प्रेम गली अति साँकरी - 140 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 140

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अमोल की बात मुझ अकेली से ही तो हुई थी, मुझे सब बातें अपनी टीम से साझा करनी जरूरी थीं, वैसे भी जब तक सब मेरे चैंबर में आए मेरा दिमाग घूमकर चक्कर खाने लगा था | ठीक है, जो कुछ पहले हुआ था लेकिन यहाँ से सब लोग बिलकुल ठीक गए थे। वो तो पहले की बात थी जब सबने दीदी के घर में शर्बत पीया था। उसका असर तो जो पड़ना था, वह पड़ ही चुका था लेकिन अब पापा के साथ जो हुआ था, वह क्या इसलिए कि केवल पापा का ‘स्टेमिना’ ही इतना कमज़ोर था? बात समझ में ही नहीं आ रही थी तब उसका पचना कैसे हो पाता? 

हमारे ‘प्लान’ के बीच में यह एक ऐसी दुर्घटना आ खड़ी हुई कि हम सब जो आगे बढ़ ही रहे थे, लगने लगा था कि कुछ आगे की बात पता चलेगी, वह बीच में ही अटककर रह गई और अपने प्लान से हम सबका मन उखड़कर पापा के स्वास्थ्य के लिए चिंता करने लगा | 

“अमी ! पापा ने वहाँ से आने से पहले कुछ और भी खाया-पीया था क्या? यहाँ डॉक्टर्स को कुछ ऐसे सुराग मिले हैं इनसे पता चलता है कि वहाँ से आने से पहले पापा ने कुछ तो पीया था | जिसका प्रभाव अब इतने दिन बाद तब पता चल रहा है जब उन्होंने उसके जैसा ही कोई ‘ड्रिंक’लिया हो | वैसे वहाँ जो कोई ड्रिंक लिया है उनमें से कोई ऐसा है जिसका असर उनके नर्वस-सिस्टम व किडनी पर बहुत खराब तरीके से हुआ है | कैसे भी तलाश करो और जो कुछ भी मिले उसका सैंपल जल्दी भेजो | ”अमोल ने कहा, उसके स्वर में चिंता झलक रही थी और मन में बेचैनी भरी हुई थी | 

“ज़रा बॉटल लाइए तो---”भाई से हुई मेरी बात सुनकर प्रमोद ने अचानक कहा | 

कहाँ थी बॉटल? अरे! वह तो उन लोगों के पास पहुंची हुई थी जो उसके बारे में खोज-बीन कर रहे थे | उसके साथ टीम की बात रोज़ होती और आगे का प्लान डिस्कस भी!तुरंत प्रमोद ने उस टीम को बुलाया जो काफ़ी जल्दी संस्थान में पहुँच भी गई | टीम के पास शर्बत की बॉटल, अब तक की गई सारी खोज बीन यानि बहुत सा पेपर-वर्क था | 

संस्थान में किसी को कुछ पता नहीं चलने देना था कि अंदर ही अंदर क्या चल रहा था और महाराज और उनके हैल्पर को साथ रखना भी बहुत जरूरी था | इंवेस्टिगेशन टीम के उस सदस्य का मोटरसाइकिल से अचानक एक्सीडेंट हो गया जिसके पास बॉटल थी | किसी भी प्रॉजेक्ट के हर सामान को गाड़ी में रखा दिया जाता था, वह भी एक जिम्मेदार बंदे के साथ!इस बार ऐसा क्यों हुआ था कि इतनी महत्वपूर्ण बॉटल उसके पास रह गई? पूरी टीम को चार रास्ते पर रुकना पड़ा था और देखा गया कि उसकी बाइक के बैग से वह जरूरी बॉटल लुढ़ककर चार रास्ते पर जा पड़ी थी जिसे लपक भी लिया गया था | 

एक्सीडेंट में लड़के के हाथ-पैरों पर कई गंभीर चोटें आने के कारण उसे कई दिनों के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होकर इलाज़ करवाने की ज़रूरत हुई थी | उसने बॉटल और सब सामान अपनी टीम को सौंप दिया था लेकिन इस बीच क्या हुआ किसी को कुछ भी पता न चला | 

जब पापा के डॉक्टर्स ने इंवेस्टिगेशन करने के लिए भाई से बात की तब एक बार फिर से बॉटल मंगवानी पड़ी, बात यह महत्वपूर्ण थी कि बॉटल का रहस्य पता लगाना था | पता यह लगा था कि बॉटल को खोलकर रीपैक किया गया था? कब, कैसे, क्यों? क्या उसके गिरने से पहले या फिर गिरने के बाद? और यह किसने और कब किया था? बाद में पता चला था कि उस शर्बत में बहुत चीज़ों के अलावा अबीर, गुलाल भी मिलाया गया था | उसका बहुत कम लेकिन स्ट्रॉंग अंश था जिसे वहाँ के डॉक्टर्स समझ नहीं पा रहे थे | 

