सन्यासी का सत तप नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सन्यासी का सत तप

सन्यासी का सत्य तप --

गोकुल खानाबदोश परिवार में जन्मा था जिसके समाज के लोग मन मर्जी के अनुसार जहां अच्छा लगा वहीं डेरा जमा लिया कुछ दिन रहे मन उबा तो दूसरी जगह चल दिए यही जिंदगी थी पेट भरने के लिए भीख मांगना कबूल नही हाथ कि छोटी मोटी कारीगरी से लोहे के घरेलू उपयोग के समान जैसे कुदाल ,खुरपी, आदि बनाना या जंगली जड़ी बूटियां बेचना आदि रोजगार सम्पत्ति के नाम पर शिकारी कुत्ते मुर्गियां बैल गाय तिरपाल आदि ही होते थे साथ कुछ भी नही पास कुछ भी नही फिर भी मेहनत कर स्वाभिमान से जो दिन भर में मिल जाय उसी से काम चल जाता कोई फेर फिक्र नही परिवार के सदस्य पड़ाव में जहां मर गया वहीं उसको जला दिया आगे बढे ना कोई उत्सव ना उत्साह लेकिन जीवन का पल प्रहर उत्साहों से भरपूर कठिन मेहनत भारी भोजन जैसे मांसाहार मदिरा का पान प्रतिदिन कि दिनचर्या में सुमार था।

ना जाती की जानकारी ना मजहब का सलीका सिर्फ इंसानियत दीन ईमान और मेहनत दौलत गोकुल के पिता मंझारी खानाबदोश समाज के मुखिया थे मंझारी बताते थे कि उनकी जमीन गंजाम के आदिवासी समाज से जुड़ी हुई है जिसके कारण अपने
खानाबदोस समाज को आदिवासी ही बताते मंझारी कि माँ चनवा समझदार और खानाबदोश परिवार को एक जुट रख साथ लेकर चलने में कुशल थी ।

गोकुल का जन्म जब हुआ था तब उसका खनाबदोस समाज घूमते फिरते गोकुल में ही डेरा डाले हुए था इसीलिए नाम भी पिता मंझारी और माता चनवा ने गोकुल रख दिया।

खनाबदोस होने एव किसी विशेष स्थान कि पहचान न होने के कारण समाज को किसी सरकारी योजनाओं से कोई लेना देना नही था ना राशन कार्ड ना वोटर कार्ड ना बैंक खाता जिंदगी सर्फ जीने और चलते रहने का नाम ।
सूरज उगते ही जीवन शुरू सूरज डूबते ही जीवन संध्या ना बिजली ना शौचालय ना गैस का चूल्हा ना पंखा ना ए सी जीवन और प्रकृति का अनूठा संगम रिहायशी इलाके में कम चलती या सुनसान सड़को के किनारे ग्रामीण इलाकों में बागीचों जंगलों में ठिकाना कहा पैदा हुआ परिवार समाज का कौन सदस्य कहा साथ छोड़ गया याद नही कोई विशेष रीति रिवाज नही जब कोई पैदा हुआ तब भी उसी तरह से जब कोई साथ छोड़ गया तब भी उसी तरह से हां यदि परिवार या समाज मे कोई बीमार या बूढ़ा है तो तब तक दूसरे स्थान के लिए प्रस्थान नही करते जब तक बीमार ठिक न हो जाय साथ न छोड़ दे कभी कभी वर्षो एक ही जगह पड़े रहते है।

गोकुल के साथ कुछ ऐसा ही सौभाग्य जुड़ा हुआ था गोकुल में उसका खनाबदोस समाज ने जब डेरा डाला तब वह पैदा हुआ था अब वह पूरे साथ वर्ष का हो चुका था तब भी उसका कुनबा गोकुल में ही डेरा जमाए हुए था ।

गोकुल भग्यवान श्रीकृष्ण के बाल लीला कि भूमि आस्था और धर्म क्षेत्र जहां कोई भी किसी को कोई दुख नही पांहुचाना चाहता साथ ही साथ किसी भी दुखी को सब अपनी क्षमता में मदद ही करना चाहते है यही कारण था कि मंझारी और चनवा के नेतृत्व में खानाबदोश समाज के आठ दस परिवार सड़क के किनारे डेरा डाले सात आठ वर्षों से जमे थे कोई उन्हें परेशान नही करता चाहे सरकारी मोहकमा हो या कोई दौलतमंद दबंग या कोई अपराधी ।

