चोर 333star Star द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

चोर

 


वह एक पब्लिशिंग हाउस में मुलाजिम था।
यह पब्लिशिंग हाउस अधिकतर बच्चों की किताबें छापता था। बच्चों की एक मासिक पत्रिका भी निकालता था इस मासिक पत्रिका की सेलिंग बहुत अधिक कोशिशों के बावजूद भी दो हज़ार की संख्या को पार नहीं कर सकी थी। वह उसी मासिक पत्रिका का एडिटर था।
उसका नाम उल्फत खान था मैं उसे सिर्फ खान कहा करता था। मैं उस प्रकाशन संस्थान में मैनेजर की हैसियत से मुलाजिम था। खान की पर्सनालिटी की तरह उसकी उम्र भी कश्मीर समस्या बनी हुई थी। किसी का ख्याल था कि वह साठ साल का है कोई उसे पचपन साल का मानता था लेकिन कोई उसे पचास साल से कम का मानने को तैयार नहीं था। उसकी उम्र जो भी थी वह अपनी असल उम्र से दस साल कम लगता था।
कसरती बदन,भरे भरे बाजू, उभरा हुआ सीना, तेज़ चाल, रंगे हुए बाल सांवला रंग अपने अंदाज़ और रखरखाव से वह खुद को जवान साबित करने की कोशिश करता।
मैंने उसे हमेशा पेंट शर्ट में ही देखा। मेरे ख्याल में उसके पास दो से ज्यादा पेंट नहीं थीं। एक काली थी और एक नेवी ब्लू। दो तीन ही कमीजें होंगी। एक सफ़ेद थी और एक लाल चेक की थी शायद एक धारी वाली भी थी। वह पेंट पर बेल्ट लगाता था। चमड़े की बेल्ट बहुत पुरानी और घिसी-पिटी थी। बेल्ट वह बहुत कस कर बांधता था। शायद इसलिए कि पेट बाहर को निकला हुआ नज़र ना आए।
खान की पर्सनालिटी बहुत रहस्यमयी थी। उसके बारे में तरह-तरह की कहानियां मशहूर थीं बल्कि उस आफ़िस मे जितने भी मुलाजिम या यह कहना चाहिए कि जितने मुंह थे उतने ही कहानियां थीं। वह उस आफ़िस में चार पांच साल से था लेकिन वह अभी तक किसी से बेतकल्लुफ़ नहीं हुआ था।
दफ़्तर खामोशी से आता काम करता और खामोशी से चला जाता। उसका कोई दोस्त नहीं था या उसने खुद किसी को दोस्त बनाने की कोशिश नहीं की थी। उस अलग-थलग रहने की वजह से वह और रहस्यमयी बन गया था।
दोपहर को दफ़्तर के लोग या तो खाना दफ्तर में ही मंगवा लेते थे या बाहर जाकर खा आते थे। खाना अंदर खाते या बाहर जाकर खाते----खाते एक साथ ही थे।
लेकिन खान ऐसा आदमी था जो किसी के साथ जाना पसंद नहीं करता था। बल्कि वह अकेले ही बाहर जाकर खाना खा आता। शुरू में लोगों ने उसे अपने साथ चलने या दफ़्तर में साथ खाने को इन्वाइट भी किया लेकिन उसने मुस्कुरा कर टाल दिया।
दफ्तर में वह सिर्फ दो आदमियों से थोड़ा सा बेतकल्लुफ था। उनमें एक मैं था और दूसरा मैगजीन का उप-संपादक तौक़ीर। लेकिन वह अपने दिल की बात फिर भी हम लोगों से नहीं करता था।
कुछ का विचार था कि ख़ान ने दो नाकाम शादियां कीं। कुछ कहते उसने सिरे से कोई शादी ही नहीं की। इश्क का मारा है। किसी से इश्क किया वहां शादी न हो सकी तो उसने ज़िंदगी भर कुंवारा रहने की क़सम खा ली।
कुछ कहते अबे नहीं यार उसने एक विधवा से शादी की थी वह बड़े तेज़ मिज़ाज की थी। उससे निभ नहीं सकी तो उसने तलाक दे दी। उस औरत से एक बच्ची हुई थी वह अब जवान है लेकिन यह उससे नहीं मिलता। वह मां के पास ही रहती है।
कुछ कहते नहीं भई खान साहब ने एक कमसिन लड़की से शादी की थी पहले यह एक अखबार में बच्चों के पेज के इंचार्ज थे वहां उनके पास बहुत बच्चियां आती थीं वह बच्ची भी उन्ही में से एक थी पता नहीं मां बाप ने इतनी उम्र के आदमी से शादी कैसे कर दी। खैर शादी हो गई और वह दूसरे दिन लड़की ने तलाक भी मांग ली। तलाक क्यों मांग ली इस सिलसिले में कहने वाला जो कुछ भी कहता बड़ा रंगीन होता।
वह कभी-कभी मेरे पास आ जाता था लेकिन मुझे याद नहीं की वह कभी बिना ज़रूरत मेरे पास आया हो। मेरे पास आता तो मैं बड़ी हमदर्दी से उसकी बात सुनता कोई प्रॉब्लम होती तो उसे हल करता। वह बात खत्म होते ही उठकर जाने लगता तो मैं उसे जिद कर के बैठा लेता चपरासी से कहकर उसके लिए चाय मंगवाता और फिर उससे इधर-उधर की बातें करता रहता।
