अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१) Saroj Verma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 71

    71संध्या आरती सम्पन्न कर जब गुल लौटी तो उत्सव आ चुका था। गुल...

  • आई कैन सी यू - 39

    अब तक हम ने पढ़ा की सुहागरात को कमेला तो नही आई थी लेकिन जब...

  • आखेट महल - 4

    चारगौरांबर को आज तीसरा दिन था इसी तरह से भटकते हुए। वह रात क...

  • जंगल - भाग 8

                      अंजली कभी माधुरी, लिखने मे गलती माफ़ होंगी,...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 51

    अब आगे मैं यहां पर किसी का वेट कर रहा हूं तुम्हें पता है ना...

श्रेणी
शेयर करे

अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१)

एक बड़ी सी कार पुलिस स्टेशन के सामने रुकी और ड्राइवर ने उतरकर अपने मालिक के लिए कार का दरवाजा खोला,सूट बूट पहने हुए कार का मालिक पुलिस स्टेशन के भीतर पहुँचा,जैसे ही वो पुलिस स्टेशन के भीतर घुसा तो इन्सपेक्टर धरमवीर सिंह बोले...
"आप आ गए मिस्टर सिंघानिया!,हम सब आपका ही इन्तज़ार कर रहे थे"
"माँफ कीजिएगा! मेरी फ्लाइट जरा डिले हो गई थी,जैसे ही एयरपोर्ट पर फ्लाइट पहुँची तो मैं सीधा यहाँ चला आया",मिस्टर सिंघानिया बोले....
"जी! मुझे पता है कि आप काम के सिलसिले में लन्दन गए हुए थे,इसमें माँफी माँगने वाली कोई बात नहीं है",इन्सपेक्टर धरमवीर सिंह बोले...
"जी! क्या आपने कातिल का पता लगा लिया",मिस्टर दिव्यजीत सिंघानिया ने पूछा...
"हाँ! हमें लगता है कि वही आपकी पत्नी का कातिल है",इन्सपेक्टर धरमवीर सिंह बोले...
"क्योंकि उसके पास जो सोने का लाँकेट मिला है उसमें आपकी और आपकी पत्नी की तस्वीर है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"उसके पास देविका का लाँकेट मिलने से ये तो साबित नहीं हो जाता कि वही उसका कातिल है,हो सकता है कि वो लाँकेट देविका से कहीं खो गया हो और वो उस शख्स को मिल गया हो",दिव्यजीत सिंघानिया बोले....
"ये तो आप उस कातिल से मिल कर ही पता लगा सकते हैं कि वो कातिल है या नहीं",इन्सपेक्टर धरमवीर सिंह बोले...
"तो फौरन ही आप उस कातिल को मेरे सामने हाजिर कीजिए",दिव्यजीत सिंघानिया बोले...
और फिर इन्सपेक्टर धरमवीर ने हवलदार बंसी यादव से उस कातिल को लाने को कहा और हवलदार बंसी यादव उस कातिल को लेकर जैसे ही दिव्यजीत सिंघानिया के सामने हाजिर हुआ तो वो कातिल सिंघानिया साहब के पैरों पर गिरकर गिड़ाने लगा और कहने लगा कि...
"साहब! मैंने कुछ नहीं किया,मैं बेकुसूर हूँ,पुलिसवाले मुझ पर झूठा इल्जाम लगा रहे है",
"रघुवीर तुम!",सिंघानिया साहब उसके चेहरे की ओर देखकर बोले....
"क्या आप इसे जानते हैं सिंघानिया साहब?" इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा....
"जी! कुछ दिनों तक इसने मेरे घर पर काम किया था",सिंघानिया साहब बोले...
"तो क्या ये आपके घर पर नौकर था?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
तब सिंघानिया साहब बोले...
"जी! हाँ! और मुझे अब याद आ गया है कि इसे ये लाँकेट देविका ने ही तो दिया था,एक बार उसने घर पर किटी पार्टी रखी थी,तब रघुवीर ने उस किटी पार्टी में दिल लगाकर काम किया था,रघुवीर ने देविका की सहेलियों की बहुत ख़िदमत की थी और देविका की सहेलियों ने रघुवीर से खुश होकर उसकी बहुत तारीफ भी की थी,देविका ने उस समय सहेलियों के संग थोड़ी पी ली थी और नशे में उसने ये लाँटेट रघुवीर को उपहारस्वरूप दे दिया था,जब उसे होश आया तो वो बहुत पछताई भी थी कि उसने नशे में उसका दिलअजीज लाँकेट रघुवीर को कैंसे दे दिया,लेकिन फिर उसने वो लाँकेट रघुवीर से वापस नहीं लिया,वो बोली कि लाँकेट माँगने पर ना जाने रघुवीर उसके बारें में क्या सोचे"
"ओह...तो ये बात है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"जी! रघुवीर कैंसे देविका का खून कर सकता है,उसके पास कोई वजह भी तो होनी चाहिए थी देविका का खून करने के लिए",दिव्यजीत सिंघानिया बोले....
