सेंध 333star Star द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सेंध

 

अभी सूर्योदय होने में काफी समय था। मुझे एक हेड कांस्टेबल ने सोते से जगाया और बताया के सेंध लगने की एक रिपोर्ट आई है।
मैं दफ्तर में गया रिपोर्ट देने वाला एक हिंदू सेठ था। शहर के बड़े-बड़े सेठों, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं,अपराधियों और गुंडों वगैरा से पूरी तरह परिचित होना एस०एच०ओ० यानी थाने के इंस्पेक्टर इंचार्ज के लिए अति आवश्यक होता है। मैं अभी इन लोगों से परिचित नहीं हुआ था क्योंकि इस शहर में आए और थाने का चार्ज लिए अभी बारह दिन ही हुए थे। कांस्टेबल ने मुझे घर में ही बता दिया था कि यह सेठ शहर के कुछ बड़े अमीर व्यापारियों में से है और पहुंच वाला भी है मतलब यह था कि उसके साथ जरा संभलकर बात की जाए उसे टालने का प्रयास ना किया जाए जैसे के दूसरे थानेदार किया करते थे।
सेंध के संबंध में कुछ बातें बताना आवश्यक समझता हूं क्योंकि सेंध लगाने का आजकल रिवाज नहीं रहा।
डाकू किसी मकान के पिछवाड़े की दीवार केवल इतनी फाड़ा करते थे जहां से एक व्यक्ति पीठ के बल रैंग कर अंदर जा सके और जहां से समान्य आकार का ट्रंक, सूटकेस इत्यादि बाहर जा सके। सेंध की घटनाएं गर्मियों में होती थी जब लोग छतों पर या आंगन में सोते थे। इसके लिए मार्च- अप्रैल और अक्टूबर के महीने उपयुक्त होते थे क्योंकि इस मौसम में लोग छतों की बजाए आंगन में सोते थे।
पिछली दीवार की ईटें एक लोहे की रॉड से जिसे सुंबा कहते हैं इतने सफाई से निकाली जाती थी कि घर वालों को जरा सी भी आहट नहीं सुनाई देती थी। मजबूत दीवार में से ईंटे निकाली जाती थी फिर अपराधी अंदर जाकर ट्रंक, सूटकेस बाहर लाकर गायब हो जाते थे। सेंध एक कला थी। हर कोई सेंध नहीं लगा सकता था। सेंध लगी देखकर भय सा व्याप्त हो जाता था जैसे इंसानों का नहीं किसी भूत-प्रेतों का काम हो। सेंध सदैव मकान के पिछवाड़े की दीवार में लगाई जाती थी। वह मकान जिनके पिछवाड़े खुला मैदान खेत हो सेंध के लिए अधिक उपयुक्त थे।
इस सेठ का मकान भी ऐसा ही था। मकान क्या था एक महल था पुराने जमाने की हवेली थी। पिछवाड़े में मैदान था जिसमें लड़के हाकी खेला करते थे। एक अखाड़ा भी था। जहां मैदान समाप्त होता था वहां बारिश के पानी का प्राकृतिक तालाब था। उससे आगे सड़क थी और यह सारा इलाका शहर का एक छोर था अर्थात उससे आगे कोई आबादी नहीं थी।
मैं आवश्यकतानुसार अपना स्टाफ साथ लेकर सेठ के साथ घटनास्थल पर पहुंचा। उस सेठ की उम्र चालीस साल के लगभग थी। यह उस प्रकार का पारंपरिक बनिया सेठ नहीं था जो धोती और लंबा कुर्ता पहना करते थे और उनके सर पर पगड़ी होती थी और जिनका पेट बाहर हुआ करता था। यह मॉडर्न सेठ था आढ़त की मंडी का कार्य करता था। साहूकार भी था शिक्षित था और राजनीतिक मैदान का भी खिलाड़ी था। अगर वह पारंपरिक बनिया सेठ होता तो इस समय थर-थर कांप रहा होता परंतु यह सेठ हौसलामंद था। उसके रिपोर्ट देने और बातें करने के ढंग में आदेशात्मक रंग था। दो एक बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वह मुझे अपना नौकर समझता है।
मैं उसके मकान के पिछवाड़े पहुंचा तो भोर का उजाला फैल चुका था और दर्शक मेरे लिए यह कठिनाई पैदा कर चुके थे कि उन्होंने सेंध लगाने वालों के खुरे अपने पांव तले मसल डाले थे। बहुत सी चीजें दीवार से सड़क तक बिखरी हुई थीं। दर्शक दीवार से सड़क तक (दूरी लगभग साढ़े चार सौ गज़) इस प्रकार घूम फिर रहे थे जैसे प्रदर्शनी के विभिन्न स्थानों को देख रहे हों। मेरे कांस्टेबलों ने उन्हें वहां से हटाया परंतु बेकार था। खुरे समाप्त हो चुके थे।
मैंने सेंध को ध्यान पूर्वक देखा। यह किसी उस्ताद (कुशल व्यक्ति) का काम था। ईटें कुशलता से निकाली गई थीं। सेंध जमीन के साथ लगी हुई थी। छेद पौने तीन फीट और ढाई फीट था। उसके पास जो खुरे थे वह गड्ड-मड्ड थे क्योंकि अपराधियों ने वहां बैठकर दीवार तोड़ी थी और फिर उस स्थान से दर्शकों ने खुरे मिटा दिए थे। मैंने अपने आदत के अनुसार दीवार के छेद को और जमीन को बहुत ध्यान पूर्वक देखा। मैंने आपको अपनी कहानियों में सुनाया है कि घटनास्थल को अगर थानेदार गहरी दृष्टि से देखें और घास के टूटे हुए तिनके को भी नजरअंदाज ना करें तो कोई ना कोई सूत्र उसे मिल ही जाता है चाहे वह किसी इंसान का दो सूत लंबा बाल ही क्यों ना हो अलबत्ता उसके लिए पैनी नजर और तीव्र बुद्धि की आवश्यकता होती है क्योंकि मिट्टी पत्थर और ईटें, बोला नहीं करते उनकी मूक जबान को समझना पड़ता है।
मैंने ध्यानपूर्वक देखा तो मुझे जमीन पर एक वस्तु नजर आ गई मैंने उसे उठाया, सूंघा फिर फटी हुई दीवार में झांका। यह वस्तु एक जगह फिट आ गई। मैंने अपने ए०एस०आई० को यह वस्तु देकर कहा - "तुरंत थाने जाओ। इसका पार्सल बनाओ और डाक के द्वारा नहीं बल्कि किसी कांस्टेबल के हाथ केमिकल एग्जामिनर को भेज दो।" - एक पैसेंजर ट्रेन सवा दस बजे गुजरती थी। मैंने ए०एस०आई० को संपूर्ण निर्देश दे दिए कि वह उसके साथ पत्र में क्या लिखें और उसे कहा कि कांस्टेबल सवा दस बजे की गाड़ी से भेज दो। उसे चालीस मील दूर जाना था।
मैंने अंदर जाकर देखा। जिस कमरे की दीवार में सेंध लगाई गई थी उसके दाएं, बाएं और आगे तीन कमरे थे। सेंध वाला कमरा पूजा का था। दीवार के साथ एक चबूतरा सा बना था उस पर भगवान और उसकी देवियों की मूर्तियां थीं। उनके गले मे मालाएं डली हुई थीं। उसके सामने कालीन बिछा हुआ था। दो दीवारों के साथ सोफ़े की भांती कुर्सियां रखी थी। दीवार के साथ धार्मिक तस्वीरें लटकी थीं। सेंध भगवान के दाएं ओर लगाई गई थी।
दाएं वाले कमरे में ट्रंक, पेटियां और सूटकेस रखे हुए थे। इसी कमरे में से सामान चोरी हुआ था। दो ट्रंक और एक अटैची केस गायब थे। एक ट्रंक दो ट्रकों के नीचे से निकाला गया था ऊपर वाले दोनों ट्रकों को सेंध वाले अलग रख गए थे। तीन अटैची केस थे जिनमें से केवल एक उठाया गया था। दोनों ट्रंक और अटैची केस खाली थे इससे प्रतीत होता था कि यह किसी घर के भेदी का काम है। उसने वही ट्रंक उठाए थे जिनमें नकदी , गहने और कीमती कपड़े थे। करेंसी की सूरत में नकदी छत्तीस हज़ार थी और गहने तीस हज़ार की कीमत (मूल्य) के थे। कपड़े रेशमी थे। बाकी कमरों में किसी चीज को बिल्कुल नहीं छुआ गया था।
बाहर का दृश्य यह था कि मकान के पिछवाड़े से पचास गज दूर एक ट्रंक खुला हुआ पड़ा था। उसका ताला बहुत मजबूत था परंतु बड़ी सफाई से तोड़ा गया था। कुछ कपड़े उसके अंदर रखे हुए थे और कुछ कपड़े बाहर बिखरे हुए थे। दूसरा ट्रंक मैदान के किनारे पर तालाब के पास पड़ा था। उसका ताला अधिक मजबूत और पेचीदा था इसलिए ढक्कन के पीछे वाली राड निकालकर उसे खोला गया था। उसमें भी कुछ कपड़े पड़े थे और कुछ बाहर बिखरे हुए थे। चार गज दूर सोने के हार का खाली डब्बा पड़ा था इतना ही आगे सोने के कंगनों की बहुत सुंदर खाली डिबिया पड़ी थी। सात गज आगे गहने का एक और डब्बा और उसी प्रकार थोड़ी - थोड़ीदूरी पर गहनों के खाली डब्बे, डिब्बियां बिखरी हुई थीं। कुछ और वस्तुएं और साधारण से कपड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे और अटैची केस गायब था। सेठ ने बताया कि अटैची केस चमड़े का था और साइज बड़ा था। इससे यह प्रतीत हुआ कि ट्रंकों में से कीमती वस्तुएं निकालकर अटैची केस में डाली गई हैं।
मैंने यह वस्तुएं सरसरी तौर पर देखीं। अब मैं दीवार से ट्रंक तक बिक्री हुई वस्तुओं और कपड़ों को ध्यान पूर्वक देखना चाहता था परंतु मैं यह नहीं चाहता था कि मेरे साथ कोई और हो। सेठ को भी मैं वहां से हटा देना चाहता था। मैंने उसे कहा कि वह घर जाकर उन गहनों और रेशमी कपड़ों की सूची बनाएं जो चोरी हुए हैं और पत्नी से पूछ कर यह भी लिख ले के कपड़ों के रंग और डिजाइन क्या थे। उसे भेज कर मैंने कांस्टेबलों से कहा कि दर्शकों को दूर भगा दें। कभी-कभी अपराधी भी दर्शकों में उपस्थित होते हैं और ध्यान पूर्वक देखते हैं कि तफ्तीश किस लाइन पर और किस और हो रही है। इससे वह यह लाभ उठाते हैं कि अपने बचाव का प्रबंध कर लेते हैं।
उनको दूर हटा कर मैंने बिखरी हुई वस्तुओं को अच्छी तरह देखा फिर एक ट्रंक के पास बैठकर उसमें रखे हुए कपड़ों को खोल खोल कर देखने लगा। ट्रंक के पास कढ़ाई बुनाई की एक किताब पड़ी थी उस पर नाम लिखा था 'विमला'।
उसके कुछ पन्ने पलटे तो दो तस्वीरें बरामद हुईं। एक सेठ की फैमिली फोटो और एक पासपोर्ट साइज का फोटो अलग था। यह एक नौजवान व्यक्ति की फोटो थी। मैंने दोनों तस्वीरें जेब में डाल ली फिर मैंने दोनों ट्रंकों को अच्छी प्रकार देखा। इस बीच मेरा मस्तिष्क ऑटोमेटिक मशीन की तरह सोचता रहा कि यह घटना किसकी हो सकती है।
मेरा मस्तिष्क बार बार उन नामी-गिरामी डाकुओं की ओर जा रहा था जो जंगलों और वीरानों में से गुजरने वाले हाईवे पर बड़े पैमाने की लूटपाट किया करते थे। इसके अतिरिक्त दो गिरोह भी थे जो कस्बों और देहातों में डाका डाला करते थे ।यह डाकू सेंध कम ही लगाया करते थे। वह दिलेर लोग थे पुलिस का बाकायदा मुकाबला करते थे।अंग्रेज भी उनके हाथों परेशान हो गए थे। हिंदुस्तान के कुछ इलाकों में ऐसे डाकू भी से जो चैलेंज करके आया करते थे। मेरे थाने के इलाके में ऐसे दो इश्तिहारी डाकू थे उनमें पर्वत नाम का डाकू अधिक खतरनाक था वह हत्या की ग्यारह, डाके की सत्रह, राहज़नी की बारह और अपहरण की पांच वारदातों में वांछित (वांटेड) था। दूसरा डाकू नरसिंह मोना था। यह दाढ़ी और सर के बालों के बगैर सिख था इसलिए उसे मोना कहते थे। वह भी हत्या डकैती रहजनी और अपहरण के प्रयास की वारदातों में वांटेड था। पर्वत और नरसिंह मोना के कार्यकलाप में सेंध शामिल नहीं थी ।सेंध में मुजरिमों के मुखबिर या घर के भेदी का उपस्थित होना आवश्यक होता है इस सेठ का भी कोई घर-भेदी था जो उसका अपना नौकर ही हो सकता था। उसे पकड़कर सरकारी गवाह बनाने से मेरी तफ्तीश समाप्त हो सकती थी।
मैंने सड़क से आगे खुरा उठाने के लिए दो कुशल खोजी भेजें और अपने देहाती मुखबिरों को भी उस इलाके में फैला दिया जहां पर्वत और मोना के आदमियों की उपस्थिति का संदेह था। चौथे दिन मेरे एक मुखबिर ने मुझे सूचना दी के नरसिंह मोने के एक मुखबिर ने उसे कहा है कि यह वारदात उनकी (मोनी के गिरोह की) नहीं है इसलिए हमारे खुरे ढूंढने में समय बर्बाद ना करो। मोनू ने भी कहा था - "मैं जब तुम्हारे शहर आऊंगा तो बता कर आऊंगा।" - मेरे मुखबिर ने मोने के मुखबिर से पर्वत के संबंध में भी पूछ लिया था उसने उत्तर दिया था - "तुम्हारे दारोगा का दिमाग खराब है उसे कहो कोई और नौकरी करें। पर्वत चोरों की तरह सेंध नहीं लगाया करता।"

