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परियों का देश

सुबह का वक्त है। सुबह सुबह के लाल लाल सूरज की लालिमा सोनगढ़ के किले पर पड़ रही है जिसके कारण वो किला किसी सोने की तरह चमक रहा है। नीचे की और सोनगढ़ रियासत बसी हुई है लेकिन ऊपरी भाग में सोनगढ़ का किला है जो की पूरी रियासत के लिए एक सूरज की भांति नज़र आ रहा है। कोई भी व्यक्ति अगर इस नजारे को एक बार देख ले तो बस फिर देखता ही रह जाए।
महल के अंदर एक और अपने राज सिंहासन पर महाराज सूरज प्रताप बैठे हैं और सामने अपनी अपनी जगहों पर सभी मंत्री लोग बैठे हैं और एक और दोनों राजकुमार वीरेंद्र प्रताप और उनके छोटे भाई विजय प्रताप बैठे हैं।
सब चुपचाप बैठे हैं। इतने में एक साधु वहां पर आ जाता है। साधु ने भगवा वस्त्र धारण कर रखे हैं, गले में फीके रंग के मोतियों की एक माला , लंबे बाल, जटाधारी, पैरों में देशी जूतियां और हाथ में एक लोटा।
सब लोग जहां तक महाराज और कुमार भी हैरानी से उस साधु की और देखने लगते हैं।
महाराज - " प्रणाम गुरुवर।"
साधु चुपचाप अपना हाथ ऊपर उठा कर सभी को आशीर्वाद देता है।
विजय प्रताप - " साधु जी आप जहां पर आकर बैठिए।"
साधु - " बच्चा हम साधु लोग हैं। हम अंतर्जामी है। हम खड़े खड़े ही बात करेंगे।"
वीरेंद्र प्रताप - " जैसी आपकी मर्जी गुरूवर ।"
महाराज - " लेकिन गुरुवर आप कहां से आए हैं? और हमारे महल में कैसे आना हुआ। इससे पहले हमने कभी भी आपको हमारी रियासत में नहीं देखा है।"
साधु - " हम कैलाश पर्वत से आए हैं बच्चा। हमने सुना है की आपके इस राजदरबार में बड़े बड़े बहादुर बैठे हैं। हम जहां अपना एक सवाल लेकर आए हैं। हमें हमारे सवाल का ज़बाब चाहिए और जो हमारे सवाल का ज़बाब देगा हम उसे जादुई शक्तियों की छड़ी का पता बताएंगे।"
विजय प्रताप - " लेकिन साधु जी ये जादुई शक्तियों की छड़ी क्या है?"
साधु - " ये एक जादुई छड़ी है बच्चा। जिस किसी के पास भी ये जादुई छड़ी होगी वो इस पूरी कायनात पर राज करेगा और अपनी शक्तियों से किसी को भी अपने वश में कर सकेगा।"
महाराज उत्सुकता से - " सच में।"
साधु - " हां बच्चा। तुमने बिलकुल सही सुना है। जिस किसी के पास वो जादुई शक्तियों की छड़ी होगी वो पूरी दुनिया का मसीहा होगा।"
वीरेंद्र प्रताप - " गुरुवर आप हमें जल्दी से उस जादुई छड़ी का पता बताइए। हम अभी उसे उठा ले आते हैं।"
साधु - " नहीं बच्चा ये इतना आसान काम नहीं है। पहले तुम्हे मेरी मदद करनी होगी फिर मैं तुम्हारी मदद कर दूंगा। हिसाब बराबर हो जायेगा।"
महाराज - " हमें मंजूर है। आप बताइए तो सही की हमें करना क्या होगा?"
साधु - " मुझे सुनहरा बाल लाकर देना होगा। मुझे एक ऐसी बीमारी है जो सिर्फ उस सुनहरे बाल से ही सही हो सकती है। अगर आप मुझे सुनहरा बाल लाकर दे दें तो फिर मैं उस जादुई छड़ी का भी पता बता दूंगा।"
विजय - " हम तैयार हैं आप बस इतना बता दीजिए की वो सुनहरा बाल हमें मिलेगा कहां?"
