Bhootiya Express Unlimited kahaaniya - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

भुतिया एक्स्प्रेस अनलिमिटेड कहाणीया - 12

एपिसोड १२ काळा जादू


"विलासराव...! आपके घर का निरीक्षण करते के दौरान मुझे एक बात समझी.. कि... आपके घर का लेआउट पूरी तरह से गलत .. है..! अब इसका एक बिंदु देखते हैं। .! रसोई की खिड़की ही कब्रिस्तान की ओर है...: वास्तु शास्त्र के अनुसार यह गलत है...! और तो और मुझे आपके घर में बहुत ही बुरी शक्ति की लहरें महसूस हुई है.. ऐसा लगता है जैसे कुछ है तुम्हारे घर में क्या हो रहा है.. कोई राज़ है..!”
जगदीश राव ने उन दोनों को बारी-बारी से तो कभी घर के आस-पास देखते हुए कहा।
लेकिन...! यह क्या है...और क्या इस द्रष्टा जाल से बचने का कोई रास्ता है...क्यों..?"
रामचन्द्र ने कहा।
" हाँ..! समस्या कितनी भी...कठिन क्यों न हो.! .निरूसरन है
जैसे ही...! जिस तरह एक डॉक्टर मरीज की जांच करके जान लेता है कि मरीज को क्या समस्या है..!..और उसके बाद डॉक्टर सही गोली देकर मरीज को उस बीमारी से ठीक कर देता है. इसी तरह, जब मुझे पता चलेगा कि आपके घर में क्या समस्या है, तो मैं कुछ कर सकता हूँ...!"

“तो तुम्हें अभी तक पता नहीं चलेगा..या नहीं..इस घर में कौन सा है
बुरी शक्ति का प्रभाव है...! विलासराव ने कहा.

"बुरी शक्ति क्या है?! उसके उद्देश्य क्या हैं?! वह शक्ति!
लक्ष्य क्या है? ये सब बातें जानने से पहले मुझे एक साधना की जरूरत है
इसे करना जरुरी है! .उस शक्ति का आह्वान करते हुए, मुझे उस शक्ति से संपर्क करना है...! तभी मैं सही कदम उठा सकता हूँ...!”

"फिर...! आप वह साधना कब करने जा रहे हैं...?"
रामचन्द्र ने कहा.
"ऐसा कहा जा रहा है, मैंने इसे आज ही कर लिया होता!....लेकिन आज रात से अमावस्या शुरू हो जाएगी...! और अमावस्या के दिन, लाशें
..शक्ति है..डबल वर्किंग...! इसी कारण मैं यह साधना 2 दिन बाद ही करूंगा...!" और फिर हम 3 चार दिन बाद मिलेंगे....! तब तक आप.. विलासराव.?जगदीशजी ने विलासराव को ये शब्द कहे..=! >अपने दोस्त के करीब रहो...! इस घर में मत आओ...नहीं तो तुम्हारी जान खतरे में पड़ सकती है..."
जगदीश राव ने कुछ और निर्देश दिये और चले गये।उसके बाद विलासराव 5 दिन तक रामचन्द्र के घर रुके, विलासराव और रामचन्द्र की दोस्ती की जानकारी घर के लोगों को थी और यह भी पता चला कि पत्नी बच्चे को जन्म देने के लिए घर गयी है।
इस समय जगदीशराव, विलासराव और मेरे दादा रामचन्द्र तीन थे
एक होटल में बैठा था, ये जगह तो जगदीशराव ने ही सुझाई थी,
विलासराव ने जगदीशराव की ओर देखा, वे थोड़े चिंतित दिखे, उनका चिंतित चेहरा देखकर विलासराव को भी थोड़ा डर लगने लगा, उनके मन में एक अलग तरह का डर पैदा हो रहा था। कुछ देर तक किसी ने कुछ नहीं कहा, फिर विलासराव ने इस विषय पर बात करने का फैसला किया और बात शुरू की.
"जगदीश जी..! आप इतने घबराये हुए क्यों दिख रहे हैं...? कुछ तो
बहुत भयानक मामला है..क्यों..! यह..."
विलासराव की इस बात पर जगदीसराव ने उनकी ओर देखा और आह भरते हुए कहा.
"विलासराव...! आप नहीं जानते कि क्या शब्द कहें..!"
"अरे! तुम...क्यों...तुम...बात कर रहे हो...!" विलासराव ने कहा.
"विलासराव..! मैंने आज तक भूत-प्रेत की बहुत सी घटनाएँ देखी हैं
देखा और उसमें से पीड़ितों को बाहर भी निकाला.. लेकिन..
"लेकिन...........!......क्या जगदीश जी....जारी रखिए....बात कर रहे हैं...!"
" विलासराव ..! कुछ ..चीज़ें इंसान की जानकारी के बिना घटित होती हैं।
वहाँ हैं ...! और कम से कम कहने के लिए....मैं बस इसी तरह चीज़ों को बदलता हूँ
मैं तो मदद ही करता हूँ..., बाकी भूत-प्रेत तो मैं ही प्रकट कर देता हूँ
नहीं कर रहा... ! परन्तु जो विपत्ति तुम पर पड़ी है वह बड़ी भयानक है
और इसका समाधान और मैं भी वो कौन लोग हैं
कलालय ..!”
"क्या...? कौन है वो आदमी..!"
विलासराव ने जोर से कहा.

क्रमश :

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