कुर्ते उतरवा दिए

मुझे विश्वास हो गया। यह पेशेवर डाकू अपने आपको मुजरिम नहीं बल्कि अपने इलाके का बादशाह समझा करते थे। उनका एक कैरेक्टर था जो बात तौलकर करते और झूठ नहीं बोलते थे। मैंने उधर से अपना ध्यान हटा लिया। यहां यह ध्यान में रखिए के हत्या कोई भी व्यक्ति कर सकता है। ऐसे व्यक्ति भी हत्या कर डालते हैं जिन्होंने कभी मक्खी भी नहीं मारी। यह क्षणिक आवेश और प्रतिशोध से प्रेरित हो जाने का परिणाम होता है परंतु डाका और सेंध केवल पेशेवरों का काम होता है। चार दिनों में अर्थात मोने का संदेश आने से पहले मैंने शहर में अपनी तफ्तीश जारी रखी। सेठ से कढ़ाई बुनाई की वांछित सूचनाएं ले लीं। वारदात से अगली रात कांस्टेबल जिसे मैंने एग्जामिनर के पास भेजा था रिपोर्ट लेकर आ गया। मैंने पार्सल संभाल लिया और ए०एस०आई० से कहा कि सभी सजायाफ्ता और दूसरे रजिस्टर्ड बदमाशों और संदिग्ध व्यक्तियों को इकट्ठा करके ले आओ और देखो के इनमें से कौन नहीं है और वह कहां है। इस बीच सेठ से नौकरों की सूची मांगी। उसने बताया कि दुकान में एक मुंशी और चार नौकर हैं और एक नौकर घर में है।
"आपके घर में कितने व्यक्ति हैं ?"- मैंने पूछा - "उनकी आयु क्या है?"
"पत्नी है।" - उसने बताया - "एक बेटा आयु तेरा साल दूसरा बेटा आयु नौ साल और एक बेटी आयु साढे छह साल।"
यह उत्तर सुनकर में उसके मुंह की ओर देखता रहा। उसने मेरी नजरों से बचने के लिए इधर-उधर देखना शुरू कर दिया और जब उसने मेरी ओर देखा तो मैं अभी तक उसकी आंखों में देख रहा था। उसने मुझे संदेह में डाल दिया था जैसे वह घर के किसी व्यक्ति को छुपा रहा था या हो सकता है कि यह मेरा संदेह है ही हो।
मैंने उसे धीमे से स्वर मैं कहा - "आपने घर के सारे व्यक्ति बता दिए हैं ?"
"तो क्या आप का विचार है कि मैंने झूठ बोला है?" - आदमी होशियार और रौबीला था कहने लगा - "क्या आपको यह संदेह है कि मेरे घर में मेरी संतान ने डाका डाला है?"
"अभी मैं आपसे बीसियों ऐसी बातें पूछूंगा जिनसे आप घबरा जाएंगे।" - मैंने उसे शांति से कहा - "मुझे इस घटना की तफ्तीश करनी है जो आपके सहयोग के बिना संभव नहीं। मुझे तो अभी यह भी देखना है कि आपने गहनों की इंश्योरेंस तो नहीं कराई और क्या इंश्योरेंस की राशि प्राप्त करने के लिए यह सेंध आपका अपना ही कार्य तो नहीं?"
"जरा तमीज से बात करो इंस्पेक्टर ! - उसने मुझे डांट दिया - "तुम नये हो, मुझे जानते नहीं। मैं गवर्नर तक पहुंचने वाला आदमी हूं।"
मैं हंस पड़ा और उसका हाथ अपने हाथों में दबाकर कहा - "मेरे लिए यह कोई कठिन नहीं कि मैं आपको नहीं जानता। अलबत्ता आपको यह कठिनाई पेश आएगी कि आप मुझे नहीं जानते।" - मैं एकदम कुर्सी से उठा और स्वर में गंभीरता लाकर कहा - "आप जा सकते हैं और अपने व्यवहार में संतोष और शांति पैदा करने का प्रयास करें। आपको गहनों की एक एक आइटम और गुमशुदा राशि की पाई पाई वापस दिलाऊंगा। मैं गवर्नर तक पहुंचने वाला व्यक्ति नहीं हूं, मामूली सा दारोगा हूं परंतु आपकी यह शंका दूर कर देना चाहता हूं कि गवर्नर अपने कानून की सुरक्षा के लिए आपके साथ नहीं केवल मेरे साथ सहयोग करेगा।"
वह चला गया और मैंने उसके संबंध में यह राय कायम कर ली के आदमी अच्छे चरित्र का नहीं उस्ताद है और खिलाड़ी है। समान्य व्यक्तियों से भिन्न है। मैं चौकन्ना हो गया।
शाम के बाद शहर के अपराधियों और संदिग्ध व्यक्ति थाने पहुंचने लगे। उनकी संख्या अधिक नहीं थी। सारे शहर में वह कुल बयालीस थे जिनमें सोलह सजायाफ्ता थे।कांस्टेबल उन्हें ला रहे थे। रात दस बजे के बाद मुझे बताया गया के अंतिम व्यक्ति भी आ गया है। उनमें से छह नहीं थे कहीं बाहर चले गए थे या भूमिगत हो गए थे। मैंने सबको दो पंक्तियों में खड़ा करके कहा - "कुर्ते उतार दो।"
सब ने कुर्ते उतार दिए। मुझे अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। अगली पंक्ति में से सातवां व्यक्ति को मैंने बाजू से पकड़कर पंक्ति से अलग कर लिया और ए०एस०आई० से कहा - "इसे बंद कर दो।" - उसे उसी समय हवालात में बंद कर दिया गया।
मेरा काम बन गया। मैंने सेंध का एक आरोपी को पकड़ लिया था। दूसरों से केवल इतना कहा- "मैं तुम सबको सोचने का अवसर देता हूं। जाओ और सोच लो इस घटना का जो आरोपी है खामोशी से मेरे पास आ जाएगा तो मैं वादा करता हूं कि उसे सरकारी गवाह बना लूंगा। जाओ।" - वह सब चले गए।
मैंने जिसे बंद किया था उसके संबंध में अपने ए०एस०आई० से कहा कि वह कल इस आरोपी को सिविल सर्जन के पास ले जाए और उसके खून का ग्रुप और खून के संबंध में अन्य सूचनाएं एकत्रित करके रिपोर्ट ले ले। ए०एस०आई० ने बताया कि इस शहर में खून के इतने गहरे और विस्तृत जांच का विश्वसनीय प्रबंध नहीं। इसे वही ले जाना पड़ेगा जहां पार्सल वाली वस्तु का मुआयना कराया था। मैं नया था, मुझे अभी पता नहीं था कि इस शहर में जो दरअसल बड़ा कस्बा और बहुत बड़ी मंडी थी क्या क्या प्रबंध हैं और क्या नहीं है। मैंने उसे सरकारी चिट्ठी संबंधित एक्स्पर्ट के नाम लिख दी और एक चिट्ठी वहां के पुलिस हेड क्वार्टर के नाम लिखी कि यदि आरोपी को वहां रात भर के लिए रुकना पड़े तो उसे किसी थाने की हवालात में बंद करने का प्रबंध किया जाए। मैंने ए०एस०आई० से कहा कि एक कांस्टेबल को साथ ले जाए और आरोपी को हथकड़ी में ले जाए।
अगली सुबह मैं सेठ की दुकान पर चला गया। आढ़त की बहुत बड़ी दुकान थी। सेठ बाहर खड़ा था। रस्मी तौर पर मुझे मिला। मैंने पूछा - "यह मुंशी कब से आपके पास है?"
"बहुत समय से है।"
"एक साल, दो साल, चार साल----" - मैंने पूछा।
"मुझे याद नहीं।" - उसने मुझे टोक कर जवाब दिया और बोला - "यह बहुत शरीफ व्यक्ति है उससे कुछ पूछना बेकार है। मेरे घर के साथ इसका कोई संबंध नहीं है मैं इस पर ऐसा संदेह नहीं कर सकता कि यह घर का भेदी होगा।" - कुछ देर शांति के बाद उसने मुस्कुराकर व्यंग्यात्मक स्वर में कहा- "यह हिंदू है मुसलमान नहीं।" - यह चोट मैंने सहन कर ली।
मुंशी मुझे दुकान के दूसरे भाग में तख़्त पर बैठा नजर आ रहा था। मैं उसकी ओर चला तो सेठ भी साथ चल पड़ा। मैं रुक गया और उसे कहा कि वह मुझे अकेला छोड़ दे। उसने पहले तो कुछ दबदबे से बात करते हुए कहा - "आप मेरी एजेंसी में आए हैं मेरा साथ रहना आवश्यक है।" - मैंने जब अकेला रहने पर ज़िद की तो उसने अचानक अपना व्यवहार बदल लिया अपने एक नौकर को उसने बड़ी तीव्रता से दस का नोट दिया और उसे कहा - "भाग कर लेमन सोडे की एक बोतल लाओ और कुछ फल भी ले आओ।"
उसने मुझे कुछ दूर रखी हुई कुर्सी पर बिठा लिया और मित्रता पूर्ण स्वर में बोला - "मैं माफी चाहता हूं कि आप मेरी एजेंसी में आए और मैंने आपसे पानी भी नहीं पूछा।" - उसने अपने नुकसान की बातें प्रारंभ कर दी मैंने उसे कहा कि आप अपने जिस नौकर को शरीफ समझते हैं हो सकता है वह मेरी दृष्टि में संदिग्ध हो घर भेदी साधारणतया मुंशी हुआ करते हैं। मैं उठा और मुंशी के पास चला गया। उससे केवल यह सवाल पूछा - "तुम यहां कब से हो ?"
"अभी डेढ़ महीना भी नहीं हुआ।"- उसने उत्तर दिया।
"पहले कौन था ?"
"एक मुसलमान मुंशी था।" - उसने उत्तर दिया।
इतने में सेठ भी मेरी ओर आया। उसे मैंने उसे हाथ के संकेत से वही रोक दिया और मुंशी से पूछा - "वह कितना समय यहां रहा और वह क्यों और कहां चला गया है?"
"बहुत समय से वह यहां मुलाजिम था। - मुंशी ने उत्तर दिया - "सेठ ने उसे निकाल दिया है।"
"क्यों?"
"यह तो सेठ साहब ही बता सकते हैं।" - उसने कहा - "मेरा विचार है कि कोई गड़बड़ हो गई थी।"
"तुम सेठ के घर जाया करते हो?"
"नहीं जी।" - उसने उत्तर दिया - "अभी तक नहीं गया।"
"पहला मुंशी शायद जाता होगा।" - मैंने कहा - "तुम्हें तो पता नहीं होगा।"
"इन लोगों (मजदूरों) ने बताया था कि वह सेठ के घर जाया करता था।"

 


बहन लापता हो गई

 


इतने में लेमन की बोतल आ गई। मैंने पी ली और सेठ से कहा - "मैं आपके मुंशी और चारों नौकरों को साथ ले जा रहा हूं।"
उसने कहा कि उसका काम रुक जाएगा मैंने उसे बताया कि मेरी तफ्तीश नहीं रुक सकती उसके काम रूकते हैं तो रुके रहे.... मैंने उसकी तर्कों को अनदेखा करते हुए मुंशी और चारों नौकरों को बुलाया और कांस्टेबल से कहा कि उन्हें थाने ले चलो।
मुझे एक अंदेश तो यह था कि घर भेदी इन लोगों में ही ना हो। और दूसरा संदह सेठ ने यह कहकर उत्पन्न कर दिया था कि नया मुंशी बहुत समय से उसके पास है परंतु मुंशी ने कहा था कि वह डेढ़ महीने से यहां है। बाहरहाल सारा मामला संदेह पर चल रहा था। तफ्तीश बिल्कुल अरबी भाषा की तरह होती है ज़ेर और ज़बर के फर्क से मामला ही बदल जाते हैं अर्थ ही बदल जाते हैं। मैं ज़ेर और ज़बरों की कृपा-दृष्टि पर चल रहा था।
सेठ के उन पांचों कर्मचारियों से जो जानकारियां प्राप्त हुई वह यह थी कि पहला मुंशी मुसलमान था और आठ साल से सेठ के पास था। वह सेठ के घर जाया करता था। शाम के समय उसके बच्चों को पढ़ाया करता था। सेठ को उस पर बहुत विश्वास था इतना अधिक के पचास-पचास हजार कैश बैंक में ले जाता और लाता था। कोई डेढ़ महीना हुआ सेठ और मुंशी में कोई ऐसा झगड़ा हो गया जिस के संबंध में किसी को पता नहीं क्या था। मुंशी ने जाते-जाते सेठ को यह धमकी दी थी - "सेठ होशियार रहना।" -उसके पश्चात वह कहीं नजर नहीं आया।
मुझे मैदान में बिखरे हुए ट्रंकों इत्यादि के पास से दो तस्वीरें मिली थी जो कढ़ाई बुनाई की एक किताब में रखी थी। मैंने एक तस्वीर जो सेठ की फैमिली ग्रुप फोटो थी जानबूझकर सामने ना की दूसरी तस्वीर जो पासपोर्ट साइज थी, उन कर्मचारियों को दिखाई। सबने एक स्वर कहा -" यह उस मुंशी की तस्वीर है।"
अब आप ध्यान दीजिए कि मुसलमान मुंशी की तस्वीर सेठ के घर में रखे हुए एक ट्रक में पड़ी थी और यह कढ़ाई बुनाई की एक किताब में से बरामद हुई। यह तो आप जानते होंगे कि कढ़ाई बुनाई की किताबें केवल औरतें अपने पास रखती हैं मर्दो का उसके साथ कोई संबंध नहीं होता। इससे प्रतीत होता है कि मुसलमान मुंशी की सेठ के घर में आवश्यकता से अधिक घुसपैठ थी। सेठ की एक ही बेटी थी जिसकी उम्र साढ़े छह साल थी। सेठ की पत्नी की उम्र तीस और पैंतीस के मध्य थी। तो क्या मुंशी और सेठानी के गुप्त संबंध थे? क्या उसकी तस्वीर सेठानी ने कढ़ाई बुनाई की किताब में छुपा कर रखी हुई थी?
यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में आए परंतु मुझे दिलचस्पी केवल इस सवाल के साथ थी, क्या मुसलमान मुंशी घर का भेदी था और यह सेंध उसी की अगुवाई से हुई ? उसने सेठ को धमकी दी थी के सेठ होशियार रहना। दूसरी तस्वीर में एक भेद था। वह मैंने उन्हें ना दिखाई ।यह मेरा विचार था कि इसमें एक भेद है यह मेरा भ्रम भी हो सकता था। उन कर्मचारियों में केवल एक था जिसे मुसलमान मुंशी के घर के संबंध में पता था। चारों देहाती थे बाहर से आया करते थे।
उन्हें फ्री करके मैं उस आबादी में चला गया जहां बताया गया था के मुसलमान मुंशी रहता है। थोड़ी कठिनाई से मुझे उसका मकान मिला परंतु बाहर ताला लगा हुआ था। मोहल्ले वालों से पूछा तो मुझे बताया गया कि लगभग पच्चीस दिन बीते मुंशी कहीं चला गया है। यह उसका अपना मकान था। उसमें उसके मां-बाप वह खुद और उसकी एक छोटी बहन रहती थी। एक साल बीता बाप मर गया और तीन-चार महीने बाद मुंशी की मां भी मर गई । मुंशी और उसकी बहन रह गए।
मुंशी दस कक्षा पास था। पास होते ही इस सेठ के पास मुंशी लग गया था। उस समय मुंशी की उम्र पच्चीस-छब्बीस साल थी। उसकी बहन की उम्र बी-बाईस साल थी। बहन के संबंध में मुझे बताया गया कि शरीफ और पर्दे वाली लड़की थी। परंतु मुंशी का मेलजोल शहर के संदिग्ध लोगों के साथ था। जुआ भी खेलता था। रौब वाला व्यक्ति था। मोहल्ले में उसने कभी बदमाशी नहीं की थी ना ही उसके विरुद्ध किसी को कोई शिकायत थी।
डेढ़ महीना बीता उसकी बहन कहीं बाहर निकली और आज तक वापस नहीं आई। मैंने उन लोगों से बहुत बहस की किसी ने भी संदेह तक ना.जताया कि लड़की ऐसी वैसी थी। सब कहते थे कि लड़की सुंदर थी और अत्यंत शरीफ थी। अड़ोस पड़ोस की लड़कियों से के अलावा उसका मेलजोल किसी के साथ नहीं था। अक्सर ऐसा होता था के लोग मन-घड़ंत किस्सों से दूसरों को बदनाम कर दिया करते हैं। यह लड़की घर से गायब हो गई थी फिर भी उसके मोहल्ले वाले उसकी प्रशंसा कर रहे थे। यह प्रमाण था कि लड़की सच में ही शरीफ थी।
उसके जाने के बाद मुंशी बहुत परेशान रहा। बहन को तलाश करता रहा परंतु वह उसे ना मिली। मोहल्ले वालों ने उसे कहा कि वह थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दे। पता नहीं वह थाने गया था या नहीं। यह इलाका हिंदू बहुल था। दस घरों के मध्य एक मुसलमान का घर था। मोहल्ले वाले मुंशी की कोई सहायता ना कर सके। कोई पच्चीस दिन बीते मुंशी भी कहीं चला गया और फिर वापस नहीं आया।
मेरे आस पास बहुत से लोग एकत्रित हो गए थे। उनसे मुझे अधिक से अधिक जानकारियां मिलने लगीं। दो संदिग्ध चरित्र के व्यक्तियों का पता चला जिनसे मुंशी का मेलजोल था। मैंने उन लोगों से पूछा कि जब मुंशी की बहन गायब हुई तो उसके बाद उसने कभी सेठ के विरुद्ध बात की थी?
एक व्यक्ति ने बताया कि उसने एक दिन मुंशी से पूछा था कि बहन का कुछ पता चला है या नहीं। उसने कहा कि नहीं। फिर बातों बातों में उसने सेठ को गालियां दी थी और कहा था कि इस सेठ को नहीं छोडूंगा। उसने यह नहीं बताया था कि सेठ के साथ उसकी क्या गड़बड़ हो गई थी। उसने सेठ की नौकरी छोड़ दी थी।
मैं थाने चला गया और इस उन दो संदिग्ध चरित्र के व्यक्तियों को बुलवाया जिनके साथ मुंशी का मेलजोल था। उनके आने तक मेरे मस्तिष्क में यह प्रश्न आए के मुंशी की बहन गायब है, सुंदर है। क्या हिंदू सेठ ने उसे किडनैप कराया होगा ? संदेह इसलिए उत्पन्न हुआ था के मुंशी सेठ को धमकी देकर निकला था और एक मोहल्ले वाले से भी उसने कहा था कि इस सेठ को नहीं छोडूंगा। मुंशी ने अपनी बहन के लापता होने की बाद नौकरी छोड़ दी थी।
दूसरा यह प्रश्न मेरे सामने आया कि सेठ ने मुसलमान के स्थान पर हिंदू मुंशी रखने के लिए मुसलमान को नौकरी से निकाल दिया होगा। मुसलमान मुंशी क्योंकि गुंडे बदमाश की मंडली का आदमी था इसलिए उसने सेठ को धमकी दी थी। तो क्या सेठ के घर सेंध लगवाना प्रतिशोध की कार्यवाही थी?
मुंशी घर का भेदी अवश्य था यह सेठ के घर जाता था। दो घंटे रोज उसके बच्चों को पढ़ाता था इसीलिए ट्रंक वही निकाले गए जिनमें माल था। परंतु कढ़ाई बुनाई की किताब से मुंशी की तस्वीर की बरामदगी मेरे मस्तिष्क में कुछ और संदेह पैदा कर रही थी वह और फिर एक यह संदेह भी मेरे मन में आ रहा था कि मैं कहीं अकारण ही तो संदेह में नहीं उलझ गया।
वह दो व्यक्ति आ गए जिन्हें मैंने बुलवाया था। यह दोनों पिछली रात भी आए थे। उन्होंने स्वीकार किया कि मुसलमान मुंशी का उनके साथ मेलजोल था। मुंशी कभी-कभी जुआ खेला करता था। चोरी का आदी नहीं था, उसने कभी शराब और चरस नहीं पी थी। वह सिगरेट भी नहीं पीता था। बदमाशों में उसका प्रभाव था। लटृठबाज़ और घूंसेबाज़ था। इन दोनों ने यह रहस्योद्घाटन किया कि सेठ को गुंडों की आवश्यकता रहती थी।यह दोनों सेठ से कभी-कभार पैसे लेते थे और यह पैसे उन्हें मुंशी के द्वारा मिलते थे। उन दोनों के अतिरिक्त चार और उन्हीं के प्रकार के व्यक्ति थे जो सेठ के इशारे पर हर काम कर गुजरने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। उन सब में केवल एक हिंदू था बाकी सब मुसलमान थे।
मैंने उन दोनों में से एक को अपने पास रखा दूसरे को भेज दिया। यह एक बार का सजायाफ्ता था। उसने एक दुकान का ताला तोड़ा था। मैंने उसे सीधे शब्दों में कह दिया कि यदि वह इस का साथी सेध में शामिल था तो बोल दे, मैं उसे सरकारी गवाह बना लूंगा। उसने अनभिज्ञता का प्रदर्शन किया। इस प्रकार के अपराधी को पुलिस बहुत अच्छी तरह पहचानती है। उनके इंकार का एक विशेष ढंग होता है। यदि इंस्पेक्टर होशियार हो तो वह इस इंकार से स्वीकार की गंध पा लेता है परंतु इस व्यक्ति का इनकार सही प्रतीत होता था। उसे मैंने चार घंटे अपने साथ रखा और बहस करके उसका बुरा हाल कर दिया।
यह व्यक्ति मुंशी के संबंध में काफी कुछ जानता था। मैंने उससे पूछा कि क्या उसे पता है कि सेठ के साथ मुंशी की क्या गड़बड़ हो गई थी। उसने कुछ रहस्योद्घाटन किए परंतु उसे यह पता नहीं था कि मुंशी कहां चला गया है। मैंने उससे कुछ और आवश्यक बातें पूछीं और उसे भी छुट्टी दे दी। मैंने मुंशी के घर की तलाशी आवश्यक समझी। काग़जी खानापूर्ति करके मैंने मजिस्ट्रेट को और मोहल्ले के दो होशियार व्यक्तियों को साथ लेकर मुसलमान मुंशी के मकान का ताला तोड़ा। यह तीन कमरों का मध्यम आकार का मध्यम वर्गीय मकान था। आम प्रकार का घरेलू सामान पड़ा था। ट्रंक अधिक नहीं थे।
मैंने बहुत सावधानी से तलाशी ली। एक अलमारी में कुछ कपड़े किताबें और कुछ पुराने समाचार पत्र रखे थे। मैंने उन किताबों को देखना शुरू किया। यह सब नॉवेल थे। एक नॉवेल में से एक तस्वीर गिरी। मैंने उठा ली। ऐसी तस्वीर मैं पहले भी देख चुका था। भेद कुछ-कुछ खुलता जा रहा था। तस्वीर की दूसरी ओर हिंदी में एक वाक्य लिखा था। मैं हिंदी नहीं पढ़ सकता था। मजिस्ट्रेट से पढ़वाया ।लिखा था- 'भगवान के बाद तुम हो।' - तस्वीर ने मुझे चौंका दिया और ऐसे लगा जैसे मेरा बुखार उतर गया हो। मुझे प्रसन्नता इस पर हुई के मैं गलत लाइन पर नहीं जा रहा था। मैंने तस्वीर की बरामदगी का मुशीर नामा तैयार किया और जिन दो व्यक्तियों को मैंने साथ रखा था उन पर उनके हस्ताक्षर लिए।
मैंने मकान के भीतर के दरवाजे बंद करके लाख से सील बंद कर दिए। फिर बाहर के दरवाजे के साथ अपना ताल लगाकर सील कर दिया। कांस्टेबल से कहा के सेठ से जाकर कहो कि तुरंत थाने पहुंचे। मैं थाने चला गया। ए०एस०आई० आरोपी को जिला मुख्यालय में ले गया था उन्हें अगले दिन वापस आना था। अब मेरा और सेठ का आमना सामना था। मैंने उसके आने तक मस्तिष्क पर बल देकर सवाल सोचता रहा और सवालों के संकेत कागज पर लिख लिए।

