भाग 17
उधर शरद से कविता की पूछताछ जारी थी।
“तो आपको नीलम पसंद नहीं थी?” कविता के इस सवाल से शरद थोड़ा भड़क गया।
“अरे, मैम मैं आपको कह चुका हूँ, कि नीलम भाभी एक उम्दा इंसान थीं…मतलब…हैं, इसलिए उस नज़रिए से वो मुझे पसंद थीं, पर आप जो एंगल जोड़ना चाह रहीं हैं, वो एंगल तो दूर-दूर तक नहीं था।”
कविता शरद के इस तरह बौखला जाने पर थोड़ा मुस्कुराई और बोली, “सॉरी। अच्छा ये बताएं कि नीलम और अमोल के आपस में कैसे संबंध थे।”
“बढ़िया थे। दोनों साथ में खुश थे।”
“पर…हमें तो पता चला है कि अमोल नीलम पर बहुत शक करता था?”
“मैम, अमोल शायद नीलम भाभी पर नहीं, आसपास के लोगों पर शक करता था।”
“मतलब? क्या कहना चाहते हैं आप?” कविता ने पूछा।
“मैम, नीलम भाभी का स्वभाव अमोल के स्वभाव से बिल्कुल विपरीत था। जहां एक तरफ नीलम भाभी बहुत मिलनसार, हँसमुख स्वभाव की थीं, वहीं अमोल बहुत कंज़र्वेटिव था। लोगों से ज़्यादा घुलना-मिलना उसको पसंद नहीं था। बस इसलिए वो नीलम भाभी को उन सब लोगों से दूर रखता था जो उनसे ज़्यादा निकटता बनाने की कोशिश करते थे।”
“तो, इसका मतलब अमोल उसे महौले की औरतों से भी दूर रखता होगा?” कविता ने पूछा।
“नहीं, ऐसे तो नहीं, पर हाँ, उसे नीलम भाभी का किसी और पड़ोसन के घर जाना पसंद नहीं था।”
“क्यों? घर जाने में क्या तकलीफ़ थी?” कविता ने पूछा।
“अब ये मैं क्या बताऊं, आप अमोल से पूछा लीजिएगा।”
“मिस्टर शरद, मुझे आपका नज़रिया जानना है। प्लीज़ मेरे सवालों का सही और सटीक उत्तर दें।” कविता ने टेबल पर गुस्से में मुक्का मारते हुए कहा।
“जी…वो…घर पर उन औरतों के पति भी तो होंगे ना, इसलिए, अमोल को पसंद नहीं था।”
“तो फिर तो नीलम आपके घर भी कम ही आती होगी?”
“हाँ…मेरे सामने कम ही आती थीं। वैसे जब मैं नहीं होता था तभी ज़्यादा आती थीं।” शरद ने घुमा-फिरा कर उत्तर देने की कोशिश की।
“पर, शरद जी मुझे तो ऐसा नहीं लगता। मैंने तस्वीरें देखीं हैं जिसमें आपका और नीलम का परिवार दोनों साथ में बहुत जगह पिकनिक के लिए गए हैं। यदि अमोल को ऐसी कोई प्रोब्लम होती तो वो क्यों जाता आपके परिवार के साथ?”
शरद के होंठों पर हँसी खिल उठी, “मैम, जब वो साथ में है तो उसे किसी बात का डर नहीं था। हम जहाँ भी घूमने गए वहाँ अमोल एक पल के लिए भी नीलम भाभी को अकेले नहीं छोड़ता था। यहाँ तक की वो भाभी के साथ वॉशरूम तक भी आता था।”
“आपके हिसाब से नीलम का चरित्र कैसा था?” कविता ने पूछा।
“मैम नीलम भाभी…एक समझदार, हँसमुख, सबका ख्याल रखने वाली, और अपने परिवार को हमेशा प्राथमिकता देने वाली महिला हैं।”
“अभी तो मैं जा रही हूँ मिस्टर शरद” कविता ने उठते हुए कहा, “पर जब तक नीलम नहीं मिल जाती, आप शहर से बाहर नहीं जा सकते।”
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नीलम के व्यक्तित्व को और गहराई से समझने के लिए कविता ने आस पड़ोस की सभी महिलाओं से बात की। उसे बहुत आश्चर्य हुआ यह जानकर कि ऊपर से सब महिलाएं भले ही नीलम की तारीफ कर रहीं थीं पर अंदर ही अंदर वह सब उससे ईर्ष्या करती थीं। सबका यही कहना था कि नीलम को पार्टियों में लाइमलाइट में रहना बहुत पसंद था। दीवाली और नये साल के जश्न की पार्टियों में सबका ध्यान उसी की तरफ रहता था। ऊपर से वो नाच-गाना भी बहुत अच्छा जानती थी। इसलिए सब उसके इर्दगिर्द मधुमक्खी की तरह भिन्न भिन्नाते रहते थे।
कविता को यह समझते देर नहीं लगी कि औरतों का "सब " से क्या अर्थ था। वो सब अपने पतियों की बात कर रहीं थीं।
“नीलम का पति इतना तो कमाता नहीं था, फिर भी ना जाने कहां से वो इतने महंगे डिजाइनर सूट, साड़ी पहनती थी। ज़रूर कुछ ऊपर की कमाई करती होगी।” एक पड़ोसन बोली।
कविता ने हैरत भरे शब्दों में पूछा, “ऊपर की कमाई? मतलब?”
