8. फाइल की तलाश.
-आनन्द विश्वास
सीनियर सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की मौत के बाद सीबीआई ऑफिस में तो, एक सन्नाटा-सा ही पसर कर रह गया था।
चपरासी से लेकर ऑफीसर तक, हर एक के मन में केवल एक ही प्रश्न था कि क्या निष्ठा और ईमानदारी से अपने कर्तव्य के पालन करने का यही पुरस्कार होता है जो कि हमारे निष्ठावान ऑफीसर श्री भास्कर भट्ट जी को मिला है।
सबको अफ़सोस था अपने निष्ठावान ऑफीसर का, अपने बीच में न होने का। उनकी कमी तो विभाग को हमेशा ही खलती रहेगी।
पर फिर भी समय को तो आगे बढ़ना ही होता है और बढ़ेगा भी। घड़ी की सूँइयों के रुकने से सूर्योदय और सूर्यास्त की घटना तो नहीं रुक जाती। किसी के होने या न होने से, समय की गति तो रुकने वाली है नहीं, ना ही संसार की गतिविधियाँ और ना ही संसार के सारे काम-काज।
स्वर्गीय भास्कर भट्ट जी के स्थान पर अब नये सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को नियुक्त किया गया। सीनियर सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान, सन् 1996 के बैच की आई.ए.एस. केडर की ऑफीसर थी, जिनका अहमदाबाद (गुजरात) से यहाँ पर ट्रान्सफर किया गया था।
ऑफिस में चार्ज लेने के बादसीनियर सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को दबंग नेता लाखन सिंह के भ्रष्टाचार और घोटालों से सम्बन्धित केस और उसकी जाँच का कार्य-भार सौंपा गया। इससे पहले यह केस भास्कर भट्ट जी के पास था। साथ ही यह केस अपनी जाँच के अन्तिम पढ़ाव पर था।
दस्तावेज़ और डौक्यूमेन्टस् को कोर्ट में प्रस्तुत करना ही बाकी था। सभी सबूत और प्रमाण इतने सशक्त और पर्याप्त थे कि जिनके आधार पर लाखन सिंह तथा अन्य भ्रष्टाचारियों की सजा निश्चित ही थी।
फाइल और डौक्यूमेन्टस् को कोर्ट में प्रस्तुत करने से पहले ही असमाजिक तत्वों के द्वारा भास्कर भट्ट जी की हत्या कर उन्हें रास्ते से हटा दिया गया था।
सभी दस्तावेज़, स्ट्रिंग-ऑपरेशनस् की सीडी, पैन-ड्राइव तथा अन्य सभी महत्व-पूर्ण पत्र, सबूत, पर्सनल-डायरी, ई-मेलस् की फोटो-कॉपी और अन्य सभी कागज़ात भास्कर भट्ट जी के पास थे और वे उस फाइल का अन्तिम प्रारूप तैयार कर चुके थे। जिसे उन्हें दो-तीन दिन के बाद ही कोर्ट में प्रस्तुत करना था।
और अब उनकी मौत के बाद, फाइल और अन्य सभी डौक्यूमेन्टस् के ऑफिस में न मिलने पर, ऑफिस की ड्युप्लीकेट चाबियों से भास्कर भट्ट जी के लॉकर और उनकी अलमारी को खोल कर देखा गया तो फाइल वहाँ पर भी नहीं थी।
उनके असिस्टेन्ट से पूछने पर भी फाइल का कुछ भी पता न चल सका । उसका कहना था कि फाइलऔर केस से सम्बन्धित सभी डौक्यूमेन्टस् तो भट्ट साहब के पास ही थे। उन्होंने ही अपने पास कहीं रखे होंगे।
लॉकर, अलमारी और पूरे ऑफिस में फाइल का न मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ी चिन्ता का विषय बन गया था, सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान के लिये। साथ ही विभाग के अन्य पदाधिकारियों के लिये भी।
फाइल शायद भास्कर भट्ट जी के घर पर हो या फिर फाइल के विषय में मिसेज़ भास्कर को ही कुछ जानकारी हो, यह पता चलाने के लिये और अपनी सम्वेदना व्यक्त करने के लिये भी, सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान ने मिसेज़ भास्कर से मिलना उचित समझा और जो सही भी था।