 

 

विमला जवान थी

 


सेठ आ गया। मैंने उसे सम्मानपूर्वक बिठाया और पूछा - "आपके घर में कितने व्यक्ति हैं ?उनकी विस्तार से जानकारी दें।"
"इस प्रश्न का उत्तर में आपको दे चुका हूं।" - उसने कहा - "आपका कर्तव्य है कि ऐसी जानकारियां नोट कर लिया करें।"
"नोट करने की आवश्यकता नहीं।" - मैंने कहा - "मुझे आपके उत्तर ज़बानी याद हैं। एक पत्नी, एक बेटा उम्र तेरह साल, दूसरा बेटा उम्र नौ साल और एक बेटी उम्र साले छह साल।"
"दोबारा यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता क्यों हुई?"
"आवश्यकता यह हुई कि आप अपने परिवार के एक विशेष व्यक्ति को भूल गए हैं।" - मैंने कहा - "यदि वह व्यक्ति मर चुका है तो और बात है।"
"आप मुझसे सीधी-सीधी बात क्यों नहीं करते ?" उसने कहा - "आप क्या पता करना चाहते हैं?"

"सेठ साहब।" - मैंने शांति से कहा - "मैं आपको याद दिलाना आवश्यक समझता हूं कि आप आढ़त की एजेंसी में नहीं थाने में बैठे हैं। मैं आपका सेवक हूं, मेरा बिल्कुल भी सम्मान ना करें,कानून का सम्मान करें। मेरा कर्तव्य बहुत ही अप्रिय है। मेरे साथ सहयोग करें।"
"भाई साहब !" - उसने कहा - "मैंने आपको घर के जो व्यक्ति बताए थे वही हैं। इन दो-तीन दिनों में मेरी संतान में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।"
"आपके सारे बच्चे जिंदा हैं ?" - मैंने पूछा - "कोई मरा तो नहीं?"
"नहीं।"
"विमला कहां है?" - मैंने आगे होकर भेद भरे सवर में पूछा।
उसके चेहरे का रंग लाश की तरह हो गया। वह था तो होशियार व्यक्ति, परंतु सूरज को दुनिया की नजरों से छुपाने का प्रयत्न कर रहा था। मैंने उसे संभलने ना दिया और पूछा - "सेठ साहब ! आपकी बेटी विमला कहां है?"
"कौन विमला?" - उसने कांपते स्वर में पूछा।
मैंने वह फैमिली ग्रुप फोटो उसके आगे रख दी जो मुझे किताब में से मिली थी। उसने फोटो टेबल से उठानी चाही परंतु मैंने पीछे कर ली और उस फैमिली ग्रुप फोटो की एक और कापी उसके सामने रख दी। यह मुझे मुसलमान मुंशी के घर से एक नॉवेल में से मिली थी। मैंने सेठ को उस कापी की विपरीत अवस्था दिखाई। हिंदी में लिखा था 'भगवान के बाद तुम हो, विमला'- कढ़ाई बुनाई की किताब पर भी यह वाक्य लिखा हुआ था।
सेठ बहुत कसमसाया परंतु संभल गया। मैंने उसे अभी यह नहीं बताया था कि उसकी जवान बेटी की किताब में से उस मुसलमान की फोटो भी निकली है।
वह संभल कर बोला - "मिस्टर ख़ान ! मैं आपसे पहले भी कह चुका हूं कि अपनी तफ्तीश को चोरी की इस घटना तक सीमित रखें। मैं कानून शायद आप से अधिक जानता हूं। मेरे बीवी बच्चों के साथ आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए। यह जवान लड़की जो ग्रुप फोटो में है मेरी कुछ लगती है या नहीं उसका घटना के साथ कोई संबंध नहीं है। मैं जब आपसे कहूंगा कि मुझे इस लड़की पर संदेह है तब आप मुझसे पूछना कि यह कौन है और कहां रहती है। फिर मैं आपको उसके संबंध में सारी जानकारी दे दूंगा।"
"आपने पहले मुंशी को नौकरी से क्यों निकाला है?" - मैंने पूछा।
"वह बेईमान था।" - उसने कहा - "अमानत में खयानत करने वाला था।"
"उसकी खयानत क केवल एक उदाहरण दीजिए।" - मैंने कहा - "परंतु अब यह सावधानी अवश्य कीजिएगा के आपके मुंह से निकला हुआ कोई भी शब्द आपके विरुद्ध प्रयोग किया जा सकता है। मैं एक बार फिर पूछता हूं कि यह लड़की कौन है?"
"मैं नहीं जानता यह कौन है?" - उसने उत्तर दिया - "मेरा घर लुट गया है और आप लड़कियों के चक्कर में पड़े हुए हैं।"
"आपकी बेटी विमला कहां है?" - मैंने पूछा।

"माना के यह लड़की मेरी बेटी है तो क्या उसने मेरे घर डाका डाला डलवाया है?"
"आपके घर में जो कुछ भी होता रहा है मुझे उससे कोई मतलब नहीं।" - मैंने कहा - "डाके के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। यदि आप अपनी रिपोर्ट वापस ले लेंगे और कहेंगे कि आपके घर सेंध नहीं लगी और कोई नुकसान नहीं हुआ तो भी मैं अपनी तफ्तीश पूर्ण करूंगा और सुनो सेठ !" - मैंने रौब से कहा - "मुझे अभी आपसे ऐसे प्रश्न पूछने हैं कि आपकी सारी सामाजिक स्थिति एक सेकंड में समाप्त हो जाएगी। मैंने एक अपराधी को गिरफ्तार कर लिया है। होश में आओ सेठ।"
वह घबराहट की अवस्था में इधर-उधर देखने लगा।फिर कहने लगा - "मुझे विचार करने का समय दे सकते हो?"
"क्यों नहीं ?" - मैंने कहा - "आप आरोपी तो नहीं। आप निसंदेह घर चले जाएं। आराम से सोचें।" - मैंने उसे जाल में फांसने के लिए उसके मस्तिष्क से बोझ उतार देना चाहा और कहा - "आपने कहीं सेंध नहीं लगाई बल्कि आपके घर में सेंध लगी है। मुझे अपराधियों को पकड़ना है और आपका माल बरामद करना है।" - मुझसे एक भूल हो गई। मैंने यह सोचा कि इस मित्रता पूर्ण स्वर में उसे धमका भी दिया जाए मैंने कहा - "मैं आपको यह बता देना भी आवश्यक समझता हूं कि मुझे कुछ ऐसी बातें प्रमाण सहित पता चली है जो घटना से आपका संबंध जोड़ती हैं। यदि मुझे अपने मन में छुपी हुई बातें भी बता देंगे तो हम दोनों के लिए उचित होगा।"
यह सही है कि मैंने उस पर फेंकने के लिए दो बम रखे हुए थे। परंतु मुझे यह संकेत नहीं देना चाहिए था जो मेरे मुंह से निकल गया था। मुझे बिल्कुल अनुभव नहीं था कि मैं ऐसे व्यक्ति को धमकी दे रहा हूं जो मेरे विरुद्ध जुलूस भी निकलवा सकता है। उसका परिणाम शाम को सामने आ गया। मैं थाने में बैठा था के कुछ हिंदू आए उनमें सेठ भी था। उसने परिचय कराया। उनमें एक उस जिले का कांग्रेस पार्टी का मुखिया था और बाकी दूसरे राजनीतिक व्यापारी थे। उनके साथ बहुत सी बातें हुई जिनका सारांश यह है कि वह मुझ पर यह आरोप लगा रहे थे कि मैं क्योंकि मुसलमान हूं इसलिए मैं एक हिंदू सेठ और व्यापारी को परेशान कर रहा हूं। मैंने उनसे बहुत बहस की परंतु उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि वह अभद्रता पर उतर आए थे। उन्होंने मेरी तफ्तीश को हिंदू-मुस्लिम का रंग दे दिया।
एक लीडर ने कहा - "आप इस शहर में जाने कहां से आए हैं यदि आपसे इस घटना के अपराधी नहीं पकड़े जाते तो जवाब दे दे।"
वह मुझे भड़काने का प्रयास कर रहे थे ताकि में उल्टी-सीधी बातें कर दूं और वह अपने आरोप सही सिद्ध करें। परंतु मुझे अपने आप पर पूरा कंट्रोल था।
एक ने कहा - "इन से ऐसे प्रश्न पूछो जिनका संबंध घटना से है।"
"लाला जी !" - मैंने कहा - "मैं ट्रेनिंग लेकर थानेदार बना था, मुझे अधिक ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं। मैं वह प्रश्न पूछूंगा जो मैं सही समझूंगा। मैं जो कुछ पूछना चाहूंगा वह मैं अवश्य पूछूंगा।"
"हम कमिश्नर के पास जा रहे हैं।" - लीडर ने कहा - "आप एक हिंदू लीडर लीडर को परेशान कर रहे हैं जिसका एक लाख का नुकसान हो गया है और आप उन्हें केवल इसलिए परेशान कर रहे हैं कि अपराधी मुसलमान हैं, आप उन्हें पकड़ना नहीं चाहते।"
"आप कमिश्नर के पास जाइये।"- मैंने उठते हुए कहा - "मैं आपके साथ और कोई बात नहीं करूंगा।"
उन्होंने आपस में मंत्रणा की ओर एक ने टेलीफोन पर हाथ रखकर दूसरों से कहा - "मैं कमिश्नर के लिए काल यहीं से बुक कर लेता हूं।"
मैंने टेलीफोन अपनी ओर खींच कर कहा - "यह आपका दफ्तर नहीं पुलिस स्टेशन है।जाइए किसी प्राइवेट फोन पर कॉल बुक कराइये।"
मैं यह नहीं समझ सका के सेठ ने अपनी करतूत पर पर्दा डालने के लिए इन सबको प्रयोग किया था या यह सब मुझे अपमानित करना चाहते थे। खैर में जो कुछ समझ सका वह यह था कि यदि मैं इन लोगों से डर गया तो पुलिस इंस्पेक्टर की हैसियत से काम नहीं कर सकूंगा। जिस प्रकार ये नेता एकजुट होकर मुझ पर हमला करने आए थे इसी प्रकार मुझे अकेले उनका मुकाबला करना था। वह मुझे कमिश्नर की धमकी देकर चले गए।
उनके जाने के बाद मैंने टेलीफोन का रिसीवर उठाकर एक्सचेंज को मिलाया। ऑपरेटर से कहा कि मैं थाना इंचार्ज बोल रहा हूं एस०पी० साहब की काल बुक कर लो परंतु तुरंत मिला दो। यदि वह दफ्तर में ना हो तो उनके घर का नंबर मिला दो। यह एस०पी० अंग्रेज था। एक देसी थानेदार की एक अंग्रेज एस०पी० के सामने कोई हैसियत नहीं थी। परंतु मुझे यह पता था कि अंग्रेज अपने कानून की सुरक्षा के लिए सब कुछ भूल जाते हैं।
एक्सचेंज कुछ ही देर में मुझे एस०पी० के पी०ए० से मिला दिया। वह भी अंग्रेज था। जब उसे पता चला कि एक थाने का एस०एच०ओ०, एस०पी० से बात करना चाहता है तो उसने पूछा - "क्या तकलीफ है तुम्हें?"
मैंने कम से कम शब्दों में उसे सेंध की घटना के संबंध में बताया और शिकायत की कि यहां के नेता मुझे थाने में आकर धमकियां दे गए हैं। मैं प्रमाणित कर सकता हूं कि इस घटना के अंदर भी एक और घटना है। मैं केवल यह आदेश लेना चाहता हूं कि मैं उन नेताओं को प्रसन्न करूं या कानून को।
पी०ए० ने कोई और प्रश्न किए बिना मुझे एस०पी० से मिला दिया। उसका नाम ए०सी० कैंपबेल था। उसे पुलिस के पुराने अफसर कम ही जानते होंगे। वह नया नया इंग्लैंड से आया था। सुना था कि पन्द्रह साल पहले वह इस्पेक्टर के पद पर हिंदुस्तान में रह चुका था और बहुत ही अच्छी उर्दू बोलता था। उसमें खराबी यह थी कि हिंदुस्तानियों से बहुत घृणा करता था। किसी भी मुसलमान हिंदू और सिख नेता का नाम भी नहीं सुनना चाहता था। वह एस०पी० इंग्लैंड चला गया था।.पन्द्रह साल बाद वह एस०पी० के पद पर फिर हिंदुस्तान में आया और उसे मेरे थाने वाला ज़िला दिया गया।
अब यहां की राजनीतिक दशा कुछ और थी। विश्वयुद्ध का जमाना था। अंग्रेज अब हिंदुस्तानियों को फौज में भर्ती की खातिर प्रसन्न रखना चाहते थे परंतु कैंपबेल साहब का ढंग वही था जो पन्द्रह साल पहले था। वह केवल चार महीने हिंदुस्तान में रहा फिर उसे वापस भेज दिया गया था। उसके पीए ने मुझे उससे मिला दिया तो मैंने उसे वही बातें बताईं जो उसके पी०ए० को बता चुका था। सारी बातें सुनकर उसने कहा - "मैं कल आ रहा हूं।"

