प्रेम गली अति साँकरी - 133 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 133

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“बहुत सी बातें करनी हैँ शीला दीदी!”मेरे गीले शरीर का आधे से अधिक भाग उनके कंधे पर टिक गया था | उन्होंने महसूस किया कि मेरी सारी देह ऐसे काँप रही थी जिसे कोई करंट छू गया हो | 

“ठीक हो न ?”उन्होंने पूछा और एक बार फिर से मेरी आँखों से आँसुओं के बांध ने टूटना शुरू कर दिया | 

“एक काम करो, पहले ज़रा व्यवस्थित हो जाओ, अच्छा है अपनी नाइट-ड्रेस पहन लो | सिर में तेल मलवा लेतीं तो अच्छा था पर अब सब बाल गीले हैं | ” उन्होंने मुझे अपने सीने से चिपटाए हुए ही सहलाते हुए कहा | 

कभी-कभी मुझे उनसे अम्मा की शीतल सुगंध आती थी, विशेषकर ऐसे मौकों पर जब वे लाड़ दिखातीं | अपनी पूरी उम्र उन्होंने एक माँ बनकर ही तो गुज़ारी थी, सबको संभालते हुए | 

“दीदी ! बहुत सी बातें करनी हैं, आज यहीं मेरे कमरे में ही बात करेंगे | ”मैंने धीरे से कहा | 

“हाँ, यहीं रहने वाली हूँ, रतनी भी सबका इंतज़ाम करके आ ही जाएगी | परेशान मत हो, हर चीज़ का हल होता है | आपसे बेहतर कौन जानता है?हाँ, थोड़ा रिलैक्स हो जाओ | ”उनके हाथ मेरी काँपती पीठ को लगातार थपथपा रहे थे | 

“दीदी !” महाराज थे | 

“आ जाइए महाराज, खुला ही है | ”वे जानते थे लेकिन बिना नॉक के किसी के भी कमरे में जाना या झाँकने का अनुशासनहीन व्यवहार हमारे यहाँ के प्रचलन में नहीं था सो---

“दीदी! डिनर में क्या---?”

“इतना सब कुछ बनवाकर हाई-टी करवा दी अब डिनर भी---?मुझे तो लग रहा है आज स्टाफ़ भी अपने घर पर जाकर नहीं खा सकेगा | ”मैंने अपने चेहरे पर फीकी मुस्कान चढ़ाने की कोशिश की | 

“अरे नहीं दीदी ! वो तो---” वह चुप हो गए | 

“आप लोग जो भी खाना चाहें बनवाकर, सब काम खत्म करके यहाँ आ जाइएगा | थोड़ी देर के लिए ही सही!” अचानक महाराज को कुछ याद आ गया | 

“जी, आता हूँ न दीदी, ज़रा किचन का काम सिमटवाकर जल्दी ही---”महाराज हड़बड़ाते हुए निकल गए | 

“कपड़े बदल लीजिए, रिलेक्स हो जाएंगी---“शीला दीदी ने कहा | मैं अब तक काफ़ी सहज हो गई थी | जो सोचना, करना था वह तो करना ही था | मैंने शीला दीदी का कहना माना और ड्रेसिंग में जाकर अपनी नाइट-ड्रेस में आ गई | जब मैं वापिस आई शीला दीदी सोफ़े पर बैठी किसी सोच में मग्न थीं | मुझे देखकर उनके चेहरे पर एक फीकी मुस्कान पसर  गई | 

“वैसे, आज स्टाफ़ में कुछ हुआ क्या?” उनके प्रश्न में मुझे चिंता दिखाई दे रही थी | 

“नहीं, नहीं स्टाफ़ में सबने मज़े किए, खाया-पीया और नए वैवाहिक जोड़े को दुआएं दीं, साथ ही महाराज की पार्टी के लिए खुशी ज़ाहिर की | कुछ खास नहीं, सब अच्छा ही था | ” मैंने कहा लेकिन बात इतनी सी तो थी नहीं, बात तो अब खुलेगी और क्या और कैसे ?इसका किसीको कुछ पता नहीं था। मुझे खुद को भी नहीं | शर्बत की बॉटल  का पूरा नशा मेरे सामने नाच रहा था | 

कभी-कभी ज़िंदगी भी तो नाचती है, कभी क्या अक्सर ज़िंदगी नाचती और नचाती ही तो रहती है | हम अपने पाँव उठाते हैं किसी और दिशा में और वह हमारे घुँघरुओं की छनक किसी और दिशा की ओर ही मोड़ देती है | हमारे कदम ही बहक जाते हैं, हम लड़खड़ा भी जाते हैं और शायद बहककर फिर से ठिठक भी जाते हैं | बस, यही है ज़िंदगी का सलीका, तरीका या जो भी समझ लें | शर्त है जब तक हम हैं चलना है, चलना है, चलना है | 

