अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(७) Saroj Verma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(७)

देविका बनी सतरूपा के ऐसा करने पर दिव्यजीत को कुछ अटपटा सा लगा इसलिए उसने देविका से कहा....
"देवू!तुम तो कभी भी आलू का पराँठा नहीं खाती थी क्योंकि तुम्हें तो आलू पसंद ही नहीं थे और पुदीने से तुम्हें एलर्जी थी,काली मिर्च के फ्लेवर वाला आमलेट जो कि तुम्हारा आलटाइम फेवरेट था,तुम उसे खाने से इनकार कर रही हो,ऐसा क्यों?"
दिव्यजीत की बात सुनकर अब देविका फँस चुकी थी,वो सोचने लगी कि अब क्या कहे और तभी इतने में माली ने डाइनिंग रुम में आकर कहा...
"साहब! बाहर इन्सपेक्टर साहब आए हैं,कह रहें कि अगर मेमसाब तैयार हो गईं हों तो उन्हें फौरन भेज दो"
"हाँ! ठीक है ! उन्हें बैठने को कहो और उनसे जाकर बोलो कि मेमसाहब अभी नाश्ता करके आतीं हैं",
अभी दिव्यजीत सिंघानिया अपना वाक्य पूरा ही कर पाया था कि इन्सपेक्टर धरमवीर डाइनिंग रुम में आकर मिस्टर सिंघानिया और मिसेज सिंघानिया से बोले....
"माँफ कीजिए सिंघानिया साहब! मैं बिना इजाजत आपके डाइनिंग रुम में चला आया, तो मिसेज सिंघानिया! चलें,मेडिकल चेकअप के लिए",
"अभी तो इसने नाश्ता भी नहीं किया",शैलजा बोली...
"जी! इसका मतलब है कि मैं सही वक्त पर भीतर आ गया ,अगर ये नाश्ता कर लेतीं तो फिर ये मेडिकल टेस्ट नहीं दे पाती", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"वो भला क्यों",मिस्टर सिंघानिया ने पूछा..
"क्योंकि डाक्टर ने कुछ टेस्ट खाली पेट करने को कहे थे",इन्सपेक्टर धरवीर बोले...
"ओह...तो ये बात है",मिस्टर सिंघानिया बोले...
"जी! अब हम दोनों को इजाजत दीजिए,शाम तक आपकी शरीक-ए-हयात को मैं खुद ही घर छोड़ जाऊँगा, आपको तकलीफ़ उठाने की जरूरत नहीं है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी!ठीक है,मैं आपको आपका फर्ज निभाने से कैंसे रोक सकता हूँ",सिंघानिया साहब बोले...
"तो मिसेज सिंघानिया आइए मेरे साथ,अब चलते हैं",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
इसके बाद देविका बनी सतरुपा चुपचाप अपनी चेयर से उठी और इन्सपेक्टर धरमवीर के पीछे पीछे चलने लगी,जैसे ही दोनों घर से बाहर निकले तो मिस्टर सिंघानिया ने इन्सपेक्टर धरमवीर से पूछा...
"इन्सपेक्टर साहब! ये तो बताइए कि एक साल से देविका थी कहाँ,उसने आपको कुछ बताया",
तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने सतरूपा बनी देविका से कहा...
"मिसेज सिंघानिया! आप गाड़ी में बैठिए,मैं अभी आता हूँ,"
और देविका बनी सतरुपा पुलिस की गाड़ी में जाकर बैठ गई और तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने मिस्टर सिंघानिया से कहा...
"अब पूछिए कि आप क्या पूछना चाहते थे,मैं आपको ये सब बातें मिसेज सिंघानिया के सामने नहीं बता सकता था,नहीं तो उनके दिमाग़ पर असर पड़ता" इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"कल रात मुझे देविका से ज्यादा बात करने का मौका नहीं मिला क्योंकि वो माँ के कमरे में सोई थी,इसलिए ये सवाल मैं आपसे पूछ रहा हूँ,अच्छा किया मैंने जो उससे कुछ नहीं पूछा", मिस्टर सिंघानिया बोले...
तब इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जहाँ तक मैंने पता करवाया है तो पता चला है कि इन्हें किसी ऐसे गिरोह ने अगवा कर रखा था जो विदेश में लड़कियांँ सप्लाई करता है,जानवरों की तरह एक ही कमरें में ना जाने कितनी लड़कियों को एक साथ रखा जाता है,खाना भी दो तीन दिन में एक बार दिया जाता है और कभी कभी पकड़ी गई औरतें उनके हवस का शिकार भी हो जातीं हैं,ऐसे माहौल में रहकर ही शायद इनका मानसिक सन्तुलन बिगड़ गया है,इसलिए इन्हें कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा है"
"ओह...इतना दर्द झेलती रही बेचारी देविका",मिस्टर सिंघानिया बोले...