मिसेज़ भास्कर ने सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को हर प्रकार की सहायता और सहयोग देने का आश्वासन भी दिया। साथ ही ज़ोया पठान ने भी साक्षी को पूरा आश्वासन दिया और वचन भी दिया कि वह भास्कर भट्ट जी के इस अधूरे काम को पूरा करके ही रहेगी।
वह न तो किसी से डरने वाली है और ना ही किसी शक्ति या धमकी के आगे झुकने वाली है। पहले ही मेल-मिलाप में साक्षी और ज़ोया पठान काफी करीब आ गये थे। दोनों में एक दूसरे के प्रति आत्मीयता भी थी और सहयोग की भावना भी।
सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान के घर से जाने के बाद साक्षी और पाखी ने फाइल की खोज में घर का चप्पा-चप्पा छान मारा। उन्होंने भास्कर जी के सभी डौक्यूमेन्टस्, उनकी अलमारी आदि ही नहीं बल्कि हर अलमारी और घर की हर जगह को बड़ी साबधानी पूर्वक तलाशा, पर फाइल कहीं पर भी नहीं मिली। निराशा और हताशा ही हाथ लगी साक्षी और पाखी को।
अन्त में निराश होकर साक्षी ने सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को फोन करके फाइल के न मिलने की सूचना दी। साथ ही यह भी निवेदन किया कि यदि ऑफिस में फाइल मिल जाये तो उन्हें सूचित अवश्य कर दें अन्यथा उन्हें चिन्ता ही बनी रहेगी। ज़ोया ने साक्षी को आश्वासन भी दिया और चिन्ता न करने की सलाह भी।
फाइल के न मिलने पर चिन्तित तो साक्षी भी थी और पाखी भी। वैसे भी चिन्तित होना तो स्वाभाविक ही था। साथ ही मन के किसी कौने में एक शंका भी जन्म ले रही थी कि कहीं कोई चाल तो नहीं है केस और जाँच को कमजोर करने की। या फिर भ्रष्टाचार और घोटालों से सम्बन्धित लोगों को और नेता लाखन सिंह को बचाने का कोई प्रयास।
इधर फाइल और घोटाले से सम्बन्धित अन्य महत्व-पूर्ण दस्तावेजों के अभाव में, बड़ा ही बेवश और मजबूर-सा महसूस कर रहीं थीं सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान, अपने आप को। आखिर उनकी भी तो प्रतिष्ठा का प्रश्न था।
पर करे भी तो आखिर क्या। कोई रास्ता भी तो नहीं दिखाई दे रहा था उनको। विभाग में भी सभी के मन में एक ही प्रश्न उठ रहा था कि फाइल गई तो आखिर कहाँ गई और इस प्रश्न का उत्तर किसी के भी पास नहीं था।
शंका की सूईं ऑफिस में सभी की ओर घूम रही थी। विभाग का हर ऑफीसर दूसरे ऑफीसर को शंका की निगाह से देख रहा था। विभाग के सभी कर्मचारियों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास घर कर गया था।
कहीं किसी साथ के ही ऑफीसर ने तो फाइल को गुम नहीं करा दिया। क्या कोई सीबीआई विभाग का ऑफीसर या फिर ऑफिस का कोई कर्मचारी, नेता जी से या भ्रष्टाचारियों से तो नहीं मिला हुआ है, जिसके इशारे पर फाइल गुम करा दी गई हो। या फिर कोई मोटी रकम के लेन-देन का सौदा हो गया हो, कुछ लोगों के बीच। पर इस परिस्थिति में कुछ भी तो नहीं कहा जा सकता था फाइल के गुम होने के विषय में।
और ऐसी बात तो छुपाने से भी छिपती ही कहाँ है। सामने आ ही जाती है। हर लंका में कोई न कोई विभीषण तो होता ही है। और वैसे भी, कुछ लोग तो ऐसी बातों को सूँघते ही फिरते रहते हैं।
और फिर मीडिया वाले तो बाल की खाल निकालने में माहिर होते ही हैं। मीडिया में एयर होते ही विभाग और सरकार की तो आई बनी थी। जबाब देते न बन पा रहा था, न तो विभाग को ही और ना ही सरकार को।
