Bhootiya Express Unlimited kahaaniya - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

भुतिया एक्स्प्रेस अनलिमिटेड कहाणीया - 11

एपिसोड ११ काळा जादू

विलासराव के साथ घटी अंधेरी रात की वह भयानक घटना उनकी आँखों से हटने को तैयार नहीं थी, आँखों की पलकें थोड़ी झुक गईं जैसे ही उस भयानक महिला का चेहरा उनकी आँखों के सामने आया और स्मृति टेप शुरू हो गया , उस अघोरी औरत की धमकियाँ, और भयानक चिढ़ाने वाली हँसी अभी भी विलासराव के कानों में सुनी जा सकती थी।, जिसे दौरा पड़ रहा था।
"मतलब नीता सच कह रही थी अब तक, उसने उन सभी घटनाओं का अनुभव किया है...!... हे भगवान, मुझे इस संकट का समय रहते कोई समाधान निकालना होगा अन्यथा.... परिणाम बुरा होगा...!"
ऐसा खुद विलासराव ने कहा था
घर पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला था, बल्कि विलासराव इस बात पर ध्यान दे रहे थे कि संकट से कैसे उबरा जाए, विलासराव ने रामचन्द्र से बात करने और कोई समाधान निकालने के उद्देश्य से काम पर जाने का फैसला किया।
काम पर पहुंचकर विलासराव ने ये सारी बातें मेरे दादाजी को बताईं तो एक पल के लिए वे थोड़ा चौंक गए, लेकिन कुछ देर बाद वे संभल गए, क्योंकि समय डगमगाने का नहीं, बल्कि डटकर खड़े रहने का था, दुश्मन से लड़ने का था। ये सब जानते थे भूत-प्रेत विद्या अर्थात् भूत-प्रेत=जादू×टोना- ये ही काम करते थे, विलासराव और रामचन्द्र एक ही दिन काम से छुट्टी पर थे।जगदीश शाह के ...............घर गये,जगदीश शाह का घर विशाल होता जा रहा था।
वे सज्जन दिखने में किसी बाबा आदि जैसे नहीं थे, उनका रहन-सहन किसी सामान्य व्यक्ति जैसा था।
"अरे भाई..आप तो बहुत सीधे-सादे इंसान लगते हैं!"
विलासराव ने जगदीश राव की ओर देखकर कहा.

"हाँ..! आप हैरान हो गए होंगे..! कि मैं...कौन
डायन जैसी काली..कपड़े नहीं पहने...! या बड़ी दाढ़ी नहीं बढ़ी...हा हा..."
इसाम ने मुस्कुराते हुए कहा, मानो वह विलासराव की बातों से नाराज न हो, विलासराव भी उसकी बातों पर हंस पड़े, उसी समय जगदीसराव की पत्नी ट्रे में चाय लेकर आईं और सभी को एक-एक कप चाय भरकर दी। बात करने लगा
"अरे...! मेरा नाम जगदीश त्रिंबके शाह है..! मैं भी आपकी तरह एक आम आदमी हूं...! मैं पैसों के लिए कपड़े की दुकान चलाता हूं.. ..! और झाड़-फूंक का ये काम मैंने अपने पिता से सीखा है. ..वह जादूगर। था ना! कल अलग था, अब दुनिया कैसे बदल रही है! ......है ना? !
"हाँ..-हाँ.." विलासराव-रामचन्द्र ने सिर हिलाया।
जगदीशराव ने आगे कहा कि.

"लेकिन भले ही जमाना बदल रहा है...अभी भी कभी-कभी लोग मेरे पास भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसी समस्याएं लेकर आते हैं...! फिर अगर संभव हो तो मैं उनका समाधान भी कर देता हूं,! इतना काम तो मैं ही करता हूं..."जगदीश राव अपनी पहचान और विचारों का परिचय देते हुए कहाकभी-कभी उन तीनों में इधर-उधर इसी तरह की चर्चा होती थी, फिर जब बात मुख्य बिंदु पर आ जाती थी तो विलासराव ने उन्हें सारी जानकारी विस्तार से बता दी।
देसर की सारी बातें सुनने के बाद जगदीशराव ने अपना पक्ष रखा.
"अच्छा..क्या..! तो फिर विलासराव तुम एक काम करो...?..आज घर जाओ...नहीं..? तुम चाहो तो अपने दोस्त रामचन्द्र के घर जाकर सो जाओ.. ! और हां...?..मैं एक बोतल पानी दे रहा हूं, तुम उस पानी की बोतल को रामचन्द्र के घर जाकर पी लेना...!और दो दिन बाद मैं तुम्हारा घर देखने आऊंगा,....फिर लूंगा आपसे यह पानी पीने के लिए कहता हूँ। क्या आपको उल्टी, मतली आदि हुई है...या...नहीं...?"

इतना कहकर जगदीशरावाणी ने विलासराव को एक बोतल बनाकर दी, उसके बाद विलासराव और रामचन्द्र उनके घर आये, जब वे घर आये तो विलासराव ने जगदीशराव के कहे अनुसार पानी पिया, फिर वे आधे घंटे तक ऐसे ही रहे और फिर 1 घंटे बाद , विलासराव के पेट में जी मिचलाने लगा, उल्टियां होने लगीं, हर आधे घंटे में जी मिचलाता और उल्टियां होने लगीं, बशी विलासराव और रामचन्द्र ने वह अंधेरी रात कैसे गुजारी।2 दिन बाद.. विलासराव का नया घर

जगदीशराव ने 30-35 मिनट तक विलासराव के पूरे घर और आसपास के इलाके को देखा, फिर उसके बाद वे तीनों विलासराव के नए घर में इकट्ठा हुए, फिर जगदीशराव ने बात करना शुरू किया।
"विलासराव..! मैंने तुम्हारे घर और आसपास के इलाके को देखा, तुम्हारे घर से ही मुझे पता चल जाएगा कि उस झाड़ियों के पार एक कब्रिस्तान है...!" रामचन्द्र ने कहा कि जगदीशराव आगे कुछ कहेंगे
"हालाँकि मैंने कहा था...श्मशान घर के पास रहना अच्छा नहीं होगा! पैन हा ने मेरी अच्छी खुराक लेनी शुरू कर दी है!" रामचन्द्र राव ने थोड़ा गुस्से में कहा। उसके वाक्य पर
विलासराव सिर झुकाए अकेले बैठे थे और मन या मुँह में उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे।
शब्द नहीं थे, जो हो रहा था वो सच था, और इसमें अपना.... ग़लत
यह जानते हुए भी विलासराव चुप रहे.

"अरे रामचन्द्र...! कुछ कहने दोगे...!"
जगदीश राव ने कहा.
"क्षमा मांगना।!" रामचन्द्र ने भी यही कहा। फिर जगदीशराव ने बोलना जारी रखा,
"विलासराव...! आपके घर का निरीक्षण करते के दौरान मुझे एक बात समझी.. कि... आपके घर का लेआउट पूरी तरह से गलत .. है..! अब इसका एक बिंदु देखते हैं। .! रसोई की खिड़की ही कब्रिस्तान की ओर है...: वास्तु शास्त्र के अनुसार यह गलत है...! और तो और मुझे आपके घर में बहुत ही बुरी शक्ति की लहरें महसूस हुई है.. ऐसा लगता है जैसे कुछ है तुम्हारे घर में क्या हो रहा है.. कोई राज़ है..!”
जगदीश राव ने उन दोनों को बारी-बारी से तो कभी घर के आस-पास देखते हुए कहा।

क्रमश:

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