“मेडम जी, अब हमें बताने की जरूरत पड़ेगी क्या, कि एक खूबसूरत औरत के लिए ऊपर की कमाई क्या होती है!” दूसरी पड़ोसन बोली।
कविता उन सबकी सोच सुनकर हैरान थी। उसे ये जानने की तीव्र इच्छा हुई कि आखिर नीलम डिज़ाइनर परिधान कहां से लाती थी। उसने अमोल को फोन लगाया।
"अमोल, पड़ोसिनों के हिसाब से नीलम बहुत बढ़िया कपड़े पहनती थी। नीलम इतने महंगे कपड़े कहां से खरीदती थी?" कविता ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पूछा।
"सबको यही लगता था कि नीलम मंहगे कपड़े पहनती थी। पर दरअसल वो चांदनी चौक से लाती थी। कोई दुकान है वहां…. मुझे तो सही से मालूम नहीं…पर वहां बढ़िया डिज़ाइनर कपड़े काफी कम दाम में मिलते हैं। अ…मोनिका जानती है उस दुकान के बारे में।" अमोल ने बताया।
कविता ने झट मोनिका के घर की घंटी बजाई, “मोनिका, आप जानते हो कि नीलम डिज़ाइनर सूट कहां से लाती थी?”
“जी मैम। पता है।”
“तो आप अभी चल सकती हैं।”
“मैम अभी नीलम दीदी के और मेरे बच्चे घर आने वाले हैं। तो….कल चलते हैं।”
“वैसे बहुत कम पड़ोसी ऐसे देखें हैं मैंने मोनिका, जो अपने पड़ोसी के बच्चों का भी ख्याल रखें। आप बहुत अच्छी हैं।” कविता ने मोनिका की तारीफ करते हुए कहा।
मोनिका अपनी तारीफ सुन फूली न समाई। तुरंत बोली, “ये तो मेरी ड्यूटी है मैम। नीलम मेरी बहन की तरह थी।”
“बढ़िया, ठीक है कल तैयार रहिएगा, मैं आपको लेने आऊंगी।” ये कह कविता वहां से चली गई।
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"आइए मोनिका दीदी, बहुत दिनों बाद। नीलम बहन कहां हैं आज?" दुकानदार बोला।
"नीलम…वो तो …आज नहीं आई। उसने एक कस्टमर भेजा है। इन्हें अच्छे डिज़ाइनर सूट दिखाएं प्लीज़ भैया।" मोनिका ने कहा।
दुकानदार ने एक से बढ़कर एक डिज़ाइनर सूट दिखाए। कविता ने दो सूट पसंद किए। और पैसों की बात की।
"अब मैम आप नीलम बहन की दोस्त हैं तो आपको दस टका और डिस्काउंट दे देंगे हम। बस और बताइए… क्या सेवा करुं?" दुकानदार ने कहा।
"वैसे नीलम को आपकी दुकान पर आए काफी दिन हो गए? है ना?" कविता ने सवाल पूछा।
"हाँ….आजकल ना खुद आती हैं और ना कोई कस्टमर लाती हैं। वह अपनी बहुत सी सहेलियों को हमारी दुकान पर लातीं थीं। मोनिका दीदी भी आते थे कभी - कभी साथ। मैं तो नीलम बहन को कहता था कि आप गज़ब की सेल्स वुमेन हैं। एक दुकान खोल लो बहुत चलेगी…हा..हा…" दुकानदार मस्करी करते हुए बोला।
तभी नया कस्टमर आ गया और दुकानदार उसमें व्यस्त हो गया। कविता अपने लिए कपड़े पैक कराने लगी। जिससे पैक करवा रही थी उससे कविता ने हल्की आवाज़ में पूछा, "वैसे…नीलम को दुकानदार कुछ कमिशन तो देता होगा?"
पहले तो वो लड़की हिचकिचाई पर फिर कविता के ज़ोर देने पर बोली, "बहुत बढ़िया कमिशन। नीलम तो बहुत कमाती थी इस दुकान से।" उसकी आवाज़ में ईर्ष्या की बू साफ झलक रही थी।
शो रूम से बाहर आ कविता ने मोनिका से कहा, "तुमने बताया नहीं मोनिका इस बारे में? क्या तुम्हें भी मिलता था कमिशन?"
"मैम, मैं नीलम की तरह कहां इतनी तेज़ और चंट हूँ। जहां मैं हफ्ते दो हफ्ते में केवल एक ग्राहक ही जुटा पाती थी वहीं नीलम हफ्ते में तीन चार ग्राहक जुटा लेती थी। बताया इसलिए नहीं…क्योंकि ये बात अमोल…अ…मतलब जीजू को नहीं पता थी।" मोनिका हिचकिचाते हुए बोली।
फिर दोनों वहां से खरीदारी कर घर वापस आ गईं।
क्रमशः
आस्था सिंघल