मंझारी और चनवा का खानाबदोश कुनबा गोकुल प्रवास से बहुत खुश था दिन भर मेहनत करते रात को थक कर सो जाते फिर उनकी जिंदगी सूरज के उगने के साथ सुरु हो जाती ।

गोकुल में कृष्ण भक्त सन्तो कि बहुलता है एक दिन आते जाते प्रातः काल गोकुल अपने कुनबे के अन्य बच्चों के साथ खेल रहा था तभी उसी रास्ते से गुजरते कृष्ण भक्त सन्त रमन्ना जो दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश से अपने गुरु लोकवर्धन जी के साथ गोकुल आए तब से यही के होकर रह गए कि पड़ी रमन्ना गोकुल को देखते ही रह गए बार बार वह गोकुल को देखते और फिर उसके साथ खेलते हुए अन्य बच्चों को लेकिन गोकुल जैसा कोई नही दिखता उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान से जान लिया कि वास्तव में गोकुल बहुत विशेष बालक है उन्होंने उस समय वहाँ से जाना ही बेहतर समझा और चले गए।

शाम होते ही सन्त रमन्ना मंझारी के पास पहुंचे मंझारी सन्त रमन्ना से परिचित थे उन्होंने सन्त महाराज को देखते ही हाथ जोड़कर खड़े होते बोले महाराज आपने मुझे बुला लिया होता आपने आने का कष्ट क्यो किया ?
सन्त रमन्ना ने कहा कभी कभी स्वंय भी भविष्य एव कान्हा के संकेत पर आना ही पड़ता है मंझारी बोले महाराज आदेश करे संत रमन्ना ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप अपने समाज के बच्चों को हमारे संरक्षण में कुछ दिनों के लिए भेजे मैं चाहता हूँ कि बच्चों को ऐसे संस्कृति संस्कार दिए जाने चाहिए जिससे आपके बच्चे खनाबदोस संस्कृति से निकलकर भारत के कुलीन परिवारों में परिवर्तन का आधार बने ।

मंझारी ने कहा महाराज जाने कब से हम लोग यही जीवन जीते चले आ रहे है हमारे बच्चे कैसे कुलीन बनने की राह पर चल सकेंगे सन्त रमन्ना ने मंझारी को बहुत समझाया लेकिन मंझारी को सन्त रमन्ना कि बात समझ मे नही आ रही थी सन्त रमन्ना और मंझारी के मध्य चल रही वार्ता को चनवा मंझारी कि पत्नी बड़े ध्यान से सुन रही थी जब हार कर संत रमन्ना लौटने लगे तब चनवा ने सन्त को रोकते हुए कहा महाराज हमारे आदमी कि मति तो मारी गयी है इन्हें कुछ समझ नही आ रहा है सन्त रमन्ना ने चनवा की तरफ मुड़ते हुए कहा हम तो तुम्हारे पति को समझा कर हार गए अब तुम ही समझा सकती हो क्योकि तुम मइया यशोदा कि तरह हो जो अपने संतानों का अहित ना तो देख सकती है ना सुन सकती है ।

चनवा मंझारी कि तरफ मुखातिब होकर बोली समझ काहे नही रहे हो दिन भर समाज के बच्चे इधर उधर उधम मचाते रहते है खेलते है समाज का एक मनई इनकी देख रेख के लिए बारी बारी से एक एक दिन काम छोड़ कर दिन भर हाथ पांव पसारे बैठा रहता है महाराज जी के यहाँ बच्चे जाएंगे तो कम से कम वहाँ कुछ अच्छा ही सीखेंगे तुम्हारी मति मारी गयी है क्या ?
तुमने महाराज जी को बच्चों को दिन में अपने पास रखने से मना कर दिया साथ ही साथ एक आदमी जो बच्चों की देख रेख के लिए दिन भर बैठा रहता है वह भी अपने काम पर हाथ पैर चला सकता है मंझारी पत्नी चनवा के सामने निरुत्तर हो गए और चनवा ने अपना फैसला सुना दिया महाराज कल से हमारे समाज के बच्चे आपके यहाँ जाएंगे संत रमन्ना को चनवा के फैसले से जैसे उनका मकशद ही मिल गया हो बहुत प्रसन्न हुए और चनवा और मंझारी को आशीर्वाद देते हुए बोले हमारे शिष्य तिलकधारी प्रतिदिन आपके समाज के बच्चों को शाम आप लोंगो के यहां छोड़ जाया करेंगे प्रति दिन सुबह मैं स्वंय इन्हें अपने साथ ले जाया करूंगा मंझारी चुपचाप संत रमन्ना कि बातों को सुनता रहे।

