अंतिम भाग २५
अब तक आपने देखा की राजकुमारी शिवन्या को राजकुमार वीरेन का खत मिला था उन्हों ने वह पढ़ा दूसरे दिन शादी थी इसलिए वह खत पढ़ कर सो गई अब आगे की कहानी देखते है।
उन्हों ने अपने तकिए के नीचे खत रख दिया सवेरा होने ही वाला था प्रहर के ५ बज रहे थे , उनकी निंद्रा अपने आप खुल गई , ओर अचानक से मन में आया अरे..... आज तो मेरी शादी है ये बात दिमाग में आते ही वह जट से उठ गई उन्हों ने अपने कक्ष को पूरे ध्यान से देखा क्युकी आज के बाद वह यहां नही रहेगी आज उनकी अंतिम रात थी इस कमरे ओर इस राज्य में वह खुश भी थी परंतु थोड़ी दुखी थी , उन्हों ने अपना चेहरा आयने में देखा ओर कहा अब तेरी जिंदगी बदलने वाली है शिवन्या फिर वह अपने स्नानगृह में चली गई स्नान करने।
कक्ष में रानी निलंबा आती है राजकुमारी शिवन्या को उठाने के लिए लेकिन वह देखती है उनकी श्येया तो खाली थी दासी ने कहा की वह तो कब की उठ चुकी थी और अब स्नान करने भी चली गई है , रानी ने कहा अरे यह तो बहुत अच्छी बात है आज तो वह अपने आप ही निंद्रा से जाग गई वरना तो किसी न किसी को जगाना पड़ता है उन्हे हमेशा , फिर वह कहती है जब वह स्नान करके लोटे तो उन्हें अच्छे से श्रृंगार करना शुरू कर देना क्युकी मुहूर्त शीघ्र ही आ जायेगा।
दासी ने कहा आप चिंता मत कीजिए महारानी हम उनको अच्छे से सजा कर भेजेंगे , राजकुमारी शिवन्या स्नान करके दासियो ने उन्हे दुल्हन का लिबास पहनाया और श्रृंगार करना शुरू किया देखते ही देखते वह पूरी तरह से दुल्हन बन चुकी थी दासिया तो उन्हे पूरा सजा हुआ देख कर चौक गई वह इतनी सुन्दर लग रही थी की कोई भी सुंदरता के मामले में उस दौर में उनका मुकाबला नही कर सकता , राजकुमारी भी खुद को दुल्हन के रूप में देख कर बहुत खुश थी, एक दासी ने रानी निलंबा को कक्ष में बुलाया की राजकुमारी का श्रृंगार हो गया है देखने के लिए ।
रानी निलंबा ने शिवन्या को देखा दुल्हन के रूप में देखा उन्हे अपने आखों पर यकीन नही हो पा रहा था की उनकी पुत्री दुल्हन बन कर उनके सामने खड़ी थी , एक मां के लिए बहुत बड़ा दिन होता है वह, राजकुमारी शिवन्या ने कहा माता अब आप ऐसे ही खड़े रह कर दिखेंगी या बतायेगी भी की में कैसी लग रही हु , रानी निलंबा कुछ बोले उनसे पहले राजा विलम वहा आ गए उन्होंने कहा अति सुन्दर लग रही हो पुत्री आज से पहले शायद ही कोई इतनी सुन्दर दुल्हन लगी होगी कोई लड़की।