वह बच्चों की मैगजीन का एडिटर ही नहीं बल्कि बच्चों की कहानियों का राइटर भी था। उस संस्थान से उसकी कई किताबें छप चुकी थीं। यहां आने से पहले वह एक वह एक दैनिक में बच्चों के पेज का इंचार्ज था। उस वक़्त उसका हमारे संस्थान से कुछ ताल्लुक था। इस संस्थान के मालिक इरफान साहब से उसकी दोस्ती थी जब इरफान साहब का इस संस्थान से बच्चों की मासिक पत्रिका निकालने का इरादा हुआ तो उनकी नज़र बतौर एडिटर उल्फत खान पर पड़ी। और इस तरह वह एडिटर बनने की आरजू में इस संस्थान से जुड़ गए। इस संस्थान में बच्चों के लेखकों के जितने मसौदे प्राप्त होते उनको पढ़ना उनसे काम के मसौदे निकालना और फिर ज़रुरत के मुताबिक उन्हें दुरुस्त करना उसकी अतिरिक्त जिम्मेदारी थी।
दफ्तर के अक्सर लोग उससे मजाक करते रहते थे उसे छेड़ते रहते थे और उन्हीं छेड़ने वालों में इस संस्थान का फोटोग्राफर आफ़ाक भी था। वह बच्चों की मैगजीन के लिए काम करता था कवर के लिए ट्रांसपेरेंसी बनाता था इसके अलावा अंदर के पन्नों के लिए ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें भी बनाता था। उसका अधिकतर वास्ता खान से ही था। वह बहुत ज्यादा शरारती लड़का था। खान को किसी किस्म का मजाक बर्दाश्त नहीं था और वह मजाक किए बिना बाज़ नहीं आता था। नतीजा यह होता कि दोनों में नोक-झोंक शुरू हो जाती और कभी-कभी बात बहुत ज्यादा बढ़ जाती। मुझे मालूम होता तो मैं फ़ौरन आफ़ाक को बुलाकर डांटता इस तरह बात रफ़ा-दफा हो जाती।
एक दिन आफ़ाक मेरे केबिन में शरारत भरी मुस्कुराहट लिए दाखिल हुआ और बोला "शाह जी, मैं आपके लिए एक बड़ी नायाब तस्वीर लेकर आया हूं आप देखेंगे तो जी खुश होजाएगा।"
"यार आफ़ाक तुम शाम को मेरे पास आना, इस वक्त में बहुत बिजी हूं तुम्हारी बेकार बातें सुनने के लिए फ़िलहाल मेरे पास वक्त नहीं है।" मैंने उसे टालना चाहा।
"ओहो शाह जी! आप समझ रहे हैं मैं मजाक कर रहा हूं। खुदा के वास्ते वह तस्वीर तो देख लें अगर जी खुश ना हो तो मुझ पर सौ जूते बरसाएं म अगर कुछ बोल जाऊं तो जो चोर की सजा वही मेरी सजा।"
मुझे मालूम था कि उसने अभी बातचीत छेड़ी है जाने कितनी बकवास और करेगा इसलिए मैंने फ़ौरन काला "दिखाओ क्या है तुम्हारे पास?"
"शाह जी! नाराज होकर देखेंगे तो क्या खाक मजा आएगा।"
"अच्छा अब दिखाओ भी या मैं चपरासी को बुलाऊं।" मैंने हंसकर उसे धमकी दी।
"चपरासी को तो ख़ैर आपको बुलाना ही पड़ेगा, मुझे निकलवाने के लिए नहीं, उल्फत खान को बुलवाने के लिए।"
"खान का तस्वीर से क्या ताल्लुक है?"
"बड़ा गहरा तालुक है।" आफ़ाक ने एक लिफ़ाफ़े से तस्वीर निकालते हुए कहा। "लीजिए यह देखिए।"
जब मैंने उसके हाथ से तस्वीर लेकर देखी तो मेरे मुह से हंसी निकल गई। "कमबख्त तूने यह तस्वीर किस तरह तरह उतारी।"
"शाह जी मैं ना कहता था कि तस्वीर देखकर आपका जी खुश हो जाएगा। आखिर आपको मजा आ गया ना।"
"यार! वाकई यह तस्वीर तो कमाल की है कितनी नेचुरल।"
"यह काम होता है दफ्तर में बैठकर, आपने देखा।" आफ़ाक ने कहा।
"यह तस्वीर अगर इरफान साहब को दिखा दी जाए तो वह उल्फ़त खान को खड़े खड़े निकाल दें। इस तरह की कोताही वह किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करते।"
"फिर दिखा दूं यह तस्वीर इरफ़ान साहब को।"
मैंने कहा "नहीं ऐसा गजब ना करना बेकार में बड़े मियां की नौकरी चली जाएगी। वैसे यह है कमाल का पोज़, खान को दिखाना चाहिए ज़रा तफ़रीह रहेगी।"
"शाह जी! क्यों मुझे गालियां खिलवाना चाह रहे हैं, यह काम मेरी गैर मौजूदगी में करें।"
"अच्छा ठीक है तुम जाओ।" मैंने कहा
"तफ़रीह के साथ जरा उन्हें कस भी दें ताकि आगे से इस तरह की, कोताही ना हो।"
"हां मैंने समझा दूंगा।" मैंने कहा और आफ़ाक के जाने के बाद घंटी बजा बजाई, चपरासी अंदर दाखिल हुआ।
"जी साहब?"
