सुबह का वक्त है। सुबह के लगभग आठ बजे होंगे। हैदराबाद में एक बड़ी सी बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर बने एक हॉल में एक मीटिंग चल रही है। लगभग पचास से अधिक व्यक्ति वहां पर मौजूद हैं। इतने में उस बिल्डिंग के बाहर एक कार आकर रुकती है। इस कार में से एक बीस वर्ष की बेहद ही खूबसूरत लड़की बाहर निकलती है। लड़की ने फीकी नीले रंग की जींस और लाल रंग की शर्ट पहन रखी है। इस वक्त वो लड़की देखने में किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही है। कद लगभग पांच फीट दो इंच, कमरे से नीचे तक आते उसके गोल्डन कलर के बाल, उसकी समंदर के जैसी गहरी नीली आंखे जो किसी को भी अपने अंदर डूबा ले, उसका गोल मटोल सा बेहद ही नाजुक चेहरा , गहरे लाल लाल होठ जिसे देखकर किसी भी लड़के के मन में वासना जाग जाए और वो खुद को चाहकर भी रोक न पाए। उस लड़की के होठों के नीचे दाई और एक छोटा सा तिल है जो उसे और भी खूबसूरत बना रहा है। उसका रंग चांद की तरह बिलकुल सफेद नज़र आ रहा है।
वो लड़की उस बिल्डिंग की और बढ़ती है। तभी पीछे से ड्राइवर भागकर बाहर निकलता है और उस लड़की के पास भागकर जाते हुए कहता है " सनाया मैडम प्लीज रुक जाइए। इस वक्त सर की बहुत जरूरी मीटिंग चल रही है। प्लीज मान जाइए ना।"
लेकिन सनाया गुस्से से ड्राइवर को घूरते हुए बोलती है " अंकल आप बेवजह बहस मत कीजिए। मुझे मालूम है की मैं क्या कर रही हूं और क्या नहीं कर रही हूं? आप मेरे मामले में टांग मत अड़ाइए।"
वो ड्राइवर चुपचाप बिल्डिंग के बाहर ही खड़ा हो जाता है। सनाया तेजी से बिल्डिंग के अंदर घुसती है और एक और कंप्यूटर के सामने बैठी लड़की की और देखते हुए पूछती है " मीटिंग किस रूम में चल रही है?"
वो लड़की तेजी से चेयर पर से खड़ी हो जाती है और जल्दबाजी में कहती है " लेकिन मैम आप इस तरह मीटिंग के बीच में नहीं जा सकती है?"
सनाया गुस्से से उस लड़की की और देखते हुए कहती है " मैने तुमसे कुछ पूछा है कोई सलाह नहीं मांगी है?"
वो लड़की फिर से डरते हुए बोलती है " लेकिन मैम .......।"
उस लड़की की बात पूरी होने से पहले ही सनाया गुस्से से बोल पड़ती है " तुम चुपचाप मेरे सवाल का ज़बाब दो। मुझे बेवजह गुस्सा मत दिलाओ। वरना मेरा ये गुस्सा तुम्हे बहुत महंगा पड़ने वाला है।"
उस लड़की ने बिना कोई जवाब दिए एक कमरे की और अपनी अंगुली कर दी।
सनाया तेजी से उस कमरे की और बढ़ी।
कंप्यूटर के आगे बैठी वो लड़की दोनों हाथों से अपने सर को पकड़ते हुए बोली " अब तो कोई बड़ी आफत आने वाली है।"
सनाया डोर ओपन करके तेजी से कमरे में अंदर चली गई। अंदर बैठे सभी लोग उस लड़की को इस तरह वहां पर आता देखकर दंग रह गए।
लेकिन उन सब लोगों के रिएक्शन का सनाया पर कोई प्रवाभ नहीं पड़ा।
सबसे आगे बड़ी सी चेयर पर एक लगभग पचास - पचपन वर्ष का आदमी बैठा हुआ है जिसने ये मीटिंग बुलाई है।
सनाया बिना किसी की और ध्यान दिए सीधे उस आदमी के पास जाती है और कहती है " चाचू मुझे आपसे अभी कोई जरूरी बात करनी है।"
