कलावती - भाग 3 भूपेंद्र सिंह द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलावती - भाग 3

एक बेहद ही खूबसूरत औरत जो मर्दों को अपना शिकार बनाती है।।
कमरे के बिल्कुल बाहर कबीर के सामने विनय खड़ा था जिसका माथा पसीने से भीगा हुआ था और उसके बदन में एक अजीब सी सिरहन दौड़ रही थी जिसे कबीर साफ़ महसूस कर सकता था।
कबीर कुछ पल रुककर डरते हुए बोला ,,"क्या हुआ?"
विनय ने जल्दी से कबीर का हाथ पकड़ा और उसे कमरे से बाहर खींचकर धीरे से बोला ,,"तुझे मालूम भी है क्या? मुझे अभी अपने कमरे में वो अशोक नज़र आया था। जल्दी से एक काम कर वो अंगूठी मुझे दे दे जिसमें कलावती को कैद किया गया था। वो अंगूठी मेरे पास में सेफ रहेगी। समझ में आया। जल्दी बता वो अंगूठी कहां है? अरे ! कुछ बोलेगा भी क्या? मेरे मुंह की तरफ ऐसे क्या देख रहा है?"
कबीर डरते हुए बोला ,,"तूं..... तू क्या ... तूं क्या बोल रहा है? ... तूं विनय ..... ही है .... ना। तूं ही तो अभी मुझसे वो अंगूठी लेकर गया था?"
ये सुनकर विनय बुरी तरह डर गया और गुस्से से बोला ,,"साले तूं पागल हो गया है क्या? तेरा दिमाग तो ठीक है ना। मैं तो अभी अपने कमरे से आया हूं। तूने मुझे अंगूठी कब दे दी। इसलिए अब ज्यादा मज़ाक मत कर और मुझे जल्दी से वो अंगूठी दे। वो साला अशोक उस अंगूठी को हासिल करने के लिए कुछ भी कर सकता है और यार कुछ भी का मतलब तो तूं बखूबी जानता है।"
कबीर ने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ लिया और अब उसका पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था।
बदन थर थर कांपने लग गया था। कुछ देर पहले की सारी घटनाएं अब उसके दिमाग में किसी फिल्म की तरह चक्कर काट रही थी।
इतने में कबीर धीरे से बोला ,,"इसका मतलब है की वो अशोक था?"
विनय गुस्से से चिलाया ,,"साले तूं पागल हो गया है क्या? क्या बकवास कर रहा है तूं? ढंग से कुछ बताएगा भी क्या? या फिर मुझे यूंही गोल गोल घुमाता रहेगा। अरे ! कौन अशोक था? हुआ क्या है? कहां है वो अंगूठी?"
कबीर डरते हुए बोला ,,"अभी तेरा रूप बनाकर कोई आया था और उसने मुझसे वो अंगूठी मांगी थी?"
विनय ये सुनकर बुरी तरह कांप उठा और डरते हुए बोला ,,"तूं .... तूने अंगूठी दे दी क्या?"
कबीर ने डरते हुए हां में सिर हिला दिया और ये देखकर विनय ने अपने दिल पर हाथ रख लिया और बोला ,,"हमारी वर्षों की मेहनत बरबाद हो गई। सारा काम चौपट हो गया?"
कबीर गुस्से से बोला ,,"सारी गलती मेरी ही है। मैं ही उसे पहचान नहीं पाया की वो तेरे वेश में अशोक है।"
विनय कबीर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला ,,"तूं खुद को दोष मत दे। वो अशोक एक पहुंचा हुआ एयार है। एयारी के फन का तो बादशाह था वो। बड़े बड़े उसके धोखे में आ जाते हैं।"
इतने में कबीर ने अपना सर उपर किया और पागलों की तरह हंसते हुए बोला ,,"बड़े बड़े आ जाते होंगे लेकिन कबीर सिंह राज्यादा नहीं। उस जैसे बड़े बड़े भूतों को ठिकाने लगा चुका हूं मैं।"
ये सुनकर विनय के चेहरे पर भी एक डेविल स्माइल आ गई और उन दोनों ने आपस में ताली मार ली।
इतने में कबीर ने अपने गले में से लोकेट निकाला और विनय के गले में डालते हुए बोला ,,"समझो की दूसरा मोहरा भी हमारे हाथ में लगने वाला है।"
विनय ने उस लोकेट को गौर से देखा जिसमे की कलावती कैद थी और हंसते हुए बोला ,,"नाखून देखकर पहचान लिया था क्या?"
