मिस्टर सिंघानिया देविका को लेकर अपने घर पहुँचे और उन्होंने अपनी माँ शैलजा को आवाज़ देते हुए कहा....
"माँ...माँ...देखो तो कौन आया है?"
"क्या हुआ बेटा! कौन आया है"
ऐसा कहकर शैलजा अपने कमरे से बाहर आते हुए बोली और उसने जैसे ही देविका को वहाँ देखा तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया लेकिन फिर भी वो खुद को सम्भालते हुए बोली....
"अरे! देविका बेटी! आ गई तुम! तुम्हें इस घर में देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे इस घर की रौनक लौट आई है,कहाँ थी तुम इतने दिन"
और ऐसा कहकर शैलजा ने उसे गले से लगा लिया,तब तक रोहन भी वहाँ आ गया और देविका को अपने सामने देखकर बोला...
"देविका भाभी! आप वापस आ गईं"
"हाँ! रोहन! देविका वापस आ गई,मैं आज इतना खुश हूँ कि मैं अपनी खुशी बयाँ नहीं कर सकता, भला हो उस ट्रक वाले का, जिसने देविका को हम तक पहुँचाया",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"हाँ! बेटा! कल ही मैं देविका को लेकर मंदिर जाऊँगी,मैंने भगवान से मन्नत माँगी थी जिस दिन देविका घर आ जाऐगी तो उस दिन मैं उस के साथ मंदिर जाकर गरीबों को दान दूँगी",शैलजा बोली...
"माँ! कल देविका का मेडिकल होगा,पुलिस वाले उसे अपने साथ ले जाऐगें,इसलिए वो आपके साथ मंदिर नहीं जा पाऐगी,लेकिन कोई बात नहीं मैं आपके साथ मंदिर चल चलूँगा",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"ठीक है बेटा! तो तू ही मेरे साथ मंदिर चले चलना",शैलजा बोली...
"माँ! अब देविका को आराम करने दो,बहुत थकी होगी वो",दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
"हाँ! बेटा! लेकिन ये हम लोंगों से बात क्यों नहीं कर रही है",शैलजा ने पूछा...
"क्योंकि इसकी याददाश्त चली गई है,ऐसा पुलिस वालों ने कहा था",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"ठीक है तो मैं ही इसे नहलाकर साफ कपड़े पहना देती हूँ,फिर कुछ खिलाकर इसे अपने कमरें में ही सुला लूँगीं",शैलजा बोली...
"हाँ! यही ठीक रहेगा",दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
और इसके बाद शैलजा देविका को अपने साथ ले गई,उसे नहलाकर साफ कपड़े पहनाएँ और उसके लिए खिचड़ी बनाई,फिर उसे खिचड़ी खिलाकर उसने उसे अपने कमरे में ही सुला लिया,देविका चुपचाप उस बिस्तर पर लेट गई,लेकिन वो तो देविका नहीं सतरूपा थी,इतने नरम बिस्तर पर उसे नींद ही नहीं आ रही थी,वो मन ही मन सोच रही थी कहाँ फँसा दिया उसे इन्सपेक्टर साहब और करन बाबू ने,लेकिन फिर वो उस बिस्तर पर सोने का नाटक करती रही,क्योंकि उसे तो सब पर नज़र रखनी थी,आधी रात के बाद शैलजा के कमरे के दरवाजों पर दस्तक हुई और उठकर उसने अपने कमरे के दरवाजे खोले, देविका बनी सतरूपा कान लगाकर सब सुनकर रही थी,शायद वहाँ पर रोहन था आया और शैलजा ने उससे कहा....
"तू इतनी रात गए यहाँ क्यों आया है"
"नींद नहीं आ रही थी,मैंने तो सोचा था कि बला टल गई है लेकिन ये तो फिर से लौट आई और अगर इसकी याददाश्त वापस आ गई और इसने सबकुछ बता दिया तो मैं तो बुरी तरह फँस जाऊँगा",रोहन बोला...
"अरे! तू घबरा मत,मैं तुझे कुछ नहीं होने दूँगी,इसलिए तो इसे मैंने अपने कमरे में रख रखा है,जो दवाइयाँ इसे मिलेगीं वो मैं इसे खाने ही नहीं दूँगी,उन दवाइयों के बदले मैं इसे विटामिन्स की गोलियाँ देती रहूँगी, जिससे किसी को हम दोनों पर कोई शक़ नहीं होगा,क्योंकि अगर ये ठीक हो गई तो हम दोनों के लिए मुसीबत बन जाऐगी",शैलजा बोली...
"हाँ! माँ! ये ठीक ना होने पाएंँ,नहीं तो मैं बेमौत मारा जाऊँगा",रोहन बोला...
"ये ना ही ठीक हो पाऐगी और ना ही ये दिव्यजीत से करीबियांँ बढा पाऐगी,मैं ये सारी दौलत अपने हाथ से यूँ ही नहीं जाने दे सकती,इसी दौलत के लिए ही तो मैं ने इसकी माँ के मरने के बाद इसके बाप को अपने प्रेमजाल में फँसाया था,इसी दौलत के लिए ही मैंने उससे शादी की थी",शैलजा बोली...