वो चेयर पर से खड़ा होते हुए सामने की और इशारा करते हुए बोलता है " सनाया बेटी अभी एक जरूरी मीटिंग चल रही है। हम बाहर बात करेंगे।"
सनाया गुस्से से - " लेकिन चाचू मेरा दम घुट रहा है जहां? मैं और एक पल भी जहां नहीं ठहर सकती।"
चाचू गुस्से से बोलता है - " सनाया बेटी ये कोई स्टेज नहीं है। दुनिया के बड़े बड़े बिजनेस मैन जहां बैठे है। प्लीज बाहर जाओ। मैं प्रॉमिस करता हूं दस मिनट में तुम्हारे पास आ जाऊंगा।"
सनाया - " लेकिन अंकल......।"
चाचू - " बेटी मैं हाथ जोड़ता हूं तुम्हारे आगे। प्लीज गेट आउट।"
सनाया गुस्से में तेजी से उस कमरे से बाहर चली जाती है।
उसका चाचू सबकी और देखते हुए " प्लीज सॉरी।"
सब लोग चुपचाप हां में गर्दन हिला देते हैं।
आधे घंटे के बाद उसका चाचा दामोदर कमरे से बाहर निकलता है और सनाया भागकर अपने चाचा के गले लग जाती है और पलके गीली करते हुए बोलती है " लव यू चाचू।"
उसका चाचा उसका सर थपथपाते हुए " लव यू गुड़िया लेकिन हुआ क्या? आप इस तरह मीटिंग के बीच में क्यों आई?"
सनाया - " चाचू आप जानते है ना आठ महीने पहले मेरे साथ क्या हुआ? अब मुझे इस सहर से नफरत हो गई है। मैं जहां और नही रह सकती।"
दामोदर - " सनाया बेटी मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूं। तुमने अपनी आंखो के सामने अपने मोम डैड का एक्सीडेंट होते हुए देखा है। बेटी मैं तुम्हे तुम्हारे माता पिता तो वापिस लाकर नही दे सकता। लेकिन कोशिश करूंगा उनके जितना प्यार तुम्हे दे सकूं।"
सनाया - " चाचू अब मैं इस सहर से बहुत दूर जाना चाहती हूं। मेरा दम घुटता है जहां? अगर मैं रोड पर निकलती हूं तो वो एक्सीडेंट बार बार मेरी आंखों के सामने आ जाता है।"
दामोदर - " लेकिन बेटी......।"
सनाया - " चाचू आप मुझे खुश देखना चाहते हैं ना।"
दामोदर - " हां बेटी मैं तुम्हे खुश देखना चाहता हूं। हमेशा।"
सनाया - " तो चाचू मैं जहां हैदराबाद में कभी भी खुश नहीं रह सकती।"
दामोदर ने सनाया का सिर सहलाते हुए - " बेटी तुम अभी घर जाओ। वहां पर बैठकर शांति से बात करेंगे।"
इतना कहकर दामोदर ने अपनी कलाई घड़ी पर नज़र दौड़ाई।
सनाया - " लेकिन चाचू....... .।"
दामोदर - " लेकिन वेकिन कुछ नहीं। मैं अभी आधे घंटे बाद में आ रहा हूं। तुम अभी घर जाओ।"
सनाया - " चाचू प्लीज जल्दी आइए गा।"
दामोदर - " कोशिश करूंगा सनाया अभी तुम जाओ और खुद पर काबू करना सीखो प्लीज।"
सनाया तेजी से बिल्डिंग से बाहर चली जाती है और चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ जाती है। ड्राइवर जो पहले से ही गाड़ी में बैठा था उसने चुपचाप कार चलानी शुरू कर दी।
ड्राइवर ने कार एक बहुत ही आलीशान तीन मंजिलें घर के आगे रोकी।
सनाया कार से उतरी और चुपचाप घर के अंदर चली गई।
सनाया को घर मे आता हुआ देखकर उसकी मौसी का लड़का मयंक जो चौदह साल का था वो सनाया की और भागकर गया और उसके गले लग गया और फिर दर्द भरी आवाज में बोला " दीदी आप अचानक से कहां चली गई थी। कम से कम मुझे बता तो दिया होता?"
