लौट आओ अमारा - भाग 4 शिखा श्रीवास्तव द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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लौट आओ अमारा - भाग 4

इस रुदन में इतना दर्द, इतनी तड़प थी कि संजीव और पायल का दिल भी दर्द से भर उठा।

कार को भूलकर वो दोनों बच्ची की तलाश करने लगे। इस घने जंगल में किसी बच्ची का इस तरह रोना उन्हें किसी अनहोनी का संकेत दे रहा था, लेकिन फिर भी वो बिना घबराए आवाज़ की दिशा में जंगल के अंदर बढ़ते जा रहे थे मानों कोई अदृश्य चुम्बक उन्हें खींच रहा हो।

आख़िरकार थोड़ी दूर चलने के बाद ही उन्हें एक घने पेड़ के नीचे लगभग एक साल की रोती हुई बच्ची मिल गई।

पायल ने जल्दी से उसे गोद में उठाकर अपने आँचल में लपेट लिया।

उसके सीने से लगते ही बच्ची का रोना आश्चर्यजनक तरीके से बन्द हो गया।

संजीव ने बच्ची के जख्मी शरीर को देखते हुए कहा "लगता है ये अपने माँ-पापा के साथ यहाँ आई होगी और उनके साथ कोई दुर्घटना हो गई होगी।"

"हम्म मुझे भी ऐसा ही लगता है। लेकिन यहाँ आस-पास ना कोई इंसान नज़र आ रहा है और ना कोई गाड़ी।" पायल ने भी सहमत होते हुए कहा।

"अच्छा ऐसा करते हैं पहले बच्ची को डॉक्टर के पास लेकर चलते हैं और फिर पुलिस में रिपोर्ट लिखवा देते हैं। पुलिस इसके परिवार को तलाश लेगी।"

"हाँ ये ठीक रहेगा। चलो अब रात होने ही वाली है।" पायल ने बच्ची को संभालते हुए अपने कदम वापस गाड़ी की तरफ बढ़ाने शुरू किए।

अभी वो कुछ ही कदम आगे बढ़े होंगे कि उनके कानों में एक चीखती हुई आवाज़ आई "वापस दो इस बच्ची को। ये मेरा शिकार है। वापस दो वरना तुम दोनों भी मारे जाओगे।"

ये आवाज़ इतनी खतरनाक और डरावनी थी कि पायल और संजीव को लगा मानों उनके शरीर में खून जम सा गया है और उनके पैर बिल्कुल जड़ हो गए हैं।

"शिकार... ये बच्ची? नहीं मैं इसे कुछ नहीं होने दे सकती। भागो संजीव।" अगले ही पल साहस बटोरकर पायल ने कहा तो संजीव ने भी अपनी मौन सहमति जताई और वो तेजी से कार की तरफ़ दौड़ने लगे।

पायल और संजीव ने महसूस किया कि सुहावना मौसम अचानक ही रौद्र रूप धारण कर रहा था।
उनके चारों तरफ की हवा खतरनाक बवंडर में बदल चुकी थी और जंगल के पेड़ किसी विशालकाय दानव की भांति हिलते हुए उन पर हमला करने के लिए तत्पर नज़र आ रहे थे।

एक बार फिर वही आवाज़ उन दोनों के कानों में आई "बच्ची को जंगल में छोड़ दो वरना बेमौत मारे जाओगे।"

लेकिन पायल और संजीव बिना रुके, बिना पीछे मुड़े अपने ईश्वर का नाम लेकर आगे बढ़ते गये।

आख़िरकार गिरते-पड़ते किसी तरह वो दोनों गाड़ी के पास पहुँच ही गए।
जैसे ही वो गाड़ी का दरवाजा खोलकर अंदर बैठे बंद गाड़ी अपने आप चल पड़ी।

संजीव ने जल्दी से स्टीयरिंग व्हील संभाला और गाड़ी को तेजी से भगा दिया।

कुछ देर के बाद जब जंगल पीछे छूट गया तब उन्होंने राहत की साँस ली, लेकिन अब भी गाड़ी रोकने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

अपने घर पहुँचने के बाद ही उन्होंने गाड़ी रोकी और बच्ची को लेकर भागते हुए घर के अंदर पहुँचे।

