शैतान की शक्तियाँ जो दीवार में समाई थी वो अब उन प्रेतों को मिल गई थीं।
ये अहसास होते ही उनके होंठो पर मुस्कान आ गई।
इस बात से अंजान शैतान ने उन्हें देखते हुए कहा "अच्छा है तुम दोनों भी आ गए। अब अपनी आँखों के सामने अपनी बेटी का सर्वनाश होते हुए देखना।
कहा था ना मैंने की मैं इसकी बलि देकर रहूँगा।
है हिम्मत तो आओ बचा लो अपनी बेटी को।"
शैतान के ये शब्द सुनकर भी उन प्रेतों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और अमारा की तरफ देखते हुए शांत भाव से अपनी जगह पर खड़े रहे।
संजीव ने गुफा में एक तरफ बंधनों में जकड़ी हताश-निराश रोती हुई पायल पर एक नज़र डाली और फिर यज्ञवेदी के समीप बैठी हुई अमारा की तरफ अपने कदम बढ़ाए लेकिन एक बार फिर वो वहाँ तक नहीं पहुँच सका।
"अब तुम क्या करोगे? कैसे दोगे उसे त्रिशूल? उसके हाथ तो बंधे हुए हैं और फिर शायद ये त्रिशूल उसके किसी काम आएगा भी नहीं क्योंकि तुम उसकी माँ नहीं हो।" शैतान ने कहकहा लगाते हुए कहा और एक बार फिर मंत्रोच्चार आरम्भ कर दिया।
संजीव ने मदद के लिए प्रेतों की तरफ देखा। उन्होंने अपनी सारी शक्तियां समेटी और अमारा पर अपनी नज़र केंद्रित की।
अचानक एक तेज़ धमाके के साथ अमारा के बंधन टूट गए।
बिना देर किए संजीव ने त्रिशूल अमारा की तरफ फेंका जिसे पकड़ने के खेल में माहिर अमारा ने फुर्ती से लपक लिया।
अब पहली बार शैतान के चेहरे पर डर की छाया दिख रही थी।
उसने स्वयं को संयत करने का प्रयास करते हुए कहा "लड़की तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी क्योंकि ये हथियार तुझे तेरी माँ ने नहीं दिया है।"
"अमारा उसकी बात में मत आना बेटा। याद रखना मम्मा जैसे पापा और पापा जैसी मम्मा।" संजीव ने जैसे ही ये कहा अमारा ने एक नज़र उस पर और पायल पर डाली और मन ही मन ईश्वर का नाम लेकर तेजी से त्रिशूल शैतान की तरफ कर दिया।
त्रिशूल का स्पर्श होते ही शैतान के शरीर से आग की लपटें उठनी लगीं।।
दर्द से तड़पते हुए वो चीखा "असंभव, धोखा...। माँ की जगह पिता के हाथ से हथियार और मेरा अंत... नहीं...।"
उसकी बात का जवाब देते हुए संजीव ने कहा "कोई धोखा नहीं है। ममता का कोई शरीर, कोई रुप, कोई खून नहीं होता दुष्ट। ये तो एक भावना होती है जो किसी के भी हृदय में जन्म ले सकती है फिर चाहे वो पुरुष हो या स्त्री।"
कुछ ही क्षणों में अमारा के अस्तित्व को मिटाने की ख्वाहिश रखने वाले शैतान का स्वयं का अस्तित्व इस दुनिया से मिट चुका था।
उसके गायब होते ही उसके यज्ञवेदी की अग्नि भी धीरे-धीरे बुझने लगी और पायल भी अपने बंधनों से मुक्त हो गई।
"अच्छा अब हमारे जाने का भी समय हो गया गुड्डो। अपना ध्यान रखना। और आप दोनों के भी हम हमेशा अहसानमंद रहेंगे कि आपने, आपकी ममता ने हमारी बच्ची को नया जीवन दिया।" उन दोनों प्रेतों ने पायल और संजीव की तरफ देखकर अपने हाथ जोड़े तो पहली बार अमारा ने उनके लिए अपने हृदय की भावनाएं महसूस की।
उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली थी। वो एक बार उनके गले लगना चाहती थी लेकिन उसे पता था कि ये असम्भव है।
संजीव ने अपने हाथ की तीली अमारा को थमाई और पायल के साथ उसने भी उन दोनों की तरफ कृतज्ञता भरी नजरों से देखते हुए अपने हाथ जोड़े और भीगे हुए स्वर में कहा "आपने अपने अंश से हमारी सूनी गोद भर दी। हम भी आपका ये अहसान कभी नहीं भूलेंगे।"
प्रेतों के गायब होते ही अमारा ने कहा "मम्मा-पापा इस तीली से पानी की बूँदें टपक रही हैं।"
पायल और संजीव ने देखा पानी की बूँदें शैतान के यज्ञवेदी की तरफ इशारा कर रही थीं।
उन्होंने अपनी आँखें बंद करके कुलगुरु का ध्यान किया और उनका इशारा समझकर तीली को उस यज्ञवेदी में डाल दिया।
उनके ऐसा करते ही चारों तरफ एक बवंडर सा उठा और उन सबकी आँखें बंद हो गईं।