सनाया उसके सर को सहलाते हुए " मयंक मैं बस यहीं थी और कहीं भी नहीं गई थी। चलो घर के अंदर चले हैं।
वे दोनों घर के अंदर आ गए।
सनाया चुपचाप नीचे आंगन में एक सोफे पर बैठ गई। मयंक भागकर एक पानी गिलास लेकर आया और सनाया के आगे करता हुआ बोला " दीदी ये लीजिए आप पानी पी लीजिए।"
सनाया - " हूं तो मेरा भाई इतना समझदार हो गया।"
इतने में एक और से सनाया के चाचू दामोदर की बेटी मीनाक्षी जो लगभग तेईस साल की होगी की आवाज आई " तो फिर आखिर मयंक को अच्छे संस्कार कौन सिखाता है?"
सनाया - " अब बस तेरी कमी रह गई थी। नौटंकी की दुकान।"
मीनाक्षी चुपचाप उसके पास आकर सोफे पर बैठ गई।
इतने में अनामिका का छोटा चाचा सुदांश जिसकी उम्र लगभग पैंतीस साल होगी वो वहां पर आया और सनाया के सामने सोफे पर बैठते हुए बोला " सनाया गुडिया आप ठीक तो हैं ना? और इतनी जल्दबाजी में कहां गई थी।"
सनाया - " चाचू के पास।"
सुधांश - " और मुझे पूरा यकीन है की तुमने मीटिंग के बीच में जाकर अपने चाचू को परेशान किया होगा?"
सनाया फीकी हंसी हंसते हुए - " आपको मालूम है सुधांश अंकल मैं गुस्से में आकर खुद को रोक नहीं पाती।"
मीनाक्षी - " लेकिन डैड ने कहा क्या?"
सनाया - " चाचू कह रहे थे की आधे घंटे तक मैं घर आ जाऊंगा और फिर बैठकर बात करेंगे।"
सुधांश - " लेकिन गुड़िया तुम हैदराबाद और हम सबको छोड़ना क्यों चाहती हो?"
सनाया - " अंकल मैं आपको नहीं छोड़ना चाहती। मैं तो बस कहीं और जाकर जिंदगी के कुछ साल चैन से बिताना चाहती हूं ताकि मैं कुछ राहत महसूस कर सकूं। मैं जानती हूं की इस तरह से ये घाव जो मुझे मिला है वो पूरी उम्र नहीं भरेगा लेकिन मुझे कुछ तो राहत मिलेगी और ये राहत हैदराबाद में तो मुझे बिल्कुल भी नहीं मिलने वाली।"
मीनाक्षी - " अंकल सनाया ठीक ही कह रही है अगर कुछ साल इस जगह से दूर रहकर गुजारेगी तो शायद अपने आप को कुछ अच्छा फील करेगी अगर इसकी जगह मैं होती तो शायद कब की जहां से जा चुकी होती।"
सनाया - " मैं भी आठ महीने पहले ही जा सकती थी। लेकिन चाचू ने कहा था की एक बार अपनी पढ़ाई पूरी कर लो बस इसी लिए मैं जहां रुकी रही और अब तो मेरी पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है इसलिए अब मुझे कोई नहीं रोक सकता।"
इतने में दामोदर वहां पर आ गया और बोला " सब लोग बैठकर क्या बहस कर रहे हैं?"
सनाया - " चाचू प्लीज मेरा दर्द समझिए। मैं जहां और नहीं रह सकती। जहां की हर एक चीज देखकर मुझे मेरे मोम डैड की याद आ जाती है।"
दामोदर - " बेटी मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूं। लेकिन अब तुम चाहती क्या हो?"
सनाया - " कहीं और जाकर रहना।"
दामोदर - " देखो गुडिया सच बात तो ये है की हम तुम्हे एक पल भी खुद से दूर नहीं करना चाहते लेकिन हम भी जानते है की तुम जहां पर खुश नहीं हो। तो फिर ठीक है तुम मुंबई चली जाओ। वहां पर हमारी एक मैनेजमेंट कंपनी है अगर तुम चाहो तो वहां काम भी कर सकती हो ?"
