छह महीने बीत चले थे लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद भी बच्ची के परिवार का कोई पता नहीं लग पाया।
ये देखकर आपस में सलाह-मशवरा करके पायल और संजीव ने बच्ची को कानूनन गोद लेने का फैसला किया।
जिस दिन वो सारी औपचारिकताएं पूरी करके घर लौटे उन्हें ख्याल आया कि उनकी बेटी को उनके कुलगुरु का आशीर्वाद दिलवाना चाहिए।
अभी वो इस विषय में विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।
पायल ने उठकर दरवाजा खोला तो सामने अपने कुलगुरु को देखकर हैरान रह गई।
उनके चरणस्पर्श करते हुए पायल ने कहा "गुरुजी, हम अभी आपको ही याद कर रहे थे।"
कुलगुरु ने आशीर्वाद का हाथ उठाया और बिना कुछ कहे घर के अंदर बढ़ गए।
संजीव भी अचानक उन्हें सामने देखकर हैरान था। उसने अपनी गोद में बच्ची के दोनों हाथ जोड़े और फिर स्वयं भी कुलगुरु के चरणों को स्पर्श करने के लिए झुका।
कुलगुरु ने बच्ची के सर पर हाथ रखते हुए कहा "दीर्घायु...।"
उन्हें बस एक शब्द पर ठहरा हुआ देखकर पायल बोली "गुरुजी, आशीर्वाद पूरा कीजिये। हमारी बेटी को आशीर्वाद दीजिये।"
"मैं ये आशीर्वाद नहीं दे सकता पायल।" कुलगुरु कुछ चिंतित होकर बोले।"
"क्या मतलब है आपका? क्या मेरी बेटी के जीवन पर कोई खतरा है?"
"काला साया... एक काला साया इसे निगलने के लिए आगे बढ़ रहा है। उसका सामना करना मुश्किल है, बहुत मुश्किल। मेरी मानों तो इसे जिस जंगल से लाए हो वहीं छोड़ आओ। इसकी वजह से तुम दोनों भी संकट में पड़ जाओगे। यही चेतावनी देने आया हूँ मैं।"
"ये आप कैसी बात कर रहे हैं गुरुजी? आप बुजुर्ग हैं, इतने ज्ञानी हैं फिर भी आप कह रहे हैं कि हम इस निर्दोष बच्ची को मरने के लिए छोड़ आएं? कोई तो रास्ता होगा इस संकट से बचने का? क्या भगवान से बड़ा हो गया शैतान?" संजीव ने व्यग्रता से कहा तो गुरुजी ने अपने कदम पूजाकक्ष की तरफ बढ़ा दिए।
लगभग दो घण्टे तक ध्यान में बैठने के बाद जब गुरुजी बाहर आए तब उन्होंने बच्ची के मस्तक पर एक टीका लगाया जो तत्काल अदृश्य हो गया।
फिर उन्होंने पायल की तरफ कागज के दो टुकड़े बढ़ाते हुए कहा "इसमें से एक टुकड़े पर भविष्य की चेतावनी है और दूसरे टुकड़े पर एक मंत्र। ये मंत्र हमेशा बच्ची के कमरे में रखना और जब भी उसे घर से बाहर कहीं रहने के लिए जाना हो तब भी उसके आस-पास ये कागज का टुकड़ा रखना और भविष्यवाणी के कागज को भी संभालकर रखना। इसके दसवें जन्मदिन के बाद जब तक मैं यहाँ ना आ जाऊँ इसे कहीं मत भेजना, किसी के साथ भी नहीं।"
"जी गुरुजी। अब तो अपना आशीर्वाद पूरा कीजिये।" पायल ने अपनी आवाज़ सामान्य बनाये रखने की कोशिश करते हुए कहा तो गुरुजी ने एक बार फिर बच्ची के सर पर हाथ रखते हुए कहा "दीर्घायु भवः।"
गुरुजी का आशीर्वाद पाकर पायल और संजीव को मानो तसल्ली सी हो गई।
उन्होंने अपनी बेटी का नाम रखा 'अमारा'। धीरे-धीरे अमारा के साथ उनकी ज़िंदगी में खुशियाँ ही खुशियाँ आती चली गई।