साधु - " ये बहुत मुश्किल काम है बच्चा। इससे पहले भी इस काम को करने के लिए लाखों गए लेकिन कोई वापिस न आ सका। सुनहरा बाल तो किसी को न मिल सका लेकिन मौत सभी को मिल गई। सुनहरा बाल लाने के लिए तुम्हें उस रास्ते पर चलना होगा जिस रास्ते पर चलना पाप है। जिस जगह जाने से लोगों की रूह कांप उठती है तुम्हें उस जगह जाना होगा। बहुत मुश्किल काम है। सुनहरा बाल लाना अपनी मौत को दावत देने जैसा है। किसी से ये नहीं हो सकता।।"
इतना कहकर साधु वहां से जाने लगता है तभी पीछे से उसके कानों में वीरेंद्र प्रताप की आवाज आती है।
वीरेंद्र - " गुरुवर जो कोई न कर सका अब वो हम करके दिखाएंगे। आप बस हमें इतना बता दीजिए की वो सुनहरा बाल हमें मिलेगा कहां? हम वो सुनहरा बाल आपके चरणों में लाकर रख देंगे।"
साधु पीछे मुड़कर दोनों भाइयों वीरेंद्र और विजय की और देखता है और बोलता है " हूं। काफी बहादुर लगते हो तुम दोनों। लेकिन अभी भी तुम्हारे पास वक्त है सोच लो। सुनहरा बाल लाना कोई बच्चों का खेल नहीं है।"
विजय - " गुरुवर हमें जो सोचना था वो हम सोच चुके। अब जो कुछ सोचना है वो आपको ही सोचना है की आप हमें सुनहरा बाल लाने का रास्ता बताएंगे या नहीं।"
साधु - " तो फिर ठीक है। तुम्हारी जिद के आगे मैं हार मानता हूं। तो फिर सुनो वो सुनहरा बाल तुम्हें परियों के देश में मिलेगा परियों की रानी रानी परी रूपवती के पास।"
वीरेंद्र - " आप फिक्र मत कीजिए गुरुवर। मैं और मेरा छोटा भाई विजय हम दोनों मिलकर वो सुनहरा बाल ले आयेंगे और इस परियों के देश में भी पहुंच जायेंगे।"
साधु - " बहुत मुश्किल सफर है। हर कदम पर मौत तुम्हारा इंतजार करेगी। इस लिए तुम्हें हर कदम कदम पर सावधानी बरतनी होगी। परियों के देश में आज तक कोई भी नहीं पहुंच सका और जिसने भी परियों के देश में जाने की कोशिश की वो फिर जिंदा वापिस नहीं लौट सका। किसी को भी नहीं मालूम है की ये परियों का देश कहां है?"
विजय - " हमें आसान काम पसंद भी नहीं है गुरुवर। हम आज ही परियों के देश की तलाश में निकलेंगे। ये परियां चाहे कहीं भी रहती हों हम इन तक पहुंच ही जायेंगे।"
साधु - " ठीक है। मेरा आशिर्वाद तुम्हारे साथ है।"
वीरेंद्र - " पिताजी आप अपने बेटों को आज एक अच्छा काम करने की आज्ञा दीजिए। हम वो सुनहरा बाल हासिल करने के लिए अपनी जान से भी खेल जायेंगे।"
महाराज खड़े होते हुए - " मुझे गर्व है तुम दोनों पर की आज तुम बिना अपनी जान के परवाह किए गुरुवर के लिए ये इतना मुश्किल काम करने के लिए तैयार हो गए। मैं तुम दोनों को परियों के देश में जाने की आज्ञा देता हूं।"
साधु - " बेटा लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना। किसी भी अजनबी पर भरोसा मत करना। किसी का कुछ दिया हुआ मत खाना। किसी के साथ मत सोना।"
विजय - " आप फिक्र मत कीजिए गुरुवर हम आपकी बताई सभी बातों का विशेष ध्यान रखेंगे और वो सुनहरा बाल हासिल कर ही लेंगे।"
इसके बाद वीरेंद्र प्रताप और विजय प्रताप दोनों भाई अपने पिता और गुरुवर से आशीर्वाद लेकर म्यान में अपनी तलवारें टांगकर सोनगढ़ से निकल पड़ते हैं उस रास्ते पर जिस पर चलना पाप है और पल पल पर मौत तैयार रहती है।।।।


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