"उल्फ़त खाना आए हैं?" मैंने पूछा।
"जी साहब अभी आए हैं।"
"जरा होने बुलाओ।"
चपरासी के जाने के एक मिनट बाद उल्फ़त खान अपने सांवली सूरत पर मुस्कुराहट सजाए बड़ी तेजी से मेरे केबिन में दाखिल हुए वह एक कुर्सी घसीट कर बैठते हुए बोले "जी अखलाक़ साहब?"
मैंने कहा "खान साहब एक बात तो बताएं।"
"जी हुक्म सर।" उनके लहज़े में बड़ी आज्ञाकारिता थी।
"आजकल आप की रात की व्यस्तता क्या है?"
"मैं समझा नहीं अखलाक साहब?"
"मैं यह पूछना चाह रहा हूं कि रात को आप देर तक जागते हैं?"
"जी नहीं तो।" खान ने जल्दी से कहा "मैं दस ग्यारह बजे के बीच सो जाता हूं।"
"फिर क्या वजह है?" मैंने उन्हें घूर कर देखते हुए कहा "शायद दफ्तर में काम कम है।"
"आखिर हुआ क्या?" वह गड़बड़ा गए।
"हुआ यह है कि आपकी नौकरी खतरे में है।"
यह सुनकर उनके होश उड़ गए। रंग पीला पढ़ गया। घबराकर बोले।
"जी आप क्या कह रहे हैं?"
"मैं ठीक कह रहा हूं, आप ज़रा यह तस्वीर देखें।" मैंने बड़े नाटकीय अंदाज़ में तस्वीर उनके सामने रखी। "यह है मुंह बोलता सबूत।"
तस्वीर देखकर तो उनके पसीने छुट गए तस्वीर उनके हाथों में कांपने लगी। "यह तस्वीर किसने उतारी है?"
"यह तस्वीर जिसने भी उतारी है, वैसे है खतरनाक, आपकी नौकरी जा सकती है। आपको आपको शायद मालूम नहीं कि इरफान साहब इन मामलों में कितने ज्यादा सख़्त हैं।"
"वाकई मुझसे कोताही हो गई, आगे से ख्याल रखूंगा।"
"अगर ज्यादा ख़्याल ना रखें तो कम से कम इतना ख़्याल तो रखें कि आइंदा सोते हुए मुंह इतना खुला हुआ नज़र ना आए।" मैंने हंसते हुए कहा फिर वह तस्वीर उन से लेकर फाड़ दी। उन्होंने बड़ी कृतज्ञता से मुझे देखा।
"हां एक बात का और ख़याल रखियेगा। इस तस्वीर बनाने वाले को तो आपने पहचान लिया होगा। उसे आप एक शरीर लड़का समझ कर माफ कर दीजिएगा। क्योंकि तस्वीर उसने किसी बुरी नीयत से नहीं उतारी सिर्फ आपको सावधान करने के लिए उतारी है। अगर इरफान साहब ने आपको दफ्तर में सोते हुए देख लिया तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे।"
"नहीं अख़लाक़ साहब! आप फिक्र ना करें। आगे से ऐसा नहीं होगा। और मैं आफ़ाक़ को भी कुछ नहीं कहूंगा।"
और उन्होंने वाकई इस बारे में अफाक से बात नहीं की लेकिन आफ़ाक अपनी शरारत उसे बाज़ नहीं आया। उसने शोरुम के सेल्समैन से लेकर दफ़्तर के चपरासी तक सबको यह तस्वीर दिखा दी और अगर किसी ने की तस्वीर अपने पास रखने को मांगी तो उसे दे भी दी लेकिन यह अच्छा हुआ कि यह बात किसी ने इरफान साहब तक नहीं पहुंचाई सब ने उसको हंसने का जरिया ही समझा किसी ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं की।
एक दिन फिर आफ़ाक शरारत भरी मुस्कुरा लिए मेरे केबिन में आया और खामोशी से खड़ा हो गया।
"हां भई आफ़ाक साहब! कैसे आना हुआ?" मैंने पूछा।
"आपके लिए एक ख़बर लेकर आया हूं।" शरारती मुस्कुराहट पहले की तरह उसके होठों पर थी।
"अच्छा वह क्या?" मैंने हैरत से कहा।
"उल्फत खान साहब शादी के चक्कर में हैं।" उसने बताया।
"वाकई, लेकिन तुम्हें कैसे मालूम हुआ?" मैंने पूछा।
"कल मेरी बाजी एक औरत को लेकर मेरे घर आई थीं, उनकी बेटी के लिए उन्होंने रिश्ता भेजा है। वह मेरे पास तस्दीक़ के लिए आई थीं। मुझसे कहती थीं कि आप के दफ़्तर में एक लड़का उल्फ़त खान है, वह कैसा है।"
"लड़का!" मैंने हैरत से कहा "भई खूब।"
"शाह जी सुनें तो। मैंने उन औरत से कहा इस नाम का कोई लड़का हमारे दफ्तर में नहीं। अलबत्ता उल्फत खान नाम के एक बड़े मियां ज़रुर हमारे यहां काम करते हैं। बड़े मियां पर उन्हें बड़ी हैरत हुई। पूछा कि अरे क्या उम्र होगी उसकी। मैंने कहा अट्ठावन साल से क्या कम होगी वह बोलीं अरे उसने बहुत कम बताई है मैंने पूछा आपकी लड़की की उम्र का होगी? कहने लगीं अरे मेरी बेटी तो पच्चीस -छब्बीस की है। उस हिसाब से तो वह मेरी लड़की का बाप लगेगा। बस फिर वह हमारे घर एक सेकंड नहीं रुकीं बाजी और मैं उन्हें रोकते ही रह गए।"
