प्रेम गली अति साँकरी - 135 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 135

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संस्थान का कामकाज उसी गति से चल रहा था जैसे हमेशा चलता रहता था, कोई कहीं व्यवधान नहीं, हाँ, सूनापन तो होना ही था जो सबको महसूस हो रहा था यहाँ तक कि संस्थान के बच्चों को भी!अभी तक यह तय हुआ था कि अभी कोई बात किसी से साझा न करके अपनी उस ‘डिटेक्टिव एजेंसी’से संपर्क करेंगे जिससे पापा कई बार पापा करते थे, कभी अपने किसी काम के लिए तो कभी किसी और के काम के लिए भी | बड़े शहरों में इतने बड़े काम-काज के लिए सारी जुगाड़ रखनी पड़ती हैं, यह भी कोई अलग या अजीब बात नहीं थी और हम सबके पास सबके नं हुआ करते थे। वैसे अब तक मेरा किसी भी प्रकार का कोई काम तो पड़ा ही नहीं था | 

प्रमेश पहले की तरह ही कक्षाएं लेकर चले जाते और दीदी महारानी के फोन्स आते या वह मेरी चिंता में सूखी हुई खुद पधार जातीं जो वास्तव में मुझे अपनी शक्ल दिखाते ही खीज दिला देतीं | शांति से रहने दो न भई, मैं मन में फुफकारती | 

न जाने दो-तीन दिन मन में मंगला को लेकर अजीब सी हलचल मची रही | कई बार लगा कि प्रमेश की बहन से कहूँ कि मंगला को भेज दें या आती हैं तो उसे साथ ही ले आएं लेकिन जानती थी कि उन्हें तो मेरा वहाँ भी मंगला के साथ व्यवहार पसंद नहीं आ रहा था, भला वो कैसे?ऐसा न हो कहीं कि उस बेचारी पर ही कुछ मुसीबत आ जाए | आखिर मैं जानती क्या थी उसके बारे में ?केवल एक मासूम चेहरा, मुस्कान, दीदी की आज्ञा-पालन---कुल मिलाकर एक घर के हैल्पर की हैसियत !चुप लगाना बेहतर था | 

“शीला दीदी! अब देर करनी ठीक नहीं है, जल्दी ही एजेंसी से बात करके शर्बत के बारे में पता तो करना होगा | ”पता नहीं यह इतनी महत्वपूर्ण बात अभी आगे क्यों नहीं बढ़ रही थी | कंफ्यूज़न?

“मैंने पता लगवाया था, आजकल उनकी एजेंसी में उनके मालिक आ नहीं रहे हैं, मुझे नहीं लगा कि मैं उनके किसी एमपलॉइ से बात करूँ ?”उन्होंने बताया | मैं जानती थी कि वह तो मुझसे भी अधिक चिंता में होंगी | 

अचानक शीला दीदी बोलीं;

“इस बात के बारे में बस हम चार लोग ही जानते हैं, उसमें भी वो छोटा बेचारा तो डर के मारे चुप ही बैठा रहेगा, महाराज के पेट से तो कभी बात निकलती ही नहीं, संस्थान यानि उनका धर्म, कर्म, मंदिर---अगर आप कहो तो मैं रतनी के पति जय यानि जेम्स से बात करूँ?आपको याद होगा जेम्स ने काफ़ी दिन एक बड़ी प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी में काम किया था, बाद में कई और जॉब्स बदले थे | अच्छी बड़ी एजेंसी है, इससे फायदा यह हो सकता है कि अभी किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और हमारे पास एक पुख्ता सपोर्ट भी होगा | ”

मुझे शीला दीदी की बात समझ में आ गई, जो भी हो रतना, जय और शीला दीदी के पति प्रमोद शुक्ल सभी तो अब संस्थान का ही काम संभाल रहे थे और यहाँ के अंग बन चुके थे | हम सब जानते थे कि वे दोनों ही कितनी गंभीरता से अपना काम करने में मशगूल रहते थे और इतने कम दिनों में संस्थान के सुदृढ़ पिलर बन गए थे | 

“दीदी!हम जय जी और प्रमोद जी को भी इसमें राज़दार क्यों न बना लें?वे मार्केट के आदमी हैं, समझदार हैं। चीज़ों को देखने, समझने का उनका दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है | ”मैंने तुरंत ही शीला दीदी से कहा | 

“नहीं, मैं थोड़ा संकोच कर रही थी, हमने सोचा था न कि हम अभी बात को खोलेंगे नहीं जब तक बातें हमें ही साफ़ न हो जाएं | सच तो यह है कि वह ज़रा सी शर्बत की बॉटल हमारे लिए एक ऐसी रहस्य बनी हुई है कि कुछ समझ ही नहीं पा रहे | ”

अब हमने सोचने में अधिक समय नहीं लगाया और जय व प्रमोद को अगले ही दिन मेरे चैंबर में मीटिंग के लिए बुला लिया | इससे पहले न तो रतनी ने और न ही शीला दीदी ने घर पर इस बात का जिक्र किया था | 

“क्या एजेंसी वालों से यहीं मिलना चाहेंगी या फिर----”जय ने सारी बात जानकार मुझसे पूछना चाहा | 

“नहीं, यहाँ मत बुलाइए, अभी इस बॉटल में दर्सल है क्या?किस प्रकार से काम में लिया जाता है?इस बारे में पता चले तो आगे बात क्लीयर होगी | ”

“फिर तो पहले इसे फोरेंसिक रिपोर्ट के लिए भेजना चाहिए और इसके डिटेल्स पता लगवाने चाहिए | ”जय व प्रमोद जी दोनों इस बात के लिए सहमत थे | 

“एक्जेकट्ली” मेरे मुँह से बड़े दृढ़ विश्वास से निकला और अब हमारी टीम में दो दृढ़ सदस्य और जुड़ चुके थे | 

अगले ही दिन यह काम शुरू हुआ और वह शर्बत की बॉटल अपनी असलियत की खोज में लेबोरेटरी में थी | हम सबको सभी काम बड़े धीरज के साथ करने थे | 

यू.के में सब धीरे-धीरे सैटल होने लगे थे, रोज़ वीडियो-कॉल्स होते और इधर-उधर के लोग सबके मुँह प्रसन्नता से भरे लगते | इस बारे में कोई बात करनी ही नहीं थी इसलिए तो बहुत सी बातें इतनी सहज दिखाई दे रहीं थीं जबकि थीं नहीं !