 


मैंने बम फेंक दिया

 


दूसरे दिन साढ़े नौ बजे वह अचानक पहुंच गया। मुझे आशा नहीं थी कि वह इतनी जल्दी आ जाएगा। मेरी कुर्सी पर बैठ कर उसने कहा - "बहुत जल्दी जल्दी बताओ के क्या मामला है ?" - मैंने बता दिया। परंतु जो बातें अभी छुपा के रखी हुई थी वह ना बताईं। यही बेहतर समझा उसने कहा- "उन सब को तुरंत बुलाओ।" - मेरा ए०एस०आई० आरोपी को ले गया लेकर गया हुआ था। मैंने हेड कांस्टेबल से कहा कि मैं अभी उन नेताओं के घर इत्यादि से परिचित नहीं हूं। उन्हें ढूंढो और तुरंत थाने ले आओ। हेड कांस्टेबल पुराना आदमीथा। मैं उसकी फ़ुर्ती की दाद देता हूं। उसने आधे घंटे में पांचों नेताओं को सेठ सहित थाने में इकट्ठा कर लिया। अपने सामने बिठाकर एस०पी० ने उनसे पूछा- "तुम्हें इस इंस्पेक्टर के विरुद्ध क्या शिकायत है?"
लीडरों के मुखिया ने कहा - "यह मुसलमान होने के कारण हिंदुओं के नुकसान पर प्रसन्न है। तफ्तीश में टालमटोल कर रहा है। अपराधियों को पकड़ने के स्थान पर लड़कियों के चक्कर में पड़ा हुआ है। इसे इतना अभी पता नहीं कि जिसके घर डाका पड़ा है वह कितना बड़ा आदमी है और वह कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य है। इसे आदेश दिया जाए के ढंग से तफ्तीश करें और शरीफ और सम्मानित लोगों को बार-बार थाने बुलाकर परेशान ना करें।"
एस०पी० ने मेरी ओर देखा। मैंने कहा - "वह एस०एच०ओ० यहां से चला गया है जो तफ्तीश में टालमटोल किया करता था। मैंने सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहा - "तुम भली प्रकार जानते हो कि उसने एक लड़की के अपहरण का केस रजिस्टर नहीं किया था क्योंकि वह लड़की मुसलमान थी।"
"तुम उस लड़की की बात को छोड़ दो।" - एक नेता ने कहा - हम सेंध के इस केस की बात कर रहे हैं।"
"मैं भी इसी केस की बात कर रहा हूं।" - मैंने बम फेंक दिया जो किसी और अवसर.के लिए रखा हुआ था। मुझे मुसलमान मुंशी का अपराधिक प्रवृत्ति वाला दोस्त बहुत कुछ बता गया था। मैंने कहा - "सेंध के इस केस के साथ उस लड़की के अपहरण का गहरा संबंध है।"
मुझे अभी पूरी तरह विश्वास नहीं हुआ था कि मुझे जो जानकारियां मिली हैं वह सही भी है या नहीं।वह दो तस्वीरें मुझे साहस दे रही थी। यह केवल मेरा आत्मविश्वास और अनुभव था कि मैंने एक आरोप तोप की तरह दाग़ दिया। मैंने कहा - "जब तक यह लड़की बरामद नहीं होगी सेंध की वारदात की तफ्तीश पूर्ण नहीं होगी।"
"सेंध मेरे घर में लगी है। सेठ ने कहा - "मैं किसी ऐसी लड़की को नहीं जानता जिसका संबंध मेरे घर से हो।"
"आप उसे अच्छी तरह जानते हैं।" - मैंने उसे कहा और फिर एस०पी० की ओर देखकर कहा - "साहब वह लड़की इस सेठ में किडनैप कराई है। इससे आप यह पूछे कि इसकी अपनी बेटी कहां है?"
सब पर सन्नाटा छा गया। मैंने एक मुसलमान कांस्टेबल और ईसाई मुहर्रिर को बुला लिया। मैं उनसे मुसलमान लड़की के किडनैप के संबंध में कुछ जानकारी की पुष्टि करा चुका था। यह मेरे यहां आने से पहले की घटना थी। उसकी ईसाई मुहर्रिर से मैंने कहा कि साहब बहादुर को बताओ कि पहले एस०एच०ओ० ने मुसलमान लड़की के अपहरण का केस रजिस्टर नहीं किया था। उसने सुना दिया कि एक मुसलमान यह रिपोर्ट देने आया था कि उसकी अविवाहित बहन लापता हो गई है। उसने इस सेठ पर शंका की व्यक्त की थी। एस०एच०ओ० ने उस मुसलमान को पहले टाला फिर डराया और बाद में यह कहकर थाने से निकाल दिया कि तुम्हारी बहन अपनी इच्छा से किसी के साथ चली गई है।
एस०पी० ने पूरी बात सुनी। वह समझ गया कि इस केस में कोई और गड़बड़ है। उसने नेताओं को अपनी आदत के अनुसार बड़ी बुरी तरह डांट कर बाहर निकल जाने को कहा। वह सब उठकर बाहर को चले तो मैंने सेठ का बाजू पकड़कर कहा - "आप यही रहें। मुझे आप की आवश्यकता है।"
मैंने कांस्टेबल को बुलाकर कहा कि सेठ साहब को अपने साथ ले जाओ और अगले आदेश तक अपने साथ ही रखो। हेड कांस्टेबल उसे अपने कमरे में ले गया एस०पी० के साथ एक अंग्रेज इंस्पेक्टर भी था। एस०पी० ने मुझसे थाने के पहले थानेदार का नाम पूछ कर अपने इंस्पेक्टर को नोट कराया और आदेश दिया कि उसे तुरंत सस्पेंड करके इंक्वायरी शुरू करो। एस०पी० ने मुझे कहा कि मैं उसके विरुद्ध गवाहियां तैयार करूं। उसने मुझसे पूछा कि लड़की के किडनैप का सेंध से क्या संबंध है?
मैंने उसे वह फोटो दिखाएं जो मैदान में पड़े हुए ट्रंक के पास से किताब में से बरामद हुए थे और वह फोटो भी जो मुसलमान मुंशी के घर से नॉवेल से बरामद हुआ था। विमला सेठ की जवान बेटी थी। मुंशी की उम्र पच्चीस-छब्बीस साल थी। वह अच्छा आकर्षक जवान था। उसकी तस्वीर विमला ने अपनी किताब में रखी हुई थी। विमला के पास अपनी अकेली शायद कोई तस्वीर नहीं थी। उसने अपना फैमिली ग्रुप फोटो उसे दे दिया था और पीछे लिखा था - 'भगवान के बाद तुम हो' - इस वाक्य के नीचे विमला ने अपना नाम लिखा था।
मुंशी के अपराधी दोस्त की सूचना के अनुसार हिंदू सेठ ने मुंशी की बहन को किडनैप करा दिया था। उधर विमला लापता थी जिसे प्रत्यक्ष है कि मुंशी ले गया था। मेरे संदेह के अनुसार सेंध मुंशी ने लगवाई थी और यह प्रतिशोध की प्रतिक्रिया थी। अब देखना यह था कि इस घटना में विमला का भी हाथ था या नहीं और मैंने सूचनाओं और संदेह को ईटों की तरह जोड़कर जो इमारत बनाई थी वह कितनी मजबूत थी। मैंने यह सारी गवाहियां एस०पी० को सुना दीं और उसे कहा कि मुंशी की बहन बरामद हो ना हो मुझे मुंशी की तलाश है। मैंने उसे यह भी बता दिया कि एक आरोपी को मैंने ख़ून की जांच के लिए संबंधित विशेषज्ञ के पास भेजा हुआ है।

 


ईंट पर खून

 


एस०पी० दरअसल यह देखना चाहता था कि मेरे विरुद्ध सेठ ने जो आरोप लगाया है वह सही है या नहीं ? मैंने उसे संतुष्ट कर दिया उसने मेरा उत्साहवर्धन किया और चला गया।
उसके जाने के कुछ समय पश्चात मेरा ए०एस०आई० आरोपी को लेकर वापस आ गया। उसने उसके खून की विस्तृत रिपोर्ट की एक नकल मुझे दी। मैंने उसे पहली रिपोर्ट से मिलाया। खून का ग्रुप और दूसरी सारी बातें समान थीं। उस आरोपी की गिरफ्तारी का कारण यह था कि मैं जब सेठ की रिपोर्ट पर उसके साथ घटनास्थल पर गया था तो मैंने दीवार में लगी हुई सेंध यानी छेद को ध्यानपूर्वक देखा था।
वहां मुझे कोई सूत्र ना मिला। छेद के पास मुझे ईंट का एक छोटा सा टुकड़ा दिखा जिसकी लंबाई तीन इंच से कुछ कम थी। यह त्रिकोण आकार का था। उसकी नोक चाकू की तरह थी। उस की नोक पर मुझे कुछ लालिमा नजर आई। उठाकर देखा तो संदेह हुआ के यह खून हो सकता है। सुंधा तो गंध भी खून जैसी प्रतीत हुई।
ऐसी वस्तुएं जिन्हें अक्सर नजरअंदाज (उपेक्षित) कर दिया जाता है बहुत काम की चीजें होती हैं। उन्हें देखने के लिए पैनी दृष्टि चाहिए। मैंने यह टुकड़ा हाथ में लेकर दीवार के छेद को पुनः ध्यान से देखा। ईंटें साबुत निकाली गई थीं। सेंध में ईंटें साबुत ही निकाली जाती हैं परंतु उस वारदात में एक ईंट टूट गई थी। अगला भाग निकल गया था पिछला भाग दीवार में ही रह गया था। यह इस प्रकार टूटी थी कि उसका जो भाग दीवार में रह गया था उसकी नोक बन गई थी। मैंने अपने हाथ में पकड़ा हुआ छोटा सा नुकीला टुकड़ा उसके आगे रखा तो यह एक स्थान पर फिट आ गया।
मैंने देखा कि जब यह टुकड़ा ईंट के साथ था तो छेद के मार्ग में आता था। मैंने यह सोचा कि पहला व्यक्ति इस छेद से रेंग कर अंदर गया तो इस नोक ने उसके कंधे या बाजू को घायल कर दिया होगा। उस की नोक पर लालिमा इसी व्यक्ति के खून की होगी। उसने खुद या अपने किसी साथी से कहकर उस औजार से यह नोक तोड़ दी होगी जिससे ईंट निकाली गई थी।
इस प्रकार यह टुकड़ा छेद से अलग हो गया। ईंट चूंकि जमीन के साथ थी और बहुत ही पुरानी थी इसलिए उसमें नमी थी। नमी के कारण ईंट के टुकड़े ने सूखी ईंट की भांति खून सोखा नहीं था। मैंने उसी समय यह टुकड़ा ए०एस०आई० को देकर उसे कहा था कि उसे सुरक्षित प्रकार से किसी कांस्टेबल के हाथ जांच और रिपोर्ट के लिए भेज दो।
जब अगले दिन रिपोर्ट आई तो मेरा अनुमान सही निकला। यह खून ही था। संबंधित विशेषज्ञ ने उनका ग्रुप और उसकी विस्तृत रिपोर्ट लिख दी। इस रिपोर्ट के आधार पर मैं ऐसे व्यक्ति की तलाश में था जिसके शरीर पर ताजा घाव या गहरी खरोच हो। यह तो मैं जानता था कि यह काम पेशेवरों का है इसलिए मैंने शहर के सजायाफ्ता और संदिग्ध व्यक्तियों को थाने में बुलाया और सबको कुर्ते उतारने को कहा।
उन्होंने कुर्ते उतारे तो मैंने सबको एक नजर से देखा। एक व्यक्ति के दाएं कंधे पर जहां बाजू का जोड़ होता है रुई का फ़ाया चिपका हुआ था और उस पर क्रास की आकृति में चिपकने वाली टेप लगी हुई। थी रुई और टेप मैली नहीं थी जिससे पता चलता था कि एक दिन से अधिक पुरानी नहीं है। मैंने बिना किसी सवाल-जवाब के उसे हवालात में बंद कर दिया। फिर उसे उसी विशेषज्ञ के पास उसके खून के टेस्ट के लिए भेज दिया ।उसके खून के सारे लक्षण वही निकले जो ईंट के टुकड़े पर लगे हुए खून के थे। यह प्रमाणित हो गया के उस टुकड़े पर उसी व्यक्ति का खून था।
मैंने उसे अलग बिठा लिया। उस व्यक्ति के रिकॉर्ड पर चार गिरफ्तारियां अर्थात चार मुकदमे थे जिनमें से दो में प्रमाण ना होने के आधार पर बरी हो गया था और दो में उसे सज़ा मिली थी। उसकी सबसे पहली वारदात सेंध की थी जिसमें तीन व्यक्ति गिरफ्तार हुए थे। दो को सजा हो गई थी यह बच गया था। उसकी उम्र चालीस से कुछ कम थी। शरीर का फुर्तीला था। मैंने उससे कोई प्रश्न पूछने के स्थान पर यह पूछा - " मुकदमा लड़ोगे या इक़बालिया बयान दोगे।"
"मेरा अपराध क्या है हुजूर ?"
"सेंध।"
"कहां?"