"यार तुम बड़े शरारती आदमी हो। हमारे बड़े मियां का काम खराब कर दिया।" मैंने नाराजगी से कहा।
"शाह जी! उन्हें अब ज़रूरत क्या है इस उम्र में शादी करने की। अगर करना ही है तो कोई तलाकशुदा या विधवा ढूंढें। यह कहां कुंवारी लड़कियों के पीछे पड़े हैं। यह ठीक है कि वह अपनी असली उम्र से दस साल छोटे लगते हैं लेकिन इस तरह असल उम्र तो कम नहीं हो सकती।"
"वह अकेला आदमी है और अकेलापन बड़ी जालिम चीज़ होती है। शायद इसीलिए वह शादी करना चाह रहा होगा।"
"जब इतनी उम्र बिना शादी के गुजार दी तो अब शादी करने की क्या ज़रुरत है।" वह बोला
"यह तुम कैसे कह सकते हो कि उसने अभी तक शादी नहीं की?" मैंने पूछा।
"हां उनके बारे में कोई बात यकीन से नहीं की जा सकती। वह इतने ज्यादा रहस्यमई आदमी है कि यहां कोई उनके बारे में ठीक से नहीं जानता। यह मेरा अनुमान है कि उन्होंने अभी तक शादी नहीं की। अगर की होगी तो बहुत पहले कभी की होगी जिसके अब आसार तक मिट गए हैं।"
"वैसे वह गलती कर रहा है। शादी करके नहीं, दफ्तर वालों को भरोसे में ना लेकर। उसे चाहिए कि अगर कोई ऐसी बात है तो हमें बता दे ताकि आइंदा कोई तस्दीक़ हो तो हम मामले को संभाल लें।"
यह बात तो मैंने अफाक से वैसे ही कह दी थी मुझे क्या पता था कि अगले कुछ दिनों में मुझे खुद इस सिचुएशन से गुजरना पड़ेगा। मेरा केबिन शोरुम के पीछे था। बीच में शीशे की दीवार थी जिस पर पर्दे पड़े हुए थे। मैं पर्दे हटा देता तो मुझे शोरुम साफ़ दिखाई देने लगता। क्योंकि शोरूम की निगरानी भी मेरी जिम्मेदारी थी इसलिए मैं दिन में एक दो घंटे के लिए पर्दे ज़रूर हटा देता था।
एक दिन इसी तरह मैं पर्दे हटा कर शोरुम की गहमागहमी देख रहा था कि मैंने एक फैशनेबल लेडी को शोरूम में दाखिल होते देखा। वह लेडि पर्र बगल में दबाए मटक मटक कर चलती हुई एक सेल्समेन के पास रुकी। सेल्समेन ने मेरी तरफ़ इशारा किया। मैं समझ गया कि उसने मेरे बारे में कुछ पूछा है। फिर जब वह औरत मेरे केबिन की तरफ़ बढ़ने लगी तो यकीन हो गया।
मेरे केबिन का एक दरवाजा शोरूम की तरफ़ भी खुलता था। वह उस दरवाजे से दाख़िल होकर बोली "मैं अंदर आ सकती हूं?"
"जी ज़रूर।" मैंने कहा "आ जाइए।"
"मुझे आपसे आके दफ्तर के एक मुलाजिम के बारे में कुछ जानकारी हासिल करना है।"
"किसके बारे में और क्यों?" मैंने सवाल किया।
"शादी का मामला है।" उन्होंने मुस्कुराकर कहा "मुझे उल्फत खान साहब के बारे में कुछ पूछना है वह कैसे आदमी हैं?"
"आदमी तो ठीक-ठाक ही हैं। ज़ाहिर है कि मैं दफ्तर भी के हवाले से ही बात कर सकता हूं।"
"उनकी उम्र क्या होगी?" सवाल हुआ।
"उन्होंने क्या बताई है?" मैंने पूछा।
"यही पैंतीस -छत्तीस।" वह बोली।
"इसमें दस-पंद्रह साल की और बढ़ोतरी कर लीजिए।" मैंने हंसकर कहा।
"मतलब पचास।" उन्होंने हैरत से कहा।
"यह तो एक मोटा सा अंदाज़ा है इससे ज्यादा भी हो सकती है।"
"यहां वह इस पोस्ट पर हैं और उनकी तनख्वाह क्या है उन्होंने खुद को एडिटर बताया है और तनख्वाह तीस हज़ार बताई है।" वह बोली।
"तनख्वाह में दस हज़ार कम कर लीजिए। वह बच्चों की मैग्ज़ीन के एडिटर है इसमें कोई शक नहीं।"
"यहां भी झूठ।" वह बोली "अपनी एजुकेशन के बारे में उन्होंने बताया एक कि वह इंग्लिश में एम० ए० हैं।"
"वह एम० ए० ज़रूर है लेकिन हिंदी में।" मेरे हंसकर कहा।
"तो यह बात है।" उन्होंने अपना पर्स उठाते हुए कहा।
"मैडम आपने ऐसा इंट्रोडक्शन नहीं दिया आप कौन हैं?"
