भाग 28
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि जगत रानी रज्जो और बच्चे को ले कर घर आती है। पूजा पाठ हो जाने के बाद जय अम्मा के रोकने के बाद भी रज्जो को ले कर चला आता है। वो नही चाहता था की रज्जो के रुकने से गुलाबो को कोई तकलीफ हो। अब आगे पढ़े—
अब फिर होली आने वाली थी। जगत रानी ने पूरा घर लिपवा, पोतवा दिया। जय, रज्जो और सूरज आने वाले थे। वो रोज इंतजार करती की शायद आज वो आ जाएं।
गुलाबो का व्यवहार देखते हुए जगत रानी ने सोचा की उसके ना रहने पर कोई विवाद भाई भाई के बीच में ना रह जाए इस लिए खेत भी एक वर्ष पहले ही बांट दिया था। गुलाबो ने खेत के दो हिस्से नही करने दिए। वो बोली, "जब आप और पिता जी हमारे साथ यहां रहते हो तो खेत के तीन हिस्से होने चाहिए। आप दोनो का खर्च कौन उठाएगा..? इस लिए एक हिस्सा आपका भी होना चाहिए।"
जगत रानी ने खेत के तीन हिस्से कर दिए। अब वो गुलाबो के साथ रहती तो उसके हिस्से में उपजने वाला अनाज भी गुलाबो को ही मिलता। मिलता तो जय के हिस्से वाला भी था। क्योंकि वो उसे विजय को ही दे जाता ये कह कर कि,"मैं कहां ले जाऊंगा इतना अनाज..? फिर मेरा खर्च भी तो कम है। तेरे बच्चे है, परिवार बड़ा है। तू ही रख ले।"
पर इस बार होली के एक दिन पहले ही जय आ पाया। घर पहुंचते ही वो सूरज और विजय के बच्चों श्याम, रिद्धि और सिद्धि के लिए पिचकारी और रंग, अबीर लेने बाजार चला गया।
वो बाजार से लौटा तो सभी के लिए कुछ न कुछ ले कर आया था। अम्मा के लिए उनका पसंदीदा अनरसा था तो पिता जी के लिए रामनामी गमछा। बच्चों के लिए पिचकारी तो विजय के लिए धूप वाला चश्मा। गुलाबो और रज्जो और अम्मा के लिए रंग बिरंगी कांच के चूड़ियां।
होली के दिन दोनो ही घरों में तरह तरह के पकवान बनाए गए। गुझिया, मठरी, खुरमा,आदि। जगत रानी और विश्वनाथ जी के आगे जो भी थाली रख जाता खा लेते। गुलाबो ये गलती बिलकुल भी ना करती। विजय कुछ अम्मा पिता जी को देने को कहता भी तो वो कहती, "मैं तो बारहों महीने दोनो समय बना खिला ही रही हूं। अब दीदी आई है तो कम से कम दो चार दिन तो सेवा कर दे।" विजय गुलाबो की इस बात पर चुप हो जाता।
होली का दिन अच्छे से बीत गया। सभी बच्चे मिल कर गांव के बाकी बच्चों के संग खूब होली खेले। शाम को दिन ढल गया था। अंधेरा गहरा रहा था। बच्चे अभी भी अपनी पिचकारी लिए हुए थे। सूरज सब से ज्यादा हिला मिला नही था इसलिए वो जय के पास ही खड़ा था। सिद्धि को सूरज की पिचकारी ज्यादा अच्छी लग रही थी। वो उससे सुबह से मांग रही थी, पर सूरज अपनी पिचकारी उसे दे नही रहा था। जय ने सिद्धि को समझाया था की बिटिया तुम बड़ी हो। अभी रहने दो शाम को होली खत्म होने पर दिला दूंगा। अब होली खत्म हो गई थी पर सूरज अपनी पिचकारी किसी के भी कहने पर छोड़ने को राजी नहीं हो रहा था।
बज अच्छे से बनते ना देख सिद्धि का भी सब्र जवाब दे गया। जय चारपाई पर बैठा था और सूरज उसके साथ लग कर खड़ा था। दूसरी चारपाई पर जगत रानी और विश्वनाथ जी बैठे थे। सिद्धि दौड़ कर सूरज के पास आई और उसके हाथ से पिचकारी छीनने लगी। सूरज की पकड़ मजबूत थी पिचकारी कर इस लिए वो उससे छीन नही पाई। सूरज ने अपनी पिचकारी बचाने के लिए उसी पिचकारी से सिद्धि के माथे पर मार दिया। पीतल की पिचकारी माथे पर पड़ते ही सिद्धि दर्द से चिल्ला पड़ी। जय ने सिद्धि को पास ला कर देखा तो माथे पर गहरा निशान था और खून हल्के से रिस रहा था। जय ने तुरंत सायकिल निकाली और विजय को आवाज दे कर बुलाया। विजय से बोला वो सिद्धि को ले कर पीछे बैठ जाए। जय उन्हे ले कर तेजी से सायकिल चला पास के बाजार वाले डाक्टर के पास चल पड़ा। पूरे गांव के लोगों को बीमारी का इलाज यही डॉक्टर करता था।