सनाया खुशी से - " मैं तैयार हूं चाचू।"
दामोदर - " तो फिर ठीक है मैं वहां पर तुम्हे एक अच्छा सा फॉर्म हाउस दिलवा देता हूं। तुम चाहो तो किसी को भी साथ ले जा सकती हो?"
इतने में मयंक और मीनाक्षी एक साथ बोल पड़े " हम दोनों जायेंगे।"
सनाया - " हां चाचू मयंक और मीनाक्षी को प्लीज मेरे साथ जाने दीजिए। अगर ये दोनों नहीं होंगे तो फिर मुझे वहां पर पकाएगा कौन? मुझे तंग कौन करेगा?"
ये सुनकर सब हंसने लगे तभी सुधांश की पत्नी मीरा वहां पर आई और टेबल पर पानी के गिलास रखते हुए बोली " जी किसे कहां भेजने की बात हो रही है?"
सुधांश - " सनाया , मयंक और मीनाक्षी तीनों मुंबई या रहे हैं ।"
मीरा - " लेकिन अचानक।"
दामोदर - " ये अचानक नहीं है मीरा बेन। सनाया गुडिया तो पिछले आठ महीनों से ये बात मुझे कह रही है लेकिन मैने ही इसे पढ़ाई पूरी होने तक जहां पर रोके रखा। अब हम इससे ज्यादा सनाया के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते। तुम कल सुबह ही मुंबई के लिए निकल रहे हो?"
सनाया - " लेकिन चाचू अभी सिर्फ ग्यारह बजे हैं। हम आज ही मुंबई जायेंगे। मैं एक और दिन जहां पर नहीं ठहर सकती। मैं घुट घुट कर मर रही हूं।"
दामोदर - " तो ठीक है गुडिया हम तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहते और हम चाहकर भी तुम्हे रोक नहीं सकते। तुम पैकिंग कर लो और आज ही चल जाओ।"
मयंक - " येस ये हुई न बात।"
सुधांश - " और हां मयंक का भी वहीं पर किसी स्कूल में एडमिशन करना देना।"
मीनाक्षी - " अंकल आप वो सब कुछ हम पर छोड़ दीजिए।"
सनाया अपने चाचू के गले लगते हुए "लव यू चाचू। मुझे मालूम था की आप मेरी बात जरूर सुनेंगे।"
दामोदर भावुक होते हुए " लेकिन सनाया बेटी बहुत याद आयेगी तुम्हारी।"
सनाया - " आप फिक्र मत कीजिए चाचू मैं आपको कॉल करती रहूंगी।"
दामोदर - " चलो ठीक है अब जाओ जल्दी से पैकिंग कर लो।"
सनाया , मयंक और मीनाक्षी अपने अपने कमरों में भाग जाते हैं।
सुधांश - " भईया आप जानते है ना की आप क्या कर रहे हैं?"
दामोदर - " मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वो सोच समझकर कर रहा हूं। और ऐसा करने से सनाया का हम पर यकीन बढ़ जायेगा ना की कम होगा और वैसे भी वो शक करना छोड़ देगी। तुम ये बात बखूबी जानते हो की सनाया सिर्फ उसे एक हादसा मानती है और कुछ भी नहीं।"
सुधांश - " लेकिन.....।"
दामोदर - " लेकिन वेकिन कुछ नहीं। तुम ये बात बखूबी जानते हो सुधांश की आज हम जो है वो यूंही नहीं बने बहुत कुछ किया है हमने। लोग हमे सिर्फ ऊपर से जानते है नीचे से नहीं। और जिस दिन लोग हमे नीचे से जान गए उस दिन तुम्हे मालूम है की क्या होगा?"
