने  के लिए कहा तो वह घबरा गया। उसने खुद को बचाने के लिए कहा,  “सर यह निहाल  अपनी करनी मेरे सिर पर फोड़ रहा है। मैं नहीं लिखूंगा।“ “सर यह इसी ने किया है,  हम दोनों एक ही गॉव के है,  मैं इसे अच्छे से जानता हूँ।  यह नक़ल  इसी के दिमाग का बीज है।“  निहाल ने भी पूरे विश्वास के साथ ज़वाब  दिया। 

 

“राजवीर आप कुछ लिखें,  हम अपने आप फैसला कर लेंगे।“  अब वह करता क्या न करता उसने हाथो में  पैन थाम लिया और लिखने लगा। लिखते समय उसके हाथ काँप रहें हैं। 

 

जल्दी लिखिए !! हमारे पास सिर्फ एक ही काम नहीं है बल्कि  और भी बहुत काम है।

 

राजवीर ने अपना दिमाग लगाया और बाए हाथ से लिखना  शुरू किया।  निहाल  उसकी यह  चाल भी समझ गया। 

 

सर यह जानबूझकर बाए हाथ से लिख रहा  है।

 

“निहाल! हम खुद देख लेंगे।  राजवीर ने लिखा और ज़ाहिर सी बात है कि उसका लेख उस नकल से नहीं मिला। अब  निहाल ने फिर विनती की “कि सर,  आप मेरा यकीन करें यह मेरा नहीं है,” अब उससे भी लिखवाया गया तो उसका लेख भी नहीं मिला।  राजवीर ने कहा,  “आप चाहे तो मेरी गवाही हमारे गॉंव  के सरपंच माखनलाल जी  से ले सकते  हैं।“  उन्होंने अब राजवीर से उनका नंबर लिया और उनसे  फ़ोन पर बात करने लगें, उन्होंने दोनों लड़कों के बारे में उनसे पूछा । फिर  उनसे बात करने के बाद,  उन्होंने राजवीर को देखते हुए कहा,  “आप जाकर अपना पेपर करें।“  वह मुस्कुराता हुआ निहाल को देखकर,  वहाँ  से चला गया। रघु ने जब उसे हँसता  हुआ कमरे में  आता देखा  तो वह समझ गया कि  मेरे दोस्त ने बाजी मार ली है और निहाल इस बार पेपर नहीं दे सकेंगा । अब राजवीर बैठकर अपना पेपर करने लगा। 

 

सोनाली  और नंदन भी निहाल के लिए परेशान  हो रहें हैं।  अगर निहाल को यह पेपर नहीं देने दिया गया तो उस पर कितना अन्याय होगा।  सोना मन ही मन सोचने लगी।  दोनों अब भगवान से प्रार्थना करने लगे कि  “हे ! भगवान  निहाल का साथ दें।“ 

 

वही दूसरी तरफ निहाल अधिकारियों को देखते हुए नम्रता से पूछने लगा,  “सर मैं भी पेपर देने जाओ?”  यह सुनकर, वे लोग उसे घूरने लगते हैं ।