चारों ओर विभाग की आलोचना हो रही थी, सरकार की आलोचना हो रही थी। तरह-तरह के प्रश्न-चिन्ह लगाये जा रहे थे विभाग पर भी और सरकार पर भी। और तरह-तरह के आरोप लगाये जा रहे थे सरकार पर।
और जब नेता लाखन सिंह को फाइल के गुम होने का समाचार मिला तब तो नेता जी की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा था।
वहाँ उनके घर तो दिवाली ही मन गई थी। हाँलाकि वे स्वयं तो सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की हत्या के अपराध में कार-चालक और अपने सगे साले तेजपाल सिंह के साथ जेल की सलाखों के पीछे कारावास की सजा काट रहे थे।
इधर फाइल, सबूतों, प्रमाणों और घोटाले से सम्बन्धित अन्य सभी महत्व-पूर्ण दस्तावेजों के अभाव में केस और उसकी जाँच को आगे बढ़ा पाना सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान के लिये बेहद मुश्किल ही था।
और फाइल गुम हो जाने के बाद तो बस एक ही रास्ता शेष बचा था विभाग के पास और वह रास्ता था फाइल के गुम होने की जाँच कराना। इसके अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था विभाग के पास और सरकार के पास।
और यह भी लगभग निश्चित ही था कि यदि फाइल नहीं मिल पाती है तो पर्याप्त सबूतों और प्रमाणों के अभाव में नेता लाखन सिंह और उनके साथ के अन्य भ्रष्टाचारियों को क्लीन-चिट देनी ही पड़ेगी और केस को ठंडे वस्ते में डाल देना होगा। साथ ही कोर्ट में केस की क्लोज़र रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी पड़ेगी।
पर इतनी जल्दबाजी भी नहीं थी विभाग को क्लोज़र रिपोर्ट प्रस्तुत करने की। विभाग अभी भी फाइल को खोज करना उचित मान रहा था।
और जब साक्षी और पाखी को पता चला कि सीबीआई इस जाँच की क्लोज़र रिपोर्ट कोर्ट में सौंपने के विषय में अपना मन बना रही है तो उनके हृदय को बहुत बड़ा आघात पहुँचा।
उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि भास्कर भट्ट जी की मेहनत और उनके द्वारा किये गये दिन-रात के अथक परिश्रम के ऊपर, कुछ इस तरह से पानी फेर दिया जायेगा।
उनके बलिदान और शहादत के साथ ऐसा भद्दा मज़ाक किया जायेगा और चाँदी के चन्द सिक्कों के लिये आदमी और आदमी के ज़मीर की खरीद-फरोख्त भी हो जायेगी। बहुत निराशा हुई थी व्यवस्था से, विभाग से, साक्षी और पाखी को उस दिन। पर बेवश, विवश और लाचार थी।
और जब ऊँट खो जाता है तो लोग उसे चूहे के बिल में भी ढूँढा करते हैं। कुछ ऐसा ही तो हुआ था फाइल को लेकर पाखी और उसकी मम्मी साक्षी के साथ, उस दिन।
पाखी और साक्षी के मन में भी यही विचार आया कि क्यों न बैंक के लॉकर को भी देख लिया जाय। शायद फाइल बैंक के लॉकर में ही मिल जाये। शंका थी कि शायद भास्कर उस फाइल को अति महत्वपूर्ण होने के कारण कहीं बैंक के लॉकर में ही न रख आये हों, सुरक्षित स्थान मान कर।
अतः दूसरे दिन पाखी और साक्षी दोनों ने बैंक के लॉकर में जाकर देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा। पॉलीथिन की एक थैली में फाइल तथा अन्य डौक्यूमेन्टस् लॉकर में रखे हुये थे। साथ में थे कोर्ट के कुछ दस्तावेज़, दो-तीन सीडी और दो-तीन पैन-ड्राइव भी।
पर ऐसा क्यूँ। समझ में न आ सका साक्षी को और ना ही समझ में आ सका पाखी को ही। आखिर क्यूँ, आखिर क्यूँ ऐसा किया भास्कर भट्ट ने।
