वह तालाब नहीं मिला Bharat(ભારત) Molker द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वह तालाब नहीं मिला

कोई नहीं जानता था, ना जाने कितने वर्षो पहले से वह तालाब, वहां उस जहग पर स्तिथ था l प्राकृतिक तोर पर अपने आप वहां बना हुआ था या मनुष्यों द्वारा निर्मित किया गया था? उस तालाब से थोड़े अंतर पर एक गाव बसा हुआ था, लेकिंग वहां के लोगो को भी इस विषय में कोई जानकारी नहीं थी, और ना ही उन पुजारियों को, जो तालाब के पश्चिमी किनारे पर बने हुए हनुमानजी मंदिर के आश्रम में रहते थे l हनुमान मंदिर के कारण वह तालाब प्रसिद्द था या उस तालाब के कारण हनुमान मंदिर इस बात का कोई उत्तर ही नहीं है l लेकिंग जो भी लोग उस मंदिर में दर्शन करने आते, तालाब के आस पास का प्राकृतिक सोन्दर्य उनका मन मोह लेता l सूरज की किरणों से चमकता साफ़ पानी, भले ही उस तालाब में चरवाह रोज़ अपने मवेशियों को पानी पिलवाते l आस पास की हरियाली और खेतो में लहराती फसल, उस परम शांति के अनुभव से दूर जाने का मन ही ना करे l पशु, पक्षी, मनुष्य प्रकृति, अब तक सबका तालमेल बिलकुल सही चल रहा था l

फिर एक रोज़ मनुष्यों ने सोचा की प्रगति की जरुरत है l तब उसने औद्योगिक विकास को स्थापित करने का प्रण लिया l ना जाने कितनी ही पीढियों से जो लोग अपनी ज़मीनों पर फसल उगाया करते थे, यहाँ सरकार ने एक फैसला लिया और उनके खेत रातोंरात सरकारी ज़मीन में शामिल कर लिए गए l जिसके बदले उन किसानो को मुआवजा तो मिला, पर असल में हरजाना किसे भरना पड़ेगा, शायद उसका अंदाज़ा तब किसीको नहीं था l मनुष्य के आर्थिक विकास की नीव मजबूत करने हेतु, उन सारी उपजाव औद्योगिक वासाह्तो में परिवर्तित करने की प्रक्रिया शुरू हुई l एक कारखाना – दूसरा – तीसरा, एक-एक कर छोटे बड़े कारखानो क्या व्याप बढ़ता जा रहा था l और वर्ष दर वर्ष यह कारखाने अपने पैर फेलाते हुए पहोच गए उस तालाब के समीप l उन कारखानों में से उठने वाली आवाजों से, उस तालाब के पास जो परम शांति का अनुभव होता था वह भंग हो चूका था l हनुमान मंदिर में होने वाले शंखनाद और घंटनाद भी दब चुके थे  उन चोबीसो घंटे चलने वाले कारखानों की होड़ में l तालाब जैसे सहम गया था l चिंता करने से जिस प्रकार मनुष्य के मुख का तेज फीका पड़ जाता है, उसी प्रकार उस तालाब का सोंदर्य दिन प्रति दिन गिरता जा रहा था l लेकिन बर्बरता यहीं तक सिमित नहीं थी, क्योकि मनुष्यों को अधिक से अधिक प्रगति करने की लालसा एक के बाद एक पायदान चढ़ती जा रही थी l मनुष्यों को अपना आर्थिक विकास बढ़ने के लिए एक विकल्प मिला –केमिकल का निर्माण l जिसे बनाने पर फायदा तो बहुत था, लेकिंग परियावार्ण को बड़ा ही नुकसान l लेकिन मनुष्यों ने चुन लिया केमिकल बनाना, खतरनाक, विशेले, हानिकारक केमिकल l अब उस इलाके में ध्वनी, वायु, जल, ज़मीन हर प्रकार का प्रदुषण फेलना शुरू हो गया l केमिकल के कारखानों में से उठता दूषित धुआ वातावरण को गमगीन बना देता था, और उन कारखानों में से निकलता दूषित पानी भी उस तालाब में छोड़ा जाने लगा l तालाब के अंदर की सारी जलचर प्रजातियाँ उस दुष्ण से नष्ट हो गई l कभी साफ पानी से भरा तालाब अब कई तरह के रंगों वाले पानी और उस में से निकल ने वाली बदबू से भयावह दिखाई देता था l कुछ ही समय में तालाब पूरा सुक गया l उस में छोड़े जाने वाले दूषित पानी की वजह से आस-पास की ज़मिंन भी बंजर हो गई l उस तालाब का अस्तित्व मिटता जा रहा था और किसी को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा l ना ही उस गाव के लोगो को ना ही सरकार द्वरा रचित उन कार्यालयों को, जिनका काम ही है प्रदुषण फेलाने वाले एक्मो को करना l पर सुना है  इन केमिकल के कारखानो का अपना एक संगठन है, और उस संगठन की पहोच ऊपर तक है l और जब मोटी-तगड़ी घुस अधिकारीयों तक जाती है तो वे भी आँखों पर काली पट्टी बांध लेते हैं और उनकी श्रवणशक्ति विलुप्त हो जाती हैं l इन आर्थिक विकासवादी मनुष्यों को उस तालाब से न जाने क्या शत्रुता थी? क्योकि उसे लुप्त करने के लिए उन्होंने नीचता की सारी सीमाए पर करली l केमिकल के कारखानों में से निकलने वाला रासायनिक कचरा - केमिकल स्लज उसे उस सुके तालाब में फेका जाने लगा l प्रतिदिन ट्रेक्टर की ट्रोलीयां भर भर कर उस तालाब में केमिकल स्लज फेका जाता था l इस काम को अंजाम देकर उन ट्रेक्टर के मालिको ने खूब पैसा कमाया l आखिर किसी भी कीमत पर वे लोग यही तो चाहते थे l देखते ही देखत एक रोज़ तालाब का नामोनिशान मिट गया l शायद वह तालाब हर रोज़ जरुर चीखता चिल्लाता होगा, “मत करो मुझ पर अत्याचार! इस तरह मत दबादो मेरी हस्ती! मत छीनो मुझसे दुबारा जीवित होने का अवसर...मेने तुम्हारा कुछ ख़राब नहीं किया....l लेकिन स्लज फेकने वाले उन लोगो के कानो तक उसकी यह सारी विनतियां नहीं पहोच होगी l क्योकि उनके कानो में तो बस पैसो की खनक बज रही थी l तालाब के नजदीक इमारतो का एसा घेरा बन गया की लोगो की स्मृति से तालाब हमेशा की लिए मिट गया l वैसे भी मनुष्यों को भूलना अच्छे से आता है, खास कर अपनी भयंकर गलतियाँ l मनुष्य किस प्रकार निष्ठुर, निर्भय होकर प्रकृति से खिलवार करता है, शायद वह निश्चित है इस बात से और निश्चिंत भी, की प्रकृति उसके द्वारा किए गए खिलवार का तुरंत प्रतिउत्तर नहीं देगी l और मनुष्य निसंकोच होकर एक बाद एक घाव प्रकृति पर करता ही जाता है l बेख़ौफ़ होकर, क्योकि उसे पता है, उसे कोई दण्डित करने वाला नहीं है l