"शायद हम लोग उनके दर्द का अन्दाज़ा भी नहीं लगा सकते",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"लेकिन एक बात समझ में नहीं आई,अगर उन्होंने देविका को किडनैप कर लिया था तो उसकी कार को झील में क्यों फेंक दिया था",मिस्टर सिंघानिया ने पूछा...
"शायद सुबूत मिटाने के लिए",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"हाँ! ये हो सकता है,एक बार फिर से थैंक्यू इन्सपेक्टर साहब! देविका को मुझसे मिलाने के लिए", मिस्टर सिंघानिया बोले...
"इसमें थैंक्यू की कोई बात नहीं है सिंघानिया साहब! ये तो मेरा फर्ज था,अच्छा अब चलता हूँ",
और ऐसा कहकर इन्सपेक्टर धरमवीर गाड़ी में आ बैंठे,उनके बैठते ही ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और सभी चल पड़े,गाड़ी स्टार्ट होते ही देविका बनी सतरुपा इन्सपेक्टर धरमवीर से बोली...
"साहब! आज तो आपने बचा लिया मुझे,नहीं तो मैं बुरी तरह फँस जाती"
"क्यों क्या हुआ"?,इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"मैं ने वहाँ आलू पराँठा और पुदीने की चटनी माँगी तो वो हरामखोर सिंघानिया बोला....
"देवू!तुम तो कभी भी आलू का पराँठा नहीं खाती थी क्योंकि तुम्हें तो आलू पसंद ही नहीं थे और पुदीने से तुम्हें एलर्जी थी,काली मिर्च के फ्लेवर वाला आमलेट जो कि तुम्हारा आलटाइम फेवरेट था,तुम उसे खाने से इनकार कर रही हो,ऐसा क्यों?"
"फिर तुमने क्या कहा",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"मैं कुछ बोलती उससे पहले ही आपने वहाँ आकर मेरी जान बचा ली",सतरुपा बनी देविका बोली...
फिर सतरुपा की बात सुनकर इन्सपेक्टर धरमवीर जोर से हँसे और उसके बाद बोले...
"अभी तो तुम्हें ऐसी बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा और खुद की समझदारी और सूझबूझ से उन्हें सुलझाना भी पड़ेगा"
"ओह...कहाँ फँसा दिया आपने,अच्छी भली नाचकर दो बखत की रोटी कमा रही थी और वहाँ अरबों रुपये होते हुए भी हमेशा गरदन पर तलवार लटकी रहती है",देविका बनी सतरुपा बोला...
"मतलब क्या है तुम्हारे कहने का",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"मतलब ये कि सिंघानिया की सौतेली माँ शैलजा और उसका सौतेला भाई अच्छे लोग नहीं हैं",देविका बनी सतरुपा बोली...
और फिर रात की पूरी घटना का विवरण उसने इन्सपेक्टर धरमवीर को दे दिया,सतरुपा की बात सुनकर इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"कहीं देविका के मर्डर के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ तो नहीं",
"हो सकता है इन्सपेक्टर साहब! क्योंकि दोनों को दौलत चाहिए",सतरुपा बोली...
और दोनों यूँ ही बातें करते इन्सपेक्टर धरमवीर के घर जा पहुँचे,मिहिका ने दरवाजा खोला और सतरुपा से पूछा....
"तो मिसेज सिंघानिया! कैंसा रहा सतरुपा से देविका बनने का सफर"?
"बहुत ही डरावना",सतरूपा बोली...
और तभी घर के भीतर घुसते ही सतरुपा ने अपने भाई मनोज को देखा और मिहिका से बोली...
"आप लोग इसे करन बाबू के घर से क्यों ले आए"?
"क्योंकि उनकी तबियत खराब है और वो इसकी देखभाल नहीं कर सकते थे",मिहिका बोली...
"उनकी बीवी तो है ना उनके घर पर ,तो वो देखभाल कर लेती मनोज की",सतरुपा बोली...
"तुम्हें करन भइया ने कुछ नहीं बताया क्या",मिहिका ने पूछा...
"क्या नहीं बताया",सतरुपा ने पूछा...
"अच्छा! चलो मैं तुम्हें उसके घर ले चलता हूँ तुम खुदबखुद सब जान जाओगी,मैं उसे खाना देने जाने वाला था,तो तुम भी साथ चलो",इन्सपेक्टर धरमवीर सतरुपा से बोले...
"ठीक है चलिए",
और ऐसा कहकर सतरुपा इन्सपेक्टर धरम के साथ करन के घर जाने को राजी हो गई तो मिहिका बोली....
"पहले आप लोग नाश्ता तो कर लो"
"तुम नाश्ता जरा ज्यादा पैक कर देना,तो हम दोनों करन के साथ ही नाश्ता कर लेगें",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ठीक है"
और ऐसा कहकर मिहिका रसोई की ओर चली गई...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...