विवाह की सारी तैयारियां हो चुकी थी सब मेहमान भी आना शुरू हो गए थे , बड़े बड़े राजा महाराजा आने लगे थे उनका स्वागत हो रहा था कुछ ही देर में राजा धरम संग सुमेधा ओर राजकुमार वीरेन भी पधारे उनके आते ही विवाह की रस्में शुरू हो चुकी थी रानी ने कहा पुत्री आप यही रुकिए हम बुलाए तभी आना , राजकुमार वीरेन का स्वागत किया गया , थोड़ी रस्म के बाद उनको मंडप पर बिठाया गया , राजकुमारी शिवन्या को नीचे बुलाया गया दासिया उन्हे लेकर मंडप में आ रही थी वह इतनी सुन्दर लग रही थी वीरेन की नजर उनसे हट ही नहीं रही थी और वह सबके सामने बोल पड़े "कोई इतना सुन्दर केसे लग सकता है" , रानी सुमेधा ने जा कर राजकुमारी की बलयेया उतारी उनको मंडप में बिठाया गया विवाह शुरू हो चुका था सारी प्रजा आ चुकी थी।
राजकुमार ने मंगलसूत्र राजकुमारी को पहनाया कुछ ही देर में विवाह संपन्न हुआ , खुशी का माहोल आज पूरे विलमनगर में छाया था , ओर दुख था की आज विलम नगर की रौनक उन्हे छोड़ कर जा रही थी , विदाई का समय आता है , रानी निलंबा ओर राजा विलम राजकुमारी के जाने पर बहुत दुखी थी विलम नगर के सारे लोग शिवन्या के जाने से दुखी थे। रानी सुमेधा ने कहा महारानी निलंबा महाराज विलम आपकी पुत्री हमारी भी पुत्री है आप चिंता न करे हम उनका पूरी तरह से ध्यान रखेंगे , राजकुमार वीरेन ने कहा हा महराज महारानी में राजकुमारी का पूरी जिंदगी साथ निभाऊंगा हमेशा उनके साथ रहूंगा धीरे धीरे उनकी विदाई समाप्त हुई और धरम पुर वह पहुंचे , नई बहु आ रही थी पूरे धूम धाम से धरम पुर की प्रजा ने अपनी नई रानी का स्वागत किया ।
राजकुमारी शिवन्या अब धरम पुर की रानी शिवन्या बन चुकी थी, राजकुमार वीरेन और शिवन्या का दांपत्य जीवन बहुत अच्छे से गुजर रहा था दोनो एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे दोनो एक दूसरे के अच्छे बुरे का ध्यान रखते थे उनके विवाह का करीबन ४ माह पूरे होने को थे समय बीतता जा रहा था , अचानक से एक दिन बिना कोई खबर धरमपुर पर हमला हो जाता है किसी राजा ने युद्ध की चेतावनी भी नही दी थी राजा वीरेन ओर महाराज धरम अपनी सेना लेकर देखते है किसने हमला किया राजकुमारी भी साथ में आई थी , तो देखा राजा मनसुख ने अपना बदला पूरा करने के लिए बिना कुछ सूचना के धरमपुर में हमला कर दिया था।
इस बार वह अपनी सेना बहुत बड़ी करके आए थे उन्हों ने इस बार किसी को भी नही छोड़ने का प्रण लिया था , राजा वीरेन, महाराज धरम ओर राजकुमारी शिवन्या डट कर उनका मुकाबला कर रहे थे परंतु कोई भी युद्ध की तैयारी ना होने की वजह से उनकी सेना कम लग रही थी कुछ वक्त बिता राजा मनसुख ने छल से महाराज धरम ओर राजा वीरेन पर वार किया वह इतना बड़ा वार था कि वह नीचे गिर पड़े राजकुमारी शिवन्या दोनो के पास गई उन्हों ने कहा पिताजी , राजा वीरेन आप को कुछ नही होगा घबराए मत।
महाराज ने कहा पुत्री मुझे नही लगता में अब जिंदा रह पाऊंगा , राजा वीरेन ने कहा शिवन्या मुझे भी नही लगता अब हम साथ रह पाएंगे हमारा साथ शायद यही तक था आप इस राज्य का खयाल रखना अब से आप ही इनकी महारानी है और माता तक हमारी मृत्य की खबर दे देना , राजा धरम ने शिवन्या के सिर पर हाथ रखा और कहा "जीती रेह" ओर इतना बोलते ही दोनो ने अपना दम युद्ध के मैदान में तोड़ दिया।
