राधा रानी का इतिहास Gurpreet Singh HR02 द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राधा रानी का इतिहास


देवी राधा का जन्म दिवस भाद्रमास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को माना जाता है। इस साल यह तिथि गुरूवार 9 सितंबर को है। पुराणों का मत है कि देवी राधा भगवान श्री कृष्ण से ग्यारह महीने बड़ी थी। ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी राधा जन्म से जुड़ी एक अद्भुत कथा का उल्लेख मिलता है।

राधा का पुराना नाम : पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक वैष्य गोप की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। राधा का पहला नाम वृषभानु कुमारी था। बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। बरसाने के अलावा राधा का अधिकतर समय वृंदावन में ही बिता।
राधा कृष्ण का पहला मिलन : राधा ने जब कृष्ण को देखा तो वह बेसुध हो गई थी। कहते हैं पहली बार उन्होंने श्रीकृष्‍ण को तब देखा था जब उनकी मां यशोदा ने उन्हें ओखले से बांध दिया था। कुछ लोग कहते हैं कि वह पहली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थी तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था। कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी।
पूर्वजन्म से तय था मिलना : ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के अनुसार एक बार नंदबाबा श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले थे। उसी दौरान राधा और उनके पिता भी वहां पहुंचे थे। दोनों का वहां पहली बार मिलन हुआ। उस दौरान दोनों की ही उम्र बहुत छोटी थी। उस स्थान को सांकेतिक तीर्थ स्थान कहते हैं। संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है।
राधा कृष्ण का विवाह : गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का गंधर्व विवाह करवाया था। श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे। वहां उनकी मुलाकात राधा से होती थी। एक बार की बात है कि जब वे अपने पिता के साथ भंडिर गांव गए तो अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा, कुछ ही समय में आसपास सिर्फ और सिर्फ अंधेरा छा गया।
इस अंधेरे में एक पारलौकिक शख्सियत का अनुभव हुआ। वह राधारानी के अलावा और कोई नहीं थी। अपने बाल रूप को छोड़कर श्रीकृष्ण ने किशोर रूप धारण कर लिया और इसी जंगल में ब्रह्माजी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया। विवाह के बाद माहौल सामान्य हो गया तथा राधा, ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए। असल में इस वास्तविक घटना को अलंकृत कर दिया गया है। राधा सचमुच ही कृष्ण से बड़ी थीं और सामाजिक दबावों के चलते यह संभव नहीं था कि उम्र में कहीं बड़ी लड़की से विवाह किया जाए। लेकिन यदि दोनों के बीच प्रेम रहा होगा तो निश्चित ही गुपचुप रूप से गंधर्व विवाह किया गया हो और इस बात को छुपाए रखा हो?
अंतिम महारास : राधा के परिवार को जब पता चला कि यह श्रीकृष्‍ण की मुरली सुनकर उनके प्रेम में नाचती हुई उनके पास पहुंच जाती है तो उन्होंने राधा को घर में ही कैद कर दिया था। तब श्रीकृष्ण ने अपने साथियों सहित एक दिन उन्हें रात में कैद से मुक्त कराकर उद्धव और बलराम सहित अन्य सखियां के साथ रातभर नृत्य किया था। यह रात पूर्णिमा की रात थी जब महारास हुआ था। बाद में राधा की मां राधा के कक्ष में गई तो राधा उन्हें वहां सोते हुए मिली।
कहते हैं कि उस वक्त श्रीकृष्ण को 2 ही चीजें सबसे ज्यादा प्रिय थीं- बांसुरी और राधा। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर राधा के जैसे प्राण ही निकल जाते थे। कई जन्मों की स्मृतियों को कुरेदने का प्रयास होता था और वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंची चली आती थी।
श्रीकृष्‍ण ने की विवाह की जिद : श्रीकृष्‍ण और राधा में बहुत ही गहरा प्रेम हो चला था। ऐसे में श्रीकृष्ण ने अपनी मां यशोदा से कहा कि मैं राधा से विवाह करना चाहता हूं। यह सुनकर यशोदा मैया ने कहा कि राधा तुम्हारे लिए ठीक लड़की नहीं है। पहला तो यह कि वह तुमसे पांच साल बड़ी है और दूसरा यह कि उसकी मंगनी (यशोदे के भाई रायाण) पहले से ही किसी ओर से हो चुकी है और वह कंस की सेना में है जो अभी युद्ध लड़ने गया है। जब आएगा तो राधा का उससे विवाह हो जाएगा। लेकिन जब श्रीकृष्ण नंद और यशोदा दोनों से ही नहीं मानें तो ऋषि गर्ग ने उन्हें बताया कि तुम्हारा जन्म किसी महान लक्ष्य के लिए हुआ है। तब श्रीकृष्‍ण को राधा को छोड़कर जाना पड़ा।
श्रीकृष्‍ण ने दी राधा को अपनी मुरली : भगवान श्रीकृष्ण के पास एक मुरली थी जिसे उन्होंने राधा को छोड़कर मथुरा जाने से पहले दे दी थी। राधा ने इस मुरली को बहुत ही संभालकर रखा था और जब भी उन्हें श्रीकृष्ण की याद आती तो वह यह मुरली बजा लेती थी। श्रीकृष्ण उसकी याद में मोरपंख लगाते थे और वैजयंती माला पहनते थे। श्रीकृष्ण को मोरपंख तब मिला था जब वे राधा के उपवन में उनके साथ नृत्य कर रहे मोर का पंख नीचे गिर गया था तो उन्होंने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था और राधा ने नृत्य करने से पहले श्रीकृष्ण को वैजयंती माला पहनाई थी।
रायाण से विवाह : ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड 2 के अध्याय 49 के श्लोक 39 और 40 के अनुसार राधा जब बड़ी हुई तो उनके माता पिता ने रायाण नामक एक वैश्य के साथ उसका संबंध निश्चित कर दिया। उस समय राधा घर में अपनी छाया का स्थापित करके खुद अन्तर्धान हो गईं। उस छाया के साथ ही उक्त रायाण का विवाह हुआ।