प्रेम गली अति साँकरी - 136 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 136

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दो/तीन दिनों तक शर्बत की जांच के बारे में सबके मन में स्वाभाविक खलबली मची रही | आज शर्बत का रहस्य सामने आया जो वैसे तो प्रत्याशित ही था | लैब में उसकी सूक्ष्म जाँच की गई थी | वैसे वह एक नॉर्मल लीची का जूस ही था लेकिन जिस प्रक्रिया से उसे बनाया गया था और उसमें जिन चीज़ों का मिश्रण किया गया था, उन सबको करने की ज़रूरत इसीलिए पड़ी थी जिनसे पीने वालों के मनोमस्तिष्क पर उनका इतना दुष्प्रभाव डालना हो जिससे लंबे समय उन्हें वशीकरण किया जा सके | प्रश्न कठोर था कि अब इन सबके विदेश जाते-जाते ये और करना क्या चाहती थे?

शर्बत में कई प्रकार के स्टीरिओराइड्स, कुछ स्ट्रॉंग नशे की दवाइयों और उनसे भी ऊपर कई चूर्ण व भस्म मिलाए गए थे, वे पकड़ में नहीं आ रहे थे जो कहीं बाबाओं, तांत्रिक आदि की अपनी मिलावट से बनवाकर मिलाई गईं होंगी | सभी कैमिकल्स की मात्रा का पता चल गया था बस ये जो कई ऐसी चीजें थीं जिनका प्रभाव बहुत जल्दी व लंबे समय तक बना रहने वाला था उनके बारे में काफ़ी खोजबीन के बाद भी पता नहीं चल रहा था पर वे सब वही होनी चाहिएं थीं जो धूर्त साधुओं के ’सीक्रेट मिशन’ का भाग होती हैं | यह एक तरह के ऐसे ज़हर की शुरुआत थी जो वशीभूत करवाकर कुछ भी करवाने कें लिए विवश कर सकता था और वही सब हुआ भी था | यानि हम सबके सामने बात स्पष्ट हो चुकी थी यह सब कुछ अचानक नहीं था, सोची-समझी साजिश के तहत था | वैसे भी हमें पता तो चल ही रहा था लेकिन संशय होना और उसके पुख्ता होने में बहुत फ़र्क था और प्रश्न यह था कि दीदी महारानी उस दिन डिनर में वह शर्बत सबको पिलाकर ऐसा क्या हासिल कर लेने वाली थीं?

उनकी मूर्खता भरी अविवेकी चाल का पता चला और यह भी खयाल आया कि वे एक जल्दबाज़ मूर्ख भी थीं नहीं तो कम से कम वह शर्बत की बॉटल लड़के को तो न देकर जातीं | लेकिन यह सब हो चुका था और सबसे पहले मेरी शादी जैसा नाटक बन चुका था जिसमें से निकलने के लिए न जाने अब कितने उपद्रव करने थे | 

अब? हम सबको प्रतीक्षा थी उनके अगले कदम की और हमारी टीम सावधान थी, किसी भी परेशानी के लिए हम सब मिलकर, सोच विचारकर कदम उठा सकते थे | अब बात यह थी कि उनका आखिर इरादा क्या था?क्या लेना चाहती थीं, किस चीज़ पर उनकी नज़र थी और इतनी मीठी बनकर वे अम्मा-पापा के किस खजाने में सेंध लगाना व उसे अपने पास समेट लेना चाहती थीं?

“यह हो सकता है कि उनका दिमाग संस्थान की प्रॉपर्टी पर हो इसीलिए इतने उल्टे-सीधे काम किए उन्होंने | ”जय ने एक दिन इस बारे में सोच-विचार करते हुए कहा | 

“ठीक कह रहे हैं आप, अगर उन्हें अमी दीदी से अपने भाई की शादी ही करवानी होती तब वे इस प्रकार के छिछले काम नहीं करतीं | यह कोई बहुत बड़ी साज़िश है | ”उन्होंने कहा और बोले कि उनके पास ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे वे अपनी बात खुलकर समझा सकेंगे | 

अब हम सभी और भी उत्सुक हो उठे थे और हमें जानना था कि हमसे हमारा क्या और कैसे छीना जा सकता था और कैसे? अम्मा-पापा के पीछे की स्थिति कठिन तो थी ही इसलिए और भी अधिक कि हम पर यहाँ की पूरी ज़िम्मेदारी किस भाव व विश्वास से छोड़कर गए थे, वह बात अलग थी कि जाते समय उनके मनों में संकोच व एक प्रकार का भय भी था ही जिसे वे चाहते हुए भी पूरी तरह से छिपा नहीं सके थे | 

“मुझे कई कहानियाँ अच्छी तरह से याद हैं जो मेरे दोस्तों के अपने अनुभव हैं, शायद उनसे हमें कुछ अंदाज़ा भी लग सकेगा | ” जय ने एक अनुभव भरी कहानी हम सबके साथ साझा की जो कुछ इस प्रकार थी | हम सब चुपचाप, गुमसुम हो उनके अनुभव भरी घटना में इतने खो गए कि लगा हम सबके साथ ही वह सब चित्रित हो रहा हो | 

