शतरंज की बिसात - (अंतिम भाग) शिखा श्रीवास्तव द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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शतरंज की बिसात - (अंतिम भाग)

"अपने आप को संभालिये मिसेज अनिका। जल्दी ही आपका दोषी सलाखों के पीछे होगा।
अब बस मुझे उस रात की बात बता दीजिए जब आपके और मिस्टर साहिल के साथ ये हादसा हुआ।"

"वो रात मेरी और साहिल की एक साथ उस घर में आखिरी रात थी।
हम दोनों को ही शतरंज का बहुत शौक था। डिनर के बाद हम हमेशा शतरंज खेलकर ही सोते थे। उस रात मैंने साहिल के साथ शतरंज खेलने की इच्छा जताई तो उसने लाल बाबू को ड्राइंग रूम में ही शतरंज लाने के लिए कहा।

जब हम खेलने बैठे तब पता नहीं क्यों हमारा कुत्ता रॉबी अचानक साहिल के हाथ पर बार-बार झपटने लगा जिससे परेशान होकर साहिल ने उसे उसके कमरे में जंजीर से बांध दिया और फिर हम अपने कमरे में खेलने चले गए।"

"इसके अलावा और कोई अजीब बात हुई थी शतरंज खेलते वक्त? किसी ने कुछ कहा हो, कुछ किया हो, आपके बोर्ड और मोहरों को छुआ हो?"

"हाँ एक बात हुई थी। हम जैसे ही खेलने बैठे साहिल ने हमेशा की तरह मुझे चिढ़ाया की मैं तो आज भी हारूँगी।
तभी लाल बाबू ने मज़ाकिया लहजे में साहिल से कहा कि साहब जी जरूर अपने मोहरों पर कुछ जादू-टोना करके रखते हैं इसलिए वही हमेशा जीतते हैं।

उनकी बात सुनकर सहसा साहिल ने बोर्ड घुमा दिया और मुझसे कहा कि आज मैं सफ़ेद मोहरों के साथ खेलूँगी और वो काले मोहरों के साथ खेलेगा वरना वो हमेशा सफेद मोहरे ही लेता था।"

"और यही उनकी बदकिस्मती और आपकी खुशकिस्मती बन गई मिसेज अनिका। जो जाल आपके लिए बिछाया गया था उसमें बेचारे मिस्टर साहिल फँस गये।"

"क्या मतलब मैं कुछ समझी नहीं।"

"समझ जाएंगी बस थोड़ा इंतज़ार कीजिए।"

अनिका को हैरान-परेशान छोड़कर जब इंस्पेक्टर अजय अस्पताल से बाहर निकले तब शाम ढ़लकर रात में बदलने लगी थी।

अपने घर की तरफ बढ़ते हुए इंस्पेक्टर अजय ने कांस्टेबल विवेक को फोन किया।

"कुछ हाथ लगा क्या?"

"अभी तक तो नहीं सर।"

"ठीक है सावधान रहना।"

"जी सर।"

इंस्पेक्टर रघु को फोन करके भी उन्होंने कुछ समझाया और फिर अपने घर की तरफ बढ़ गए।

रात के लगभग दो बज रहे थे जब इंस्पेक्टर अजय के फोन की घँटी बजी।

उन्होंने देखा फोन की स्क्रीन पर कांस्टेबल विवेक का नाम फ्लैश हो रहा था।

"जय हिंद सर।"

"जय हिंद। चलो जल्दी से खुशखबरी सुना दो।"

"सर मैंने और रघु सर ने दोनों अपराधियों को रंगे हाथ पकड़ भी लिया है और सबूत के तौर पर हमारे पास उनकी बातों की रिकॉर्डिंग भी है।"

"ये हुई ना बात। चलो उन्हें लेकर थाने पहुँचो। मैं भी आता हूँ।"

जब इंस्पेक्टर अजय थाने पहुँचे तब उनके सामने निशा और लाल बाबू हाथों में हथकड़ी लगाए खड़े थे।

उन्हें देखते ही इंस्पेक्टर अजय ने कहा "बाकी सवालों से पहले इस सवाल का जवाब दो की असली लाल बाबू कहाँ है? ज़िंदा है भी या नहीं है?"

उनकी बात सुनते ही निशा और लाल बाबू के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।

वो समझ चुके थे कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है इसलिए निशा ने मजबूरी में उस जगह का पता बता दिया जहाँ उसने लाल बाबू को बंधक बनाकर रखा हुआ था।

असली लाल बाबू जैसे ही थाने पहुँचे उन्होंने इंस्पेक्टर अजय से कहा "सर इनका एक साथी और है अशोक।"

"क्या? अशोक? सामने वाले बंगले में रहने वाला?"

