शतरंज की बिसात - भाग 1 शिखा श्रीवास्तव द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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शतरंज की बिसात - भाग 1

शहर की नामी पॉश कॉलोनी में यूँ तो सुबह के आगमन की सूचना ब्रांडेड ट्रैक-सूट और महँगे जूते पहनकर कानों में इयरपॉड लगाए जॉगिंग पर जाते हुए स्वयं को भद्र दिखाने की कोशिश करते स्त्री-पुरुषों की मिली-जुली आवाज़ें दिया करती थी, लेकिन आज उनका चहल-पहल रात के सन्नाटे को तोड़ता उससे पहले उस सन्नाटे को चीरती हुई पुलिस जीप के सायरन की आवाज़ कॉलोनी के इस छोर से उस छोर तक गूँज उठी।

सायरन की आवाज़ कानों में पड़ते ही लगभग हर घर के दरवाजे ये देखने के लिए खुल गए की रातोंरात उनके इस सभ्य समाज में ऐसी क्या घटना हो गई कि पुलिस को इतनी सुबह-सुबह आना पड़ा।

दरवाजे की ओट से सहमी हुई आँखों से झाँकते हुए लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि पुलिस की गाड़ी उनकी कॉलोनी के सबसे रईस परिवार मिस्टर साहिल गुप्ता के बंगले के आगे जाकर रुक गई।

माजरा क्या है ये जानने के लिए साहिल गुप्ता के ठीक बगल वाले बंगले में रहने वाले मिस्टर अशोक जो साहिल और उनकी पत्नी अनिका के अच्छे दोस्त भी थे भी पुलिस के पीछे-पीछे वहाँ पहुँचे।

थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अजय अपने दो कांस्टेबल्स विवेक और राखी के साथ घर के मुख्य नौकर लाल बाबू से पूछताछ कर रहे थे।

"तुमने ही थाने में खबर की थी?"

"जी साहब।" लाल बाबू ने काँपते हुए धीमे स्वर में जवाब दिया।

"ठीक है पहले हमें अपने मालिक के कमरे में ले चलो।"

"आइए साहब।" साहिल और अनिका के कमरे की तरफ बढ़ते हुए लाल बाबू की नज़र अशोक पर पड़ी तो वो सहसा फफककर रो पड़ा और फिर रोते-रोते ही बोला "अशोक बाबू देखिए ना क्या हो गया। अभी रात में ही तो साहब आपके साथ शतरंज खेल रहे थे और अब...।"

"अब क्या लाल बाबू? क्या हुआ है साहिल को? और अनिका कहाँ है?" अशोक ने व्यग्रता से पूछा।

"आप कौन हैं? और सुबह-सुबह यहाँ कैसे?" इंस्पेक्टर अजय ने अपनी पैनी निगाहों से अशोक को घूरते हुए पूछा।

"जी मेरा नाम अशोक है। मैं यहीं पास वाले बंगले में रहता हूँ। इस बंगले के मालिक साहिल और अनिका मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं।"

'ओहह अच्छा। तब तो आप हमारे बहुत काम आ सकते हैं। लेकिन जरा ध्यान रखिएगा अभी किसी चीज को हाथ मत लगाइएगा।"

"वो तो ठीक है इंस्पेक्टर साहब लेकिन मैं अभी भी समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या हुआ है? आप इस तरह सुबह-सुबह यहाँ...?"

"सब समझ में आ जाएगा। आइए मेरे साथ लेकिन सावधानी से।"

"जी।"

इंस्पेक्टर अजय, दोनों कांस्टेबल और अशोक लाल बाबू के पीछे-पीछे साहिल और अनिका के शयनकक्ष में पहुँचे तो उन्होंने देखा बिस्तर के एक तरफ साहिल की गर्दन लुढ़की हुई थी और दूसरी तरफ अनिका का शरीर अस्त-व्यस्त कपड़ो में आधा बिस्तर पर और आधा फर्श पर झूल रहा था।

कांस्टेबल विवेक ने पहले उन दोनों की इसी स्थिति में कुछ तस्वीरें ली और इसके बाद इंस्पेक्टर अजय के इशारे पर महिला कांस्टेबल राखी ने अनिका के कपड़ों को ठीक करते हुए उसे सही से बिस्तर पर लिटाया और फिर उसकी नब्ज जाँची।