कई वर्षो बाद उस जगह पर जहाँ कभी वह तालाब हुआ करता था, वहां कुछ छोटे-मोटे कारखानो को हटा, एक बड़े से केमिकल प्लांट का निर्माण चल रहा था, जिसे कोर्ट से स्टे आर्डर लाकर किसी परियावार्ण प्रेमी संगठन ने रुकवा दिया l इस मुद्दे पर परियावार्ण प्रेमी संगठन और केमिकल कारखानो का संगठन के बिच मुकदमा चला l परियावार्ण प्रेमी संगठन दावा कर रहा था की उस जगह पर कभी तालाब हुआ करता था वहां इस प्रकार का विशाल केमिकल प्लांट नहीं होना चाहिए l तो केमिकल कारखानो का संगठन इस बात पर अडा था की वहां कभी कोई तालाब था ही नहीं न्यायालय में दोनों पक्षों के साक्षियों को सुना गया पर कोई ठोस नतीजा ना आने पर न्यायाधीश ने आदेश दिया की खनन कर पता लगाया जाए की वहां आखिर क्या था? तालाब था या नहीं था l जनता के पैसो से उस जगह पर खनन शुरू हुआ, काफी गहराई तक खनन किया लेकिन वहां कभी तालाब था इस बात का न कोई प्रमाण मिला और ना ही कोई अवशेष l मिलता भी कैसे, वहां केमिकल स्लज डाल-डाल कर उस तालाब को पूरी तरह से दबा दिया गया था l यह बात केमिकल कारखानो के संगठन वाले लोगो को पता थी l और एक बात भी उठी थी, खनन करने वाले कामदार और अधिकारियों को खरीद लिया गया और उनको अति गहन खनन करने से रोका गया ताकि उस केमिकल प्लांट का कार्य फिर से शुरू हो सके l और हुआ भी वेसा ही, अधिकारीयों ने कोर्ट में बयान दर्ज करवाया, “अब इस से ज्यादा गहरा खनन करना असंभव है, और अगर इतना खनन करने के बाद भी अगर तालाब के कोई अवशेष नहीं मिला, तो इसका मतलब यही है की वहां कभी तालाब था ही नहीं” l न्यायालय से फैसला केमिकल कारखानो के संगठन के पक्ष में दिया गया l और उस जगह पर केमिकल प्लांट का निर्माण फिर से शुरू हुआ l इस प्रकार मनुष्यों के कपट के आगे न्यायालय अक्षम साबित हुआ, प्रकृति की हार हुई और उसे मिला सिर्फ घोर अन्याय! इस घोर अन्याय का प्रकृति किस प्रकार न्याय करेगे ये तो आनेवाला समय ही बताएगा l