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लोग अपने रक्त-संबंधों के साथ भी चीट करते हैं और यह भी नहीं समझते कि भविष्य में उनका परिणाम आखिर होगा क्या?मेरी एक उत्तर भारतीय पहचान वाली लड़की थी जिसे अपने पिता के तबादले के कारण अपने परिवार के साथ उ.बंगाल में रहने के लिए जाना हुआ | लड़की उस समय पढ़ाई करते हुए वहाँ के किसी स्थानीय बंगला लड़के के प्रेम में पड़ गई | उत्तर भारतीय परिवार और बांग्ला लड़के के बीच में हर बात का बहुत फ़र्क था | लड़का बहुत साधारण परिवार का था जबकि लड़की के पिता अफ़सर थे और उनका रुतबा काफ़ी ऊँचा था | अपने गाँव में उनकी काफ़ी खेती आदि थी और उनका परिवार भी शिक्षित और सभ्य था | 

लड़की का एक काफ़ी छोटा भाई था जिसे वह लड़का जो उस लड़की से प्रेम करता था और उसके छोटे भाई को घुमाने के बहाने कहीं न कही ले जाता रहता था | लड़की के पापा न चाहते हुए भी न तो अपनी लड़की का आकर्षण रोक पाए थे और न ही अपने बेटे को उस लड़के के साथ जाने देने से | आखिर हारकर लड़की के माता-पिता को अपनी बेटी की शादी उस निम्नवर्गीय लड़के के साथ कर देनी पड़ी जो अपनी माँ के साथ रहता था और अपने जीवनयापन के लिए संगीत सिखाता था | माँ भी कुछ न कुछ किरोशिए का काम करती थी और जहाँ बेटा संगीत सिखाता था, उन घरों में या उनके माध्यम से उनका हाथ से बना हुआ काफ़ी सामान बिक जाता था | 

लड़के की रवींद्र संगीत में रुचि थी और बिना किसी सहायता के वह संगीत में रियाज़ से अपनी पहचान बनाने लगा था | सब लोग उससे प्रभावित हो जाते और इसी चक्कर में लड़की के पिता को बेटी की ज़िद मानकर उसकी शादी कर देनी पड़ी थी | उन्हें नहीं पता था कि लड़के को उनके गाँव की सारी जमीन-जायदाद के बारे में मालूम है और इतना सब कुछ देखकर लड़के और उसकी माँ के मन में कुछ और ही पकने लगा था | 

शादी के बाद अपनी बेटी की ससुराल वालों को उन्होंने अपने गाँव में आमंत्रित करके उनकी खूब खातिरदारी की | उनके परिवार वालों को यह सब कुछ पसंद नहीं आ रहा था लेकिन कुछ नहीं किया जा सका | लड़की का छोटा भाई अपने जीजा से इतना घुलमिल गया था कि उसके बिना रहता ही नहीं था | एक बार भालू का नाच दिखाने वाला आया और न जाने लड़के और माँ के बीच कैसी साठ-गाँठ हुई कि लड़की के भाई को भालू ने पकड़ लिया और देखते-देखते बच्चे को मार डाला गया | 

लड़की व उसका परिवार पागल जैसा हो गया जो स्वाभाविक ही था | सबको लगा था कि वह एक अचानक हो जाने वाली दुर्घटना थी लेकिन वह लड़के व उसकी माँ की एक सोची-समझी साजिश थी जिसमें लड़की के माता-पिता को भी न जाने कबसे पीने के कुछ ऐसे पदार्थ दिए जा रहे थे जिनसे उनका मस्तिष्क शून्य हो गया था | न जाने कब जायदाद के कागजों पर उनके साइन भी करवा लिए गए थे और सब कुछ अपने हाथ में ले लिया गया था | इस कांड में कई ऐसे लोगों ने इन माँ-बेटे का साथ दिया जिन्हें पैसे का लालच दिया गया था | 

आश्चर्य की बात यह थी कि यह सब कला के पुजारी ने किया, करवाया था जिसके भीतर स्वयं माँ शारदे का निवास था | बाद में लड़की गर्भवती हुई लेकिन पागल हो गई और न जाने कहाँ चली गई | यानि एक अच्छा-खासा, खाता-खेलता परिवार तहस-नहस हो गया और जब सारी बातों का खुलासा हुआ तब उ.प्रदेश की जेल में माँ-बेटे को बंद होना पड़ा जो कई सालों से आज भी जेल की रोटियाँ तोड़ रहे हैं | 

हम सब साँस रोके उनकी यह कहानी सुन रहे थे जो कहीं न कहीं हमें अपने साथ जुड़ी दिखाई देने लगी थी | हो न हो बात सारी जायदाद की थी, हमारे संस्थान की और यहीं हम सबका काम शुरू होना था कि कैसे इस सब खेल को रोका जा सकेगा?

ओह ! उत्पल क्या तुम भी मुझे किसी ऐसी ही बात से जगाना चाहते थे?अगर हाँ, तो हो कहाँ और क्यों मुझे खुलकर यह सब नहीं बताया?मैं तो तुम्हारे आकर्षण और प्रेम को ही रोकने की कोशिश में लगी रही | मैं क्या हम सभी बहुत बहुत संवेदनशील हो उठे थे और हमारी आँखों में एक अजीब आशंका ने जन्म ले लिया था | 

“यह मैंने आपको एक सच्चा किस्सा सुनाया, ऐसे तो न जाने कितने किस्से हैं लेकिन कोई घबराने की बात नहीं है, इस बात से भी निबट लिया जाएगा | ”जय जी ने बड़ी आश्वस्ति से कहा और प्रमोद जी ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई | उस दिन की यह मीटिंग और भी बहुत कुछ समझा गई थी |