घर के अंदर कदम रखने के बाद जब उन्हें तसल्ली हो गई कि वो तीनों सुरक्षित हैं तब उन्हें बच्ची और अपनी दशा का ख्याल आया।

बच्ची के साथ-साथ वो दोनों भी बुरी तरह जख्मी हो चुके थे और जंगल में गूँज रही आवाज़ की दशहत की वजह से उनके दिमाग ने काम करना बिल्कुल बन्द कर दिया था।

कुछ देर तक यूँ ही भावशून्य होकर बैठे रहने के बाद बच्ची के रोने की आवाज़ से उनकी तंद्रा टूटी।

पायल ने स्नेह भरी नज़र से बच्ची को देखा और फिर उसे संजीव की गोद में देती हुई बोली "लगता है इसे भूख लगी है। तुम इसे संभालो मैं इसके लिए दूध लाती हूँ।"

संजीव ने हाँ में सर हिलाते हुए बच्ची को आहिस्ते से गोद में ले लिया।

दूध पीकर जब बच्ची सो गई तब संजीव ने कहा "अब क्या करें? ये बच्ची पता नहीं किसकी है। हम कब तक इसे अपने पास रख सकते हैं? आस-पड़ोस में सब सवाल करेंगे तो क्या जवाब देंगे कि हम इसे कहाँ से लाये हैं?"

कुछ सोचते हुए पायल ने कहा "मेरे एक कलीग का भाई यहीं स्थानीय पुलिस थाने में है। उसे बुलाकर बात करते हैं।"

"लेकिन क्या कोई हमारी बात पर यकीन करेगा कि हमने जंगल में क्या देखा और सुना?" संजीव ने असमंजस भरी नजरों से पायल को देखा तो पायल बोली "हम बस पुलिस को इतना ही बताएंगे कि ये बच्ची हमें जंगल के पास रोती हुई मिली और इसे जंगल से निकालने में हम गिर गए और हमें चोट लग गई।"

संजीव को पायल की बात ठीक लगी। पायल ने अपने कलीग से बात करके उसके भाई इंस्पेक्टर अजित को बुलाया और संजीव ने अपने फैमिली डॉक्टर को फोन कर दिया।

इंस्पेक्टर अजित जब आए तब डॉक्टर बच्ची के साथ-साथ पायल और संजीव की जांच करते हुए उनके चोटों पर पट्टी बांध रहे थे।

उनकी ये हालत देखकर इंस्पेक्टर अजित ने घबराए हुए स्वर में पायल से पूछा "आप लोगों को इतनी चोट कैसे लगी? किसने हमला किया आप पर?"

इंस्पेक्टर अजित के सवाल का जवाब देती हुई पायल बोली "हम पर किसी ने हमला नहीं किया। हम जंगल के रास्ते से गुज़र रहे थे तो वहाँ इस बच्ची के रोने की आवाज़ आई। उसे बाहर निकालने में हम ज़ख्मी हो गए। आप इसके माँ-पापा की तलाश कीजिये ताकि हम उन्हें उनकी बच्ची सौंप सकें।
जरूर वो भी कहीं आस-पास घायल होंगे हालांकि हमें वो मिले नहीं और ज्यादा देर जंगल में रुकना ठीक नहीं था।"

"आपने बिल्कुल ठीक किया की जल्दी निकल गए वहाँ से। मैं रिपोर्ट लिख लेता हूँ और बच्ची की तस्वीर भी अख़बार में छपवा देता हूँ। लेकिन तब तक बच्ची कहाँ रहेगी?" इंस्पेक्टर अजित के इस सवाल पर पायल ने पूछा "क्या हम इसे अपने पास रख सकते हैं?"

"ठीक है मैं अपने सीनियर से बात करके आपको बताता हूँ। आप लोग अपना ख्याल रखिये।" इंस्पेक्टर अजित ने अपने फोन से बच्ची की तस्वीर लेते हुए कहा।

अगले ही दिन इंस्पेक्टर अजित के सहयोग से पायल और संजीव को इस बात की इजाज़त मिल चुकी थी कि बच्ची के परिवार का पता चलने तक वो बच्ची को अपने पास रख सकते हैं, बस समय-समय पर उन्हें थाने में आकर बच्ची की सलामती से संबंधित औपचारिकता पूरी करनी होगी।

संजीव और पायल को इस बात से कोई समस्या नहीं थी।
क्रमशः