सुधांश - " जानता हूं भईया लेकिन आप फिक्र न करें ये राज एक राज ही रहेगा तमाम उम्र। ना कभी खुला था और ना ही हम कभी खुलने देंगे।"
दामोदर मीरा की और देखते हुए " और जो भी इस राज को खोलने की कोशिश करेगा फिर उसकी सिर्फ कब्र बनेगी वो भी मेरे हाथों।"
दामोदर - " तुम जाओ और कार में पेट्रोल बगेरा देख लो। कहीं रास्ते में ही खराब न हो जाए।"
सुधांश - " लेकिन भईया आपको लगता है की ऐसा करने से बात बन जायेगी।"
दामोदर - " सोना बनने के लिए पहले तपना पड़ता है और तुम देख ही रहे हो की अब ये आंखे मूंदकर मुझ पर विश्वास करने को तैयार है। अब तीर कमान से निकल चुका है बस इंतजार है उसके सही निशाने पर लगने का।"
सुधांश कुछ सोचते हुए घर से बाहर निकल जाता है। दामोदर शक भरी निगाहों से मीरा की और देखता है जो वहीं पर खड़ी खड़ी किसी बर्फ की तरह जम चुकी थी।
दामोदर - " और तुम मीरा बखूबी जानती हो की मुंह खोलने का क्या अंजाम होगा?"
मीरा - " इतने सालों से कुछ न बोली तो अब भी कुछ न बोलूंगी।"
दामोदर - " हूं।"
इतना कहकर दामोदर अपने कमरे में चला जाता हैं।
मुंबई
दिल्ली से मुंबई आने वाली ट्रेन मुंबई में आकर रुकती है। एक लड़का जिसका नाम राहुल खुराना है वो ट्रेन से बाहर अपना पहला कदम जमीन पर रखने से पहले बोलता है " आज मेरे पवित्र चरणों के स्पर्श से मुंबई की धरा पवित्र हो जायेगी।"
इतना कहकर वो अपना पहला कदम जमीन पर रखता है और कुछ अजीब सी आवाज आती है जिसके कारण उसका मुंह फूल जाता है और उसकी आंखे बड़ी बड़ी हो जाती हैं।
इतने में पीछे से उसका दोस्त सुशांत खुराना निकलता है जो की बेहद ही खूबसूरत लड़का है उम्र सिर्फ इक्कीस साल, काले कपड़े, ऊपर काला कोट, काला चस्मा, पूरा सफेद रंग और हल्की हल्की दाढ़ी जो उसे और भी खूबसूरत बना रही है, उसकी बॉडी किसी पहलवान के जैसी नजर आ रही है। उसकी गहरी नीली आंखे, काले बाल जो उसके माथे पर आते हुए उसे और भी हैंडसम बना रहे हैं। कोई लड़की अगर उसे एक बार देख ले तो उस पर मर मिटे।
सुशांत राहुल की और देखते हुए " क्या हुआ कर दिया मुंबई को पवित्र पहला पैर ही गोबर पर रखकर।"
राहुल ने अपने जूते पर नजर दौड़ाई जो गोबर के ऊपर था। राहुल तेजी से ट्रेन से बाहर निकलकर " शीट डिड यार ये स्टेशन पर गोबर किसने रख दिया।"
सुशांत - " किसी को मालूम होगा कि एक सरफिरा राहुल आज मुंबई आ रहा है इसलिए तेरे स्वागत के लिए रख दिया होगा। चल ठीक है तूं तो मुंबई को पवित्र नहीं कर सका अब मैं अपना पहला कदम मुंबई को बर्बाद करने के लिए इस खूनी जमीन पर रख देता हूं।"
इतना कहकर सुशांत ने अपना पहला कदम स्टेशन पर रख दिया और फिर ट्रेन से बाहर आ गया।
सुशांत अपने दांत पीसते हुए " मुंबई आज से तेरे उल्टे दिन शुरू। हर एक इंसान से बदला लिया जायेगा अब हर एक से।"
इतना कहते ही सुशांत की आंखें गुस्से से लाल हो गई और एक दर्द उसके शरीर में दौड़ने लगा जिसे सिर्फ दो ही लोग समझते थे " आईने में वो इंसान और सुशांत।"
सतनाम वाहेगुरु।।