"हाँ! माँ! मैंने तो सोचा था कि देविका ठिकाने लग चुकी है,अब दिव्यजीत को ठिकाने लगाकर इस पूरी मिल्कियत का मालिक मैं बन जाऊँगा लेकिन वो मनहूस देविका तो लौट आई,",रोहन बोला...
"बेटा! अब तू जा यहाँ से,कहीं वो जाग ना जाएँ",शैलजा रोहन से बोली...
"हाँ! मैं भी जाकर सोने की कोशिश करता हूँ"
और इतना कहकर रोहन वहाँ से चला गया,इधर शैलजा ने कमरे के दरवाजे फिर से बंद कर लिए और बिस्तर पर जाकर लेट गई,देविका बनी सतरुपा ने दोनों की बातें सुनी और सोचने लगी,हो ना हो देविका की मौत के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है,उसे अब वहाँ रहने में डर लग रहा था,वो सोच रही थी कि बैठे बिठाए ये उसने कैंसी मुसीबत मोल ले ली और यही सब सोचते हुए उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला,सुबह होते ही उसे महसूस हुआ कि कोई उसके माथे पर अपना हाथ फिरा रहा है और तब उसने आँखें खोलकर देखा तो वो दिव्यजीत था,फिर दिव्यजीत ने उससे कहा...
"देवू! भगवान का लाख लाख शुकर है जो तुम मुझे मिल गईं,अब मैं तुम्हें कभी भी खुद से दूर नहीं जाने दूँगा"
और ऐसा कहकर दिव्यजीत ने देविका बनी सतरुपा के माथे को चूम लिया,ये सब सतरुपा को अच्छा नहीं लगा और उसने शर्म से अपनी पलकें झुकाकर कहा....
"ये क्या कर रहे हैं आप?",
"ओह....मैं तो ये भूल ही गया था कि अभी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है और तुम हम सभी को पहचान नहीं पा रही हो"दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"हाँ! मुझे अभी कुछ भी ठीक से याद नहीं है",देविका बनी सतरूपा बोली...
"गलती हो गई माँफ कर दो और अब तुम तैयार हो जाओ,देखो सुबह के दस बज चुके हैं,इन्सपेक्टर धरमवीर तुम्हें लेने के लिए आने वाले होगें,आज तुम अपना मेडिकल दे दो,इसके बाद मैं किसी अच्छे से डाक्टर के पास तुम्हारा इलाज करवाऊँगा,चाहे फिर मुझे विदेश का डाक्टर ही क्यों ना बुलवाना पड़े" दिव्यजीत बोला...
तभी शैलजा कमरे में आकर दिव्यजीत से बोली....
"बेटा! चलो मैं देविका को तैयार कर देती हूँ",
"नहीं! माँ! जी! मैं खुद से तैयार हो जाऊँगी,आज मुझे कल से बेहतर लग रहा है"देविका बोली...
देविका के वाक्य सुनकर शैलजा हैरान रह गई,लेकिन फिर वो खुद सम्भालते हुए बोली....
"कोई बात नहीं देविका बेटी! मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा और सामान दिखा देती हूँ,जो मन करे पहनकर तैयार हो जाओ",
"जी! माँ जी!",देविका बोली...
और फिर सतरुपा बनी देविका अपने कमरे में पहुँची,उसने इतने कपड़े,गहने और मेकअप का सामान कभी नहीं देखा था,फिर कुछ देर बाद जब वो देविका के कपड़ों में तेयार होकर,हाईहील्स पहनकर नाश्ते की टेबल पर आकर बैठी तो उसका एटीट्यूड देखने लायक था,कोई नहीं कह सकता था कि वो असली देविका नहीं है ,वो कपड़ो और चाल ढ़ाल से हूबहू देविका लग रही थी और इसका ऐसा एटीट्यूड देखकर सबसे ज्यादा हैरानगी रोहन और शैलजा को थी,उन्हें डर था कि कहीं देविका की याददाश्त लौट आई तो उन पर जरूर बिजली गिर जाऐगी....
उस दिन दिव्यजीत ने रसोइये से कहकर खासतौर पर देविका के लिए आमलेट बनवाया था,वैसा ही काली मिर्च के फ्लेवर वाला जैसा कि देविका को पसंद था लेकिन देविका ने वो आमलेट खाने से इनकार कर दिया,वो बोली कि वो माँस और अण्डों को हाथ भी नहीं लगाती, वो तो आलू का पराँठा खाऐगी वो भी पुदीने की चटनी के साथ,उसकी बात सुनकर सब हैरान थे क्योंकि देविका कभी भी आलू का पराँठा नहीं खाती थी,उसे आलू पसंद ही नहीं थे और पुदीने से उसे एलर्जी थी,पुदीना खाने से उसके शरीर पर चकत्ते पड़ जाते थे....
क्रमशः...
सरोज वर्मा....