ऑफिस की फाइल को बैंक के लॉकर क्यूँ रखा गया। ऑफिस में अगर फाइल के खोने का, गुम होने का या फिर चोरी होने का डर था तो घर पर क्यूँ नहीं।
आखिर ऐसा कौन सा कारण रहा होगा जो कि भास्कर ने घर पर भी फाइल को रखना उचित नहीं समझा। क्या घर से भी फाइल और डौक्यूमेन्टस् के खोने या गुम होने का डर था भास्कर भट्ट को। ढ़ेर सारे नये प्रश्नों को जन्म दे दिया था भास्कर भट्ट जी के इस कदम ने, पाखी और साक्षी को।
बैंक के लॉकर से फाइल और डौक्यूमेन्टस् को लेकर पाखी और साक्षी बड़े साबधानी-पूर्वक घर आ गये। लेकिन रास्ते भर उन्हें भय और चिन्ता तो बनी ही रही। कहीं कोई किसी प्रकार की अप्रिय घटना न हो जाये। कहीं कोई व्यक्ति उनके हाथ से फाइल वाला बैग छीन कर ही न रफूचक्कर हो जाये और सारे किये धरे पर पानी ही फिर जाय।
साथ ही सारे रास्ते भर पाखी और साक्षी दोनों का मन अनेक प्रश्नों में उलझा रहा और जूझता रहा उन प्रश्नों का हल खोजने में, जो इस घटना ने खड़े कर दिये थे।
फाइल और डौक्यूमेन्टस् को घर पर लाकर पाखी और साक्षी बड़े ध्यानपूर्वक देखा। सभी डौक्यूमेन्टस् कोर्ट से तथा नेता लाखन सिंह के भ्रष्टाचार आदि से सम्बन्धित थे। ओडियो-वीडियो सीडीज़ को देखा भी गया और सुना भी गया। सभी सबूत पर्याप्त थे नेता जी और भ्रष्टाचारियों को गुनाहित सिद्ध करने के लिये। उन्हे जेल की सलाखों के पीछे पहुँचाने के लिये।
अतः साक्षी के मन में विचार आया कि सभी फाइल और डौक्यूमेन्टस् को सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को घर पर बुला कर सौंप दिया जाय ताकि विभाग तथा सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को केस की कार्यवाही को आगे बढ़ाने में विलम्ब न हो। और सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान की चिन्ता भी दूर हो जाये।
पर पाखी का मन कह रहा था कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ होनी ही चाहिये। हो सकता है कि ऑफिस का कोई व्यक्ति इस फाइल को गुम करना चाहता हो और उसका अपने घर पर भी आना-जाना हो। अन्यथा पापा फाइल और डौक्यूमेन्टस् को घर पर ही रखते, बैंक के लॉकर में तो कभी भी नहीं रखते।
पाखी की राय थी कि इन सभी डौक्यूमेन्टस्, पैन-ड्राइव सीडी, आदि को कॉपी-पेस्ट करके और फोटो-कॉपी करने के बाद, सभी साहित्य ज़ोया पठान आन्टी को बुला कर विभाग को सौंप दिये जाय। साथ ही कॉपी-पेस्ट और फोटो-कॉपी आदि को अपने पास किसी सुरक्षित स्थान पर रख लिया जाय।
जिनकी यदि भविष्य में कभी आवश्यकता पड़ी तो उनका उपयोग किया जा सके, अन्यथा कोई बात नहीं है। और सच तो यह है कि जहाँ शंका हो, वहाँ सावधानी बरतना आवश्यक होता ही है। और पाखी ने भी वही किया जो कि उसे करना चाहिये था। हालाँकि यह करना अनुचित ही था। पर कभी-कभी परिस्थिति विशेष में अनुचित काम करना भी उचित ही होता है।
पाखी की राय साक्षी को भी उचित लगी। अतः फाइल के सभी डौक्यूमेन्टस्, सीडी, पैन-ड्राइव आदि की कॉपी-पेस्ट और फोटो-कॉपी आदि करा लेने के बाद उन्हें सुरक्षित स्थान पर रख दिया। और फिर सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को घर पर बुला कर सभी डौक्यूमेन्टस् और फाइल उन्हें सौंप दीं।
साथ ही उन्होंने सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को यह बात भी बताना उचित समझा कि ऐसा कोई कारण अवश्य रहा होगा जो कि भास्कर भट्ट ने फाइल को घर पर भी रखना उचित नहीं समझा। आपके ऑफिस में कोई आदमी ऐसा होना ही चाहिये जो इस फाइल को गुम करना चाहता हो।