हम सब इस बॉटल वाले रहस्य को यहाँ सुलझाने की कोशिश कर रहे थे, नहीं जानते थे कि यहाँ से हजारों मील दूर इसका असर कैसे पहुँच गया था जिसका असर सीधा हमारे प्यारे पापा पर हो रहा था | भाई को उस बॉटल के बारे में कुछ मालूम ही नहीं था, हम सब तो उन सब लोगों से छिपाना चाहते थे और असलियत पता करके उसकी तह तक पहुंचना चाहते थे | 

अब यह जरूरी लगने लगा कि भाई से पूरी बात शेयर करनी होगी | अपनी टीम से पूरी बात करके मैंने भाई से बात करना जरूरी समझा और उसमें महाराज और उनके हैल्पर को भी शामिल किया | अमोल को जब इस नई कहानी के बारे में पता चला वह आश्चर्य में भर उठा | पहले मुझे हल्की सी झिड़की दी और कहा कि मैं उससे तो शेयर कर ही सकती थी लेकिन जब उसने सबकी बात सुनी तब उसे भी लगा कि उसका मुझ पर नाराज़ होना वाजिब नहीं था | हम सब मिलकर घटनाओं को समझने की, उनसे निकलने की, ठीक करने की ही तो कोशिश कर रहे थे | अब तो ऐसी स्थिति भी नहीं थी कि वह इधर आ सकते या हम उधर जा सकते | देखना व संभालना तो दोनों ओर ही महत्वपूर्ण था | 

“महाराज ! क्या उस बॉटल में से किसी ने एक बूँद भी पी है ? ”भाई ने महाराज से पूछा | 

महाराज सकपका उठे ;

“भाई जी ! जैसे ही मुझे पता चला मैंने तुरंत ही दीदी को बता दिया था | तुम्हारे हाथ में जब बॉटल आई तब क्या तुम कुछ देर के लिए कहीं गए थे ? ” उन्होंने वीडियो-कॉल पर तुरत ही अपने सहायक से पूछा जिसे डर के कारण कुछ भी याद नहीं आ रहा था | 

“डरो मत, ठीक से सोचो---तब ही कुछ पता चलेगा | ”भाई ने उसे प्यार से सांत्वना देते हुए कहा | 

वह बहुत बहुत नर्वस हो रहा था | उसने सारी कहानी बताई कि प्रमेश की दीदी ने उससे क्या और कैसे कहा था | उसने लगभग सारी कहानी दुहरा डाली लेकिन उसे लग रहा था कि कुछ भूल कर रहा था | 

“क्या तुम कुछ देर के लिए कहीं गए थे, उसी समय? ”भाई ने फिर पूछा | 

“जी, साब, दीदी जी ने मुझे पानी लाने के लिए कहा था और मैं जल्दी ही एक ट्रे में ग्लास पानी लेकर भी आ गया था | ”जैसे उसका सिर चक्कर खा रहा था | 

“मुझे ये कहाँ बताया तूने ? ” महाराज को गुस्सा आने लगा जिसे भाई ने रोक दिया | 

“कोई बात नहीं महाराज, ऐसी स्थिति में कभी कुछ हो जाता है | हम सबका दिमाग भी कहाँ चल रहा है? कोई बात नहीं, बताओ बेटा, याद करो | ”भाई ने उसे प्रोत्साहित किया | 

“अच्छा, सुन—जब पानी लेने गया था तब वो अकेली थीं---मतलब दीदी, जिन्होंने तुझे बॉटल दी थी ? ”

“जी, जब पानी लेने गया तब वे अकेली थीं, जब तुरंत ही वापिस आया तब बड़े साहब उन्हें नमस्ते कर रहे थे और तुरंत ही मुड़ भी गए थे | ”वह बौखलाकर बोला | 

“ओह ! क्या पापा वहाँ से गुज़र रहे थे या अपनी समधिन को नमस्ते करनेऊ धर आ निकले थे | ”भाई बड़बड़ाया | अजीब परेशानी में भर उठे थे भाई | 

“अच्छा!जब तुम पानी लेने गए तब बॉटल दीदी के पास थी या तुम्हारे पास? ”

“जी, पानी लेकर आया तब उन्होंने मुझे दी और वो सब भी कहा जो मैंने बताया | ”उसने डरते हुए कहा | कहाँ बेचारा भोला बच्चा इस सबमें फँस गया? हम सब सोच रहे थे | 

“अभी छोड़ो इसे, आप सब इसी तरह काम पर लगे रहो और मुझे अपडेट करते रहो, मैं भी---हाँ, बॉटल से सैंपल जल्दी भेज देना | ”उन्होंने टीम से कहा और वीडियो बंद कर दिया |