"इनकी साँसें चल रही हैं सर।"

"ठीक है। तुरंत एम्बुलेंस बुलाकर इन्हें अस्पताल भेजो।"

कांस्टेबल विवेक ने साहिल की नाक के पास हाथ लगाया और फिर बोला "सर इनकी मृत्यु हो चुकी है।"

"ठीक है इनकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध करो और फौरन फोरेंसिक डिपार्टमेंट को भी फोन करके यहाँ बुलवाओ।"

लाल बाबू के रोने की आवाज़ अब तेज़ हो चुकी थी और अशोक की आँखों से भी बहते हुए आँसू उसके गालों पर खामोशी से रेखाएँ बना रहे थे।

इंस्पेक्टर अजय ने सबको कमरे से बाहर चलने का इशारा किया और विवेक को कमरे की हर एक एंगल से तस्वीरें लेने का आदेश दिया।
साथ ही वहीं साइड टेबल पर रखे हुए उन दोनों के मोबाइल फोन को भी सावधानी से उठाकर अपने पास रख लिया।

थोड़ी ही देर में दो अलग-अलग एम्बुलेंस अनिका और साहिल को ले जाने आई और उनके ठीक पीछे सब इंस्पेक्टर रघु फोरेंसिक विभाग के लोगों के साथ वहाँ पहुँचे।

फोरेंसिक विभाग के प्रमुख संजय ने इंस्पेक्टर अजय से कहा कि वो एक बार साहिल और अनिका के शरीर की भी जाँच कर लेना चाहता है। हो सकता है कोई संदिग्ध निशान मिल जाए वहाँ।

"ठीक है संजय लेकिन जल्दी। अनिका को तुरंत अस्पताल पहुँचाना जरूरी है।"

"जी बस पाँच मिनट दीजिए मुझे।"

संजय ने अपने हाथों में दस्ताने पहने और बारीकी से पहले अनिका के शरीर की जाँच-पड़ताल की और फिर उसे ले जाने का इशारा करते हुए साहिल के शरीर की जाँच में लग गया।

इंस्पेक्टर अजय ने एम्बुलेंस में अनिका के साथ कांस्टेबल राखी को और साहिल के एम्बुलेंस में कांस्टेबल विवेक को भेज दिया।

उनके जाने के बाद संजय ने अपनी टीम के साथ कमरे की तलाशी लेते हुए वहाँ से संदिग्ध चीजों को उठाकर जाँच के लिए अपने पास रख लिया और फिर इंस्पेक्टर अजय से थाने में मिलने की बात कहकर वहाँ से निकल गया।

बंगले के शानदार ड्राइंग रूम में हालांकि इस वक्त सात लोग मौजूद थे लेकिन इसके बावजूद वहाँ कानों को चीरकर रख देने वाला सन्नाटा पसरा हुआ था।

अपनी पैनी निगाहों से कमरे की एक-एक चीज का एक्सरे लेते हुए आख़िरकार इंस्पेक्टर अजय की आवाज़ ने इस सन्नाटे को तोड़ा।

"लाल बाबू अब सिलसिलेवार से आज सुबह की सारी कहानी सुनाइए। कब किस वक्त आपको ऐसा लगा कि आपके साहब के कमरे में सब कुछ ठीक नहीं है और आपको पुलिस को फोन करना चाहिए?"

इंस्पेक्टर अजय की बात सुनकर लाल बाबू ने अपने आँसुओं को पोंछने की नाकाम कोशिश की और उस मनहूस घड़ी को याद करते हुए कहना शुरू किया...।

"सुबह के पौने पाँच बज चुके थे। प्रतिदिन ठीक इसी वक्त साहब और मेमसाहब कमरे से बाहर आ जाते थे और फिर मैं उन्हें उनका गुनगुना पानी देता था जिसे पीकर वो सैर पर निकल जाते थे।

मैं उनके पानी के ग्लास के साथ उनका इंतज़ार कर रहा था लेकिन जब पाँच बजे तक वो दोनों बाहर नहीं आए तब मैं उनके कमरे के पास पहुँचा क्योंकि साहब ने मुझे स्पष्ट आदेश दे रखा था कि कभी उन्हें जागने में देर हो जाए तो मैं बेझिझक जाकर उन्हें जगा दूँ।"
क्रमशः