अतः वे इस फाइल को और सभी डौक्यूमेन्टस् को अपने पास किसी सुरक्षित स्थान पर ही रखें। सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान ने पाखी और साक्षी की शंका को उचित ठहराया और सावधान रहने का आश्वासन भी दिया।
फाइल, डौक्यूमेन्टस् और अन्य सभी कागज़ातों को पाकर सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान और विभाग सभी अधिकारियों में खुशी की लहर-सी दौड़ गई। उनके मन में प्रसन्नता इस बात की थी कि वे निर्दोष तो थे ही पर फाइल गुम करने के झूँठे आरोप से बच गये थे। और जाँच प्रक्रिया की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
फाइल और अन्य सभी डौक्यूमेन्टस् आदि को सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान ने एक बार देखना और उसमें रखे सभी कागज़ातों का अध्ययन करना उचित समझा। ताकि वह सभी बातों से अवगत हो सके और सभी कुछ सरकारी वकील को समझा भी सकें। अपने असिस्टेन्ट मानस श्रीवास्तव को भी उन्होंने अपने साथ रखना उचित समझा ताकि वह विभागीय पेचीदगियों को भी समझा जा सके।
फाइल और अन्य सभी डौक्यूमेन्टस् को देखने के बाद सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान और उनके असिस्टेन्ट मानस श्रीवास्तव काफी हद तक सन्तुष्ट थे। हर आवश्यक कागज मौजूद था फाइल के अन्दर। यहाँ तक कि सीडी आदि की विश्वस्यनीयता का फ्लॉरेंसिक साइन्स लेबोरेटरी का प्रमाण-पत्र भी था।
पर एक सीडी को देखते समय सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान के असिस्टेन्ट मानस श्रीवास्तव का तो माथा ही ठिनक गया। अरे, ये क्या, ये तो अपने ऑफिस के बड़े बाबू सोलंकी साहब.. और नेता लाखन सिंह के साथ..। विश्वास ही न हुआ मानस श्रीवास्तव को, पहले तो। पर सीडी को रिवाइन्ड करके दुबारा देखा गया। एक बार फिर और..। और ऐसा अनेक बार देखा गया सीडी को, बार-बार रिवाइन्ड करके।
और अब तो शंका निश्चय में बदल चुकी थी। हाँ, अपने बड़े बाबू सोलंकी साहब ही थे। बड़े बाबू पी.के.सोलंकी साहब ही। पर ये नेता लाखन सिंह के साथ में यहाँ पर, क्यूँ, कैसे और किस लिये। हजारों प्रश्न खड़े हो गये थे मानस श्रीवास्तव के सामने। तो क्या अपने बड़े बाबू पी.के.सोलंकी साहब, नेता लाखन सिंह से मिले हुये हैं। भ्रष्टाचारी लोगों के साथ मिले हुये हैं।
तो क्या अपना बड़ा बाबू पी.के.सोलंकी बिका हुआ गद्दार है, सीबीआई विभाग का। जो विभाग की गोपनीय बातों को नेता जी तक पहुँचाया करता था। जिसने अपने ज़मीर को और खुद को भी बेच दिया है नेता जी के हाथों में, भ्रष्टाचारी लोगों के हाथों में। और वह भी चाँदी के चँद सिक्कों की खातिर।
मानस श्रीवास्तव ने जब सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को बड़े बाबू पी.के.सोलंकी साहब के विषय में सब कुछ बताया तो उन्हें भी बड़ा आश्चर्य हुआ। विश्वास तो नहीं ही हो पा रहा था सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को। पर सच तो यही था, जो सामने था।
असिस्टेन्ट मानस श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि भास्कर भट्ट जी का जिस दिन ऐक्सीडेन्ट हुआ था उस घटना के दो दिन पहले ही बड़े बाबू पी.के.सोलंकी और भास्कर भट्ट जी के बीच में काफी कुछ कहा-सुनी भी हुई थी।