"मैं एक सोशल वर्कर हूं मेरा नाम खालिदा है। मुझे किसी ने उल्फ़त साहब के बारे में बताया था कि वह शादी करना चाहते हैं। मेरे पास कई रिश्ते हैं। लड़की वालों से बात करने से पहले मैने उनके बारे में जानकारी लेना मुनासिब समझा यहां मुझे कई बातें मालूम हुईं। अब मैं उनके लिए उनके लेवल का रिश्ता तलाश करूंगी। अच्छा जानकारी के लिए आपका शुक्रिया।" यह कहकर उन्होंने अपना पर्स संभाला और खट-खट करती मेरे केबिन से निकल गई।
उस औरत के जाने के बाद मैं सोचता रहा कि मैंने सही जानकारी देकर अच्छा किया या बुरा अभी मैं इस मामले पर गौर कर ही रहा था कि उल्फत खान झिझकते शर्माते मेरे केबिन में दाखिल हुए।
"अखलाक़ साहब कैसे हैं आप?"
"जी मैं अच्छा हूं।"
"आपसे एक बात कहना थी।"
"जी कहिए।"
"शायद मेरे बारे में आपसे कोई तस्दीक़ करने आए।"
"कैसी तस्दीक? मैं समझा नहीं?"
"अखलाक साहब! बात को समझा करें ना बात को, एक दो जगह मेरे रिश्ते की बात चल रही है मैंने उन लोगों को आप का नाम बता दिया है कि अगर मेरे बारे में किसी तरह की तस्दीक की ज़रुरत हो तो अख़लाक साहब से बात कर लें। अखलाक़ साहब वैसे मुझे पूरी उम्मीद है की यहां कोई तस्दीक़ करने नहीं आएगा क्योंकि मेरी पर्सनालिटी ऐसी है कि लोग मुझ पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं अगर कोई भूला भटका आ जाए तो ज़रा संभाल लीजिएगा।" उन्होंने कहा।
"मैं किस तरह संभाल लूं यह भी बता दें?"
"अखलाक़ साहब! सबसे बड़ी प्रॉब्लम मेरी उम्र की है। कुछ थोड़ी सी ज़्यादा हो गई है लेकिन मैं देखने में तो बिल्कुल फिट लगता हूं। मैं अपने उम्र पैंतीस -छत्तीस बताता हूं।"
"शर्म नहीं आती।" मैंने सोचा।
"इसके अलावा मैंने अपनी सैलरी सबको तीस हज़ार रुपए बताई हुई है आप भी यही बताएं।"
"मतलब मैं ख्वामख़्वाह झूठ बोलूं।" मैंने सोचा।
"मेरी एजुकेशन के बारे में लोग पूछते हैं तो मैं उनसे एम० ए० कहता हूं। और मैं एम० ए० हूं भी। यह तो आप भी जानते हैं। कभी-कभी लोग मुझसे सब्जेक्ट पूछते हैं तो मैं उन्हें इंग्लिश बताता हूं। इस तरह ज़रा रौब पड़ा जाता है आप भी मेहरबानी करके ऐसा ही करें।"
मैंने जो मेहरबानी इनके साथ कर दी थी उसका उन्हें कुछ पता नहीं था। मैंने उन्हें बताना मुनासिब नहीं समझा लेकिन उनसे वादा कर लिया कि अगर कोई तस्दीक़को आया तो मैं उनकी मर्जी के मुताबिक जवाब दे दूंगा। मेरा जवाब सुनकर वह बहुत खुश हुए और मेरे बहुत ज्यादा शुक्रगुज़ार होते हुए अपने केबिन में चले गए।
उस औरत के बाद कोई और तस्दीक़ के लिए नहीं आया। मैं इंतजार ही करता रहा। उधर आफ़ाक ने भी कोई नई बात उनके बारे में नहीं बताई। इस तरह खामोशी से छह महीने गुजर गए।
फिर एक सुबह को धमाका हुआ। और यह धमाका आफाक ने किया।
मैं दफ्तर में अभी आकर बैठा ही था और आज जो काम करना थे उनका जाएज़ा ले रहा था कि आफ़ाक हीरो बना बड़े स्टाइल से मेरे केबिन में दाखिल हुआ।
"आज तो तुम्हारे तेवर ही कुछ ओर हैं, क्या किसी अख़बार में नौकरी मिल गई है?" मैंने उसे छेड़ा।
"शाह जी! बड़ी धमाकेदार ख़बर लेकर आया हूं। सुनेंगे तो कुर्सी से उछल पड़ेंगे।"
"फिर तो जल्दी सुनाओ।"
"आपके उल्फ़त खान ने शादी कर ली।"
"कब?"
"कल रात।"
"यार हमें तो उसने शादी में बुलाया नहीं।"
"उन्होंने दफ़्तर के किसी आदमी को नहीं बुलाया।"
"फिर तुम कैसे पहुंच गए?"
"मैं तो लड़की वालों की तरफ से इनवाइटिड था। उनकी शादी एक वेलफेयर सोसाइटी की तरफ से हुई है। लड़की है। उस सोसाइटी की डायरेक्टर ने मुझे वहां फोटोग्राफी के लिए बुलाया था। जब मैंने वहां पहुंचकर दुल्हा मियां की शक्ल देखी तो हैरान रह गया। मैं तो खैर हैरान ही हुआ लेकिन उल्फ़त साहब मुझे देख कर परेशान हो गए। उन्होंने दफ्तर वालों को इन्वाइट ना करने पर बड़ी शर्मिंदगी का इज़हार किया और वजह यह बताई कि उनसे बारात में कम से कम लोगों को लाने के लिए कहा गया था।"
"यार वलीमे में तो बुला सकता था।"
"वलीमा करने का उनका इरादा नहीं, अपने कुछ दोस्तों को बुलाकर घर पर दावत करेंगे।"
"चलो वलीमा अभी गया भाड़ में, कम से कम शादी का जिक्र ही कर देता। चालाकी देखो उसने तीन दिन की छुट्टी ली है हैदराबाद जाने के लिए। वहां कोई पर्सनल काम है उसे जरा आ जाए दफ्तर में, फिर उसी से पूछूंगा हैदराबाद का हाल। यार यह तो पक्का फ़्राडिया है।"
"वैसे उन्होंने मुझे कसम दी थी कि मैं दफ़्तर में उनकी शादी का जिक्र ना करूं।"
"यार! उसे हमसे क्या डर था क्या हम उसकी शादी रुकवा देते?"
