अध्याय सात
ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया ! जनवरी की तेईस तारीख, कलकत्ता में गुलाबी ठंडक। आज डलहौजी बहुत ही खुश दिखाई पड़ रहे हैं। समय से अपने दफ़्तर में आकर बैठ गए। थोडी देर डाक देखते रहे। फिर उठे और सामने के लान में टहलने लगे। लखनऊ के रेजीडेन्ट कर्नल ओट्रम बुलाए गए हैं। वे कलकत्ता पहुँच चुके हैं। डलहौजी के दिमाग़ में अवध घूम रहा है। अपनी यात्राओं में उन्होंने अवध को खूब हरा भरा देखा है। कम्पनी का ख़ज़ाना भर जाएगा अवध की आमदनी से। वे सोचते रहे। इसी बीच ओट्रम आ गए। उन्हें लेकर वे दफ़्तर में आ गए। अवध से सम्बन्धित पत्रक निकाला और ओट्रम के सामने रख दिया। यह आप्शन ‘ए’ (विकल्प ‘अ’) है। ओट्रम ने ग़ौर से पढ़ा। क्या अवध का नवाब इस पर दस्तख़त करेगा? वे सोचने लगे। यदि नवाब ने हस्ताक्षर न किया तो? उन्होंने बड़े लाट की ओर देखा। ‘अवध का नवाब ’ कहकर बडे लाट हँस पड़े। ‘अवध का नवाब कभी मुखालफ़त कर ही नहीं सकता। उस पर चोट करो तो सहला कर रह जाएगा।’ पर ओट्रम अब भी सषंकित ही थे। इसी बीच चाय आ गई। दोनों ने एक घूँट चाय पिया। कबाब का एक एक टुकड़ा लिया ‘नवाब को हमने बेदम कर दिया है। वह सिर्फ हाँफ़ सकता है। इससे अधिक कुछ नहीं। लेकिन मान लो वह दस्तख़त नहीं करता है तो उसके भी आप्शन (विकल्प ‘ब’) हैं।’ डलहौजी ने विकल्प ‘ब’ का पत्रक ओट्रम के सामने रख दिया। वे पढ़ने लगे। अब ओट्रम को संतोषहुआ। यदि नवाब ने दस्तख़त बनाने में आनाकानी की तो भी कोई विकल्प है।
‘नवाब को हटाना है चाहे आप्शन ‘ए’ (विकल्प ‘अ’) लगाना पडे़, या आप्शन ‘बी’ (विकल्प ‘ब’)। अवध को कम्पनी के राज में मिलाना है।’ डलहौजी कहते हुए फिर हँस पडे़।
‘ज़रूर मिलेगा सर। अब कोई दिक्क़त नहीं है।’ ओट्रम ने कहा। ‘कोशिश करो दस्तख़त हो जाए। दस्तख़त न हो पाने की स्थिति में ही आप्शन ‘बी’ (विकल्प‘ब’) का प्रयोग करो।’
‘ठीक है सर’, आप्शन ‘बी’ (विकल्प ‘ब’) का प्रयोग तभी किया जाएगा।’
‘जल्दी लखनऊ पहुँचो और सत्ता सँभालो।’ डलहौजी ने आदेश सा दिया।
लखनऊ में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म था। कँपा देने वाली ठंडक। नुक्कड़, गली, चौराहों पर लोग धूप में चर्चा करते। ‘रेजीडेन्ट साहब कलकत्ता गए हैं तो ज़रूर कोई गुल खिलेगा। कितनी मुश्किलें होंगी?’ कहते हुए पंडित दीनानाथ का मुँह खुला का खुला ही रह गया। यासीन तांगे वाले भी बोल पड़े, ‘उनका राज हो जायगा तो ताँगे की सवारी करेंगे और पैसे नहीं देंगे।’ ‘अरे मियाँ क्रिस्तान बना देंगे क्रिस्तान।’ दीना नाथ की बात पर लोग हँस पड़ें। ‘तब तो यहाँ की औरतें भी खुले आम चुम्मा-चाटी करती हुई घूमेंगी।’ महबूब मियाँ ने दाहिनी जाँघ पर हाथ मारा।
‘यह कोई हँसी की बात नहीं है।’ रज्जन मियाँ कुछ तिलमिला उठे।
‘नवाब कितने नेकदिल हैं अमीर-गरीब सब की परवरिश करते हैं। उन्होंने कमज़ोर लोगों को भी इज़्ज़त बख्शी है। और तुम लोग...?’