अगले दिन सुबह सन्त रमन्ना आए और खानाबदोश समाज के सभी बच्चों को जिनकी संख्या कुल सात आठ थी को साथ लेकर चल दिये बच्चों को अपने आश्रम ले जाकर उन्होंने पहले दिन बच्चों को अच्छे अच्छे पकवान एव खेलने के लिए खेल से सम्बंधित उपकरण जैसे गेंद
आदि दिया बच्चे दिन भर मगन रहे शाम को सन्त तिलकधारी महाराज बच्चों को उनके परिवारों में छोड़ आए यह सिलसिला महीनों चलता रहा अब खानाबदोश समाज के बच्चे स्वंय महाराज के साथ जाने के लिए अपने माँ बाप से जिद्द करते।

सन्त रमन्ना ने सभी बच्चो का गोकुल को मुखिया बना दिया जब बच्चे नियमित रूप से आश्रम में आने जाने के अभ्यस्त हो गए तब सन्त रमन्ना ने निकट के प्राइमरी पाठशाला के प्रधानाध्यापक त्रिभंगी शास्त्री के पास गए और खनाबदोस परिवारों के सभी बच्चों को पाठशाला में पढ़ाने के लिए अनुरोध किया प्रधानाध्यापक त्रिभंगी शास्त्री को कोई परेशानी नही थी उन्हें तो खुशी ही हुई सन्त रमन्ना ने खानाबदोश परिवारों के बच्चों की फीस अपने पास से देने का त्रिभंगी शास्त्री को वचन दिया जिसे वह नियमित निभाते प्राइमरी पाठशाला में अध्ययन के शुरू में बच्चों ने कुछ असमान्य महसूस अवश्य किया लेकिन माँ बाप के आदेश एव सन्त के अनुशासन के आगे बच्चों कि कुछ न चली और बच्चे नियमित रूप से सुबह पहले सन्त रमन्ना के साथ उनके आश्रम जाते और कुछ देर बाद पाठशाला शाम को तिलकधारी महाराज बच्चों को उनके माँ बाप के पास छोड़ आते यह सील सिला चलते तीन चार वर्ष हो चुके थे ।
खनाबदोस परिवार भी खुश था चनवा बार बार पति मंझारी को ताना मारती कि तुम्हारी चलती तो बच्चों को कभी तुम सन्त के साथ नही जाने देते।

इसी बीच खनाबदोस परिवार जहां सात आठ वर्षों से डेरा जमाए हुए था वहां से हटने का सरकारी फरमान जारी हो गया मंझारी और चनवा एव साथ के परिवारों को बहुत परेशानी नही थी उन्हें तो स्वयं ही ऐसा लग रहा था कि बहुत दिन हो गए एक ही जगह अब कही और डेरा डालना चाहिए लेकिन सन्त रमन्ना को बच्चों की चिंता सताए जा रही थी उन्हें लग रहा था कि उनकी इतने दिनों कि मेहनत बेकार चली जायेगी और बच्चे फिर उसी खानाबदोश समाज का हिस्सा किस्सा बन कर रह जाएंगे जिससे उनकी पीढ़ी को मुक्त कराने का वह प्रयास कर रहे थे ।

