मेरी अधूरी गज़लें भूपेंद्र सिंह द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरी अधूरी गज़लें

गजलों की तारतम्यता का आनंद उठाएं।।

1. पढ़ाई करने के तरीके हम पता लगाने निकले,
जो तरीके लगे थे हाथ, हम उनको आजमाने निकले,
उस गांव में जो करता था पढ़ाई से नफरत,
उसके तहखाने से किताबों के ठिकाने निकले।।

2. दिन रात पढ़ कर कुछ मुकाम हासिल करना है,
मैं किसी और को मदद के लिए पुकार नहीं सकता।
चंद लम्हे और फिर मिल जाएगी सफलता ,
इतना नजदीक आकर मैं मेहनत का नशा उतार नहीं सकता।
लगा हूं पढ़ने में अब रुकूंगा नहीं,
किताबें हैं सवर रही कमरा सवार नहीं सकता।
जानता हूं पापा मजदूरी करके पढ़ा रहे हैं ,
पढ़ूंगा मैं मां के ख्वाबों को मार नहीं सकता।
जानता हूं जिंदगी तेजी से गुजर रही है ,
शांति से काम लूंगा किताबों को फाड़ नहीं सकता।
रास्ते में आएंगे विघ्न अनेक
मैं लंगड़ा कर भी चलूंगा,
मगर हार नहीं सकता मैं हार नहीं सकता।।

3. वक्त के एक एक मिनट किमती है,
इन्हे आसानी से खोने मत देना।
जब तक मंजिल हाथ न लग जाए,
तब तक खुद को सोने मत देना।
जब भी दिखे सिगरेट पीते हुए लड़के,
वही से वापिस लौट आना
खुदा के वास्ते मां को रोने मत देना।।

4. जिंदगी में खुश रहो, पर रब से डरो, बादशाहो से भी तावान लिया जाता है।
कभी किस्मत से नही मिलती सफलता,
पढ़ने वालो से भी इम्तिहान लिया जाता है।
झुक गई थी दुनिया उसके जुनून के सामने,
इसलिए नाम उसका सिकंदर महान लिया जाता है।
खुद पर इतना गुरूर ना करो ,
वक्त के बदलते सबसे गुमान लिया जाता है।
झूठ बोलने से कोई भी नही चढ़ता नेकी की सीढ़ी,
अदालत में भी सच का परवान लिया जाता है।
जग में नही है हर कोई आस्तिक,
नास्तिक बनाकर उनसे ईमान लिया जाता है।
फालतू नही मिलता किसी को कुछ भी,
हर एक से हर वस्तु का दाम लिया जाता है।
वो करता होगा सबकी मदद,
इसलिए आज भी खुदा का नाम लिया जाता है।
पिघल जाते है रास्ते के बड़े बड़े पत्थर भी,
जब मन में कुछ ठान लिया जाता है।
संचय से इंसान हो जाता है कंजूस,
इसलिए हर एक से दान लिया जाता है।
कदम चूमने लग जाती है सफलता,
जब किताबे पढ़कर कुछ जान लिया जाता है।
जो मरकर भी नाम अमर कर जाए,
उसे महान, मान लिया जाता है
दिल में कुछ तो जिंदा होगा प्यार ,
इसलिए आज भी मां का नाम लिया जाता है।
पढ़ने वालो से भी इम्तिहान लिया जाता है।।


5. मैं प्रातः ही निकला था होकर एक मतवाला,
पहले किया था स्नान,फिर पिया चाय का प्याला।
मैं निकला था घर से
खेत देखने के लिए ,
सुनहरी रेत देखने के लिए,
खेतों में फूलों के ढेर देखने के लिए,
बेरियों पर लगे बेर देखने के लिए,
रंग आसमानी देखने के लिए,
खेतों में पानी देखने के लिए,
पेड़ो पे फुदकती गिलहरी देखने के लिए ,
एक सुबह सुनहरी देखने के लिए,
ऊंचे ऊंचे रेत के टीले देखने के लिए,
सरसों के पत्ते गिले देखने के लिए,
हिरनो की छलांगे देखने के लिए, किसानों की मांगे देखने के लिए, कौवों का शोर देखने के लिए , नाचते हुए मौर देखने के लिए,
खेतो में काम करते किसान देखने के लिए,
संसार का असली जहान देखने के लिए,
देखकर मैं हो गया हैरान,
बन चुका था अपने ही खेतो में मेहमान,
जहां पहले खेत थे वहा अब ऊंचे ऊंचे भवन थे,
वहा भी बिल्डिंगे थी जहा पहले वन सघन थे,
बदल चुकी थी सारी ही छवि,
देखता रह गया अपलक कवि,
कहा गए वो खेत जहां बच्चे खेला करते थे,
जहां किसान अपनी मस्ती में टहला करते थे,
शहरीकरण ने गावो को भी अपने पंजे में जकड़ लिया है,
आने वाली पीढ़ी का भविष्य अपने हाथो में पकड़ लिया है।।

6. अपनी चिट्ठियों में खुद को मुसीबत का मारा लिखती है,
हर रोज शादी करने का एक नया चारा लिखती है,
मेरा दिल तेरे लिए हो चुका है अब खारा लिखती है,
कभी गुस्से में आकर तू मुझे आवारा लिखती है,
तू भी है शादी के योग्य और मुझे कुंवारा लिखती है,
मैं हूं तेरी जिंदगी का अब सिर्फ सहारा लिखती है,
मैंने न सुनी तेरी बात,कितनी बार मुझे पुकारा लिखती है,
कभी मेरे अलावा सब कुछ ग्वारा लिखती है।।

तू अपनी चिट्ठियों में मोहब्बत का नाम लिखती है,
कर लूं मैं शादी का कुछ इंतजाम लिखती है,
जिंदगी हो गई मेरी सुनसान लिखती है,
बातें करने के लिए एक सुनहरी शाम लिखती है।।

मुझे समझ न आया, तुझे मजदूर के बेटे में क्या खास लगा,
तू समझती है मुझे महाराजा,
मैं तो खुद को एक दास लगा।।

हमारे इस प्यार के किस्से को कोई नहीं जानता,
जानकर भी इस किस्से को कोई नही मानता,
तुझमें मुझमें कोई भी नही है समानता।।

तेरे सुनहरे बाल और चेहरे की चमक,
तेरा चमकता चेहरा और और ये तेरी दमक,
तेरी नशीली आंखें और गले में मोतियों का हार,
इनके सामने तो कुछ भी नही है मेरा प्यार।।

सच न होंगे चाहे कितने भी ख्वाब बुन लो,
अब तुम चुपचाप मेरा भी जवाब सुन लो।।

मैं भी खुद को मां बाप का दुलारा लिखता हू,
गरीब मजदूर हूं इसलिए खुद को कुंवारा लिखता हूं,
तुम समझ जाओ अमीरी गरीबी को ये एक चारा लिखता हूं,
हा ठीक है मैं हो चुका आवारा लिखता हूं।।

मेरे सर पर माता पिता की जिम्मेदारी है,
पिता मजदूर है मां को लाइलाज बीमारी है।।

महल से आकर झोंपड़ी में तू रह नही सकती,
ये ठंडी गर्म हवाएं तू सह नही सकती।।

तुमने जमीन पर कभी चलकर नही देखा,
कड़ी धूप में कभी जलकर नही देखा,
मिट्टी को अपने हाथो पे कभी मलकर नही देखा।।

खुदा के वास्ते मुझ पर अहसान कर,
छोड़ दे मुझे किसी और का चयन कर।।

सतनाम वाहेगुरु।।