शीला दीदी का जीवन मेरे सामने प्रत्यक्ष प्रमाण था, उसमें अभावों के मसाले भी विधाता ने खूब ठोक-पीटकर मिलाए थे जिन मसालों से उनकी आँखों में जलजले भी उतरे थे और उन्होंने और सबको भी उस जलजले से बाहर निकालने की भरपूर कोशिश की थी, सफ़ल भी हुई थीं | फिर मेरे जलजले क्यों नहीं निकलेंगे? मुझे विवेक से काम लेना ही होगा | मेरे साथ कितने अच्छे लोगों का संगठन है, यह मेरा संबल है | मैं अपनी घबराहट पर कंट्रोल करने की स्थिति में अपने को भीतर से और भी असहज करती रही और मुझे नहीं मालूम सोफ़े पर बैठी शीला दीदी मेरी भाव-भंगिमा के क्या अर्थ निकालती रहीं | जानती तो थी हीं कि कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ है लेकिन क्या?इसका जानना और खुलासा बहुत जरूरी था | 

जल्दी ही रतनी भी पहुँच गई, घर में सब काम व्यवस्थित करके। कहकर आई थी कि आज अमी दीदी के पास ही संस्थान में ही रहना है | थोड़ी देर में महाराज भी अपने हैल्पर के साथ आ गए, सबके लिए कॉफ़ी और कुकीज़ का लेकर | उनका अनुशासन भी बड़ा जबरदस्त था, कभी ऐसा अवसर ही नहीं आया था कि उन्हें हम लोगों के साथ इस प्रकार बैठना पड़े | आज उनका काम था और उन्होंने अपने और अपने हैल्पर के लिए प्लास्टिक की कुर्सियाँ मँगवाकर मेरे कमरे में लगवा दी थीं | 

समय पर हम सब इक्कठे हुए ही थे कि भाई का वीडियो-कॉल आ गया | अभी उन सब लोगों के यू.के पहुँचने पर फ़ोन पर ही सूचना मिली थी, अब सबको सैटल करवाकर वहाँ से वीडियो पर बात हो रही थी | यहाँ रात के 11 बज चुके थे और वहाँ लगभग शाम के 5.30. सब एक तरह से एलर्ट होकर बैठ गए | दोनों ही बातें थीं, कभी इस तरह से उनकी अमी के कमरे में सब लोग इक्कठे नहीं हुए थे | मैं पहले से ही इस मामले में बहुत रिजर्व रही थी लेकिन दूसरी बात यह भी थी कि आज बिटिया के अकेले होने की थोड़ी सी बेचैनी उन सबको थी | पता नहीं कितनी उदास होगी, कुछ खाया–पीया भी होगा या नहीं? जब सबको मेरे कमरे में देखा तो चौंकने के साथ सबके चेहरे आश्वस्ति की प्रसन्नता से चमक उठे | 

अम्मा का चेहरा जो यहाँ से जाने के समय उदास था, इस समय मुझे सबके बीच देखकर चमकने लगा | आज की स्टाफ़-रूम की मीटिंग क्या दावत  के बारे में मैंने बताया कि कैसे महाराज ने सबको खुश कर दिया था !

“इनके लिए कहाँ यह नई बात है?अब क्या हो रहा है महाराज ?”पापा ने महाराज को देखते ही पूछा;

शीला दीदी और रतनी तो ठीक था, रात को मेरे साठगप्पें मारने वाले थे लेकिन महाराज का वहाँ क्या काम था?अचानक महाराज का हैल्पर अपनी ट्रॉली के साथ पधार गया | 

“सर! रात की सबकी कुछ व्यवस्था करने आया हूँ, इस बहाने आपसे बात भी हो गई | ध्यान रखिएगा साहब, नमस्ते साहब “कहकर महाराज अपने हैल्पर के साथ बाहर निकल ही रहे थे कि भाई की आवाज़ सुनाई दी;”थैंक यू महाराज, आप लोग हैं तो हममें से किसी को चिंता करने की कुछ ज़रूरत ही नहीं है | ”महाराज ने एक बार फिर से सबसे नमस्ते की और लड़के को लेकर बाहर निकल गए | 

कुछ देर में उधर से सबने बात कर ली जिनमें एमीना के पेरेंट्स भी थे | बात होने के बाद सब खुश व निश्चिंत लग रहे थे | जल्दी बात करेंगे, यह कहकर वीडियो-कॉल बंद हो गया और मैंने महाराज को फिर से अपने कमरे में बुला लिया | मैंने सोचा कि बस-अब बात का खुलासा करने का समय था |