"तो फिर आपके यहांँ रघुवीर ने कितने दिनों तक काम किया था?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! शायद एक साल तक उसने हमारे घर पर काम किया था",दिव्यजीत सिंघानिया बोले...
"फिर क्या हुआ आपने इसे काम से निकाल दिया या ये काम छोड़कर चला गया",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा....
"हमने इसे नहीं निकाला था,ये काम छोड़कर खुद गया था",सिंघानिया साहब बोले...
"क्या वजह थी कि इसे आपके घर से काम छोड़कर जाना पड़ा"?,इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! इसने एक रोज़ हमारे घर का बहुत महँगा क्रोकरी सेट तोड़ दिया था,जिससे देविका इस पर बहुत चिल्लाई थी और उसी रात ये हमारा घर छोड़कर चला गया था"मिस्टर सिंघानिया बोले...
"ओह...तो अब मैं क्या करूँ,इसे छोड़ दूँ या जेल में ही रखूँ",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ये तो बेकुसूर है इन्सपेक्टर साहब! ये ऐसा कभी नहीं कर सकता,इसे छोड़ दीजिए,गरीब आदमी है बेचारा,इसके पास तो अपनी रिहाई करवाने के पैसे भी नहीं होगें",सिंघानिया साहब बोले...
"ठीक है तो मैं इसे छोड़ देता हूँ,लेकिन इस पर बराबर निगाह रखी जाऐगी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"अगर मेरा काम पूरा हो गया हो तो क्या मैं जा सकता हूँ,सफर करके सीधा एयरपोर्ट से यहीं चला आ रहा हूँ,बहुत थक गया हूँ घर जाकर आराम करना चाहता हूँ",मिस्टर सिंघानिया बोले...
"जी! अब आप जा सकते है,लेकिन जब भी आपकी जरूरत पड़ेगी तो आपको यहाँ आना होगा"इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"जी! जरूर! आप तो मेरी मदद ही कर रहे हैं,इसलिए मैं अपने फर्ज से भला कैंसे मुँह मोड़ सकता हूंँ", दिव्यजीत सिंघानिया बोले...
"जी! हमें आप पर पूरा भरोसा है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"जी! तो मैं अब चलता हूँ"
और ऐसा कहकर जैसे ही सिंघानिया साहब जाने लगे तो इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"सिंघानिया साहब! जरा ठहरिए!",
"जी! कहें",सिंघानिया साहब वहाँ रुकते हुए बोले...
तब इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जो एक साल पहले आपकी पत्नी की कार झील में मिली थी तो उसमें उनका पर्स भी हम सभी को मिला था,उसकी सभी चींजों की जाँच हो चुकी है और सारी रिपोर्ट्स आ चुकीं हैं लेकिन तब भी वहाँ पर कातिल का कोई सुराग नहीं मिला,बड़े ताज्जुब वाली बात है कि आपकी पत्नी की कार मिल गई,पर्स मिल गया लेकिन उनकी लाश अभी तक नहीं मिली,ना जाने उनकी बाँडी को जमीन खा गई या आसमान निगल गया,तब से हम लोग लगातार आपकी पत्नी की तलाश कर रहे हैं लेकिन ये पता नहीं चल रहा कि वे जिन्दा हैं भी या नहीं",
"वही तो मैं भी सोच रहा हूँ कि कहांँ चली गई मेरी देविका,काश! उस रात हमारा झगड़ा ना हुआ होता और वो मुझसे रुठकर घर से बाहर ना जाती"मिस्टर सिंघानिया दुखी होते हुए बोले...
"अब आप घर जाइए मिस्टर सिंघानिया! मैं रघुवीर को भी रिहा कर देता हूँ",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
और फिर मिस्टर सिंघानिया घर जाने के लिए अपनी कार में जा बैठे,ड्राइवर ने कार स्टार्ट कि और वे चले गए,इधर इन्सपेक्टर सिंह ने रघुवीर को भी हिदायतें देकर छोड़ दिया,रघुवीर के जाने के बाद वे हवलदार बंसी यादव से बोले....
"मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है",
"क्या हुआ साहब! आपको सिंघानिया साहब पर भी शक़ है क्या?",हवलदार बंसी यादव ने पूछा....
"अभी मैं कुछ कह नहीं सकता,लेकिन मेरे शक़ की सुई बार बार सिंघानिया पर आकर ही अटक जाती है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जाने दीजिए ना साहब! ज्यादा मत सोचिऐ,खोज बीन तो चल ही रही है,एक ना एक दिन सच्चाई सबके सामने आ ही जाऐगी",हवलदार बंसी यादव बोला...
"शायद तुम ठीक कहते हो",
और ऐसा कहकर इन्सपेक्टर धरमवीर जिस कुर्सी में बैठे थे ,उससे अपना सिर टिकाकर कुछ सोचने लगे,

क्रमशः..
सरोज वर्मा...