ये सुनकर कबीर ने हां में सिर हिला दिया और बोला ,,"साले के नाखून गहरे नीले थे। मैं तभी समझ गया था की ये विनय नहीं बल्कि उसका वेश बदलकर आया हुआ कोई बहरूपिया है। सिंगाड़ा के कहे मुताबिक मैंने भी पहले से ही कलावती को अंगूठी में से निकालकर इस लोकेट में कैद कर लिया था। मैने भी उसे नकली अंगूठी पकड़ा दी। अच्छा अब तूं जा। ये भूत प्रेत बुरी आत्माएं हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है। वैसे भी अब तो सिंगाड़ा भी हमारे साथ में है।"
विनय ने जहरीली मुस्कुराहट में हां में सिर हिलाया और वहां से चला गया।
दरवाजे के पास में खड़ी मान्या उन दोनों की सारी बातें सुन रही थी। उनकी बातें सुनकर मान्या की आंखें भी डर के कारण अब बड़ी हो चुकी थी।
इतने में कबीर दरवाजे की और मुड़ा और ये देखकर मान्या घबरा गई और अंदर चली गई।
कबीर ने पूरे कोरिडोर में चारों और नजरें दौड़ाई और बोला ,,"अशोक जी आपकी बहना को तो अब हमारे कहर से कोई नहीं बचा पाएगा। उसकी मौत तो लिखी हुई है। मतलब मौत तो उसकी तीन साल पहले ही लिखी हुई थी। अब तो उसकी आत्मा की मौत लिखी हुई है। अब तुम भी मरने के लिए तैयार हो जाओ।"
इतना कहकर कबीर की हल्की सी हंसी निकल गई और वो हंसते हुए बोला ,,"तुम्हें क्या लगा था की तुम वेश बदलकर आओगे और कबीर सिंह राज्यदा को उल्लू बनाकर चले जाओगे। ना ना ना। बच्चा। कबीर को उल्लू बनाना इतना आसान काम नहीं है। लेकिन अफसोस की धोखा तो तुम मुझे देने के लिए आए थे लेकिन नहीं धोखा तो तुम मुझे देने के लिए आए थे लेकिन धोखा तो तुम खुद ही खा गए। अब क्या बनेगा तुम्हारा। आज भी तुमने वही नादानी है ना।"
इतना कहकर कबीर हंसते हुए कमरे में चला गया और दरवाजे को बंद कर लिया।
उसके वहां से जाते ही एक और से एक साया बाहर निकला जिसके हाथ में वही अंगूठी थी।
उस साए ने एक ही झटके में वो अंगूठी दीवार से दे मारी और अंगूठी का तो कचमूर ही निकल गया।
वो साया बेहद ही गुस्से में और बेहद ही डरावनी आवाज़ में बोला ,,"बहुत खूब। मान गए तुम। तुम्हारी अक्लमंदी की मैं दात देता हूं। बाहर बढ़िया। लेकिन मुझे धोखा देने की सजा तो अब तुम्हें चुकानी ही पड़ेगी। नाखूनों का रंग देखकर मुझे पहचान किया तुमने। तुम हारकर भी इस बाजी को जीत गए थे। कोई बात नहीं अब मैं भी देखता हूं की मेरे होते हुए तुम मेरी मेनका को क्या करते हो? मैं मेनका को कुछ भी नहीं होने दूंगा? कुछ भी नहीं। एक प्रेत की शक्तियां क्या होती है ये अब मैं तुम्हें दिखाता हूं। मैं आ रहा हूं।"
इतना कहकर वो साया वहीं अंधेरे की तरह बिखर गया और पूरे कोरिडोर में एक जानलेवा सन्नाटा सा छा गया और ऐसा लगने लगा की मानो वहां कभी कुछ हुआ ही न हो।
कबीर ने अंदर जाकर देखा तो मान्या उसकी और पीठ करके बेड के दूसरे शिरे पर सोई हुई थी या फिर सोने का नाटक कर रही थी।
मान्या ने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली और अपने मन में बोली ,,"क्या मैंने जो सुना वो सच था क्या? ये अशोक कौन है और ये किस अंगूठी की बात कर रहे थे?"
इतने में कबीर उसके पास में आ गया और मान्या की गर्दन पर किस करते हुए बोला ,,"नींद आ गई है क्या मेरे बच्चा?"
मान्या धीरे से बोली ,,"अगर तुम सोने दोगे तो आ जायेगी?"
कबीर ने उसका मुंह एक ही झटके में अपनी और घुमा लिया और उसे कसकर अपने सीने से लगाते हुए बोला ,,"मेरे सीने से लगकर सोओगी तो तो सोने दूंगा नहीं तो फिर मैं मूड बना लूंगा।"
मान्या सहमी सी आवाज में बोली ,,"मेरा आज बिलकुल भी मूड नहीं है। कल करेंगे प्लीज। अच्छा मैं एक सवाल पूछूं सच सच बताना। मेरी कसम है तुम्हें?"
कबीर उसके गाल पर किस करते हुए बोला ,,"अगर कसम नहीं दोगी तो भी मैं सच ही बताऊंगा बचा? अब पूछो की क्या सवाल है?"
मान्या धीरे से बोली ,,"ये एयार क्या होता है?"
ये सुनते ही कबीर के दिल की धड़कने तेज हो गई।।

सतनाम वाहेगुरु।।