"पता नहीं शाह जी! वह बस अजीब टाइप के आदमी हैं। वैसे एक बात बताऊं आपको। किस्मत के बड़े धनी हैं। बड़ा ऊंचा हाथ मारा है उन्होंने। लड़की बहुत खूबसूरत और कम उम्र है। मुश्किल से चौबीस-पच्चीस साल की होगी। अनाथ होने की वजह से दहेज भी ठीक-ठाक इकट्ठा हो गया है।"
"शादी की तस्वीरें कहां हैं?" मैंने बेचेनी सी कहा। "वह दिखाओ।"
"तस्वीरें आपको दोपहर बाद देखने को मिलेंगी मैं अभी फिल्म देकर आ रहा हूं।" आफ़ाक ने बताया।
"यार यह तो कुछ जादा ही चक्करबाज़ बंदा है।" मुझे रह-रह कर गुस्सा आ रहा था। "पता नहीं उसने क्या-क्या झूठ बोले होंगे क्या-क्या सब्ज़ बाग़ दिखाए होंगे।"
"खुदा ही जाने।" आफ़ाक ने कंधे उचका कर कहा।
"ख़ैर तुम दोपहर को उसकी तस्वीरें तो दिखाओ।"
"ठीक है शाह जी!" यह कहकर आफाक चला गया।
और मैं बहुत देर तक था उसके बारे में बैठा सोचता रहा।
अब मेरी उसके बारे में राय खराब हो गई थी। मैंने दफ़्तर में हमेशा उसकी सपोर्ट की थी उसका ख्याल रखा था। दफ्तर के लोग उसके साथ शरारतें करते तो मैं उनको डांट दिया करता था। अगर मैं चाहता तो उसे कब का नौकरी से निकाल बाहर करता। नौकरी से निकालने के लिए आफ़ाक की उतारी हुई वह तस्वीर ही काफी थी जिसमें वह कुर्सी की पीठ से टेक लगाए भाड़ सा मुंह खोले बे खबर सो रहा था। वह तस्वीर अगर मैं इरफान साहब की टेबल पर रख देता तो वह उसे निकालने में एक मिनट से ज्यादा नहीं लेते। लेकिन मैंने उसे वहां भी बचाया और बाद में भी उसका ख्याल रखा। इस ख़याल का उसने यह बदला दिया कि शादी तक में नहीं पूछा। अगर बारात में ले जाने में कोई मजबूरी थी तो वलीमे में बुलाता यहां भी कोई प्रॉब्लम थी तो कम से कम शादी का जिक्र तो करता, झूठ बोलकर छुट्टियां तो ना लेता।
आखिर शादी को इतने राज़ में रखने की क्या ज़रूरत थी?
मैं दोपहर तक उल्फ़त खान की इस हरकत पर कुढ़ता रहा। लंच टाइम के बाद आफाक तस्वीरें लेकर आया। तस्वीरें देखकर तो मेरे गुस्से में और बढ़ोतरी हो गई। उसने वाकई बहुत जबरदस्त हाथ मारा था। तुम्हारा था। लड़की उसके मुकाबले में ना सिर्फ कम उम्र बल्कि खूबसूरत भी थी। बड़े मियां ने अब तक शादी ना करके जो सब्र किया था शायद यह उसी सब्र का फल था कि कम उम्र और खूबसूरत बीवी मिली थी।
तीन दिन के बाद जब वह छुट्टी गुजार कर दफ़्तर आया तो उसके चेहरे के हाव भाव से बिल्कुल ज़ाहिर नहीं होता था कि वह शादी करके आ रहा है। उसने कपड़े भी वही पुराने पहने हुए थे। मेरा दिल चाहा कि उसे बुलाकर ज़रा शर्मिंदा करूं उसके झूठ का पोल खोलूं। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। सोचा अगर वह किसी चीज़ को राज़ रखना चाहता है तो रखे, मुझे इससे क्या।
शाम को जब में उठने की तैयारी कर रहा था तो वह आ गया। लेकिन मैंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया टेबल पर बिखरा सामान ठीक करता रहा। वह ज़रा सा आगे बढ़ा।
"अख़लाक़ साहब! आप जा रहे हैं?" वह बोला।
"जी हां जा रहा हूं क्यों?" मैंने सपाट लहज़े में कहा।
"मुझे आपसे कुछ कहना है जी।" उसके लेदर में रिक्वेस्ट थी।
"जी कहिए?"