"मुझसे बहसबाजी ना करो।" - मैंने कहा - "मैंने तुम्हें बिना कुछ कहे और पूछे बिना गिरफ्तार कर लिया है। तुम खुद समझदार हो। यह नहीं समझ सके कि इस प्रकार केवल उसे गिरफ्तार किया जाता है जिसके विरुद्ध कोई प्रमाण और गवाही मिल जाए।"
"अगर आपके पास सबूत और गवाही है तो चालान काटिये और चलिये अदालत में।"
यह आदमी पक्का अपराधी था। उसका व्यवहार बता रहा था कि टॉर्चर बर्दाश्त करने का आदी है।
"तुम अपने हिस्ट्रीशीट से वाकिफ हो।" - मैंने उसे कहा - "आदि मुजरिम को सरकारी गवाह नहीं बनाया जाता परंतु मैं तुम्हें सरकारी गवाह बना लूंगा। स्पष्ट है कि तुम अकेले नहीं थे तुम्हारे सारे साथी कल तक गिरफ्तार हो जाएंगे। इसलिए तुम फायदा उठा लो।"
"दरोगा जी !" - उसने विचित्र सी मुस्कुराहट से जिसमें शायद व्यंग भी था कहा - "उमर इसी चक्करबाजी में बीत गई है। पुलिस की बड़ी मार खाई है। अब तो लोहे की सलाख़ गरम करके पीठ पर रख दो, उफ़ नहीं करूंगा। कोई भी लालच दे लो अपने गुरु को बदनाम नहीं करूंगा। आपके पास प्रमाण है सरकारी गवाह की आपको क्या आवश्यकता है।"
उसके हाव-भाव से आत्मविश्वास की झलक थी। मैंने काफी समय लगा कर उसे घेरने का प्रयास किया परंतु बेकार साबित हुआ। मैंने उसे हवालात में बंद कर दिया। ए०एस०आई० और हेड कांस्टेबल ने मुझे बताया कि यह आदमी पत्थर है। मारपीट का या लालच का इस पर कोई प्रभाव नहीं होता। मुझे इसकी पिछली सारी हिस्ट्री बताई गई।
मैंने उसे साथ लिया और उसके घर की तलाशी लेने के लिए ले गए। यह तलाशी केवल कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए ली जा रही थी। मैं जानता था कि ऐसा मंझा हुआ अपराधी घर में वारदात का कोई सूत्र नहीं रखेगा। उसके घर गए वहां उसकी पत्नी थी और तीन बच्चे। कुछ अपराधियों की पत्नियां उनकी कमजोरी बन जाती हैं क्योंकि वह अपने पति के पेशे से घृणा करती हैं और पुलिस से डरती हैं परंतु उसकी पत्नी भी अपराधिनी प्रतीत होती थी। पक्की औरत थी। मैंने उसके घर के बर्तन भी उलटे कर दिए जमीन को भी ठोका परंतु खाक भी हाथ ना आई। मुझे यही आशा थी।
सेठ को मैंने थाने में बिठा रखा था। मेरा मस्तिष्क बहुत तीव्रता से सोच रहा था। तलाशी के बाद मेरे मस्तिष्क में एक विचार आया। मैंने केवल एक कांस्टेबल को साथ रखा और ए०एस०आई० से कहा कि वह आरोपी को हवालात में ले जाए और कागजात तैयार करके उसका रिमांड ले ले। मैं नये विचारों के आधार पर सेठ के घर चला गया। सेठानी से मिला। वह सीधी साधी गृहिणी थी। मैंने उसके साथ सहानुभुति प्रकट की और फिर आश्वासन देकर कहा कि उसका सारा माल वापस मिल जाएगा। उसके साथ इधर-उधर की बातें होती रही मैंने उसके मन में विश्वास उत्पन्न कर लिया।
"विमला कहां है?" - मैंने पूछा और उसके चेहरे के परिवर्तन को देखा। मैंने पैंतरा बदल कर पूछा - "उसका कुछ पता नहीं चला कहां चली गई है?"
उसका सर झुक गया मैंने स्वर में सहानुभूति का गहरा रंग भरकर कहा - "आप चिंता ना करें। मैं आपके पहले मुंशी को दो दिनों में जमीन के नीचे से भी निकाल लाऊंगा।" - उसने सर उठाया तो उसकी आंखों में आंसू थे। मैंने उसे कहा - "सेठ साहब को चाहिए था कि मुझे पहले दिन ही यह बात बता देते। उन्होंने आज सुबह बताया है कि आपकी बेटी को वह नमक हराम मुंशी बहका कर कहीं ले गया है। आखिर यह बात बनी कैसे? मुंशी को इतना अवसर मिल कैसे गया था?"
वह मेरे चक्कर में आ गई। मेरा यह झूठ काम कर गया कि सेठ ने मुझे विमला के संबंध में बता दिया है। सेठानी ने कहा - "उन्होंने (सेठ ने) मुझे मना किया था कि विमला के संबंध में पुलिस को कुछ ना बताना। बड़ी बदनामी होगी। यदि सेंध के अपराधी पकड़े गए तो अदालत में भी लड़की का नाम आएगा। सारी दुनिया सुनेगी। परंतु उन्होंने खुद ही आपको बता दिया है।"

 


जवान बेटी गायब हो गई

 


सेठानी ने मुझे बताया कि मुंशी बच्चों को पढ़ाने घर आया करता था। मुसलमान होने के बावजूद उसे यह लोग घर का, परिवार का अंग समझते थे। वह चालाक व्यक्ति था। जवान भी था। सेठ की जवान लड़की विमला उसके साथ खुल गई। लड़की के मां-बाप ने ध्यान ना दिया। मुंशी ने अपना विश्वास जमा रखा था। घर के कई प्रबंध उसी के जिम्मे थे। वह घर-भेदी बन गया था। वह आठ-नौ साल उनके साथ रहा। इस बीच में उसने सेठ की बेटी के दिल पर पूरी तरह कब्जा कर लिया।
डेढ़ महीना बीता सेठ की पहली को पहली बार संदेह हुआ। उसके बाद मुंशी की हरकतों को चोरी-छिपे देखा जाने लगा। सेठ ने एक दिन उसे मौके पर पकड़ने के लिए कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ दिन भर के लिए बाहर जा रहा है। सेठ और सेठानी छोटी बच्ची को अपने साथ ले गए। दूसरे बच्चे स्कूल चले गए।घर के नौकर को शाम तक जानबूझकर छुट्टी दे दी गई। विमला घर में अकेली रह गई। मुंशी दुकान पर था। सेठ और सेठानी के जाने के बाद वह सेठ के घर चला गया। सेठ और सेठानी स्कीम के मुताबिक अचानक घर पहुंचे और मुंशी को अपनी बेटी के साथ अआपत्तिजनक हरकतें करते पकड़ लिया। उसमें उसकी बेटी की इच्छा भी सम्मिलित थी। सेठ और मुंशी में कहासुनी हुई। सेठ ने मुंशी को दुकान पर जाने को कहा और उसके बाद अपनी बेटी को मार मार कर बेहोश कर दिया। पांच-छह दिनों बाद सेठानी को पता चला कि उस मुसलमान मुंशी को नौकरी से हटा दिया गया है। उससे तीन दिन बाद बेटी घर से गायब हो गई।
सेठानी को इसके अतिरिक्त और कुछ भी पता नहीं था। मैंने उससे मुंशी की बहन के संबंध में कोई बात ना की। मेरी जबान पर उसके संबंध में एक सवाल आया था परंतु अक्ल ने मेरा साथ दिया,मैंने एक और तरकीब सोच ली। यह तो मुझे पता था कि सेठानी सेठ को बताएगी कि मैं आया था और उसकी बेटी के संबंध में जानकारी ले गया हूं। मैं सेठ को अब एक भिन्न तरीके से फांसना चाहता था। सेंध के साथ उसका कोई संबंध नहीं था किंतु यह लड़की उसके चंगुल में थी। मुझे अभी कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिला था कि यह लड़की (मुंशी की बहन) सेठ के कब्जे में है। जिंदा है या मारी गई है। कहीं आगे भेज दी गई है। मैं एक ज़बानी गवाही के आधार पर अंधेरे में हाथ मार रहा था।
मैंने सेठानी को विश्वास में लेने के लिए उसकी बेटी के हक में बातें शुरू कर दीं। उसे कहा कि यह मुंशी बहुत बड़ा बदमाश था उसने शरीफ लड़की को फुसला लिया है। मैं उसे पकड़कर सेंध के साथ किडनैप की सजा भी दिलवाऊंगा। मुझे केवल यह पता चल जाए कि वह है कहां---- वह मेरी बातों में पूरी तरह जकड़ गई। अंदर से वह डाक के दो लिफाफे ले आई। दोनों फटे हुए थे। एक में से पत्र निकाल कर पढ़ा। यह मुसलमान मुंशी का पत्र था। सेठ के नाम लिखा था - "मेरी बहन को आजाद कर दो मैं तुम्हारी बेटी को छोड़ दूंगा। मेरी बहन को मेरे घर पहुंचा दो। मैं केवल चार दिन प्रतीक्षा करूंगा।" नीचे मुंशी का नाम लिखा हुआ था। स्थान का नाम नहीं था।जहां से पत्र पोस्ट किया गया था। मैंने लिफाफा पर पोस्ट ऑफिस की मुहर देखी। मुहर आगरा की थी। दूसरे लिफाफे में से पत्र निकालकर पढ़ा। यह उन्हें पहले पत्र के पांचवें दिन मिला था। यह भी मुंशी का था। केवल इतना लिखा था - " सेठ होशियार हो जाओ।" - इस लिफाफे पर भी आगरा की मुहर थी। यह पत्र मिलने के चार दिन बाद सेठ के घर सेंध लगी।
सेठानी को मैंने बताया कि दोनों पत्र आगरा से आए हैं। उसने कहा - "उसे (मुंशी को) यह संदेह है कि उसकी बहन हमारे पास है। मैंने सेठ से कई बार कहा है कि यदि उस लड़की को आपने कहीं छुपा रखा है तो उसे आजाद कर दें और अपनी बेटी को वापस ले ले परंतु वह कहते हैं कि उसकी बहन के संबंध में उन्हें कुछ नहीं पता। इस बात पर हमारी लड़ाई भी हो चुकी है।"
"क्या आपको संदेह है कि सेठ साहब ने मुंशी की बहन को कहीं बंदी बना रखा है?" मैंनें पूछा।
"मुझे यही संदेह है।" - उसने उत्तर दिया। - "मुझे मेरी बेटी वापस चाहिए। मुझे पता है कि डाका इसी मुसलमान मुंशी ने डलवाया है।यदि उसे उसकी बहन ना मिली तो यह व्यक्ति पता नहीं और किस प्रकार से बदला लेगा।"
वह बहुत भयभीत थी।
"यही भय मुझे भी है।" - मैंने उसे और अधिक भयग्रस्त करने के लिए कहा। - "उसे यदि मैं शीघ्र ना पकड़ सका तो वह अवश्य कोई और वार करेगा। किसी की बहन को बंदी बना लो तो वह हत्या करने से भी नहीं चूकेगा। बेहतर यह है कि मुंशी की बहन को छोड़ दिया जाए।"
सेठानी और अधिक डर गई। उसने कहा - "मेरे बच्चों पर दया करें। सेठ से कहें कि यदि लड़की को उसने कहीं छुपा के रखा हुआ है तो उसे छोड़ दें। वह मेरी नहीं मानते। मुझे एक संदेह है किंतु आप उनके साथ बात ना करना वर्ना वह मुझे जान से मार डालेंगे।"
यह सीधी-सादी औरत थी और अच्छी और भयभीत भी थी। मैंने उसके भय में और वृद्धि कर दी। उसके घर में सेंध लगी थी जिसके कारण वह भयभीत भी थी और उसकी मानसिक अवस्था यह थी कि वह ये भूल गई थी कि वह पुलिस इंस्पेक्टर के साथ बात कर रही है। दरअसल मैंने सहानुभूति और अपनापन दिखा कर के उस पर अपना विश्वास पैदा कर लिया था।
वह रो रही थी और बोलती जा रही थी। उसने कहा डेढ़ महीने से सेठ हर रात देर तक बाहर रहता है। शराब तो पहले भी पीता था अब अधिक पीता है। उसने मेरे साथ भी दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया है। यहीं से मुझे संदेह होता है कि उसने लड़की को कहीं रखा हुआ है। यह लड़की कभी कभी मेरे घर आया करती थी। सुंदर लड़की है। मेरे मन में भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार आते हैं। मेरी सुनने वाला कोई नहीं।" - और वह भयभीत अवस्था में यही बात कहती रही और उसने मुझे कई बार कहा कि मैं सेठ पर अपना प्रभाव प्रयोग करूं और उसे यह पता ना चलने दूं कि उसने मेरे साथ यह बातें की है।
मैंने उसे विश्वास दिलाया कि मैं सेठ को पता नहीं चलने दूंगा। उसे यह भी कहा कि वह भी सेठ को ना बताएं कि उसने मेरे साथ मुंशी की बहन के संबंध में बातें की है। मैंने कहा - "मैं आप के गहने आप की नगदी और आपकी बेटी वापस ले आऊंगा। यदि आपने सेठ को यह बातें बता दीं जो आपने मुझसे की है तो सारा मामला गड़बड़ हो जाएगा।"
सेठानी आश्वस्त हो गई मैंने खुदा का शुक्र अदा किया। मैं सेठानी को आश्वासन देकर वहां से थाने में चला गया। कानून के मुताबिक मुझे सेंध की तफ्तीश करनी थी। मुंशी की बहन के किडनैप से मुझे किसी ने रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी। मुझे यह भी पता चल गया था के सेंध का मुख्य आरोपी सेठ का पहला मुंशी है और वह आगरा में है। इसकी तस्वीर भी मेरे पास थी। मेरे लिए आवश्यक था.के में मुंशी की गिरफ्तारी का तुरंत प्रबंध करता। परंतु मेरे दिमाग पर मुंशी की बहन सवार हो गई थी। मैंने तय कर लिया था कि इस लड़की को बरामद करूंगा। मुझे विश्वास नहीं था कि वह सेठ के कब्जे में होगी मुझे केवल संदेह था। सेठानी ने मेरे संदेह को मजबूती प्रदान की थी। मैं यह सोच रहा था कि छानबीन की जंबा यात्रा करूं या चालबाजी से काम लूं।
मैंने एक चाल सोच ली थी। थाने में बैठकर उस पर विचार किया और इसी पर कार्य करने का निर्णय लिया। सेठ मेरे हेड कांस्टेबल के साथ दूसरे कमरे में बैठा था। मैंने उसे बुलाया। वह क्रोध की अवस्था में मेरे सामने आया। उसने मेरे सामने कुर्सी पर बैठते हुए कहा - "इस्पेक्टर साहब ! आपने अच्छा नहीं किया।" - मैंने उसे कोई उत्तर देने के स्थान पर एक कांस्टेबल को बुलाया और उसे फ्रूट और लेमन की बोतलें लाने को भेज दिया।
"सेठ साहब !" - मैंने कहा - "जो कुछ हुआ उसका मुझे बहुत खेद है। उससे अधिक खेद मुझे इस बात पर है कि आप जैसे पढ़े लिखे इज्जत दार इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि मैं साधारण सा पुलिस इंस्पेक्टर हूं। मेरी ड्यूटी ऐसी है कि सज्जन लोगों से भी मुझे कभी कभी ऐसे प्रश्न पूछने पढ़ते हैं। यह मेरी नौकरी और मेरी रोजी-रोटी का मामला है। मुझसे तो आपका मुंशी अच्छा है जो शाम तक अपना कार्य समाप्त करके रात आराम से सो जाता है। मैं तो रात को सो भी नहीं पाता। आप अपने केस का ध्यान करें। यह मेरा कर्तव्य है कि आप की कमाई के गहने और नगदी,कपड़े गायब हो गए हैं आपको एक एक पाई वापस दिलाऊंगा। फिर मुझे संदेह होता है कि आपकी जवान बेटी भी लापता है परंतु आप बदनामी के डर से छुपाते हैं। मैं यह भी अपना कर्तव्य समझता हूं कि आपकी इज्जत वापस लाऊं। आप छुपा रहे हैं परंतु मैं आपकी इज्जत को अपनी इज्जत और आपकी बेटी को अपनी बेटी समझता हूं।"
"परंतु आपने मुझ पर आरोप लगा दिया है कि मैंने मुंशी की बहन को किडनैप कराया है।" - सेठ ने ऐसे स्वर में कहा जिसमें रौब के स्थान पर दोस्ती का रंग था।
"जी हां !" मैंने कहा - "पर आपने भी तो मुझ पर आरोप लगा दिए। परंतु सेठ साहब मैं आपको यह बता देता चाहता हूं कि मुझे आपके साथ कोई शत्रुता नहीं। जो हुआ सो हुआ। यदि आप अपनी बेटी के संबंध में मुझे कुछ नहीं बताना चाहते तो ना बताएं। मेरा उसके साथ कोई संबंध नहीं।"
"और आपने एस०पी० के सामने यह जो आरोप लगाया है कि मैंने मुंशी की बहन को किडनैप किराया है।" - उसने कहा - "उसका क्या होगा ? आपने यहां तक कह दिया था कि पहले दारोगा ने मेरे विरुद्ध केस रजिस्टर नहीं किया था।"
"एस०पी० ने कोई नोटिस नहीं लिया।" - मैंने कहा - "उसने आपको तो डांट दिया था परंतु बाद में उसने मेरी खूब खबर ली। उसने मुझे कहा कि इस थाने में रहना है तो ठीक से रहो वरना लाइन हाजिर कर दूंगा।"
मेरी बात सुनकर सेठ गुब्बारे की तरह भूल गया। इतना होशियार और चालाक व्यक्ति अपनी झूठी प्रशंसा सुनकर उल्लू का पट्ठा बन गया। मैंने कहा - "आपके सामने मेरी क्या बिसात है। एस०पी० ने कहा है कि मैं केवल सेंध की तफ्तीश करूं लड़की के चक्कर में ना पड़ूं। सेठ साहब आप मेरा सहयोग करें और सेंध की तफ्तीश में मेरा साथ दें। मैं अब कोई किसी लड़की की बात नहीं करूंगा।"
मैं इस प्रयास में था कि वह सूर्यास्त होने तक मेरे पास बैठा रहे। सूरज डूबने ही वाला था। फल और बोतलें आ गई थी। मैं उसे दोस्त बनाने में सफ़ल हो चुका था। उसके मस्तिष्क से मुंशी की बहन का बोझ उतर गया।
सूरज डूब गया।वह ऐसा दोस्ताना दिखा रहा था कि जाना ही नहीं चाहता था। मैं अंधेरे की ही प्रतीक्षा कर रहा था क्योंकि मुझे उसका पीछा कराना था। मुझे अपने अनुभव के आधार पर विश्वास था कि यदि उसने मुंशी की बहन को कहीं छुपा कर रखा हुआ है तो वह वहां अवश्य जाएगा। उसकी पत्नी ने मेरे संदेह की पुष्टि कर दी थी।
अंततः वह उठा और बड़े प्रेम से हाथ मिला कर बोला - "बुरा ना मानना। मैं रिश्वत पेश नहीं कर रहा। आप मेरे भाई हैं। यदि आपको किसी प्रकार की कोई आवश्यकता हो जितनी रकम चाहिए मुझे भाई समझ कर बता देना। मैं कल कुछ रकम पेश करूंगा।" - हंसकर कहने लगा - "हमें इकट्ठे रहना है।"
"आपको अपनी आवश्यकता नहीं बताऊंगा तो और किसे बताऊंगा।" - मैंने कहा - "यदि आपको मेरी आवश्यकता पड़े तो अपने नौकर को भेज देना। मैं उपस्थित हो जाऊंगा।"

