परछाईया - भाग 2 Dr.Chandni Agravat द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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परछाईया - भाग 2




प्रिय वाचक अगर आपको मेरी रचना पसंद आये कृपीया अपना प्रतिभावा दे और मुझे फोलो करे यह मेरा होंसला बढाता है।

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जब उन्होने दरवाजा खोला देखा नीर्वा बेड के पास बेहोश पडी थी, उसकी साँस बहोत धीमी चल रही थी।

उन्होने उसे तत्काल हास्पिटल पहुंचाया,, उसको हस्पताल मै भर्ती किया गया। थोडी देर बाद डोक्टर बहार आये और बोले
" हार्ट नोर्मल है, सुगर भी, और.आप बोले ऐसे पेनिक अटेक भी नहीं है, इन्हे कीसी चीज की सीवयर एलर्जी हो गई है।

सनत को याद आया, जब वह अंदर गए तो निर्वा के पास एक बुके पडा था। डोक्टर ने कहा" अब चिंता की कोई बात नहीं है, ट्रीटमेंट को रिस्पोन्ड कर रही है।

सनत ने राहत की सांस ली , उसे फीर वह बुके याद आया,
वह भागता होटल पहुंचा, रुम मे दाखिल होके उसने सीधा बुके उठाया, उसमे चंपा के फुल देखकर ही वह सन रह गया" किसको पता होगा की मेडम बेटी को चंपा की एलर्जी है, तब ही उसने नोट पढा " अतीत का साया मुबारक ', जरूर कोई ऐसा करीबी है जो हवेली का इतिहास जानता हो ।


उसने तुरंत फोन लगाया" हेलो" सामने से भारी भरकम आवाज आई " तुम्हे कितनी बार मना कीया है, फोन के बदले मेसेज कीया करो, इमर्जेंसी मे ही....

" सरकार, इमर्जेंसी ही है, बिटिया... उसने पुरी बात बयां की और बुके वाला वाकिया भी बताया" कौन हो शकता...है।"


" तुम उसे वहा से डिस्चार्ज करवा के निकलो मै डाक्टर से बात कर लुंगा...मुंबई के अस्पताल मै व्यवस्था हो जाएगी।
अब यहां खतरा है।" फीर फोन रखते रखते..बोला " ध्यान रखना..मुजे खबर करते रहना"


"अगर आप एकबार उसे मील लेते तो...." सनतने हिचकिचाहट से कहा।

"तुम क्या सोचते हो मैने उसे देखा नहीं रोज हवेली के चक्कर लगाते? मैरा मन नहीं कीया होगा, ...मेरे उसूल मेरा रास्ता रोके खडे है, पहल तो उसको हीं करनी पडेगी।" मनोहर सिंहने उतर दिया।

सनतने अम्ब्युलन्स बुक करवाई, और दोन जगह के डोक्टर से बात कर निर्वा को डिस्चार्ज करवा के निकल गया।

बम्बई मै उसको भर्ती करवाया गया।

मनोहरसिंह और सनत दोनो के जहन मै एक हीं ख्याल चल रहा था।" आखिर वह कौन है जो निर्वा को इतना करीब से जानता हो। उसके बचपन से जुडा ही कोई होगा।"

सनत बारी बारी एक एक नाम सोचता था....तब ही नर्स ने बुलाया" डॉक्टर सहाब आपको बुला रहे है"।

" पेशन्ट कोमेटोझ स्टेट मे है, यानी मीनीमल कोन्सयस अच्छी बात ये है की कोमा मै नहीं है, थोडे दीन मै ठीक हो जायेगी" डोक्टरने जानकारी दी सनतने उन्हे बीच मै हीं टोक दीया, उसने अपना फोन स्पीकर पर लगाया, और पुछा" ये कीस बजह से हुआ?"

"ईनको कीसी चीज की सीवीअर एलर्जी हुई है, जैसे एनाफायलेक्सीस बोलते है, ...आपको और पेशन्ट को ध्यान रखना चाहिए था।" डोक्टर ने थोडे रुखे पन से कहा।

निर्वा आंख खोल रही थी सब कुछ देख पा रही थी पर ज्यादातर रीस्पोन्ड नहीं कर पा रही थी। सनत पुरा दीन उसके पास बैठा रहता। कभी उससे बात करता कभी बताता कौन से ऑफर आ रहे है, कौन राह देखने को तैयार नहीं।

ऐसे तीन हफ्ते बीत गये, सचिन को उसने मैसेज पहुंचा दिया था पर वो आया नहीं था, नीर्वा की सुनी आखे कभी कभी दरवाजे की आहट पर घुमती, और नजर निराश होकर कर
वापिस आती।

डोक्टर बता रहे थे की मरीज की खुद की ठीक होने की इच्छा मर गई है।

अब सनत से रहा नहीं गया उसने मनोहरसिंह को कोॅल लगाई
" मै थक गया हुं, मैने कोई और नोकरी ढूंढ ली है,आपको आना है तो आइये वर्ना कल मै उसे हस्पताल मै अकेला छोड चला जाऊंगा। फीर बिटिया चाहे अकेली रहे "उसने डोक्टर का नंबर भेज दीया।

दो घंटे बाद उसने फीरणसे कोल लगाई तो मैसेज सुनाई दीया," आप जीस नंबर पर काल करत रहे है वह ईस वख्त कवरेज क्षेत्र से बहार है।" वह मन ही मन मै मुस्कुराया।

@ डोॅ.चांदनी अग्रावत