उस दिन भास्कर भट्ट जी ने बड़े बाबू पी.के.सोलंकी को बड़ी बुरी तरह से डाटा भी था और इतना ही नहीं उन पर वे ऐक्शन लेने की बात भी कर रहे थे। वास्तविक कारण का तो उसे पता नही चल सका था, पर वातावरण बहुत गर्माया हुआ था। बड़े गुस्से में थे भास्कर भट्ट जी उस दिन।
इस सीडी और घटना ने सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को सावधान कर दिया था कि विभाग में निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जो कि नेता लाखन सिंह के दबाब में काम कर रहे हों या फिर उन्हें सहयोग भी दे रहे हों और विभाग की सूचनाओं को उन तक पहुँचा भी रहे हों।
साथ ही भास्कर भट्ट जी द्वारा फाइल को लॉकर में रखने वाली बात भी समझने में देर न लगी, सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान को। निश्चित रूप से भास्कर भट्ट जी द्वारा फाइल को लॉकर में रखना एक सही कदम ही था।
यदि उन्होंने ऐसा न किया होता तो शायद फाइल कब की गुम हो चुकी होती और सीबीआई विभाग को केस की क्लोज़र रिपोर्ट प्रस्तुत कर नेता लाखन सिंह और भ्रष्टाचारी असमाजिक तत्वों को मजबूरन क्लीन चिट देनी पड़ जातीऔर विभाग की बदनामी होती वो अलग।
पर अब सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान का हर काम आसान हो गया था। हर मुश्किल आसान हो गई थी।
और अब सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान का काम था फाइल को व्यवस्थित कर, वकीलों के सहयोग से फाइल को कोर्ट में प्रस्तुत करना और कानून की सभी प्रक्रियाओं को पार करते हुये, अपराधियों को उचित दण्ड दिलाना।
सीबीआई ऑफीसर ज़ोया पठान ने बिना विलम्ब किये ही सभी सबूत, डौक्यूमेन्टस् और अन्य सभी आवश्यक कागज़ातों को, वकीलों के मार्ग-दर्शन के अनुसार कोर्ट में प्रस्तुत कर दिये।ताकि आगे की कार्यवाही शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ हो सके।
माननीय न्यायालय के द्वारा सभी तथ्यों को संज्ञान मे लेते हुये नेता लाखन सिंह तथा अन्य चार लोगों को भ्रष्टाचार के अन्तर्गत लगे आरोपों के संदर्भ में अदालत में प्रस्तुत होने के सम्मन जारी कर दिये गये।
जिनमें से नेता लाखन सिंह और उनके साले तेजपाल सिंह तो सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट की हत्या के सिलसिले में पहले से ही जेल में सजा काट रहे थे, बाकी अन्य लोगों को कोर्ट द्वारा निर्धारित तारीख पर कोर्ट में हाजिर होना था।
माननीय न्यायालय के द्वारा निर्धारित की गई तारीख पर नेता लाखन सिंह और उनके साले तेजपाल सिंह को पुलिस के संरक्षण में जेल से कोर्ट में लाया गया और अन्य लोग अपने वकीलों के साथ न्यायालय में प्रस्तुत हुये।
सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद नेता लाखन सिंह और उनके साले तेजपाल सिंह को छोड़कर अन्य तीन लोगों को कोर्ट द्वारा, निजी-मुचलके पर कुछ धन-राशि जमा कराने के बाद जमानत दे दी गई। केस प्रारम्भ हो चुका था।
सभी दलीलें, गवाहों के बयान और सबूतों से केस की फाइल का बजन और मोटाई बढ़ने लगी थी और वकीलों की मुसीबतें भी।तारीखों का सिलसिला चालू हो चुका था।
देश की न्याय-प्रिय जनता को न्याय का इन्तजार था।
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