अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२) Saroj Verma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२)

उधर दिव्यजीत सिंघानिया घर पहुँचे तो उनकी माँ शैलजा सिंघानिया ने उनसे पूछा...
"आ गए बेटा! क्या हुआ था पुलिस स्टेशन में,क्या देविका का कातिल पकड़ा गया?"
"नहीं! माँ! वो देविका का कातिल नहीं था,वो तो रघुवीर था जो हमारे यहाँ काम किया करता था",दिव्यजीत सिंघानिया बोले...
"तो पुलिस ने उसे किस शक़ पर पकड़ा",शैलजा ने पूछा...
"जी! उसके पास देविका का लाँकेट मिला था, जिसमें उसकी और मेरी तस्वीर थी",दिव्यजीत सिंघानिया बोले....
"वो उसके पास कहाँ से आया",शैलजा ने पूछा....
"चुरा लिया होगा उसने",दिव्यजीत ने झूठ बोलते हुए कहा....
"तो तुमने पुलिस से क्या कहा रघुवीर के बारें में",शैलजा ने पूछा..
"मैंने पुलिस से उसे छोड़ देने के लिए कहा",दिव्यजीत बोला....
"ठीक किया तूने,भला ! रघुवीर देविका का कत्ल क्यों करने लगा",शैलजा बोली...
"हाँ! वही तो,अच्छा! ये बताओ कि रोहन कहाँ है,दिख नहीं रहा",दिव्यजीत ने पूछा...
"होगा अपने कमरें में,कुछ काम है क्या उससे",शैलजा बोली...
"नहीं! मैं तो यूँ ही पूछ रहा था",दिव्यजीत बोला....
"तू थककर आया है,अब आराम कर",शैलजा बोली....
"माँ! एक कप अच्छी सी काँफी मिल जाती तो",दिव्यजीत बोला...
"हाँ! अभी लाई"
और ऐसा कहकर शैलजा सिंघानिया साहब के लिए काँफी लेने रसोई में चली गई और तभी वहाँ पर रोहन आ गया और वो अपनी माँ से बोला...
"आ गया तुम्हारा सौतेला बेटा लंदन से लौटकर",
"जुबान सम्भाल कर बात किया कर,अभी वो ही इस पुरी मिल्कियत का अकेला वारिस है,अगर तूने ज्यादा अकड़ दिखाई तो तुझे कुछ नहीं मिलेगा"शैलजा काँफी बनाते हुए बोली...
"इसलिए तुम देविका के खाने में ऐसी दवा मिलाकर देती रही जिससे वो कभी माँ ना बन पाएँ,ताकि सारी मिल्कियत तुम्हें मिल जाए",रोहन बोला...
"चुप कर! ये सब यहाँ मत बोल,दीवारों के भी कान होते हैं,मैं वो सब तेरे लिए ही तो कर रही थी"शैलजा बोली...
"मुझे नफरत है तुम्हारे सौतेले बेटे से",रोहन बोला...
"नफरत तो मुझे भी है लेकिन मैं ये दिखावा नहीं करुँगी तो हम पर उसे शक़ हो जाएगा",शैलजा बोली...
"जाओ फिर यहाँ खड़ी क्यों हो,अपने लाड़ले को काँफी देकर आओ",रोहन बोला...
"जा! तू भी उसे मिल ले,तुझे पूछ रहा था वो",शैलजा बोली...
"मुझे उससे मिलने की कोई जरूरत नहीं है",
और ऐसा कहकर रोहन वहाँ से चला गया,फिर शैलजा दिव्यजीत को काँफी देने चल पड़ी....
ऐसे ही दो चार दिन बीतने के बाद एक दिन पुलिस स्टेशन में एक डिडेक्टिव आया ,जिसका नाम करन थापर था,वो इन्सपेक्टर धरमवीर सिंह से बोला...
"सर! आपने मुझसे रघुवीर के बारें में पता लगाने को कहा था तो मैंने उसके बारें में पता किया,वो अनाथ है और वी.आर.सी काँलेज की कैंटीन में हेल्पर है,वहाँ लोगों को चाय नाश्ता परोसने का काम करता है",
"ये बात तो हम सभी को भी पता थी,इसमें नया क्या है?",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"नया ये है कि कुछ महीनों से उस काँलेज की बहुत सी लड़कियांँ गायब हो चुकीं हैं और उन लड़कियों का कुछ भी पता नहीं चला है",डिटेक्टिव करन थापर बोला....
"लेकिन इससे देविका के कत्ल का क्या ताल्लुक हो सकता है,वो तो उस काँलेज में भी नहीं पढ़ती थी" इन्सपेक्टर धरमवीर ने कहा....
"हो सकता है कि ये कोई ऐसी गैंग हो जो लड़कियों को किडनैप करने का काम करती हो और उनके जाल में देविका भी फँस गई हो",डिटेक्टिव करन थापर बोला...