‘नहीं चच्चा। हम सब बहुत दुखी हैं। सोच नहीं पा रहे हैं कि हमारा नवाब इतना मजबूर क्यों हो गया? अँग्रेज जो चाहते हैं, कर लेते हैं और हम लोग चर्चा करने के अलावा कुछ कर नहीं पाते हैं।’ राधे लाल खत्री सिर खुजाते कहते रहे।
‘क्या अँग्रेज के खि़लाफ़ लड़ोगे?’ रज्जनमियाँ ने दाँव फेका।
‘क्यों नहीं लड़ेंगे ? पर हमारा नवाब तो खड़ा हो।’ राधे लाल भी तमक उठे। व्यापारी वर्ग असमंजस में था। जो विलायती माल बेचकर फ़ायदा उठा रहे थे, वे अंग्रेजों के प्रति सहानुभूति रखते हुए भी नवाब के विपक्ष में नहीं जाना चाहते थे। उनके जासूस हर गली मुहल्ले का जायज़ा लेते। ख़बरें पहुँचाते। नवाब के आदमी भी सूचनाएँ एकत्र करते तथा नवाब और उनके कारिन्दों तक पहुँचाते। क्षण क्षण की ख़बरें बाज़ार में पहुँचतीं और चर्चा का विषय बन जातीं। कुछ ऐसे लोग भी होते जो इधर की ख़बरें उधर और उधर की इधर पहुँचाते। ख़बरगी़र इनाम पाते और दिन-रात अपने काम में लगे रहते।
नवाब वाजिद अली शाह अपने आराम गाह में बैठे हैं। उन्हें अपने यहाँ आयोजित एक मुशायरे की याद हो आई। दाग़ देहलवी और ‘अमीर’ मीनाई दोनों ही नवजवान हैं और खूब पढ़ते हैं। वे दाग़ देहलवी का शेर गुनगुना उठे, ‘ग़ज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया।’ इसी पंक्ति को काफी देर तक गुनगुनाने के बाद उन्होंने आगे की तीन पंक्तियाँ पढ़ी-
तमाम रात कयामत का इन्तज़ार किया।
तड़प फिर ए दिले-नादां-कि ग़ैर कहते हैं
अख़ीर कुछ न बनी सब्र इख़्तियार किया।
‘अख़ीर कुछ न बनी सब्र इख़्तियार किया’, को भी वे बड़ी देर तक गुनगुनाते रहे। ख़बरें मिल रहीं हैं कि अँग्रेज उन्हें गद्दी से हटाकर सत्ता पर काबिज़ होना चाहते हैं। कर्नल ओट्रम कलकत्ता गए हैं तो कुछ निर्देश लेकर ही लौटे होंगे। कोई बहाना मिल ही जाएगा। ताकतवर को बहाने की कमी कहाँ होती? उन्हें प्यास लगी, ताली बजाई। बाँदी हाज़िर हुई। ‘पानी’ उन्होंने धीरे से कहा। बाँदी दौड़कर पानी लाई। पानी पीने से उन्हें राहत मिली। ‘अमीर मीनाई’ की चार पंक्तियाँ कौंध गईं-
दिए फरेब नज़ारों ने बार-बार मुझे।
कि हर खिज़ाँ को समझना पड़ा बहार मुझे।
गुनाह करता मैं ये कहाँ मेरी जुर्अत थी,
तेरे करम ने बनाया गुनहगार मुझे।
इन पंक्तियों को भी वे बड़ी देर तक गुनगुनाते रहे। मेरी ही रियासत में वे मुझे गुनहगार साबित करना चाहते हैं। उनका दिमाग़ रियासत की तमाम बातों पर दौड़ रहा था। इसी बीच सेविका ने अर्ज़ किया कि तबला वादक मुहम्मद करीम आए हैं। नवाब ने बुलाने का संकेत किया। करीम ने आकर तीन बार बन्दगी बजाई।
‘हुजूर, छोटे लाट कलकत्ता से लौट आए हैं। सुना है कानपुर से अँग्रेजी फ़ौज भी आने वाली है।’
‘हूँ।’ नवाब के मुख से निकला, ‘करीम, यह ख़बर मुझे मिल चुकी है। तुमने भी पता लगाया यह अच्छी बात हुई। इससे उस ख़बर पर मुहर लग गई। आगे भी कोई ज़रूरी ख़बर मिले तो बताते रहना।’
‘जी हुजूर’, करीम ने पीछे जाते हुए तीन बार कोर्निश की।
