प्रेम गली अति साँकरी - 127 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 127

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संस्थान में प्रवेश करते ही मेरा मन किसी जकड़न से छूटने लगा और गाड़ी रुकते ही जैसे एक खुले पवन के झौंके की तरह मैं एक बच्चे की तरह भागती हुई बरामदे की ओर जैसे उड़ आई | गार्ड मुझे नमस्ते करता रह गया | मैं अपना सारा सामान गाड़ी में छोड़कर भाग आई थी | जबकि शोफ़र ने बरामदे तक आकर गाड़ी रोकी थी | 

मुझे देखते ही वहाँ के कर्मचारियों में शोर मच गया | मेरे इतनी जल्दी किसी को भी आने की आशा नहीं होगी | अभी सब नाश्ते पर बैठे ही थे कि महाराज ने दूर से देखकर ही शोर मचा दिया और सबसे पहले भाई अमोल डाइनिंग से बाहर भागकर चला आया और मुझ भागती हुई को अपनी बाहों में भर लिया | 

“इतनी जल्दी----? वाऊ---!!” अपनी बाहों के घेरे में लपेटकर वह मुझे अंदर ले गया जहाँ सब अभी नाश्ता शुरू करने वाले थे | सबके चेहरे मुझे देखकर खुशी से चमक आए थे | रात के पहले प्रहर में ससुराल जाने वाली लड़की सुबह-सवेरे इस प्रकार नमूदार हो गई थी | 

“वाह अमी ! मुझे तो लगा था कि नाश्ता करे बिना नहीं आने देंगीं तुम्हें---”अम्मा के मुँह से निकला बाकी सबके चेहरों से !

“गुड मॉर्निंग सबको। कैसे हैँ सब मुझे देखकर? ”मैं बहुत दिनों बाद ठठाकर हँसी थी और रास्ते में आते हुए उत्पल के बंद स्टूडियो पर मेरी नज़र पड़ी थी जिसने मेरी आँखें आँसुओं से भर दी थीं जिन्हें मैंने यहाँ सब अपनों के सामने गडमड कर दिया था | 

“सीन तो कुछ ऐसा ही था अम्मा लेकिन मुझे तो यहाँ आप सबके साथ करना था नाश्ता, अपने महाराज के हाथ का---”महाराज भी अजीब से हो उठे | 

“गरमागरम आपकी ही पसंद का नाश्ता लाता हूँ दीदी, चल भई चल—” कहकर वे अपने हैल्पर के साथ निकल गए | पलेट्स लगाई जा चुकी थीं, सुबह हमारे यहाँ जो फलों और जूस का एक आम रिवाज़ था, वह लगा हुआ था | मैं आराम से अपनी बरसों की कुर्सी पर जाकर रिलेक्स हो उठी थी | 

“बूआ ! आई विल सिट विद यू---” वाणी ने कहा और एमिली मुस्कराकर उससे अगली कुर्सी पर खिसक गई | 

वाणी उस कुर्सी में बैठने से पहले मेरी गोदी में सिमट आई थी | मैं एक भीने एहसास से भर उठी, अपने परिवार के भीने अहसास से!जिसके आगे और कुछ नहीं था | मैंने वाणी को अपने गले लगाकर भींच लिया और न जाने क्यों मुझे कुछ देर पहले अपने गले लगाई हुई मंगला का आभास हो आया | 

डाइनिंग में चहल-पहल हो चुकी थी और सबके मन में प्रश्न थे लेकिन भीतर ही | कोई किसी को इस समय न छेड़ना चाहता था, न कोई ऐसी बात करना जिससे मौसमी बरसात शुरू हो जाए | सो—सब खाने-पीने, हँसी-ठिठोली में व्यस्त हो गए | एक सप्ताह में तोअम्मा-पापा को लेकर निकल ही जाएगा अमोल का परिवार ! देखते हैं फिर तेल और तेल की धार !मेरे मन में खुदर-बुदर तो थी ही!

“प्रमेश जी भी नाश्ते पर आ जाते तो---!”पापा के मुँह से निकल ही तो गया | 

“आ जाएंगे पापा, जाएंगे कहाँ? अपने हिसाब से करने देते हैं न सबको---”मैंने कुछ इस तरह से कहा कि फिर किसी ने कुछ नहीं कहा या पूछा | 

महाराज पर तो मुझे देखकर अजीब ही उत्साह छलक आया था | उनको आदत थी कि वे इडली का, डोसे का बैटर बनवाकर ही रखते थे, जानते भी थे कि मुझे मसाला इडली कितनी पसंद है सो उनका फटाफट कार्यक्रम शुरू हो गया | मजे की बात थी कि रात का कोई भी आइटम नहीं था, हमारे इतने बड़े संस्थान में अधिकतर सब खाना उसी समय समाप्त कर दिया जाता था और दूसरे समय ताज़ा ही बनता था | 

सब तो ब्रेड-बटर, फ्रूट्स, जूस लेने वाले थे | मेरी गरमागरम मसाला इडली क्या आई, सबके मुँह में पानी भर आया | अमोल ने अपने सामने रखे टोस्टर में से अभी एक करारा टोस्ट निकालकर, बटर लगाकर मेरी ओर बढ़ाया ही था कि इडली की सुगंध से सबके नथुनों में सुगंध भर उठी | 

“ले ले न यार, कितना प्यारा क्रिस्पी टोस्ट है | ” उसने बड़े प्यार से मुझे अपने हाथ से खिलाया | 

“डोन्ट वरी बूआ आई विल शेयर विद यू ---” उसने मेरे साथ आधा टोस्ट शेयर किया और फिर सब इडलियों पर टूट पड़े | 

हम सब डाइनिंग में और बाहर संस्थान की गहमागहमी, बस खिला-खुला वातावरण ! थोड़ी देर में शीला दीदी, रतनी और सारा स्टाफ़ आ जाने वाला था | 

“आराम करोगी बेटा!” अम्मा ने पूछा | 

“हाँ, अम्मा! थोड़ा सा आराम कर ही लूँ --” मैंने वाणी को प्यार किया और सबसे कहकर उठ खड़ी हुई कि थोड़ी देर बाद मिलेंगे | 

“दीदी!लंच में ? ” महाराज तो बस---

“यह ब्रन्च जो करवा दिया महाराज, बस करिए सबके पेट फट जाएंगे---”भाई बोला और सब एक बार फिर से ठठाकर हँस पड़े | 

“रिलेक्स रहो महाराज, रात को भी लगता है लाइट ही खाना चाहिए | जैसा सबको लगे—”पापा भी बोल उठे | 

“हाँ, बाय बाय, मैं चली अपने कमरे में –”मैं एक नदीदे बच्चे की भाँति उठ खड़ी हुई जिसके खिलौने उसे पुकार रहे थे शायद !

बाहर आकर एक बार फिर मेरी आँखें बंद स्टूडियो के दरवाज़े पर पल भर के लिए चिपकीं और फिर वहाँ से मैं तेज़ कदमों से अपने कमरे की ओर भाग आई | 

बिना चेंज किए मैंने दरवाज़ा बंद किया और अपने प्यारे बिस्तर पर पसर गई | 

मेरा सारा सामान व्यवस्थित रखा जा चुका था | 

पता नहीं मैं अपने आपको कब तक एक गहरी नींद के हवाले किए पड़ी रही | क्या सुकून था!उत्पल ! तुम मेरे साथ थे इस समय !अनुपस्थिति में उपस्थिति की महक ने मुझे अपने आलिंगन में ले रखा था |