"हाँ! ये हो सकता है,लेकिन इसका चान्स बहुत कम है,क्योंकि देविका अमीर पति की पत्नी थी,जिससे कोई उसका किडनैप करके मिस्टर सिंघानिया से मोटी रकम वसूलना चाहता हो",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"अगर उसका किडनैप हुआ होता तो किडनैपर का कोई तो फोन आता,ना ही कहीं उसकी लाश मिली है और ना ही अब तक उसकी गुमशुदगी का कोई नामोनिशान मिला है",डिटेक्टिव करन थापर बोला...
"हाँ! वही तो मुझे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"लेकिन मुझे कुछ कुछ समझ में आ रहा है,मुझे लगता है कि अब हमें देविका की हमशक्ल ढ़ूढ़नी पड़ेगी और तभी हम केस की तह तक पहुँच सकते हैं",डिटेक्टिव करन बोला...
"लेकिन हमें उसकी हमशकल मिलेगी कहाँ"?,इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"आजकल बहुत से ऐसे ऐप आ गए हैं जहाँ पर आप किसी का भी हमशकल ढूढ़ सकते हैं और अब हमें वही करना होगा",डिटेक्टिव करन थापर बोला...
"तो ये काम तो आपको ही करना पड़ेगा,क्योंकि मेरे पास ना तो इतनी फुरसत है और ना ही इतनी शक्ति,वो इसलिए कि एक साल से देविका के कातिल का पता लगाते लगाते मेरी हालत खस्ता हो गई है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
इन्सपेक्टर धरमवीर की बात सुनकर डिटेक्टिव करन मुस्कुराते हुए बोला....
"तो फिर आप इन सबकी चिन्ता ना करें,मैं सब सम्भाल लूँगा,बस कुछ पैसों का इन्तजाम हो जाता तो अच्छा था,बहुत दिनों से ढंग की शराब भी पीने को नहीं मिली,सोच रहा हूँ कि आज किसी अच्छे से बार में जाकर अपनी शाम गुजारूँ",
"फिर से पैसे....यार! कितना पैसा लेते हो तुम और काम एक पैसे का भी नहीं करते",धरमवीर बोला...
"यार! तुझे तो सबकुछ पता है ना मेरे बारें में,जब से हंसिका गई है तभी से मुझे शराब की लत गई है",डिटेक्टिव करन बोला...
"हंसिका के जाने का मुझे भी बहुत दुख है,पहले वो मेरी बहन थी और बाद में वो तेरी बीवी बनी थी समझा!",इन्सपेक्टर धरमवीर सिंह बोले...
"समझता हूँ यार! सब समझता हूँ,तभी तो तुझसे ही मदद माँगने आता हूँ",डिटेक्टिव करन बोला...
तब इन्सपेक्टर धरमवीर ने अपना वालेट निकालकर करन को कुछ रुपए देते हुए कहा...
"ले आज मेरे पास इतने ही हैं और सुन ज्यादा मत पीना और पीकर किसी से लड़ाई दंगा तो बिल्कुल मत करना,नहीं तो मैं निपटारा करवाने नहीं आऊँगा",
"थैंक्यू दोस्त! तू ही तो मेरा सच्चा यार है",करन ने धरमवीर को गले से लगाते हुए कहा...
"अब ज्यादा मस्का मत लगा,अपना रास्ता नाप",इन्सपेक्टर धरमवीर बोला....
"मस्का नहीं लगा रहा हूँ,अच्छा ये बता कि भाभी और बच्चे कैंसे हैं"?करन ने धरमवीर से पूछा...
"सब ठीक चला रहा भाई! बस ऊपरवाले की कृपा है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोला...
"अच्छा! तो मैं अब चलता हूँ",
और ऐसा कहकर डिटेक्टिव करन वहाँ से चला गया और जल्द ही उसने इन्टरनेट पर देविका की हमशक्ल भी ढूढ़ ली,जो कि किसी बार में बार डान्सर थी,हुबहू वो देविका जैसी दिखती थी,बस उसके बाल कर्ली थे और चेहरे पर एक छोटा सा मस्सा था ,उसका नाम सतरुपा था,वो एक गरीब परिवार से थी और पढ़ी लिखी भी ज्यादा नहीं थी...
डिटेक्टिव करन ने उससे मिलने का फैसला किया और एक रात वो ब्लू-व्हेल बार पहुँचा,उसे वहाँ पर देविका की हमशकल सतरुपा दिखी,फिर उसने बार के मालिक से सतरूपा से मिलने की इच्छा जताई और बार का मालिक इस बात के लिए राजी हो गया....
जब सतरूपा करन से मिली तो वो उससे बोली....
"तू मेरे से क्यों मिलना चाहता था",
"कुछ काम था",करन बोला...
"तुझे मालूम हैं,हर एक काम का रोकड़ा लेती मैं",सतरूपा बोली...
"हाँ! रुपए भी मिलेगे",करन बोला...
"तो फिर मैं तैयार है,चल काम बोल"सतरुपा बोली...
सतरुपा का जवाब सुनकर करन उसे पूरी बात बताने लगा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...