Bhootiya Express Unlimited kahaaniya - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

भुतिया एक्स्प्रेस अनलिमिटेड कहाणीया - 6

एपिसोड ६ काळा जादू

एपिसोड ६ काळा जादू दोस्तों हर इंसान में एक अलग शक्ति होती है... अगर कोई खड़ा है हमारे पीछे और हमें घूर रहा है, तो उस क्षण हमारे मस्तिष्क को ऐसा लगता है। हमारा आदमी उस सिग्नल पर चारों ओर देखता है, सेम-हुबे-हब। इसी तरह, नीताबाई को पता चलता है कि कोई उसे देख रहा है। वह अपनी आँखें दो बार झपकती है , नीचे, बाएँ और दाएँ देखती है... और सीधे खिड़की से बाहर देखती है। दूर काली साड़ी पहने एक महिला दिखाई दी, जिसका चेहरा धूप में सफ़ेद चमक रहा था। उसके बाल बिखरे हुए थे जो दोनों कंधों से नीचे लटक रहे थे। महिला की आंखों के नीचे काले घेरे थे और उसके होंठ भी काले थे। और उसके मुँह से काली लार निकल रही थी, नीताबाई सम्मोहित होकर उस महिला की ओर देखने लगी। उस महिला ने अपने दोनों हाथ खास अंदाज में ऊपर उठाये. नीताबाई हमें बुलाने लगीं. वह आगे-पीछे झाड़ियों में गायब

“नीता..भाभी…??”
अचानक आई इस आवाज से नीताबाई मानो सम्मोहित से बाहर आ गई। वह ऐसे बाहर आई जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो और तुरंत सामने रामचंद्र को देखकर वह बोली।

"भाई आप! ....कुछ चाहिए क्या..?"

"नहीं भाभी ..मुझे कुछ नहीं चाहिए...! बस यह शिरा खराब हो जाता...तो तुम्हें ही खाना पड़ता...!"
मेरे दादाजी रामचन्द्र के कहते ही नीताबाई हँसने लगीं, फिर दादाजी बोले।

" वैसे विवाह छोड़ो .! तुम्हारा ध्यान कहाँ था भाभी , नहीं, मैंने तुम्हें तीन-चार आवाजें दीं.... लेकिन तुम तो सामने ही देख रहे थी..." मेरे दादाजी रामचन्द्र ने निताबाई की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए कहा।

"अरे भाई...! वो वहीं..." इस वाक्य के साथ नीताबाई ने अपना हाथ खिड़की की ओर बढ़ाया और बात करने लगी।

" वहा काली साड़ी पहने एक महिला खड़ी थी...! उसने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया
हो गया...! "

"क्या....!"
यह कहते हुए रामचन्द्र ने रसोई की खिड़की से बाहर दूर तक देखा, परन्तु सामने कोई न था।

“अंग वाहिनी....तुम्हें महसूस हुआ होगा....वहां कोई नहीं है
नहीं..! "
रामचन्द्र ने कहा.

और उसके शब्दों के साथ, नीताबाई ने भी फिर से रसोई की खिड़की से बाहर देखा, लेकिन दोपहर की धूप के अलावा बाहर कुछ भी नहीं था।

"देखो..दीदी..! मुझे लगता है..तुम्हें लग रहा होगा...! ज्यादा मत सोचो..., बच्चे के लिए अच्छा नहीं है।
वह..!"

"हां भाई...! ये सही है.. आप! आप बैठिए, मैं आपके साथ चलता हूं।"
लाता है"
नीताबाई ने कहा.
और उनकी बातों से मेरे दादाजी रामचन्द्र भी बाहर चले गये।
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आधे घंटे के आतिथ्य के बाद मेरे दादाजी रामचन्द्र ने सभी से विदा ली और घर चले गये। विलासराव भी अपने मित्र को विदा करने आँगन में आये।

"अरे एक दिन रुक जाते तो...क्या हो जाता..!"
विलासराव रामचन्द्रन ने कहा।

"ओह, अभी विलासिता नहीं चाहिए..! मैं बाद में आऊंगा..!" मेरे दादाजी
रामचन्द्र ने अपनी स्कूटी पर बैठते हुए कहा।

"ठीक है पिताजी..! चलो कल मिलते हैं..!" जैसे ही विलासराव ने यह कहा और वापस घर जाने के लिए मुड़े, तभी रामचन्द्र ने विलासराव को आवाज दी...मानो वह उनसे कुछ पूछना चाहते हों।

"अरे विलास, एक मिनट के लिए इधर आओ.. क्यों..?"
रामचन्द्र ने विलासराव की आगे बढ़ती हुई आकृति को देखकर यह वाक्य कहा। इस वाक्य पर विलासराव पुनः रामचन्द्र के निकट जाकर बोले।
"क्या बात है रामचन्द्र...? क्या हुआ...!"
"ओह, वहाँ देखो...!" जैसा कि रामचन्द्र ने कहा,
उसने अपना हाथ झाड़ियों की ओर बढ़ाया... जहां नीता बाई ने काली साड़ी पहने महिला को देखा था। अब उस समय झाड़ियों के पार से सफेद धुआँ निकल रहा था और ऊपर आसमान की ओर जा रहा था।
"यह क्या है...?" विलासराव ने भी उसी दिशा में देखते हुए कहा.
"अरे क्या....क्या बात कर रहे हो...? इतना धुआं क्यों निकल रहा है?
वहाँ से...? क्या नीचे खेत हैं…”
रामचन्द्र ने विलासराव से प्रश्न किया। फिर विलासराव ने आगे कहा...और उनके अगले शब्द रामचन्द्र को सदमे की तरह लगे।ओह खेत और नहीं..! हमारे गाँव में एक कब्रिस्तान है...! और गाँव में कोई वाराल लगता है...! और लाश जलाना
धुआं तो होगा ही...!”

"क्या...! ओह तो ये बात तुमने मुझे...पहले क्यों नहीं बताई..!?"
रामचन्द्र ने थोड़ा झुँझलाकर कहा।

"ओह, इसमें इतनी परेशान करने वाली क्या बात है.. भाई..?" विलासराव ने बहुत सरलता से कहा।

"देखो...विलास! ..क्या तुम नहीं जानते...? कि मैं वास्तुकला में विश्वास रखने वाला व्यक्ति हूं...! और क्या...इसके लिए इंतजार करो...! मैं...अगर तुम मुझे इस बारे में पहले ही बता दिया होता... नहीं तो मैं तुम्हारे लिए यहीं घर बना देता...!"
रामचन्द्र राव ने कहा.

"अरे बाप रे..."
विलासराव ने उतना ही कहा होगा जितना रामचन्द्रराव ने उनके अगले वाक्य को काटते हुए कहा था।"तुम मेरे साथ चलना चाहते हो...तुम थे...दोस्त..." रामचन्द्र राव ने थोड़ा कहा
दुखी होकर बोला,

"अरे यार... आज.. ना... कल.. हमारा भी टाइम फिक्स है...,
उसमें गलत क्या है...!"
विलासराव ने रामचन्द्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, रामचन्द्र ने दुःख भरी मुस्कान के साथ विलासराव की ओर देखा और कहते रहे।

क्रमश :

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