डॉक्टर ने देख कर दवा दी और पट्टी बांध दिया। जय वापस सिद्धि और विजय के साथ चल पड़ा। किसे पता था की घर पे एक तूफान इंतजार कर रहा है। जो सब कुछ बदल कर रख देगा।
जय घर पहुंचा। सायकिल खड़ी की ओर सिद्धि को विजय से अपनी गोदी में ले कर बरामदे में आने लगा। गुलाबो उस वक्त अंदर थी, जब सिद्धि को चोट लगी थी। उसने अभी तक नही देखा था की सिद्धि को कितनी और कहां चोट लगी है? वो बाहर ही दरवाजे की डेहरी पर बैठी उन सब के आने का इंतजार कर रही थी। वहीं पास पड़ी चारपाई पर विश्वनाथ जी और जगत रानी भी बाकी बच्चो के साथ बैठे थे।
जैसे ही जय सिद्धि को ले कर आता दिखा, गुलाबो की नजर सिद्धि के माथे पर बंधी हुई पट्टी पर गई वो अपना आपा खो बैठी। अब ये आपा उसने क्यों खोया ये वही जाने। इसका कारण आज सिद्धि को आई चोट थी या बरसों से उसके दिल में पलती नफरत थी। उसे जरा भी ख्याल नही रहा की वो ये क्या करने जा रही है.? मान मर्यादा को परे रखते हुए वो आगे बढ़ी और जय के हाथों से सिद्धि को लगभग छीन लिया और गुस्से से विजय से बोली, "तुम्हारे हाथ टूट गए है..? जो इनके हाथों में अपनी बच्ची सौंप दी। इनका बेटा..! इनका राज दुलारा… मेरी बेकसूर बच्ची का सर फोड़े और ये उसका इलाज करवाने चले है..! और तुम सब कुछ चुप चाप देख सुन रहे हो।" गुलाबो जय को बुरी तरह अपमानित करती हुई सिद्धि को ले कर अपने हिस्से वाले घर के अंदर चली गई। जैसे ही विश्वनाथ जी ने गुलाबो को जय को छूते देखा वो चिल्ला पड़े, "अरे.. गुलाबो..! ये क्या कर रही है..? अपने जेठ को छू रही है।"
जय जो गुलाबो अपनी छोटी बहन, अपनी बेटी जैसा समझता था। हमेशा ही गुलाबो को एक छोटी नादान बच्ची समझ कर उसकी हर गलती को अनदेखा कर देता था। वो गुलाबो का ये व्यवहार देख जैसे सुन्न सा हो गया। उसने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी की गुलाबो उसका इतना अपमान करेगी। जिस समाज में जेठ को छूना तो दूर उसकी परछाई से भी परहेज करते है। वही गुलाबो ने अपने हाथों से उसे छू लिया था। जय चुप चाप आया और अम्मा की बगल में बैठ गया।
जगत रानी उठी और गुलाबो के घर के अंदर गई। गुलाबो के पास जा कर उसे खरी खोटी सुनाना शुरू किया, "क्यों री तू पगला गई है क्या…? तेरा दिमाग खराब है..? तूने जय को छू कैसे दिया..? तेरी हिम्मत इतनी बढ़ गई है की तुझे अपने जेठ का भी ख्याल नही रहा..?"
अब गुलाबो सुनने वाली नही थी कुछ भी वो गुस्से से बोली, "अम्मा तुम अपना ये उपदेश अपने पास ही रक्खो। मैं ऊब गई हूं तुम सब के रोज रोज के किच किच से। जो रोज दिन में दस बार घर में घुस आती हो मेरा और मेरे बच्चों का अपमान करने। अब मैं कल ही दीवार उठवा देती हूं दोनो घर के बीच। फिर आना दिन में दस बार..? रहो अपने लाडले बड़े बेटे बहू के पास। गांव में रोक कर मेरी और श्याम के पापा की जिंदगी बरबाद कर दी पर तुम्हे इतने से भी चैन कहां..? आज मेरी बच्ची का सर ही फोड़वा दिया..?"
अगले भाग मे पढ़े क्या सचमुच गुलाबो ने दीवार उठवा दिया दोनो घरों के बीच..? क्या जय सहन कर पाया की उसकी भयाहू (छोटे भाई की पत्नी) ने उसे छू लिया..? क्या विश्वनाथ जी घर में उठे इस झगडे को शांत कर पाए..? पढ़े अगले भाग में।