राजकुमारी के दुख की कोई सीमा नही थी वह फूट फूट कर रो रही थी राजा मनसुख ने कहा में तुम्हे नही मारूंगा राजकुमारी, में तुम्हे जी ते जी मरते देखना चाहता हु राजा वीरेन और महाराज धरम के बिना कोई तुम्हे इस राज्य की महारानी नही मानेंगे तुम्हे धक्के मारके इस राज्य से निकाल देंगे और ये मत सोचना की महारानी सुमेधा जिंदा है उन्हे तो महल में ही मेरे सैनिकों ने मार दिया ये सुनके तो उनके होश उड़ गई वह भागती हुई महल में गई जा कर देखा तो महारानी भी जिंदा नहीं थी उनके जीवन में इतना बड़ा दुख आयेगा यह किसी ने सोचा नही था।
लेकिन उन्हों ने हार मानना जीवन से सीखा ही नहीं था उन्हों ने तीनो का अकेले अंतिम संस्कार किया , रानी निलंबा ओर राजा विलम तक यह खबर पहुंची तो वह भी आए थे अपनी पुत्री को अपने जी ते जी विधवा के रूप में देखा इससे बड़ा अभाग्य क्या हो सकता है रानी निलंबा ने कहा , राजा विलम ने कहा पुत्री तुम हमारे साथ वापिस विलम नगर चलो , राजकुमारी ने कहा "
नही पिताजी मेने उस महल को शादी के दिन ही छोड़ दिया था अब तो मेरी अर्थी भी धरमपुर से ही जायेगी अब यही मेरा घर है और ये प्रजा मेरी जिम्मेदारी है"।
सारी प्रजा वहा मौजूद थी उन तीनो का अंतिम संस्कार हो चुका था प्रजा के सारे लोग रो रहे थे उनमें से एक बूढ़े आदमी ने बोला ये क्या हो गया अब तो हमारे राज्य के राजा ही मारे जा चुके है अब इस राज्य पर ध्यान कोन देगा , राजकुमारी ने कहा एक राज्य को चलने के लिए केवल राजा की ही जरूरत नही रहती बाबा एक महिला भी राज्य चला सकती है क्या आप सब को मुझ पर भरोसा नहीं है , एक रानी को यूंही रानी नही कहा जाता उसके लिए रानी की कुछ जिम्मेदारी रहती है अब में अपनी जिम्मेदारी को पूरा करना चाहती हु क्या आप सब मेरा साथ देंगे ।
सारी प्रजा ने बोला हम आपको अपनी महारानी मानते है हमे आप पर पूरा भरोसा है आप इस राज्य की जिम्मेदारी अच्छे से निभाएंगी समय बीतता गया राजकुमारी शिवन्या ने महल त्याग दिया था क्युकी उनका कहना था महारानी को महल में रहे उसे ही नही कहते वह प्रजा के बीच ही रहने लगी वही इन्हों ने अपना एक घर बना लिया और वह प्रजा के हर परेशानी में उनकी मदद करती थी रानी शिवन्या ने पूरी तरह से धरम पुर की जिम्मेदारी उठाली थी और उनके दिल भी जीत लिए थे । वह पूरे राज्य की चहीती हो चुकी थी तो ऐसी थी हमारी "राजकुमारी शिवन्या" की कहनी वह निडर थी धरम पुर को उनके जेसी रानी फिर कभी नही मिली।
इस कहानी के अंतिम भाग से यही सिख मिलती है महिलाओं को कभी कम नहीं समझना चाहिए वह अपनी दुख भुला कर अपनी जिम्मेदारी निभा सकती है , तो कैसी लगी आपको मेरी यह कहानी ??
जल्द मिलती हु एक नई कहानी के साथ😊।