कुछ क्षणों के बाद जब उनकी आँखें खुलीं तब उन्होंने पाया कि वो जंगल के बाहर अपनी कार के पास खड़े थे।
पायल और संजीव ने अमारा को गले से लगा लिया और फ़फ़ककर रो पड़े।
इंस्पेक्टर रंजीत जो अपनी गाड़ी के साथ वहीं जमे हुए थे, उन्होंने इस अविश्वसनीय दृश्य को देखते हुए कहा "शैतान चाहे जितना भी ताकतवर हो जाए लेकिन अच्छाई और सच्चाई एक दिन उसे हरा ही देती है।"
पायल, संजीव और अमारा ने भी उनकी बात पर सहमति जताते हुए अपना सर हिलाया।
संजीव के मना करने के बावजूद इंस्पेक्टर रंजीत अपनी गाड़ी से तब तक उनके पीछे-पीछे रहे जब तक कि वो अपने घर नहीं पहुँच गये।
घर पहुँचकर उन्होंने इंस्पेक्टर रंजीत को धन्यवाद कहते हुए अंदर आने के लिए कहा लेकिन ड्यूटी का हवाला देकर उन्होंने रुकने में असमर्थता जताई।
अमारा ने घर के अंदर कदम रखते ही अपने मम्मा-पापा से कहा कि अब वो कभी मनमानी नहीं करेगी, वरना एक बार फिर उसे शैतान उठाकर ले जाएगा।
"अब कोई हमारी बेटी को कहीं नहीं ले जाएगा, कहीं नहीं। तुम जितनी चाहे शैतानी करना मैं नहीं रोकूँगी।" पायल ने अमारा को एक बार फिर हृदय से लगाते हुए कहा तो संजीव बोला "और मैं तो पहले भी नहीं रोकता था। है ना मेरी लाडली।"
संजीव की बात पर अमारा और पायल दोनों खिलखिला उठे।
तभी दरवाजे पर हुई दस्तक ने उनका ध्यान अपनी तरफ खींचा।
संजीव ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला और सामने कुलगुरू को पाकर उनके चरणों पर गिर पड़ा।
कुलगुरु ने स्नेह से उसे उठाया और उसके सर पर आशीर्वाद का हाथ रख दिया।
उनके अंदर आने के बाद अमारा ने भी आगे बढ़कर उनके पैर छुए तो उन्होंने इस बार बिना अटके उसे मुस्कुराते हुए दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया।
पायल भी उनका आशीर्वाद लेने के लिए आई तो उन्होंने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया।
"क्या हुआ गुरुजी? कोई भूल हो गई है क्या मुझसे? आप मुझे अपना आशीर्वाद नहीं देंगे?" पायल ने घबराई हुई आवाज़ में कहा तो कुलगुरु बोले "दूँगा आशीर्वाद। लेकिन पहले मुझे तुमसे कुछ गंभीर बातें करनी हैं।"
"जी गुरुजी।" पायल ने सर झुकाकर धीमी आवाज़ में कहा।
"मैं जानता हूँ कि बहुओं के लिए ससुराल वालों की बात अक्षरशः मानना जरा मुश्किल होता है, इसलिए दो-दो बार मेरे चेतावनी देने के बावजूद तुमने मेरी बात नहीं मानी।
पहले अमारा को स्कूल के लिए रवाना कर दिया और फिर अपनी कलाई से रक्षा-सूत्र भी खोल दिया।
सोचो अगर अमारा का दिल संजीव को अपनी माँ के रूप में स्वीकार नहीं करता तो क्या होता क्योंकि तुम तो अपनी बेवकूफी या जरूरत से ज्यादा चालाकी की वजह से उस शैतान के चंगुल में फँसी हुई थी।
इसलिए आज पहले तुम मुझे वचन दो की कम से कम तुम अपने ससुराल के इस बुजुर्ग सदस्य की बातों की अवहेलना नहीं करोगी, तब मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।"
कुलगुरु की बात सुनकर पायल का साहस नहीं हो रहा था कि वो अपनी नज़र भी उठा सके।
रोते-रोते वो उनके पैरों पर गिरकर अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगी तो कुलगुरु ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा "बस-बस मैंने तुम्हें रोने के लिए नहीं कहा था। हमेशा खुश रहो।"
थोड़ी देर के बाद जब कुलगुरु चले गए तब पायल ने अमारा से कहा "अब मैं कभी तुम्हारे इस चिढ़ाने का बुरा नहीं मानूँगी कि पापा जैसी मम्मा और मम्मा जैसे पापा।"
उसकी इस बात पर अमारा खिलखिलाती हुई संजीव के पीछे छुप गई और उसे खींचकर अपने गले से लगाती हुई पायल की आँखों में देखते हुए संजीव का ममत्व से भरा हुआ हृदय भी खुशियों के सागर में गोते लगाता हुआ मुस्कुरा उठा।
समाप्त
©शिखा श्रीवास्तव 'अनुराग'