अमारा की कुशाग्र बुद्धि देखकर ही पायल ने तय किया कि वो उसे सैनिक स्कूल भेजेगी लेकिन कहते हैं ना की अगर अनहोनी होनी है तो उसके दरवाजे कहीं से भी खुल सकते हैं।
ठीक इसी तरह जब बरसों तक अमारा के साथ किसी तरह की कोई असामान्य घटना नहीं हुई तब पायल और संजीव के दिमाग से गुरुजी की चेतावनी निकल गई।
और आज अमारा के खोने के बाद जब पायल की नज़रों के सामने गुरुजी के दिये हुए कागज के वो टुकड़े आए तब पायल का जी चाह रहा था कि वो अपने ही हाथों से अपना गला दबा ले।
आखिर कैसे वो अपनी बेटी की सुरक्षा की बात भूल सकती थी।
सचमुच उसकी महत्वकांक्षा ने आज उसकी बेटी की बलि ले ली थी।
अमारा के इस दुनिया में ना होने के ख्याल से ही पायल को ऐसा लग रहा था जैसे उसके दिल की धड़कन रुक जाएगी।
भले ही उसने अमारा को जन्म नहीं दिया था लेकिन उसका ईश्वर जानता था कि अमारा उसकी जान थी।
"गुरुजी... गुरुजी का आशीर्वाद कभी ख़ाली नहीं जा सकता।" पायल ने स्वयं को तसल्ली देने की कोशिश करते हुए कहा और तेज़ कदमों से संजीव की तरफ बढ़ी।
अभी वो अपने कमरे में संजीव के पास पहुँची ही थी कि संजीव ने कहा "गुरुजी आए हैं। पूजाकक्ष में बैठे हुए हैं।"
ये सुनते ही पायल पूजाकक्ष की तरफ दौड़ी और वहाँ बैठे हुए कुलगुरु के चरणों मे गिरकर फूट-फूटकर रोने लगी।
"मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई गुरुजी लेकिन मेरी बेटी को बचा लीजिये, मेरी अमारा को बचा लीजिये। मैं उसके बिना मर जाऊँगी।"
"उसे मैं नहीं सिर्फ तुम बचा सकती हो। अपना हाथ आगे करो।" कुलगुरु ने जैसे ही कहा पायल ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
कुलगुरु ने उसकी कलाई पर एक रक्षा-सूत्र बाँधा और एक छोटी सी तीली उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोले "इस तीली से निकलती हुई रोशनी तुम्हें अमारा तक ले जाएगी। वो उसी जंगल में है जहाँ से तुम उसे लाई थी। बस ध्यान रखना की ये तीली ज़मीन पर ना गिरे वरना इसे दोबारा जलने में चौबीस घण्टे लग जाएंगे और किसी भी सूरत में इस रक्षा-सूत्र को अपने हाथ से मत उतारना।"
"मैं इस बार कोई गलती नहीं करूँगी गुरुजी।" पायल ने दृढ़ स्वर में कहा।
गुरुजी ने संजीव को बुलाकर उसकी कलाई में भी रक्षा-सूत्र बाँधा और बोले "जंगल में सिर्फ तुम दोनों जाना। कोई तीसरा शख्स तुम्हारे साथ नहीं होना चाहिए।
"
संजीव ने हाँ में सर हिलाया और उनके देखते ही देखते कुलगुरु वहाँ से चले गए।
पायल और संजीव ने तेज़ी से अपनी गाड़ी जंगल की दिशा में जाने वाली सड़क पर दौड़ा दी।
कुछ दूर जाने के बाद संजीव ने कहा "मैंने जिस पुलिस स्टेशन में अमारा की ग़ुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई थी वो रास्ते में ही है।
क्यों ना एक बार वहाँ के इंस्पेक्टर से भी मिलते चलें। हो सकता है कि उन्हें अमारा का कोई सुराग मिल गया हो।"
पायल को भी संजीव की ये बात ठीक लगी और उन्होंने अपनी गाड़ी पुलिस स्टेशन की तरफ़ मोड़ दी।
क्रमशः