"अखलाक़ साहब! मैंने शादी कर ली है।"
"शादी करना कोई जुर्म तो नहीं, अच्छा किया आपने कर ली।" मैंने रूखे अंदाज़ में कहा।
"अखलाक़ साहब! मैं माफी चाहता हूं आपको शादी में नहीं बुला सका। कुछ सिचुएशन ही ऐसी थी।" वह माफी मांगने पर उतर आया शर्मिंदगी उसकी चेहरे से जाहिर हो रही थी।
"खैर मुझे इस बात से कोई दिलचस्पी नहीं कि सिचुएशन क्या थी और यह जो आप मुझे बताने आ गए हैं तो यह भी आपकी मजबूरी ह। आप जानते हैं कि आफ़ाक मुझे बताए बगैर नहीं रह सकता इसलिए आपने सोचा कि ख़ुद ही बता देना चाहिए। तो इस सिलसिले में बता दूं कि शादी करना ना करना आपकी पर्सनल प्रॉब्लम है। अगर शादी में आपने मुझे नहीं पूछा तो कोई बात नहीं, होगी आपकी कोई मजबूरी।" यह कहकर मैंने अपना बैग उठाया और केबिन से निकलते हुए कहा "अच्छा खुदा हाफिज़!"
वह मेरी शक्ल देखता रह गया।
फिर सात-आठ महीने ख़ैरियत से गुजर गए। उल्फत खान के बारे में कोई ख़बर नहीं मिली लेकिन मैं सोचता रहा कि कोई खबर क्यों नहीं आ रही है। मैं उसकी घरेलू जिंदगी के बारे में जानना चाहता था कि किस तरह गुज़र रही है। वह जो कहते हैं कि ऊपर वाला शक्करखोरे को शक्कर ज़रुर कहीं ना कहीं से दे देता है। मुझे शक्कर की बजाए खबर की तलाश थी, आखिर एक दिन वह मुझ तक पहुंच गई।
इस बार ख़बर लाने वाला मेरा चपरासी था।
उल्फत खान पहले धर्म पूरे में रहता था। एक कमरा किराए पर लिया हुआ था और साथ किसी को रखा हुआ था। शादी के बाद वह कृष्णा नगर में ट्रांसफर हो गया। यह दो कमरों का एक छोटा सा फ़्लैट था। यह तीन मंजिला इमारत थी उसमें छह फ़्लैट थे। दूसरी मंजिल के एक फ़्लैट में चपरासी की बहन रहती थी। उसका बहनोई अनारकली की एक प्रेस में फोरमैन था।
चपरासी अपनी बहन से मिलने अक्सर जाया करता था। तब उसे मालूम हुआ कि उल्फ़त खान भी उसी बिल्डिंग में रहता है। उस बिल्डिंग में उसके बारे में तरह-तरह की कहानियां मशहूर हो गई थीं।
"साहब जी! उल्फत साहब अपनी बीवी को ताले में बंद करके आते हैं।" चपरासी कह रहा था।
"क्या बकवास कर रहे हो तुम?" मुझे यकीन नहीं आया।
"साहब जी यह बात बिल्कुल सच है।"
"आखिर क्यों, ताले में बंद करके आने की क्या जरूरत है?"
"उन्होंने अपने बीवी को पागल मशहूर का दीया है लेकिन ऐसा नहीं है। मेरी बहन उनकी बीवी से मिली है वह कहती है कि उनकी बीवी बिल्कुल ठीक है वह खुद पागल है।"
"अच्छा बड़ी दिलचस्प बात सुना रहे हो तुम।"
"शाह जी! उल्फत साहब बड़े शक्की मिजाज आदमी हैं। वह अपनी बीवी पर शक करते हैं। वह अगर ज़रा भी किसी से हंसकर बोल ले तो उसे मारते हैं। हर वक्त उसे रोकते टोकते रहते हैं। वहां क्यों खड़ी थी। फ़लां से क्या बातें कर रही थी। सब्जी वाले के पास इतनी देर खड़े होने की क्या ज़रूरत थी। साहब जी! उनकी बीवी अभी पागल नहीं है लेकिन वह इसी तरह उसे ताले में बंद करके आते रहे तो ज़रूर पागल हो जाएगी। आप उन्हें समझाएं जी। वह आपकी बात ज़रूर मान लेंगे।"
"अच्छा! मैं उनसे बात करूंगा लेकिन तुम यह बातें दफ्तर में किसी और को ना बताना।"
"अच्छा साहब जी।"
चपरासी ने मुझसे वादा तो कर लिया लेकिन मैं जानता था कि वह दफ्तर के हर आदमी को यह बात ज़रुर बताएगा और मैं चाहता भी यही था। इस तरह के लोगों के साथ बिल्कुल भी रियायत नहीं बरतनी चाहिए।
चपरासी हफ्ते में एक बार अपनी बहन के यहां ज़रूर जाता। वहां से आता तो उसके पास मेरे लिए कुछ ना कुछ मसाला ज़रूर होता।
"अब तो जी उन्होंने पड़ोस के लोगों पर भी पाबंदी लगा दी है। ना उनके घर कोई आ सकता है और ना उनकी बीवी कहीं जा सकती है। वह घर से सौदा सामान लेने निकलते हैं तो भी ताला लगाकर जाते हैं। अजीब आदमी है यह उल्फत साहब।"
उल्फत जब मेरे पास आता तो मैं उसका चेहरा गौर से देखता। उसके चेहरे से बिल्कुल भी यह ज़ाहिर नहीं होता कि वह किस कितना क्रूर आदमी है। मुझे अब उल्फत खान से नफरत हो गई थी। वह मेरे केबिन में आता तो मैं उससे मतलब की बात करता। काम की बात खत्म होने पर मैं एक पल भी उसे अपने पास नहीं बैठने देता। अब चाय पिलाने का तो सवाल ही नहीं था।
