The Author Dr.Chandni Agravat फॉलो Current Read परछाईया - भाग 4 By Dr.Chandni Agravat हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books सनातन - 2 (2)घर उसका एक 1 बीएचके फ्लैट था। उसमें एक हॉल और एक ही बेडरू... गोमती, तुम बहती रहना - 7 जिन दिनों मैं लखनऊ आया यहाँ की प्राण गोमती माँ लगभग... मंजिले - भाग 3 (हलात ) ... राजा और दो पुत्रियाँ 1. बाल कहानी - अनोखा सिक्काएक राजा के दो पुत्रियाँ थीं । दोन... डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 76 अब आगे,राजवीर ने अपनी बात कही ही थी कि अब राजवीर के पी ए दीप... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Dr.Chandni Agravat द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 5 शेयर करे परछाईया - भाग 4 942 2.3k पार्ट 4जैसे ही डॉक्टर निर्वा के कान में कुछ बोला उसने आंखे खोली सब देखकर समझ तो शकती थी, तुरंत उसने वह.आवाज सुन के रिएक्ट किया, उसकी पल्स बहुत बढ़ गई और सांस फुलने लगी , यह देखकर मनोहरसिंह डॉक्टर डॉक्टर चिल्लाने लगे। नर्स और डॉक्टर आए और उसे सेडैटीव का इंजेक्शन दे दिया ,डॉक्टर ने बोला इसके आसपास किसी भी प्रकार की तनावपूर्ण बातें ना करें ।निर्वा गहरी नींद में जा पहुंची।मनोहर सिंह सोचने लगा की मुझे इतने सालों के बाद देखकर निर्वा की तबियत बिगड़ गई। सनत सायें की तरह उस डॉक्टर का पीछा कर रहा था ।वह अब अपनी डॉक्युमेंट्स ले कर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिस मैं गया ।सनत उससे दूर कुछ देरी पर खड़ा रहा क्लर्क ने कहीं कागज पर उसकी सहीं करवाई और कहा डॉक्टर विराट कल तक आपका आई कार्ड और आपका नाम वाला आपका स्क्रब सूट आ जाएगा।विराट नाम सुनकर सनत चौक गया यह कैसे मुमकिन है हो तो 20 साल पहले...... गलत दंग रह गया तब वह भी तो 17 18 साल का था और उसके पापा मनोहर सिंह के यहां ड्राइवर थे उससे पहले हवेली में वह एक या दो बार गया था, क्योंकि वह शहर से बाहर पड़ता था बारहवीं फेल हो जाने के बाद उसके पापा ने उसे गांव बुला लिया था।उसे याद है उसके गांव जाने के दो तीन दिन के बाद ही उसे निर्वा के पीछे उसकी देखभाल के लिए लगा दिया गया था और बताया गया था कि निर्वा को और किसी और को यह बात पता नहीं चलनी चाहिए।वह सोचने लगा अगर इसका नाता गांव से है तो यह विराट कैसे हो शकता है !यह कैसे मुमकिन है ,शायद यह मेरा वहम भी हो शकता है। विराट तिरछी नजर से उसको देख रहा था ,और उसके चहरे पर शातिर सी मुस्कान आ गई ।सीधा तीर निशाने पर लगा वह सनतके पास से बेफिक्री से गुजराऔर उसने जानबूझकर अपने यूनिवर्सिटी के पहचान पत्र की फोटोकॉपी गीराई जिस पर सब पढ़ा जा रहा था डॉक्टर विराट कुमार शर्मा...कितने साल मुंबई में रहकर सनत ने तरह-तरह के लोग देखे थे उसने अपनी तरफ से पूरी छानबीन करने के बाद ही निष्कर्ष पर आने की सोची।निर्वा गहरी नींद में अपने बचपन में पहुंच गई।उनका घर गांव में बड़ी हवेली के नाम से जाना जाता था। उसका भरा पूरा परिवार था ,चाचा चाची दादा दादी मां पापा चाचा के दो लड़के और दो बड़े भाई उसके सब लोग ।