 


जहां लड़की बंदी थी

 


वह चला गया। मैंने तुरंत अपने विशेष कांस्टेबल बुलाए, उन्हें सादे कपड़े पहनने को कहा फिर उन्हें निर्देश दिए कि सेठ का पीछा करें। यदि यह अपने घर चला जाए तो इधर-उधर टहलते रहे चाहे सारी रात गुजर जाए उस पर नजर रखें,और सुबह रिपोर्ट दें। फिर मैंने उन्हें निर्देश देकर रवाना कर दिया। एक संकेत भी निर्धारित कर दिया।
मैंने छह कांस्टेबल सादे कपड़ों में तैयार कर लिए। सबसे कहा कि कमीज़ों के नीचे कमर के गिर्द एक हथकड़ी जंजीर सहित बांधें परंतु उनकी आवाज ना हो। यदि आवश्यकता पड़े तो हथकड़ियों को ही हथियार के तौर पर प्रयोग करें।मैंने भी सादे कपड़े पहन लिए और रिवाल्वर पेंट की जेब में डाल ली।ए०एस०आई० को थाने में छोड़ दिया। मैं अपनी पार्टी को लेकर रवाना हो गया।
मेरी यह स्कीम एक जुआ थी। मेरी तबीयत ही ऐसी ढीठ थी कि मैं यह जुआ खेलने से टल ना सका। इसके परिणाम मेरे विरुद्ध भी जा सकते थे। यह भी हो सकता था कि मैं मुंशी की बहन को सेठ की कैद से बरामद कर लूं तो लड़की कह दे कि मैं अपनी इच्छा से यहां आई हूं और सेठ ने मेरे साथ कोई दुष्कर्म नहीं किया। परंतु मेरी जो एक छठी इंद्री है वह बता रही थी कि लड़की वहीं है और उस पर अत्याचार हो रहा है और यह केवल अपनी बेटी का प्रतिशोध उस लड़की से ले रहा है। मैं स्वयं को इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता था। क्या मैं पागल हो गया हूं ? या मेरा दिमाग चल गया है ? जो कुछ भी था मैं एक खतरा मोल लेने के लिए पूर्ण रूप से तैयार होकर थाने से निकला।
सेठ के पीछे दो कांस्टेबल सादे कपड़ों में चले गए थे। दोनों को आपस में इतनी दूरी रखनी थी कि एक दूसरे के संकेत देख सकें। मुझे अपनी पार्टी इस तरह बिखेर कर रखनी थी कि पिछले कांस्टेबलों का संकेत देख या सुन सकें। हमें इकट्ठे नहीं चलना था। मैं अपनी पार्टी से आगे निकल गया। मुझे यह आसानी थी कि मैं उस शहर में नया था इसलिए शहर के लोग मुझे पहचानते नहीं थे। रात का अंधेरा बहुत लाभकारी था। आगे वाले दो कांस्टेबलों में से पिछले ने मुझे एक स्थान पर हाथ से इस संकेत किया तो मैं समझ गया कि सेठ अपने घर नहीं जा रहा है। सेठ कहीं बहुत आगे था। मुझे नजर नहीं आ रहा था। उस संकेत की भांति मुझे आगे से संकेत मिलते रहे और मैं अपनी पार्टी को संकेत देता गलियों से मोड़ मुड़ता गया। आगे खेत और मैदान आ गए ।साधारण से प्रकार के कुछ मकान थे जो एक दूसरे से अलग- अलग थे। यह शहर से लगा हुआ इलाका था।
मुझे रुकने का संकेत मिला। फिर पिछला कांस्टेबल मेरे पास आ गया और उसने मुझे बताया के सेठ एक मकान के अंदर गया है। मैंने मकान को घेरे में ले लिया। फिर मैं दरवाजे की ओर गया। यह छोटा सा मकान था जो मुश्किल चार मुरले का था। यहां सेठ का कोई काम नहीं हो सकता था। उसे किसी कोठी में जाना चाहिए था। इतने छोटे मकान में उसका क्या काम ? एक व्यक्ति अंदर से निकला और उसने बाहर की जंजीर चढ़ाकर ताला लगा दिया। अंधेरे में मुझे साफ पता चल रहा था कि वह क्या कर रहा है। वह दरवाजे के पास टहलने लगा।
मैं उसकी ओर चला तो उसने पूछा - "कौन है भाई?"
मैं उसके निकट चला गया और उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा - "भाई साहब पुलिस चौकी को कौन सा रास्ता जाता है?" मैं उसे कुछ आगे ले गया। उधर से मेरा हेड कांस्टेबल आ गया। टॉर्च उसके हाथ में थी। मैंने उससे टॉर्च ले ली। यह व्यक्ति मुझे रास्ता बताने लगा तो मैंने टोर्च की रोशनी उसके मुंह पर डाली। हेड कांस्टेबल ने हंसकर कहा - "साहब यह तो हमारा पुराना मित्र है।"
यह व्यक्ति शहर के उन बदमाशों में से था जिन्हें मैंने थाने में बुलाया था। मैंने उससे पूछा - "इस मकान में क्या है ? यह तुम्हारा मकान है ? ताला लगा कर कहां जा रहे हो ?" - एक ही बार इतने सारे सवालों से वह घबरा गया उसने हकलाकर कुछ कहने का प्रयास किया तो मैंने पूछा - "सेठ अंदर क्या कर रहा है ?" - मैंने टार्च बुझा दी।
मैंने अंधेरे में देख लिया कि उसने हाथ पीछे को हिलाया और कुछ परे मुझे कुछ गिरने की हल्की सी आवाज आई। वह मुझे अनाड़ी समझता था। मैंने टोर्च जलाए बिना और देखे बिना उसे कहा - "चाबी उठा लाओ।"
मैं समझ गया था कि उसने अंधेरे से लाभ उठाते हुए चाबी फेंक दी है। उस पर चुप्पी छा गई। हम धीमे स्वर में बातें कर रहे थे। उसने बड़े ही तीव्र स्वर से कहा - "मुझे क्यों परेशान करते हो ? जाओ यहां कुछ नहीं है।" वह अवश्य ही मकान के अंदर वालों को होशियार करने के लिए चिल्लाया था। मैंने उसके मुंह पर पूरी शक्ति से घूंसा मारा। वह पीछे को गिरा। मैंने अपनी पार्टी को संकेत दे दिया और टोर्च की रोशनी उधर को की जिधर उसने चाबी फेंकी थी। मुझे चाबी नजर आ गई।
हेड कांस्टेबल ने उस व्यक्ति को पकड़ लिया। मैं चाबी उठाकर मकान की ओर दौड़ा। मकान की पिछली ओर दो कांस्टेबल मौजूद थे। मैंने ताला खोला और दरवाजे को धकेल कर बहुत तीव्रता से अंदर प्रविष्ट हुआ। कांस्टेबल भी मेरे पीछे आए यह। तंग सा आंगन था। दाईं ओर एक कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला। अंदर लालटेन की रोशनी थी। दरवाजा अचानक बंद हुआ इससे पहले कि अंदर से चटकानी चढ़ा दी जाती मैंने दौड़कर दरवाजों को धक्का दिया। मेरे कांस्टेबल भी होशियार थे। वह मेरे साथ ही
दरवाजे में कूदकर प्रविष्ट हुए।
मैंने रिवाल्वर निकाल लिया और कमरे में इधर उधर देखा। पलंग पर एक जवान लड़की बैठी हुई थी जिसके शरीर पर केवल कुर्ती थी। कमरे में शराब की गंध थी। तिपाई पर शराब की बोतल और तीन गिलास रखे थे और प्लेटों में भुना हुआ गोश्त था। एक व्यक्ति दूसरे पलंग के नीचे घुस रहा था। मेरे एक कांस्टेबल ने उसे पीछे से पकड़ कर बाहर घसीट लिया। यह सेठ नहीं था। वस्त्रों से उसी की तरह का कोई अमीर व्यक्ति लगता था।
लड़की उठ कर बैठ गई। वह अत्यंत सुंदर लड़की थी। मैंने उससे नाम पूछा उसने नाम बताया तो पता चला कि यह मुंशी की बहन है। हेड कांस्टेबल उस मकान के पहरेदार को अंदर ले आया जो हमें बाहर मिला था। मैंने लड़की से पूछा - "वह सेठ कहां है?"
लड़की ने संकेत से बताया उस पलंग के नीचे है। मैंने तुरंत जान लिया कि लड़की ने शराब पी रखी है या उसे पिलाई गई है।
दो कांस्टेबलों ने पलंग के नीचे से सेठ को निकाल लिया।
उसने भी केवल कमीज पहन रखी थी। वह थरथर कंप रहा था। पलंग पर उसकी पेंट पड़ी थी। उसने पेंट की ओर हाथ बढ़ाया तो मैंने उसके हाथ पर हाथ मार कर परे कर दिया। दोनों सेठ कांप रहे थे।
मैंने उन दोनों सेठों को और उनके पहरेदार को हथकड़ियां लगा लीं। एक कांस्टेबल को थाने भेजकर ए०एस०आई० को बुलाया और लड़की और सेठ के डॉक्टरी परीक्षण का प्रबंध किया।
मैं इस प्रबंध का विवरण नहीं सुनाऊंगा क्योंकि यह कहानी हमारी बच्चियां भी पढधेंगी। अंतिम रिपोर्ट तो ज़िला हेड क्वार्टर से लेनी थी। यह रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए जो तुरंत और आरंभिक कार्यवाही हुई है, वह मैंने लड़की और सेठ को सिविल सर्जन के पास उसी समय ले जाकर करवा ली।
मैंने रात की गाड़ी से उस कार्रवाई और विशेष चीज़ को टेस्ट के लिए भेज दिया।
उस मकान को मैंने सील कर दिया था और दो कांस्टेबलों कि वहां ड्यूटी लगा दी थी। दोनों सेठों और उनके पहरेदार को मैंने हवालात में बंद कर दिया। पहरेदार को मैंने हवालात के दूसरे कमरे में बंद किया था जो औरतों की हवालात थी उस समय खाली थी। उसे अलग करने से मेरा आशय यह था कि उसे मैं सरकारी गवाह बनाना चाहता था। अब हवालात में स्थिति यह थी कि वहां पहले से एक आरोपी बंद था जिसके कंधे पर घाव था। वह सेंधमारी का अपराधी था और जिसके घर उसने सेंध लगाई थी वह भी इसी हवालात में बंद था।
सेठ ने मेरे साथ बात करने की इच्छा व्यक्त की। मैं हवालात की सलाखों के साथ जाकर खड़ा हुआ। वह सलाखों के अंदर था उसने मेरे ईमान की बोली दी - "दस हज़ार. रुपये।" - उसका उसकी मांग थी कि मैं इस केस को गोल कर दूं और उन्हें छोड़ दूं। दूसरे सेठ ने कहा - "दस.हज़ार मैं भी दूंगा।" - मैंने टालने का प्रयास किया तो बोली चढ़ने लगी - "बारह.हज़ार.... पन्द्रह हज़ार...।बीस हज़ार.... पच्चीस हज़ार।"
मैंने अंततः सेठ से कहा - "आपने शाम को यहां से जाते समय कहा था कि किसी भी प्रकार की आवश्यकता हो तो मुझे बताना। सेठ साहब मुझे एक आवश्यकता आ गई है वह पूरी कर दें।"
"हां - हां।" - उसने कहा - "बताएं अभी पूरी कर दूंगा।"
"मुझे आपके इकबाली बयान की आवश्यकता है।" - मैंने कहा।
वह बहुत-बहुत झुंझलाया। फिर वह धमकियों पर उतर आया। मैं वहां से चुपचाप हट गया और दफ्तर में बैठकर उस स्थिति पर मनन करने लगा जो मैंने उत्पन्न कर ली थीं। मेरे ए०एस०आई० ने मुझे डराया तो नहीं इतना अवश्य कहा - "किसी रिपोर्ट के बिना आपने नई मुसीबत मोल ले ली है। यह प्रभावशाली लोग हैं। कल जमानत पर रिहा हो जाएंगे और हमें परेशान करेंगे।"
मैंने उसकी बात सुन ली और कहा - "देखा जाएगा।"
लड़की थाने में थी। मैं इस भय से उसे अपने क्वार्टर में नहीं ले जाना चाहता था कि मेरे विरुद्ध कोई आरोप ना लग जाए। मैंने लड़की को दफ्तर में बिठाकर पूछा कि वह इस की कैद में किस प्रकार पहुंची है। वह बहुत रोई। उसे जबरदस्ती शराब पिलाई गई थी और शराब उसे हर रात पिलाई जाती थी। उसका बयान सुनकर मैंने उसे दो-तीन बातें बताईं और उसे यह कहकर आश्वासन दिया कि वह मुझ पर भरोसा रखे। कानून की कुछ खानापूर्ति होती हैं वह पूरी किए बिना कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। मैं उसका बयान कलमबद्ध नहीं कर सकता था क्योंकि अदालत में उसका महत्व नहीं था बल्कि उल्टा संदेह किया जाता है।संदेह यह होता है कि लड़की को पुलिस ने अपने हिरासत में रखकर अपनी इच्छा से बयान लिख लिया है।
मैंने लड़की को साथ लिया। ए०एस०आई० को भी साथ लिया और उसे कहा कि मुझे मजिस्ट्रेट के घर ले चलो।उसके घर गए तो रात के बारह बजने वाले थे। उसे जगाया। केस के संबंध में बताया और और कहा कि लड़की के बयान लेकर सील लगा कर कानून के अनुसार लड़की को किसी प्रतिष्ठित शहरी के हवाले कर दिया जाए। मजिस्ट्रेट लड़की को दूसरे कमरे में ले गया। हम बरामदे में बैठे रहे। दस मिनट पश्चात मजिस्ट्रेट हमारे पास आया और हमारे पास बैठकर बोला - "लड़की बिल्कुल मामूली हैसियत और संदिग्ध चरित्र की है। आप शहर के बहुत प्रतिष्ठित बड़े व्यक्तियों के विरुद्ध बयान दिलवा रहे हैं। आप यह किस्सा यहीं समाप्त नहीं कर सकते?"
"मैं इस किस्से को हाथ में ही नहीं लेना चाहता था।" - मैंने कहा - "कठिनाई यह उत्पन्न हो गई है कि आज एस०पी० साहब अचानक हमारे थाने में आ गए और उन्होंने निजी से यह आदेश दिया है कि लड़की बरामद की जाए और अपराधियों को उनकी हैसियत का लिहाज किए बिना गिरफ्तार करके रिपोर्ट उन्हें भेजी जाए।"
"यदि आप सलाह दें हैं तो मैं लड़की के बयान में थोड़ी सी गड़बड़ कर देता हूं।" - मजिस्ट्रेट ने कहा - "आप समझ गए होंगे कि इतने प्रतिष्ठित व्यक्तियों को ऐसे केस में घसीटना अच्छा नहीं लगता।"
"यदि आप लड़की को दुश्चरित्र और उसके साथ बलात्कार करने वालों को प्रतिष्ठित समझते हैं तो आप जो चाहे लिखें।" - मैंने उसे कहा - "लड़की आपके कब्जे में है। केवल यह ध्यान रखें कि अदालत में मेरे बयान भी होंगे। इसके अतिरिक्त यह भी याद रखें कि इस लड़की के साथ सेंध की भी एक घटना जुड़ी हुई है और यह भी नोट कर लें कि पहले थानेदार ने इस लड़की के लापता होने की रिपोर्ट रजिस्टर नहीं की थी। एस०पी० साहब के आदेश से उसे सस्पेंड कर दिया गया है और इंक्वायरी का आदेश जारी हो चुका है। लड़की इस इंक्वायरी में भी प्रस्तुत होगी। आपकी अपनी इच्छा है जो चाहे लिखें। बयान आपके पास रहेंगे जिन्हें आप लिफाफे में सील कर लेंगे। मैं आपको केवल यह बता रहा हूं कि यह एक खतरनाक केस है। मैं तो इसमें गड़बड़ करने का साहस नहीं कर सकता। इस लड़की का भाई सेंध लगाने में वांछित है और उस सेठ की लड़की उस व्यक्ति के पास है।"
मजिस्ट्रेट घबरा गया। सर हिला कर बोला - "यह कोई गोरखधंधा मालूम होता है।"
"जी हां!" - मैंने कहा - "मैंने तो अभी पूरी तरह चार्ज भी नहीं लिया था कि यह गोरखधंधा मेरे गले में आ पड़ा और एस०पी० साहब आ धमके वर्ना में कोई चक्कर चला लेता।"
मैंने उस मजिस्ट्रेट के पांव तले से जमीन निकाल दी। फिर भी मुझे अंदेशा था कि वह सेठों को बचाने के लिए कोई गड़बड़ अवश्य करेगा। बयान लेने और लिखने में साढ़े तीन घंटे लगे। मजिस्ट्रेट ने लड़की के हस्ताक्षर कराकर बयान एक लिफाफे में बंद किए और हमारे सामने लाख से लिफाफा सील करके अपने पेटी में रख लिया। मजिस्ट्रेट के लिए हुए बयान पुलिस को नहीं दिखाए जाते। मुकदमे के दौरान मजिस्ट्रेट लिफाफा अदालत के हवाले करता है। अब लड़की को किसी की कस्टडी में देना था। मैं तो किसी को जानता नहीं था। एस०आई० ने एक मुसलमान का नाम बताया। उसे उसी समय बुला लिया गया। यह शहर का प्रतिष्ठित मुसलमान था। वांछित कार्रवाई करके लड़की उसके हवाले कर दी गई और उसे बता दिया गया कि अदालत की पेशी पर लड़की को अदालत में प्ररस्तुत करने का जिम्मेदार होगा।