"जी सर।"

उनकी बात सुनते ही इंस्पेक्टर रघु ने अपनी जीप अशोक के बंगले की तरफ दौड़ा दी और थोड़ी ही देर में वो उसे गिरफ्तार करके थाने पहुँचे।

"हाँ तो अब मिस निशा सबसे पहले आप बताइये की जब मिस्टर साहिल आपकी बात मान ही चुके थे तब आपने मिसेज अनिका को मारने की कोशिश क्यों की वो भी इस तरह की अगर वो मर जाती तो उनकी मौत का इल्जाम साहिल पर ही आता।"

"क्या? साहिल पर? लेकिन उस पर इल्जाम कैसे आता जब किसी को ये पता ही नहीं चल पाता कि अनिका को दिल का दौरा कैसे पड़ा?
मैं तो अब भी नहीं समझ पा रही हूँ कि मेरा गेम उल्टा कैसे हुआ? अनिका कैसे बच गई और साहिल...?"

"इसका जवाब तो आपके साथी नकली लाल बाबू ही दे सकते हैं जो उस वक्त घर में मौजूद थे।" इंस्पेक्टर अजय ने कड़क आवाज़ में कहा तो नकली लाल बाबू ने हकलाते हुए कहा "सर अशोक साहब ने मुझसे कहा था कि जैसा निशा जी ने कहा है मैं उसका उल्टा करूँ। अनिका की जगह साहिल को मार दूँ ताकि वो बाद में अनिका को अपने प्रेम के जाल में फँसाकर उससे शादी कर सकें। इसलिए मैंने साहिल को भड़काया की वो अपने मोहरों की जगह अनिका के मोहरों से खेले।

फिर मैंने खेल के बीच में अशोक साहब की दी हुई एक दवा पानी के ग्लास में मिलाकर अनिका को दे दी जिससे वो बेहोश हो गई।

उनके बेहोश होने के कुछ देर बाद जब साहिल को दिल का दौरा पड़ा और उसकी साँस रुक गई तब मैंने अपने दस्ताने पहने हुए हाथों से उसके दोनों हाथ पकड़े और उनसे अनिका के गले को इस तरह दबाया की गले पर निशान जरूर पड़े लेकिन उसकी जान ना जाये ताकि अनिका को लगे कि साहिल ने अपनी संपत्ति बचाने के लिए उसे जान से मारने की कोशिश की और वो उससे नफरत करने लगे ताकि भविष्य में अशोक और उसकी शादी का रास्ता साफ हो सके।"

"अशोक, धोखेबाज। मदद का झांसा देकर ये खेल खेला तुमने मेरे पीठ पीछे। मेरे साहिल को छीन लिया तुमने मुझसे। मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं।" निशा गुस्से में चीखी तो अशोक ने वितृष्णा से कहा "लो सुनो धोखे की बात कौन कर रहा है। तुम खुद भी तो साहिल को धोखा ही दे रही थी। वो बच्ची जो उसकी थी भी नहीं जबर्दस्ती उसे उसकी बच्ची बताकर उसकी शादी तोड़कर खुद उससे शादी करने का सपना पाल रही थी और इसके लिए बेचारी अनिका को भी मरवाने की पूरी कोशिश की तुमने।"

"ये आपस का निपटारा आप लोग बाद में करते रहिएगा मिस्टर अशोक। अब फ़टाफ़ट आप बताइए कि आप निशा के खेल में कैसे शामिल हुए?"

"निशा से मेरी मुलाकात छह महीने पहले अमेरिका में हुई थी। उस वक्त इसकी आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी। जब उसने मुझे देखा तो उसे लगा मैं प्रकाश भैया हूँ क्योंकि हम दोनों भाईयों की शक्ल बहुत मिलती है।

फिर मैंने उसे बताया कि मैं अशोक हूँ और अब मैं भारत जा रहा हूँ। वहीं मेरे बंगले के सामने साहिल और अनिका का बंगला होने की बात भी इसे मुझसे पता चली और ये भी की मैं अनिका से नफरत करता हूँ क्योंकि वही मेरे भाई की मौत के लिए जिम्मेदार है।

फिर मैं भारत आ गया। साहिल और अनिका मुझे अपने दोस्त का छोटा भाई समझकर मुझसे बहुत स्नेह रखते थे।

फिर एक दिन अचानक निशा ने मुझे फोन किया और बताया कि वो और साहिल शादी करने जा रहे हैं। साहिल अनिका को तलाक देने के लिए मान गया है।

बात मेरी समझ में नहीं आई की ये कैसे हुआ लेकिन मैं मन ही मन खुश था कि अब अनिका को अकेले होने का दर्द समझ में आएगा।

लेकिन फिर निशा ने एक दिन गुस्से में मुझे फोन करके मिलने के लिए बुलाया।

जब मैं उससे मिलने गया तो उसने पूछा कि क्या मैं अपने दुश्मन से बदला लेना चाहता हूँ?
जब मैंने हाँ कहा तब हमने मिलकर अनिका को मारने की योजना बनाई।

अब तक मैं जान चुका था कि साहिल और अनिका के बाद उस घर में लाल बाबू सबसे महत्वपूर्ण है।
इसलिए मैंने लाल बाबू को किडनैप करवाया और फिर अपने प्रोस्थेटिक नॉलेज की मदद से मैंने एक दूसरे इंसान को लाल बाबू की शक्ल दी और लाल बाबू की हथेलियों के निशान लेकर उसकी हथेलियों पर भी इस तरह काम किया कि वो जिस चीज को भी छूता उस पर लाल बाबू की ऊँगलियों के निशान ही उभरते।