एक अकेली लड़की इसीलिए वह बहुत लाड प्यार और नाजोसे पाली गई।खास कर दादी शांति को उसपे बड़ा प्यार था। वह किसी को निर्वा से ऊंची आवाज में बात करने भी नहीं देती थी वह कहती थी मेरी बेटी को कोई आंख उंची करके भी नहीं देख शकता।जमीन जागीर पैसे इज्जत रुतबा किसी चीज की कमी नहीं थी ।इस अरसे में पाप उसके पापा के दुर के चाचा का बेटा,चचेरा भाई जगत इंग्लैंड से अपने लड़के को लेकर आ गया ।इंग्लैंड में उसकी उसकी बीवी से तलाक हो गई थी ,ऐसा उसने पापा को बताया और उसकी बीवी ने अब तक की पूरी कमाई रख ली थी ।मनहर सिंह ने बड़ी दिलदारी से उसे अपने घर में रख लिया और निर्वा की उम्र का विराट सबसे घुल मिल गया।हवेली 6 बच्चों की किलकीलाहट से खुशियों से भर जाती...। इस दौर में जगत की तबीयत कुछ खराब रहने लगी ।उसे ह्दय संबंधी कुछ समस्या थी एक दिन पापा के बिजनेस में उसकी वजह से बहुत बड़ा नुकसान हो गया।मनोहरसिंह ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई। विराट यह देखकर सहम गया, उसी रात जगत को बहुत तेज दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसा। उसके बाद विराट यहां रुक तो गया पर उसकी स्वभाव में बहुत परिवर्तन आने लगा वह कई बार दिनों तक ना किसी से बात करता न पढ़ने जाता न खाना खाता ।वह अब सबसे बदतमीजी भी करने लगा था सिर्फ दादी की बात सुनता।निर्वाह से उसकी अच्छी बनती, एक दिन वह घर में चोरी करता पकड़ा गया। मनोहरसिंहने फैसला किया कि उसको कहीं दूर हॉस्टल में पढ़ने भेज देंगे।सारे भाई बहन ने और दादी ने इसकी हिमायत की और उसने की बहुत-बहुत रो कर गिर -गिराकर माफी मांगी । मनोहरसिंह ने उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया।अब वह बदतमीजी की जगह छोटी-छोटी चालाकी करने लगा कभी भाइयों में झगड़ा करवा देता।तो चाचीओ मै फुट पडवाने की कोशीश करता। निर्वा उसका बहुत ख्याल रखती थी ,पढ़ाई में ब अच्छा था तो उसके पास वह कुछ शीखा करती थी।उन लोगों की परंपरा के अनुसार निर्वा की अगले साल में मंगनी तय हो गई। उससे वह गिन्नाया शायद मन ही मन में वह नीर्वा को पसंद करता था ।एक दिन वह लोग पीछे के बगीचे में बैठ पढ़ाई कर रहे थे ।तब उसने निर्वा को बताया कि तुम इस मंगनी से मना कर दो ।निर्वा हैरान हो गई ।उसने कहा "मैं तुमसे शादी करूंगा " निर्वा खिल-खिलाकर हंसने लगी और बोली बुद्धू मैं तुम्हारी बहन लगती हूं।कुछ दिन चले गए मंगनी का दिन आ गया । अगले दिन मेहंदी लगा के निर्वा छत पर टहल रही थी, वह आया और अचानक छत की दीवार पर चड गया अगर तुम्ह मंगनी करोगी तो मै यहां से कुद जाऊंगा। निर्वा को लगा वह मजाक कर रहा है। उसने बोला बहुत हुआ तुम्हारा मजाक मस्ती अब मुझे पापा को बताना पड़ेगा। कोई अपनी चचेरी बहन के साथ ऐसा मजाक करता है क्या? वह बोला सच में कह रहा हुं।निर्वा ने बेफिक्री से कहा तो कुदजाओ और नीचे की ओर चली गई वह नीचे पहोंची ही होगी कि धड़ाम से आवाज आई। @ डो.चांदनी अग्रावत ‹ पिछला प्रकरणपरछाईया - 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