 


लड़की पर क्या बीती

 


लड़की उसके साथ जाने से डर रही थी। बार-बार कहती थी कि मुझे अपने भाई के पास जाने दो मेरे भाई को बुला दो। उसे यह तो पता ही नहीं था कि उसका भाई यहां नहीं है और उसका घर पुलिस ने सील कर रखा है। बाहर जाकर मैंने उसे आश्वासन दिया और बताया कि वह यह समझे के अपने मां- बाप के घर जा रही है। वह बेचारी इतनी अधिक डरी हुई थी कि बात कम करती थी और रोती अधिक थी। उसकी शारीरिक दशा बहुत खराब थी।मैंने इस प्रतिष्ठित मुसलमान को अच्छी प्रकार समझा दिया कि लड़की पर क्या बीती है।
लड़की ने मुझे जो बयान दिया था वह संक्षेप में इस प्रकार है कि उसका भाई सेठ का मुंशी है और उसके घर आता जाता है। उसे यह तो मालूम ही नहीं था कि उसका भाई इस शहर में नहीं है। मैंने उसे बताया था कि वह सेठ के काम से शहर से बाहर गया हुआ है। यह लड़की कई बार सेठ के घर गई थी। उसने बताया कि सेठ की बेटी उसकी हम उम्र है और उसकी सहेली है। लगभग डेढ़ महीना बीता सेठ के घर का नौकर उस लड़की के घर आया और कहा कि लड़की का भाई उसे सेठ के घर बुला रहा है। लड़की ने बुर्का ओढ़ा और घर को ताला लगाया और नौकर के साथ चली गई। सेठ के घर को एक रास्ता शहर के अंदर जाता था और दूसरा रास्ता शहर से बाहर-बाहर जाता था। लड़की को नौकर शहर के बाहर की ओर से ले गया। नौकर को लड़की भलीभांति जानती थी। वह अजनबी नहीं था। निश्चिंत होकर उसके पीछे - पीछे चलती रही। रास्ते में नौकर ने लड़की से कहा - "मुझे यह काम याद आ गया है। उस मकान में मेरा एक रिश्तेदार रहता है। उसे एक संदेश दे आऊं।"- यह वही अलग-थलग मकान था जहां से मैंने लड़की बरामद की थी। लड़की रुक गई और कहा कि जाओ संदेश है दे आओ। नौकर ने से कहा - "तुम यहां अकेली खड़ी अच्छी नहीं लगतीं। मेरे साथ ही आ जाओ।"
लड़की उसके साथ चली गई। उस मकान के दरवाजे पर पहुंचकर नौकर ने लड़की से कहा - "तुम भी अंदर आ जाओ। अंदर सब औरतें ही हैं।" - लड़की अंदर चली गई।
नौकर ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। कमरे से दो व्यक्ति निकले। उन्होंने लड़की को दबोच कर उठा लिया। उसके मुंह पर हाथ रख दिया। लड़की बेहोश हो गई। उसके बाद उसे कुछ याद नहीं कि वह दिन और रात में कितनी कितनी बार बेहोश हुई। हर शाम के बाद यह सेठ जिसके घर सेंध लगी थी उसके पास आ जाता। उसे फल इत्यादि खिला जाता था। उसे अच्छा खाना दिया जाता। उसे जबरदस्ती शराब पिलाई जाती और उसे खराब किया जाता। दिनभर वह बंदी रहती थी। दो बार उसने भागने का प्रयास किया परंतु दो पहरेदार उपस्थित रहते थे। उन्होंने दोनों बार उसे पकड़ लिया।
लड़की ने बताया प्रारंभ में वह मुझे जबरदस्ती शराब पिलाते थे जिसके कारण मैं बेहोश हो जाती थी।
उसने आत्महत्या करने की भी सोची उसने सेठ की हत्या करने का भी सोचा परंतु उसे कोई राह नजर ना आई।
उसने बताया कि उस शाम जिस शाम मैंने सेठ को उसके एक दोस्त के साथ घटनास्थल पर पकड़ा सेठ का दोस्त सेठ से पहले वहां पहुंच गया था। सेठ बाद में वहां आया और अपने दोस्त से कहा - "आज जो एस करना है कर लो। कल छुट्टी।" - दोस्त ने अर्थात दूसरे सेठ ने उससे पूछा कि छुट्टी क्यों? उसने उत्तर दिया - "गड़बड़ हो गई है।" - उसके बाद उन्होंने आपस में जो बातें हैं कि वह संकेतों में की जो कि उसे समझ में नहीं आईं। लड़की ने समझा कि शायद उसकी हत्या कर दी जाएगी या किसी और के हवाले कर दिया जाएगा। उसके बाद मैं पहुंच गया। उसने बताया कि जब मैं उसके कमरे में प्रविष्ट हुआ तो वह समझी कि मैं वह व्यक्ति हूं जिसके हवाले उसे सेठ करेगा परंतु सेठ ने बाहर का दरवाजा खुलते ही कमरे का दरवाजा जरा सा खोला और दरवाजा बंद करके पलंग के नीचे चला गया।
लड़की रोती थी और बार-बार अपने भाई का नाम लेती थी। मुझे उसके भाई पर भी क्रोध आ रहा था जिसने अपने प्रेम के चक्कर में अपनी बहन को बलि चढ़ा दिया था। वह अपने भाई के पापों की सजा भुगत रही थी।
दूसरे दिन इन दोनों सेठों का और उसके पहरेदार का रिमांड लेना था। मैंने ए०एस०आई० से कहा कि तीनों को मजिस्ट्रेट के पास सात दिन के रिमांड के लिए ले जाओ।
ए०एस०आई० चला गया और फिर आकर बताया कि दोनों हथकड़ी नहीँ लगवा रहे हैंं ओर रिश्वत दे रहे हैं कि पांच-पांच हज़ार रुपये ले लो। हथकडियां ना लगाओ।
मैं उठा। हवालात के दरवाजे तक गया। दो कांस्टेबल हथकड़ी लिए खड़े थे और सेठ बाहर नहीं आ रहे थे। मैंने हवालात का दरवाजा खुलवाया हथकड़ी वाले कांस्टेबलों को अंदर ले गया सेठों से कहा - "आगे आओ दोनों हाथ आगे करो।"
ए०एस०आई० ने चार कांस्टेबल और बुला लिए उन्हें कहा - "अगर सीधे तरीके से हथकड़ियां नहीं पहनोगे तो जमीन पर लिटा कर हथकड़ी लगकर और घसीट कर कचहरी तक ले जाऊंगा।" दोनों ने हाथ आगे कर दिए। उन्हें हथकड़ियां लगाकर बाहर निकाला गया। मैंने सावधानीवश ए०एस०आई० के साथ दो के स्थान पर चार कांस्टेबल साथ भेज दिए।
लगभग एक घंटे बाद ए०एस०आई० वापस आ गया। उसने बताया कि रास्ते में लोगों की भीड़ लग गई थी। रिमांड लेकर निकले तो भीड़ नारे लगाने लगी। अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद। वह समझ रहे थे कि उन्हें किसी राजनैतिक कारण से गिरफ्तार किया गया है।
उसके बाद मैंने सेंध की वारदात की यह तफ्तीश की के मुंशी की फोटो जो सेठ की बेटी की किताब से बरामद हुई थी वह निकाली। उसके पीछे उस फोटोग्राफर की दुकान की मोहर लगी हुई थी जिससे उसने तस्वीर उतरवई थी। मैंने तस्वीर उस दुकान पर भेज दी और कहा कि यदि इसका नेगेटिव सुरक्षित हो तो आठ कापियां शाम से पहले पहले तैयार कर दें। शाम तक मुझे आठ कापिया मिल गईं। मैंने अगले दिन हेड क्वार्टर को यह तस्वीरें भेज कर कहा कि यह आरोपी आगरा में है और सेंध की घटना में वांटेड है। आगरा पुलिस से कहा जाए कि उसे तलाश करें।
उस ज़माने में पुलिस की व्यवस्था बहुत सही थी। दसवें दिन मुझे सूचना मिली कि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। मैंने जवाब दिया कि उसे वहीं रहने दिया जाए। मैं उसके घर की तलाशी लेकर यहां लाऊंगा।
इन दस दिनों में सेठों ने अपनी जमानत याचिका दायर की जो कि रद्द हो गई। सात दिन का रिमांड समाप्त हो चुका था और मैंने अधिक रिमांड नहीं लिया क्योंकि मुझे उनकी आवश्यकता नहीं थी। उन्हें ज्यूडिशियल हवालात जेल भेज दिया गया वहां जाकर आठवें दिन उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

 

विमला शकीला बन गई

 