सब कुछ ठीक जा रहा था फिर अचानक उस रात मुझे भाई की डायरी मिली जिसमें उन्होंने लिखा था कि किस तरह साहिल ने उन्हें पार्टी में धमकाया था और जिसके बाद उन्होंने शर्मिंदगी से बचने के लिये आत्महत्या का रास्ता चुना। उनकी डायरी के अनुसार अनिका तो बेचारी सीधी थी जिसे साहिल ने भड़काया था।

बस उसी वक्त मैंने योजना बदल दी और अनिका की जगह साहिल को मारना तय किया वो भी इस तरह की अनिका भी उससे नफरत करे।"

"आपकी योजना तो अच्छी थी लेकिन जरा सी लापरवाही ने आप सबको यहाँ पहुँचा दिया।

पहली लापरवाही जब आखिरी बार असली लाल बाबू बंगले से बाहर जाते दिखे तब पैर की चोट के कारण वो लंगड़ा रहे थे लेकिन आधे घण्टे बाद ही जब वो अंदर आते दिखे तब उनकी चोट गायब हो चुकी थी क्योंकि वो तो असली थे ही नहीं।
इसलिए जो रॉबी उनके सबसे करीब था अब उन पर लगातार भौंक रहा था।

घर के बाकी नौकरों ने अपने बयान में इस बात की पुष्टि कर दी है कि वो खुद भी नहीं समझ पा रहे थे कि लाल बाबू की चोट कैसे ठीक हो गई और रॉबी जो हमेशा उनके पैर चाटता रहता था अब उन पर भौंक क्यों रहा था?
उनके अनुसार जब उन्होंने इस संबंध में लाल बाबू से पूछा तो उन्होंने गोलमोल जवाब देकर उन्हें चलता कर दिया।

अब दूसरी लापरवाही निशा और अशोक शतरंज खेलते वक्त साहिल और अनिका के हावभावों को तो जानते थे लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि साहिल और अनिका ने अपने खेल के लिए अपना नाम लिखा हुआ विशेष बोर्ड और मोहरे बनवा रखे थे इसलिए ज़हर वाले मोहरे गायब करते वक्त गलती हो गई।

ये बात लाल बाबू ने अच्छी की कि नकली लाल बाबू को ये तो बता दिया की अलमारी में शतरंज कहाँ रखा है लेकिन उसका विशेष राज उन्होंने नहीं बताया।

फिर निशा तो इस सोच में थी कि वो आराम से अनिका को साहिल की ज़िंदगी से निकाल देगी इसलिए धमकी भरे ईमेल लिखते हुए उसने सोचा ही नहीं कि कभी ये भी पुलिस के हाथ लग सकते हैं और पुलिस उस तक पहुँच सकती है।

तीसरी लापरवाही ये हो गई की जिस दवा के अंश साहिल के शरीर से नहीं मिले वो रॉबी के शरीर में मिल गए क्योंकि रॉबी बार-बार साहिल को शतरंज खेलने से रोकने की कोशिश कर रहा था जिसकी वजह से मोहरों में लगे हुए ज़हर का अंश उसके शरीर में भी आ चुका था।

रही साहिल और अनिका के कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द होने की बात तो सारे नौकर तो सोने जा चुके थे। फिर लाल बाबू ने कह दिया कि उन्होंने बन्द दरवाजे को तोड़ा तो बस सबने मान लिया कि दरवाजा अंदर से बन्द ही होगा।"

इंस्पेक्टर अजय की बात सुनकर सारे अपराधियों के चेहरे झुक चुके थे।

हत्या और हत्या की कोशिश इन दोनों धाराओं के तहत उन सबको जेल में डाला जा चुका था।

जब अनिका को इस सारे षडयंत्र की खबर मिली तब उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिन्हें वो कभी अपना दोस्त समझती थी उनका एक चेहरा ये भी हो सकता है।

नफरत की जड़ सारी संपत्ति दान करके वो यहाँ से जाना चाहती थी लेकिन अजित ने उसे समझाया कि अगर वो साहिल से प्यार करती है तो उसे साहिल के इतने मेहनत से खड़े किए गए व्यापार की बागडोर अपने हाथ में ले लेनी चाहिए और उसे उसी ऊँचाई पर पहुँचाना चाहिए जिसके सपने साहिल देखा करता था।

अनिका ने अजित की बात मान ली और साथ ही उसे एक ट्रस्ट बनाने के लिए कहा ताकी मुनाफे के नब्बे प्रतिशत को वो समाज की भलाई में लगा सके।

'साहिल-आश्रम' की इमारत पर उसके नाम की तख्ती अपने हाथ से लगाते हुए आसमान की तरफ देखती हुई अनिका मन ही मन अपने साहिल से कह रही थी कि तुम्हारी अनिका तुम्हारा नाम कभी मिटने नहीं देगी।

बेवक्त आसमान से गिरती हुई बारिश की बूँदें भी मानों उस तक साहिल का प्रेम-संदेश पहुँचा रही थी
समाप्त
©शिखा श्रीवास्तव