उल्फत मेरे सामने आता तो मेरी निगाहों में उसकी बीवी की तस्वीर घूम जाती। एक खूबसूरत और कम उम्र लड़की का इस बुड्ढे ने क्या हाल कर दिया था। मेरे मुताबिक इस शक की वजह उल्फ़त का बुढ़ापा था। बीवी के खूबसूरत और कम उम्र होने ने उसके इन्फ़ीरियारिटी काम्प्लेक्स में बढ़ोतरी कर दी थी और अब वह अपनी बीवी पर हावी रहने के घटिया हथकंडे इस्तेमाल कर रहा था।
उल्फत के यह सितम सुनकर मेरी बड़ी जान जलती थी। मेरा दिल चाहता था कि किसी तरह उसकी बीवी को उसके उस ज़ुल्म से छुटकारा दिला दूं।
फिर मैंने उसकी बीवी से मिलने का फैसला किया।
मुझे यह बात मालूम थी कि वह जब दफ्तर आता है तो अपनी पैंट की जेब से एक लंबी सी चाबी निकालकर पेंसिल रखने की छोटी ट्रे में डाल देता है। मेरे ख्याल के मुताबिक यह चाबी उस ताले की थी जिसके पीछे उसकी बीवी बंद होती थी। चाबी जेब से निकाल कर वह ट्रे में इसलिए रखता था कि उसे बैठते उठते वक्त जेब से निकल ना जाए। जब वह खाना खाने बाहर जाता तो चाबी अपनी जेब में डाल कर ले जाता।
मुझे यह चाबी सिर्फ दस मिनट के लिए चाहिए थी क्योंकि उसकी नकल तैयार करने में इससे ज़्यादा देर नहीं लगती। चाबी बनाने वाला सामने लोहारी गेट में बैठता था।
मैं मौक़े की तलाश में रहा। फिर यह मौका भी मेरे हाथ आ गया।
मुझे कवर पेज के लिए पास ट्रांसपेरेंसी प्रेस भेजना थी, चाहता तो यह काम किसी और से करा लेता लेकिन मैंने उल्फत खान को बुलवाया और उनसे कहा कि यह ट्रांस्पेरेंसी प्रेस के हवाले कर आएं और वहां एनलार्जर पर उसका फ्रेम भी देख लें। वह खुशी खुशी फ़ौरन प्रेस के लिए रवाना हो गए। उनके जाने के बाद मैंने ट्रे से चाबी उठाई और बाहर जाकर उसकी नकल बनवा ली, घर का पता मैं चपरासी से पहले ही पूछ चुका था।
फिर एक दिन बाद दोपहर को मैंने चपरासी को बुलाया और उसे हिदायत कि" मैं दफ्तर से बाहर जा रहा हूं, पांच बजे तक आ जाऊंगा। अगर मैं ना आऊं तो उल्फत खान को दफ्तर से मत जाने देना मुझे उनसे काम है और यह बात उन्हें पांच बजे से पहले मत बताना।"
"जी ठीक है।" उसने कहा।
फिर मैं बड़ा बेफिक्र होकर दफ्तर से निकला और मोटरसाइकिल पर बैठकर मैंने उसके घर की राह ली। मैं खान के घर क्यों जा रहा था यह बात पूरी तरह मेरे दिमाग में साफ़ नहीं थी। शायद मैं उसकी सताई हुई बीवी को उसके चंगुल से निकालना चाहता था।
ख़ैर जब मैं उसके घर का ताला खोल का अंदर दाखिल हुआ तो उसकी बीवी उसी वक्त बाथरुम से नहाकर निकली थी।
वह मुझे देख कर ना झिझकी ना परेशान हुई ना डर की कोई लहर उसके चेहरे पर आई। मुझे ऐसा लगा जैसे उसे किसी का इंतजार था और अब उसका इंतजार खत्म हो गया था।
उसके सामने एक खूबसूरत सजीला जवान अजनबी खड़ा था।
वह बड़े खोए हुए अंदाज़ से मुझे देखती रही फिर मुस्कुराई। उसके आकर्षक होंठ खुल गए।
"तुम अगर कोई चोर हो तो वापस लौट जाओ। इस घर में तुम्हारे लिए कुछ नहीं है और अगर तुम चोर नहीं हो तो अंदर आ जाओ यहां तुम्हारे लिए बहुत कुछ है।"
मैं चोर नहीं था जो वापस लौटता। मैं आगे बढ़ गया। उसके पास चला गया।
दूसरे दिन उल्फ़त खान मेरे पास आया। वह बड़ा बुझा बुझा सा था। कुछ देर खामोश बैठा रहा। फिर बड़े दर्द से बोला। अखलाक़ साहब! कल मेरे घर एक चोर आया था। वह पता नहीं किस तरह का चोर था। उसने घर के किसी सामान को हाथ नहीं लगाया। वह बहुत शरीफ़ चोर था। मेरी बीवी उस चोर की शराफत से बहुत खुश है। उसका ख़्याल है कि ऐसे चोरों को बार-बार घर में आते रहना चाहिए। लगता है वह सचमुच पागल हो गई है। भला चोरों को कोई ऐसे दावत देता है।"
मैं बुत बना बैठा रहा। वह जो कह रहा था, उसे खामोशी से सुनता रहा।
भला मैं उसे कैसे कहता कि तुम्हारी बीवी पागल नहीं हुई, उसने तुम्हें पागल कर दिया है।


समाप्त