मैं आगरा गया। मुसलमान मुंशी थाने की हवालात में बंद था। मैंने तस्वीर से उसका चेहरा मिलाया नाम पूछा बाप का नाम पूछा और विश्वास कर लिया के यही मुंशी है। उसने वहां दुकान खोल ली थी। वह उसी दुकान से गिरफ्तार किया गया था। मैंने कानून के मुताबिक उसकी घर की तलाशी ली। सेठ की बेटी विमला घर में थी। बहुत सुंदर लड़की थी। मैं जब वहां के थानेदार के साथ उसके घर में प्रविष्ट हुआ और उसने मुंशी को हथकड़ी में देखा तो उसका रंग उड़ गया। मैंने उससे पूछाः
"तुम्हारा नाम विमला है ?"
"नहीं।" - उसने उत्तर दिया - "अब मेरा नाम शकीला है।"
"मुसलमान हो गई हो?"
"हां।"
"सेठ की बेटी हो?"
"हां। - उसने कहा - "अब इस (मुंशी) की पत्नी हूं।"
मैंने दोनों से कहा - "मैं तुम्हें जैसा कहूं वैसा करो। मुझे परेशान करोगे तो बहुत परेशान होगे। सेठ के घर से जितना माल निकाला है वह खुद ही निकाल दो।"
मैंने मुंशी से कहा - "अब तुम्हारी हेरा -फेरी बेकार है। तुम्हारा एक साथी पकड़ा गया है। प्रमाण मिल गया है।"
"कौन सा साथी?" - मुंशी ने पूछा।
"जिसका कंधा ईट के कोने से कट गया था।" - मैंने कहा - "उसका नाम बताऊं?"
"अंदर चलिए।" - मुंशी ने कहा फिर उसने पत्नी को संकेत से बुलाया और कहा - "ट्रंक खोल दो।"
विमला ने गहने और रेशमी कपड़े निकाल दिए। गहने एक कपड़े में बंधे हुए थे। उनके डिब्बे यह लोग मकान के बाहर फेंक आए थे। नकदी केवल ग्यारह हज़ार मिली। मुंशी ने बताया कि छत्तीस हज़ार थी। उसमें से पन्द्रह हजार दुकान में लगा दिए और बाकी भागीदारों को दे दिए। मैंने चैन की सांस ली। मुंशी ने मेरा काम आसान कर दिया था। मैंने तलाशी की कार्रवाई पूरी की वहां के दो गवाहों के बरामदगी पर हस्ताक्षर लिए और विमला को भी हिरासत में ले लिया क्योंकि माल उसके कब्जे से बरामद हुआ था। यदि वह सेठ की बेटी ना होती यानी सेंध वाले घर की सदस्य ना होती तो उसकी गिरफ्तारी का कोई औचित्य नहीं था। मैंने उसे अपराध के सहयोग के आरोप में हिरासतमें लिया था।
रेलगाड़ी में मैंने एक छोटा कंपार्टमेंट खाली करा लिया। क्योंकि मेरे साथ आरोपी थे। यात्रा छह-सात घंटों की थी। मेरे साथ दो कांस्टेबल थे। गाड़ी चली तो मैंने मुंशी और विमला को अपने पास बैठा लिया। विमला के आंसू बह रहे थे।
मुंशी ने कहा - "आपको पता नहीं के सेठ ने मेरी बहन को अग़वा (किडनैप) कर लिया है और आपसे पहले जो थानेदार था उसने मुझे अपमानित करके थाने से बाहर निकाल दिया था।"
"तुम्हारी बहन को मैंने बरामद कर लिया है।" - मैंने कहा - "उसके बयान मजिस्ट्रेट के सामने हो गए हैं। सेठ को और सेठ के साथ साथी को गिरफ्तार कर लिया है उनके साथ एक और आरोपी पकड़ रखा है। वह सब जेल में हैं। थानेदार सस्पेंड हो चुका है और उसके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई हो रही है और यह केवल मेरे प्रयास का परिणाम है।"- मैंने विमला से पूछा - "अपने पिता के संबंध में तुम्हारी क्या राय है?"
"मैं कहती हूं कि उसे कल मरना हो तो अभी मर जाए ।उस शराबी ने मेरी मां को हमेशा परेशान रखा फिर इसकी बहन को अग़वा (किडनैप) कराया।"
"आपको मेरी बहन का सुराग़ (सूत्र) कैसे मिला था ?" - मुंशी ने कहा - "मैं आपकी बात पर विश्वास नहीं कर सकता और इस पर तो मैं विश्वास कर ही नहीं सकता कि आपने सेठ को गिरफ्तार कर लिया है।"
मैंने उसे उसकी बहन का नाम बताया। दो निशानियां बताईं। सारांश यह कि मैंने उसे विश्वास दिला दिया कि उस की बहन को मैं बरामद कर चुका हूं। मैंने उसे सेंध की सारी कार्रवाई सुनाई जो मैं कर चुका था। फिर मैंने मुंशी से कहा कि मुझे सारा माजरा विस्तारपूर्वक बताओ


बेटी का प्रतिशोध बहन से लिया


उसने जो कहानी सुनाई वह संक्षेप में इस प्रकार है कि वह सेठ का मुंशी था और उसकी घर जाया करता था। सेठ के बच्चे बड़े हुए तो वह शाम के समय उन्हें पढ़ाने के लिए जाने लगा। सेठ की बेटी विमला उसे पसंद करने लगी। उनके प्रेम की बेल बढ़ने लगी। फिर वह दिन आया जब सेठ और सेठानी ने उन्हें पकड़ लिया। मुंशी को सेठ ने नौकरी से ना निकाला। उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला उत्पन्न हो गई थी। उसने मुंशी से कहा कि वह माफी मांग ले तो उसे नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। मुंशी ने माफी मांग ली। दो दिन पश्चात मुंशी शाम के समय अपने घर गया तो वहां ताला लगा हुआ था। उसने अड़ोस-पड़ोस में अपनी बहन को ढूंढा। वह कहीं भी ना मिली। मोहल्ले के एक व्यक्ति ने उसे बताया कि उसने सेठ के नौकर को उसकी घर में प्रविष्ट होते देखा था। एक औरत ने उसे बताया कि उसने लड़की को बाहर ताला लगाते देखा था और उससे पूछा था कि कहां जा रही हो उसने बताया था कि भाई ने सेठ के घर बुलाया है मुंशी सेठ के घर चला गया। सेठ घर नहीं था। उसने सेठानी और उसकी बेटी विमला को बताया कि उसकी बहन लापता है और मोहल्ले के लोगों ने बताया है कि उनका नौकर उसे अपने साथ ले गया था। नौकर से पूछा तो उसने अनभिज्ञता प्रकट की। मुंशी ने मुझे बताया कि नौकर का हाव-भाव बता रहा था कि वह झूठ बोल रहा है। सेठानी ने चुप्पी साध ली थी। विमला ने गुस्से में अपने पिता के विरुद्ध दो-चार बातें कीं। सेठानी पहले ही सेठ के दुर्व्यवहार से तंग थी। मुंशी ने नौकर को बाहर ले जाकर डराया-धमकाया और कहा कि वह उसकी हत्या कर देगा।
नौकर डर गया। उसने मुंशी को बता दिया और कहा कि - "मेरा तुम्हारी बहन के साथ कोई संबंध नहीं है। सेठ ने उसे गायब कराया है। मुझे नहीं पता कि वह कहां है।"- मुंशी ने अंदर जाकर सेठानी और विमला को यह बताया कि नौकर ने क्या रहस्योद्घाटन किया है। मुंशी सेठ के पास चला गया। सेठ ने मुंशी से कहा - "अब तुम समझ जाओगे के दूसरों की बेटियों को खराब करने का क्या परिणाम होता है। ढूंढो अपनी बहन को।"
मुंशी थाने गया। थानेदार ने भी उसे भगा दिया। वह फिर सेठ की दुकान पर गया और उन दोनों में गर्मा-गर्मी हुई जिस के बाद सेठ ने उसे नौकरी से निकाल दिया। मुंशी ने उसे धमकी दी और चला गया। वह सेठ के घर गया। सेठानी घर नहीं थी। मुंशी ने विमला को बताया कि उसके साथ थाने में क्या हुआ और सेठ ने उसे क्या कहा है। विमला भड़क उठी। उसने मुंशी से कहा कि वे जानती है कि उसके बाप ने मुंशी की बहन को प्रतिशोध में किडनेप कराया है। फिर कुछ विचार के बाद उसने कहा कि कल एक स्थान पर मिलो।
अगले दिन मुंशी और विमलख की घर से दूर मुलाकात हुई। विमला ने मुंशी को बताया कि रात उसने और उसकी मां ने सेठ से कहा कि मुंशी की बहन को उसने खुद ने अग़वा कराया है। उसे घर भेज दे। सेठ शराब पिये हुए था। उसने सेठानी और विमला को खूब पीटा और नशे में यह भी बता दिया कि लड़की को उसी ने किडनेप कराया है। जिस में हिम्मत है वह मुझसे लड़की छुड़वाने आजाए। विमला ने मुंशी से कहा कि वह उसके साथ घर से भाग जाने चाहती है। वह कुछ रुपए भी घर से ले आएगी। परंतु इस शहर से निकलना होगा। सारांश एक दिन विमला ने मुंशी के साथ भाग जाने का इरादा कर लिया।

 

फरार और सेंध

 

दो दिन बाद वह फिर मिले और भागने का प्रोग्राम सुनिश्चित हो गया। शाम के बाद विमला चोरी छिपे घर से निकली और मुंशी के घर पहुंच गई। वह अपने साथ तीन हज़ार रुपये भी ले आई थी।
मुंशी प्रतीक्षारत था। उसका एक सहपाठी मित्र था जो आगरा में नौकरी करता था। वह उसे लेकर अपने मित्र के पास पहुंच गया। मित्र ने उन्हें आश्रय दिया। उसका यह मित्र अदालत में कर्मचारी था। उसने उन्हें एक दुकान दिला दी। जो रुपए विमला लेकर गई थी उन रुपयों से उसने दुकान खोल ली। फिर विमला ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया और मुंशी से शादी कर ली और उसने मजिस्ट्रेट के सामने भी बयान दिया कि वह बालिग़ है और अपनी इच्छा से इस व्यक्ति के साथ आई है और अपने इच्छा से इस्लाम धर्म स्वीकार करके उसके साथ शादी कर रही है।
मुंशी दो बार अपने घर गया पर वहां ताला लगा हुआ था। उसके अंदर प्रतिशोध की आग भड़क उठी। एक दिन उसने विमला से कहा कि उसे उसके पिता से बदला लेना है।
विमला ने कहा कि उसके पिता को अपने माल दौलत पर बहुत घमंड है इसलिए उसका माल उड़ाया जाए। विमला ने उसे बता दिया कि माल कहां रखा है। उसके बाद मुंशी शहर में गया और अपने अपराधी मित्रों से मिलकर उसने दो व्यक्ति अपने साथ तैयार कर लिए जिनमें एक वह था जिसका कंधा घायल हो गया था और मेरी हवालात में बंद था। वह सेंध के कार्य से परिचित था। उसने शहर से छह मील दूर से एक और सेंध लगाने वाला बुला लिया जो कि सेंध लगाने में पारंगत था। घटना के समय मुंशी उनके साथ था।
सेंध लगाई गई। मुंशी उनके साथ अंदर गया और वही ट्रंक और अटैचीकेस उठाया जिनके संबंध में विमला ने उसे बताया था। रात का लगभग ढाई बजे का समय था। पहला व्यक्ति जो अंदर गया वह यह घायल आरोपी था। ईंट के कोने ने उसका कंधा चीर दिया। वह पीछे हटा और सलाख़ मारकर कोना तोड़ दिया। यही वह कौना था जो मैंने घटनास्थल से उठाया और आरोपी को पकड़ा था। ट्रंक और अटैचीकेस बाहर लाकर उन्होंने नगदी,गहने और कपड़े अटैचीकेस में डाले। गहनो के डिब्बे फेंक दिए। दोनों आरोपियों ने अपना-अपना हिस्सा वसूल किया और मुंशी अटैचीकेस उठाए रेलवे स्टेशन पहुंच गया।
मुंशी आगरा पहुंचा। विमला उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुई। दूसरे दिन मुंशी ने बहुत सा माल खरीद कर दुकान में भर लिया। मुंशी ने अपने दोनों पत्रों का भी उल्लेख किया और बताया के पहला पत्र पोस्ट करने के कुछ दिनों बाद वह रात के समय अपने शहर गया और घर जाकर देखा कि उसकी बहन आ गई है या नहीं। फिर उसने दूसरा पत्र लिखा और उसके पश्चात यह घटना की। उसने कहा - "उसके बाद मेरा प्रोग्राम ये था कि सेठ घर को आग लगा दूंगा और उसके बाद सेठ की हत्या करने का प्रोग्राम था।"
यह दोनों सेंध के आरोपी थे मैं इन्हें छोड़ नहीं सकता था।
मैंने उन्हें सात दिन के रिमांड पर हवालात में रखा। उसके पश्चात बयान के लिए मजिस्ट्रेट के सामने ले गया।
मुंशी बहुत होशियार व्यक्ति था। मजिस्ट्रेट के सामने जाकर वह गिर गया और बेहोश हो गया। दूसरा आरोपी सर पकड़कर बैठ गया और विमला ने रोना शुरु कर दिया और मजिस्ट्रेट को ऐसा दर्शाया के पुलिस ने उन्हें टॉर्चर किया है।
मुंशी पांच मिनट बाद होश में आ गया। मजिस्ट्रेट उन्हें चेंबर में ले गया। मैं कांस्टेबलों के साथ बाहर प्रतीक्षा करता रहा। आधे घंटे बाद मजिस्ट्रेट ने बाहर आकर मुझे सूचना दी। "आरोपियों को मैं जेल में भेज रहा हूं। इक़बालिया बयान नहीं हो रहा।" - मुझे एसे ही कुछ आशा थी। तीनों जेल चले गए। वहां जेल से जेलर द्वारा उन्होंने वकील किया। उसने तीनों की जमानत की याचिका दायर की। मैंने विरोध नहीं किया। तीनों ज़मानत पर.रिहा हो गए।

 


अंततः इंसाफ़ हुआ

 


केस कोर्ट में गया। गवाहियाँ प्रस्तुत हुईं।
बेटी की ओर से वकील ने सेठ पर जिरह प्रारंभ की तो वह इतना अधिक शर्मिंदा हुआ कि एक बार तो सेठ ने चिल्लाकर मजिस्ट्रेट से कहा - "मैं यह अपमान सहन नहीं कर सकता। ऐसे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दूंगा।" - परंतु उसे उत्तर देने पड़े।
सेठ के विरुद्ध जो आरोप थे उनमें बलात्कार का भी आरोप था। डॉ की रिपोर्ट के अनुसार लड़की जब उसके पास ले जाइ गई तो कुछ देर पहले उसकी साथ बलात्कार किया गया था और यह बलात्कार सेठ ने किया था। उसके विरुद्ध मुकदमा बहुत मजबूत था।
अंत में विमला का बयान हुआ। जब उसका बयान हुआ तो मैं कांप गया। बेटी ने बाप के विरुद्ध ऐसी-ऐसी ऐसी बातें कि मजिस्ट्रेट ने भी दांतो तले उंगली दबा ली। उसने यह भी कहा - "मेरा बाप मेरी मां के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। उसे ख़र्च के लिए कोई पैसे नहीं देता था। मैं उसकी बेटी हूं अपने घर से पूरी तरह परिचित थी। मेरा बाप घर में कोई पैसे नहीं रखता था। हमारे घर में इतनी रकम कभी आई ही नहीं जितनी यह बताता है कि चोरी हुई है। इसे मेरी मां की बजाए घर के नौकरों पर विश्वास था। वह उसे घर का खर्च दिया करता था। यही वह नौकर है जिसने मेरे पति की बहन धोखे से अपहरण करके उस के हवाले की थी। मुझे अपने पति से प्रेम है या नहीं ये अलग मामला है। मैं घर से अपने पिता की करतूत और अत्याचार से तंग होकर भागी थी।"
मजिस्ट्रेट ने पूछा - "क्या शादी से पहले आरोपी के साथ तुम्हारे अवेध संबंध थे।"

"जी हां।"- विमला ने उत्तर दिया और कहा - "पिता ने एक बार हमें रंगे हाथों पकड़ लिया था। उसका प्रतिरोध लेने के लिए उसने मेरे पति की बहन को अपहरण करवाया और अब इस्पेक्टर को रिश्वत देकर हम दोनों को आगरा से गिरफ्तार करवाया है।"
अदालत में जो कुछ हुआ वह भी इतना दिलचस्प और सनसनीख़ेज़ था के उस पर पूरी किताब लिख सकता हूं। मजिस्ट्रेट ऐसा चकराया के उसने केस सेशन के सुपुर्द कर दिया। वहां भी वही हंगामे हुए। अंततः सेशन जज ने तीनों आरोपियों को मुंशी, विमला,और घायल आरोपी को बरी कर दिया। निर्णय में जज ने मेरे विरुद्ध भी हल्के से रिमार्क्स लिखे।
इस केस के साथ दोनों सेठों के विरुद्ध मुंशी की बहन का केस चल रहा था। इस केस की सफलता के लिए मैंने बहुत भेजा खपाया था। यह केस भी सेशन कोर्ट में गया। तीन महीने बाद विमला के बाप को तीन धिराओं के अंतर्गत सजा सुनाई गई। अपहरण, तीन साल, बलात्कार,पांच साल, अवेध रुप से बंधी बनाना, तीन साल। और विशेष बात यह हुई कि जज ने लिखा कि यह सजाएं एक दूसरे के बाद आरंभ होंगी। समान्यतः सजाएं इकट्ठी शुरू होती हैं परंतु सेठ ग्यारह साल के लिए अंदर चला गया। दूसरा सेठ दो साल के लिए अंदर हुआ। पहरेदार और नौकर को दो-दो साल सजा दी गई। उन्होंने अपील की जो हाई कोर्ट ने निरस्त कर दी।
पहले वाले इस्पेक्टर के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई हुई और उसको नौकरी से निकाल दिया गया। मुंशी और विमला आगरा चले गए और अपने बहन को भी साथ ले गए।


समाप्त