सन्त रमन्ना कि कोई राजनीतिक पहुंच तो थी नही जिसके आधार पर इस समस्या का कोई हल निकल सकते बहुत सोच विचार करने के बाद उन्होंने समस्या के निवारण हेतु स्वंय को ही दांव पर लगाना उचित समझा उन्होंने सन्त तिलकधारी से कहा कि तुम बच्चों की जिम्मेदारी संभालो मैं खानाबदोश बस्ती के सामने एक सूत्रीय मांग उनके पुनर्वास के लिए आमरण अनशन पर बैठूंगा सन्त तिलकधारी अपने गुरु के समक्ष कुछ भी बोल सकने का साहस नही जुटा सके और गुरु के आदेश को शिरोधार्य कर लिया ।
अगले दिन सुबह सन्त रमन्ना जो मूल रूप से दक्षिण भारत के जैन परिवार में जन्मे थे और गोकुल में निवास कर रहे थे ने खानाबदोश परिवारों को एकत्र किया और बोले देखो भाई तुम लोग भले ही एक जगह से दूसरे जगह रहते चले आए हो लेकिन अब कम से कम तुम लोग ऐसा नही करोगे तुम लोंगो के पुनर्वास के लिए मैं तुम्हारी बस्ती के सामने आमरण अनशन तब तक करूंगा जब तक तुम लोंगो का पुनर्वास नही हो जाता या मेरी मृत्यु नही हो जाती इस बीच तुम लोग बिना विचलित हुए अपने कार्यो को करते रहो तुम्हारे बच्चे भी नियमित रूप से तिलकधारी के साथ मेरे आश्रम एव पाठशाला आएंगे जाएंगे मंझारी खानाबदोश कुनबे का मुखिया सन्त रमन्ना से बहुत मिन्नतें कि मानमनौल अपने पूरे कुनबे के साथ किया बोला महाराज हम लोगो का जीवन ही ऐसा है आज यहाँ कल वहाँ कौन कहां पैदा हुआ कौन कहां मरा याद नही हम लोगो के लिए अपनी जान जोखिम में क्यो डालना चाहते है?
सन्त रमन्ना बोले हम सन्त है कोई कार्य स्वंय स्वार्थ के नही करते हमारी प्रवृति है निःस्वार्थ निर्विकार मानव सेवा यही सन्त परम्परा है जो हम करने जा रहे है ।
मंझारी एव सारे खानाबदोश समाज के सन्त को समझने के लिए किए गए प्रार्थना निवेदन व्यर्थ सावित हुए सन्त रमन्ना सन्त हठ प्रतिज्ञा लेकर खानाबदोश बस्ती के सामने उनके पुनर्वास कि मांग लेकर खुले आकाश के नीचे बैठ गए ना पेड़ कि छाया धूप गर्मी बरसात किसी मौसम कि मार से बेखबर आने जाने वाले सन्त को देखकर परिहास करते सन्त रमन्ना दुनियां से बेखबर अपने धुन में रम गए।

खानाबदोश समाज ने उनके लिए एक तंबू कि व्यवस्था की जो उनके बस में था एक दिन दो दिन तीन दिन सप्ताह बित गए किसी ने सन्त रमन्ना पर कोई ध्यान नही दिया ना मीडिया ने ना किसी राजनीतिक व्यक्ति ने ना ही किसी सामाजिक संस्था ने सन्त का स्वास्थ गिरता जा रहा था और हालत गम्भीर होती जा रही थी उन्नीसवें दिन सन्त कि हालत बहुत खराब हो गयी।

कहते है जिसका कोई नही उसका ईश्वर होता है कान्हा को गोकुल में सन्त के इस प्रकार हठ से शरीर त्यागना स्वीकार नही था चिकित्सक डॉ रत्नमौली जो किसी कार्य से खानाबदोश बस्ती के सामने से गुजर रहे थे उन्होंने सन्त को घेरे कुछ लोंगो को देखा डॉ रत्नमौली ने अपनी कार रोकी और जिज्ञासा बस सन्त को घेरे लोंगो के पास गए और और देखकर दंग रह गए कि एक सन्त मरणासन्न पड़ा हुआ है उन्होंने सन्त कि ऐसी स्थिति का कारण जाना और ब्लड प्रेशर आदि नाप कर बिना कुछ बोले वहाँ से चले गए ।

अपनी क्लिनिक में पहुंचकर उन्होंने सन्त के आमरण अनशन एव हालात कि जानकारी उपजिलाधिकारी कर्मेश मल्होत्रा को दी हालांकि सन्त ने आमरण अनशन से पहले आमरण अनशन कि जानकारी मथुरा जिला प्रशासन पुलिस प्रशासन स्थानीय थाने को दी थी लेकिन सभी ने मान लिया था कि सन्त प्रचार का स्वांग कर रहा है दो चार दिन जब कोई ध्यान नही देगा तब स्वंय ही उठकर चला जायेगा लेकिन जब डॉ रत्नमौली ने उपजिलाधिकारी कर्मेश मलहोत्रा को सच्चाई बताई औऱ कर्मेश मलहोत्रा ने उच्च अधिकारियों को सच्चाई कि जानकारी दी गोकुल का सन्त समाज पहले से ही सन्त रमन्ना को ढोंगी मानता था और उनके द्वारा किए गए किसी कार्य का समर्थन नही करता था यही कमोवेश स्थिति पूरे ब्रज क्षेत्र के संत समाज की थी।

