नक़ल या अक्ल - 16 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 16

16

नकल

 

 

किशोर को अब भी विश्वास नहीं हुआ,  उसने राधा को कातर नज़रों से देखते हुए कहा,  “पर तेरे माँ बापू ऐसा क्यों कर रहें है? “

 

बंसी काका ने बापू से दहेज़ नहीं माँगा है। उन्होंने कहा,  बस शादी करकर एक कपड़े की पेटी के साथ  लड़की दे दो। अब किशोर को सारा मांजरा समझ आ गया। 

 

राधा तू घबरा मत,  मैं कोई चक्कर चलाता हूँ। तभी राधा को उसके बापू  आते दिखाई  दिए।  “बापू”!! राधा  बोली। उसने जल्दी से अपना मुँह  गमछे से ढका और एक दर्जन केले पकड़ाकर वहाँ से चलता बना।

 

बृजमोहन ने पूछा,  “क्यों राधा  बिटिया  केले खरीद  रही थीं ?”

 

हम्म !! वह अब अंदर चली गई।

 

रात को छत पर निहाल तो सोने की कोशिश कर रहा है,  क्योंकि उसे कल जल्दी  उठना है। मगर किशोर की आँखों में आज फिर नींद  नहीं है,  उसने निहाल  को उठाया,.

 

क्या है,  भाई !! सोने दे, कल मेरा पेपर भी है।

 

मेरी बात तो सुन ले!!

 

ठीक है,  बता । अब उसने राधा की कहीं बात उसे बताई।

 

यह बृजमोहन तो बड़ा चालाक है और बंसी काका उसे भी ज्यादा होशियार है।

 

क्या मतलब?

 

वो साहिल के पैर में कुछ गड़बड़ है,  अगर गौर से देखो तो वह हल्का सा पैर उठाकर चलता है।

 

 नहीं यार !! बंसी का लड़का तो ठीक है।

 

मैं अपने गॉंव के बंसी काका की बात नहीं कर रहा,  बल्कि जो रामपुर गॉंव का बंसी है उसकी बात कर रहा हूँ ।

 

तुझे कैसे पता ?

 

अपने गॉंव के बंसी का बेटा जायदाद में अपना हिस्सा लेकर शहर बस गया है,  अब तक तो उसने  ब्याह  भी कर लिया होगा इसलिए वो नहीं हो सकता।

 

तभी मैं सोचो, उसका नाम तो सोनू था ।

 

हम्म !!! साहिल उस रामपुर वाले बंसी काका के बेटे का ही नाम है और मैंने उसे परसो राधा के बापू से बतियाते हुए देखा था।

 

इसका मतलब वो बूढ़ा अपने लंगड़े लड़के के साथ मेरी राधा को ब्याहना चाहता है।

 

निहाल मेरी मदद कर भाई !! माँ बापू से बात कर।

 

“कल मेरा पेपर निपट जाने दें,  फिर देखते हैं।“ उसने अब चादर अपने मुँह पर डाल ली। मगर किशोर तो यह सोच रहा है कि  वह जल्दी से जाए  और उस साहिल का दूसरा पैर  भी तोड़ दें। मगर इससे क्या होगा,  वो तो दो पैर तुड़वाने के बावजूद भी दहेज़ थोड़ी न  मांगेगा। अब उसे अपने माँ बापू पर गुस्सा आने लगा ।

 

सुबह निहाल  को उसकी माँ ने दही-चीनी खिलाई तो उसने भी माँ बापू से आशीर्वाद लिया। सबने उसे शुभकामनाएँ  दी और वह भी एक नई उम्मीद के साथ राजू की वैन में नंदन संग सवार हो गया। सोनाली अपने भाई गोपाल के साथ उसकी बाइक के पीछे बैठ गई। राजवीर भी अपने दोस्तों के साथ बाइक पर निकल गया । सभी का सेंटर  ग़ाज़ियाबाद के शास्त्री  नगर में बने स्कूल  में  पड़ा है। सेंटर के बाहर  बहुत  भीड़ है। सबने  अपने रोल  नंबर  दीवार पर  लगी लिस्ट में  चेक  किये और फिर अंदर जाने का इंतज़ार करने लगें। सेंटर पर नन्हें, सोनाली और राजवीर के पहुँचने के बाद पहुँचा। अब राजू  ने उनसे कहा,  मैं ठीक तीन घंटे बाद तुम्हें लेने आऊँगा । 

 

नन्हें !! यार इस पेपर के  चक्कर में  तेरे पंद्रह हज़ार रुपए लग गए हैं। 

 

