कोई अपना सा अपने जैसा - 1 Ashish Dalal द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कोई अपना सा अपने जैसा - 1

उम्र चाहे कोई भी हो, हर किसी के अपने सपने होते है ।  उम्र कॉलेज जाने वाली हो या जिन्दगी के सुख दुख का हिसाब करने की ...हर किसी को अपना छोटा सा सपना भी बड़ा ही प्यारा लगता है । अफ़सोस की बात तो ये है कि जिन्दगी का खास लगने वाला सपना हर बार पूरा नहीं हो पाता और अधूरे सपनों के साथ जी जाने वाली जिन्दगी कभी कभी इस कदर बोझ लगने लगती कि कोई एक फैसला ले ही लेना पड़ता है । 

अब वो फैसला मजबूरीवश लिया गया हो या ख़ुशी से ....उसका असर फैसला लेने वाले इंसान के साथ उससे जड़ी जिंदगियो पर भी जरुर पड़ता है ।

कहा जाता है जिन्दगी में प्यार ही सबकुछ होता है लेकिन यदि ये प्यार किसी गलत तरीके से हासिल होता है या किया जाता है तो वो प्यार जिन्दगी की जरूरत होने पर भी बदचलन कहलाने लगता है । जिन्दगी में सही या गलत का फैसला केवल इंसान के नजरिये पर ही तो निर्भर करता है और जिन्दगी को देखने का ये नजरिया उम्र और अनुभव के साथ बदलता रहता है । कहने को बहुत कुछ है लेकिन कहानी के पात्र ही आगे बातें आपसे करेंगे ... मैं तो बस एक जरिया हूँ ....आपके और कहानी के पात्रों के बीच एक रिश्ता जोड़ने का ...

कुछ अतरंगी सपने, उम्मीदों और जिन्दगी की कड़वी सच्चाई से रूबरू होती जिन्दगी की कहानी के पात्र भी आपकी तरह ही कुछ ख़ास है ....

कॉलेज के फर्स्ट इयर में पढ़ने वाला अंश कहानी का मुख्य हीरो है और उसका क्लासमेट मनन सहनायक है, जिसकी जिन्दगी में कॉलेज में हुई रैंगिंग से ऐसा भूचाल आ जाता है, जो अंश को भी अन्दर तक हिला कर रख देता है।

शुचि कहानी की मुख्य नायिका है, जो अंश के साथ ही कॉलेज में उसकी क्लासमेट है। शुचि की जिन्दगी कुछ इस तरह से उलझी हुई है, जिसके जवाब खुद उसके पास नहीं है लेकिन फिर भी वो उनके जवाब पाने की कोशिश में लगी हुई है।  उसकी सहेली निधि कहानी की दूसरी नायिका है  जो अनायस ही मनन की तरफ आकर्षित होती है लेकिन उसकी जिन्दगी की सच्चाई पता लगते ही उसे उससे घृणा भी होती है।

शुचि की मम्मी रेवती, शुचि का भाई आकाश, मिश्रा अंकल  की अपनी अपनी एक अलग कहानी है लेकिन कहीं न कहीं वो मुख्य पात्रों के साथ इस कदर जुडी हुई है कि उनके अपनी जिन्दगी के फैसले इसकी वजह से अधूरे से रह किसी जवाब की तलाश में है ।

वक्त गुजरेगा और कौन कौन इस कहानी में शामिल होगा ये तो वक्त ही बताएगा ....फिलहाल इस वक्त को हम हफ्ते के एक दिन बाँध कर रखेंगे ।

मेरी इत्ती सी बात पसंद आई हो तो कमेंट्स कर जरुर बतावें ताकि कहानी वक्त पर शुरू करने का हौसला बना रहे । इतना यकीन तो आपको अभी दिला ही सकता हूँ कि ये बातें आपको थोड़ी सी भी पसंद आई है तो कहानी अवश्य ही दिल को भाएगी ।

तो देर किस बात की लाइक और कमेंट्स कर न केवल लेखक का हौसला बढ़ाइए बल्कि कहानी के पात्रों को आपसे बातें करने का मौका भी दीजिए । और बातों का ये सिलसिला तभी आगे बढ़ पाएगा, जब आप उनकी बातों से सहमति या असहमति जताएंगे।  

तो मिलते है जल्दी ही - कोई अपना सा अपने जैसा के साथ...