डॉ रत्नमौली कि सूचना पर उपजिलाधिकारी कर्मेश मलहोत्रा ने जिलाधिकारी से विचार विमर्श किया और मथुरा नगर निगम विकास प्राधिकरण के अधिकारियों से विचार विमर्श करने के उपरांत प्रदेश शासन से भी चर्चा कर रणनीति यह बनाई की सन्त को आमरण अनशन तोड़ने के सभी शाम दाम दण्ड भेद तरीको का प्रयोग किया जाय यदि सन्त रमन्ना नही टूटे तब उनकी मांग के अनुसार खानाबदोश परिवारो के पुनर्वास के लिए जमीन मुहैया कराई जाएगी और प्रशासन बहुत सामान्य नजरिये से डॉ चंद्रमौलि कि सूचना पर कार्य करने लगा और सन्त रमन्ना को तोड़ने के प्रयास करने लगा सन्त रमन्ना कि स्थिति वद से बदतर होती जा रही थी
जब प्रशासन के सभी हथकण्डे व्यर्थ साबित हुए तब प्रशासन ने जबरन सन्त रमन्ना को आमरण अनशन स्थल से हटा कर अस्पताल में भर्ती करा दिया अस्पताल में भी सन्त ने सारे कोशिशों के बाद भी आमरण अनशन नही तोड़ा संत रमन्ना को तोड़ने की तरह तरह कि कोशिशें कि गयी जो नाकाम रही संत रमन्ना प्राणान्त के विल्कुल निकट थे।
खानाबदोश परिवारो को सन्त तक पहुँचने तक नही दिया जा रहा था मीडिया वाले सन्त के आमरण अनशन को मथुरा गोकुल कि मुख्य खबर बना कर जोर शोर से छाप रहे थे शहर के आम नागरिक भी सन्त कि दशा को लेकर आंदोलित होने की राह पर निकलने ही वाले थे हालात बेकाबू देख कर्मेश मल्होत्रा ने जिलाधिकारी मथुरा को सही सलाह देते हुए प्रदेश शासन कि अनुपति से खानाबदोश परिवारो के जो बामुश्किल आठ दस कि संख्या में थे के पुनर्वास के लिए भूमि आवंटित करने के लिए राजी कर लिया जिलाधिकारी मधुरा ने प्रदेश शासन से बात करके अनुमति भी ले लिया जिलाधिकारी मथुरा एव उपजिलाधिकारी कर्मेश मलहोत्रा सन्त रमन्ना के पास गए और खानाबदोश परिवारो के पुनर्वास के लिए जमीन आंवटन का लिखित आदेश लेकर गए क्योकि सन्त रमन्ना कि शर्त थी आश्वासन नही सार्थक परिणाम पर ही अनशन तोड़ेंगे जिलाधिकारी मथुरा ने सन्त रमन्ना का अनशन तुड़वाया और खानाबदोश बस्ती के परिवारों के पुनर्वास हेतु आवंटित जमीन के कागजात देते हुए कहा सन्त रमन्ना जी सनातन एव भारतीय सन्त परम्परा के वह वर्तमान है जिनके अतीत स्वर्णक्षरों में अंकित हमे दिशा दृष्टि दृष्टिकोण प्रदान करते रहते है भरतीय परम्परा का सन्त योगी त्याग समर्पण सेवा का युग दिग्दर्शक होता है यही सत्य साक्षात सन्त रमन्ना जी ने प्रमाणित एव पुर्नस्थापित किया है कौन आज के समय मे अपने सुखों का त्याग आठ दस खानाबदोश परिवारो के लिए कर सकता है? जिनकी तरफ कोई भी देखना भी अपानी तौहीन समझता है यदि कर सकता है तो भारतीय सनातन सन्त योगी, सन्यासी ,महान परम्परा आज मेरे भी किसी पूर्वजन्म के संचित पुण्य का परिणाम है कि मुझे ऐसे सन्त के दर्शन का शुभ अवसर मिला मैं हृदय कि गहराईयों से डॉ चंद्रमौलि एव उपजिलाधिकारी कर्मेश मल्होत्रा के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने शासन को उचित समय पर सही सलाह दिया जिलाधिकारी कि भावाभिव्यक्ति से पूरा वातावरण तालियों कि गड़गड़ाहट से गूंज गया।

कहानीकार - नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।