“तो ? अब कुछ  पाने के लिए खोना  तो पड़ेगा।“ उसने  गहरी सांस लेते हुए कहा। रघु ने राजवीर को देखते हुए कहा,  “यार! राज लगता है,  इसने एडमिट कार्ड का इंतज़ाम  कर लिया है। मैंने कहा था न, यह कुछ न कुछ कर ही लेगा। खैर हमें क्या करना है!! बस किसी तरह अपनी नक़ल चल जाए तो बाजी  मार सकते हैं।

 

सोनाली भी दूर से नंदन,  निहाल और राजवीर को देखकर मुस्कुरा दी। “सोना के पास चले?”  नन्हें ने मना कर दिया। “इसका भाई पागल है, सोना को गॉंव के हर लड़के की बहन  बना देता है।“ निहाल हँसने लगा,  “तभी राजवीर भी अपनी मित्र मण्डली संग दूर ही खड़ा है ।“

 

अब सूचना होने लगी कि  सिर्फ एडमिट कार्ड के अलावा कुछ और अंदर न लेकर जाया जाये,  अगर किसी के पास कुछ  मिला तो पेपर कैंसिल हो जायेगा। राजवीर और उसके दोस्तों ने अपनी अपनी चिट जूतों के अंदर छुपा रखी है। अब स्कूल के अंदर एंट्री शुरू हो गई। सबके एडमिट कार्ड को अच्छे से देखकर उनकी तलाशी ली जा रही है और फिर अंदर भेजा जा रहा है। राजवीर और उसके दोस्त स्कूल के अंदर आसानी से घुस गए। व्हील चेयर में  होने के कारण  नन्हें  सबसे पीछे है। “नंदन  तू जा, मैं इसे अपने आप चलाकर आ जाऊँगा।“ अब  नंदन और सोनाली भी निकल गए। एक सुरक्षा कर्मी ने नन्हें को हमदर्दी से देखा और फिर उसकी तलाशी लेकर उसे अंदर जाने दिया।

 

अब राजवीर अपनी सीट पर बैठ गया,  ठीक पंद्रह मिनट बाद पेपर शुरू हो जायेगा। पेपर करने के लिए पेन भी वही सेंटर से मिले। राजवीर,  रघु और निहाल  तीनों एक ही कमरे में है तो वही  दूसरी  ओर सोनाली, हरिहर और नंदन एक कमरे में है। अपने नियत समय पर पेपर शुरू हो गया। सारी डिटेल्स  भरने के बाद,  प्रश्न पत्र बँटने शुरू हो गए। राजवीर को पूरा विश्वास है कि वो यह पेपर आराम से क्लियर कर लेगा,  क्योंकि उसने  अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है और उसकी नकल भी उसके पास है।

 

अब पेपर शुरू हुए बीस मिनट हो चुके हैं। सब बड़ी तन्मयता से पेपर कर रहें हैं। राजवीर अपनी नकल निकालने के लिए इधर उधर देख रहा है। रघु ने उसकी तरफ देखा तो उसने उसे पलके झपकाकर नक़ल खोलने का ईशारा किया। अब राजवीर ने पेन ज़मीन पर गिराया और उसे उठाने के बहाने पर्ची जूतों में से निकाल लीं। फिर चुपचाप सिर झुकाए उसे प्रश्न पत्र में छुपाकर नकल करने लगा। अभी उसे नक़ल करते हुए पाँच मिनट ही हुए थें कि एक टीम फिर से सभी प्रत्याशी की तलाशी लेने आ गई। राजवीर और रघु के तो डर के मारे हाथ पैर फूल गए। रघु ने राज की तरफ देखा तो वह ख़ुद भी डरा हुआ है। अगर पकड़े गए तो पेपर तो जायेगा ही साथ ही बापू उसकी खाल भी खींच देंगे। यही सोचकर राजवीर के माथे पर पसीने आने लगे। वह अब खड़ा होकर बोला,  “सर इमरजेंसी है।“

 

कोई ज़रूरत नहीं है? अभी अपनी सीट पर बैठो। एक अधिकारी ने कहा।

 

“सर प्लीज,”  अब उसने अपना पेट पकड़ लिया और बाहर की तरफ जाने लगा। उसने जाते हुए अपनी पर्ची नन्हें के डेस्क के पास फ़ेंक दी। अधिकारी ने उसकी हालत देखते हुए एक चपरासी को उसके साथ भेज दिय । अधिरकारी नन्हें के पास पहुँचे और तभी उसकी नज़र उस पर्ची पर गई। तब तक राजवीर भी अंदर आ चुका है। अब आएगा मज़ा !! नन्हें तो गया।