कलकत्ता से लौटकर कर्नल ओट्रम उत्साह से भरे थे। उन्होंने नवाब के प्रधान वज़ीर अली नक़ी खाँ से बात कर लेना उचित समझा। उन्हें बुलवाकर बात करने की व्यवस्था हुई। तीस जनवरी का दिन। ठंडक अभी काफी थी पर दिन खुशनुमा था। दोपहर बाद तीन बजे अली नक़ी खाँ और ओट्रम की भेंट हुईं। दुआ सलाम के बाद कुछ इधर-उधर की बातों के साथ घर परिवार की बातें हुईं। रियासत के सम्बन्ध में बातों का सिलसिला चालू रखते हुए ओट्रम ने बताया कि कम्पनी सरकार अवध के बारे में नई नीति लागू करना चाहती है। इस नीति को माननीय कोर्ट के निदेशकों ने तय किया है। इस पर सरकार के मंत्रियों की सहमति मिल चुकी है। वज़ीर नक़ी खाँ चौंके जरूर पर हर बात को ग़ौर से सुनते रहे। ओट्रम बताते रहे कि पुरानी बातों को दुहराने से कोई फ़ायदा नहीं है। उससे दुख ही होगा। उन्होंने बताया कि निर्देश दिया गया है कि तत्काल अवध की सरकार को अपने कब्जे़ में कर लें। ओट्रम ने उन निर्देशों की जानकरी नक़ी खाँ को दी जो उन्हें गवर्नर जनरल से प्राप्त हुए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि किसी तरह के व्यवधान की आशंका देखते हुए सेना की एक ब्रिगेड को गंगा पार करने के लिए कह दिया गया है। शीघ्र ही वह राजधानी पहुँच जायेगी।
अली नक़ी खाँ का चेहरा उनकी तकलीफ़ को बयाँ कर रहा था। उन्होंने कहा कि फ़ौज की कोई ज़रूरत तो न थी। हुजूरे आला तो पूरी तरह आपके हाथों में हैं। आपकी ख़्वाहिश मालूम होने पर उसे पूरा करने की कोशिश की जायेगी।
ओट्रम ने वज़ीर को भरोसा दिलाया कि नवाब ब्रिटिश हुकूमत पर पूरा यक़ीन कर सकते हैं क्योंकि सरकार ने उनकी इज़्ज़त को बरक़रार रखने का फैसला किया है। नक़ी खाँ कुछ देर सोचते रहे फिर धीरे से कहा कि गर अवध को कम्पनी की हुकूमत में मिलाना है तो शर्तनामे की क्या ज़रूरत? उन्होंने यह अवश्य कहा कि अवध की हुकूमत ने हर क्षेत्र में सुधार लाने की कोशिश की है। उसके अच्छे नतीजे आए हैं। कर्नल ओट्रम ने तुरन्त जवाब दिया कि अब इस तरह की बातचीत का कोई मतलब नहीं है। वे उन निर्देशों से बँधे हैं जो कलकत्ता से उन्हें प्राप्त हुए हैं। वज़ीर को समझाया गया कि अब कोई विकल्प नहीं है। फ़ौज को राजधानी में बुला लेना ज़रूरी था। अन्त में दुखी मन से ही सही, प्रधान वज़ीर ने वादा किया कि आप के सुझावों तथा इस बातचीत के मज़मून को हुजूरे आला (नवाब वाजिद अली शाह) से बता देंगे। बातचीत ख़त्म हुई। वज़ीर अली नक़ी खाँ सोचते विचारते वहाँ से रवाना हुए।
अगले दिन सुबह ठंड में थोड़ी कमी ज़रूर थी पर पछुआ हवा बहने लगी थी। संभावना यही थी, यदि पछुआ बहती रही तो ठंड बढ़ेगी। शहर में क्षण-क्षण अफ़वाहों का बाज़ार गर्म हो उठता। हर आदमी सशंकित था। ‘कल क्या होगा?’ लोग एक दूसरे से पूछते। कर्मचारी,व्यापारी, आम नागरिक,कारीगर, किसान-मज़दूर जो भी शहर में थे, अपने कान उठाए रहते। ‘शाही रहेगी या अंग्रेजी आ जायेगी?’ हर आदमी की चिन्ता का विषय यही होता। फ़ादर से अंग्रेजी पढ़ने के लिए हम्ज़ा और बद्रीनाथ चौक से निकले। थोड़ी देर हो गई थी इसलिए तेज क़दमों से आगे बढ़े। ढाका से आया ईमान चिकेन के कामों में रुचि ले रहा था। वह भी काम से निकल गया।
हम्ज़ा और बद्री फ़ादर के यहाँ पहुँचे तो पता चला वे बेलीगारद गए हुए हैं। दोनों लौट पड़े। कुछ अँग्रेज घुड़सवारों को चहल-क़दमी करते देखा। उनका चेहरा जोश से भरा दिख रहा था।
ग्यारह बजे दिन में ओट्रम ने वज़ीर अली नक़ी खाँ को प्रस्तावित संघि की प्रति प्रदान की। उन्होंने गौ़र से एक-एक अनुच्छेद पढ़ा। पैरों के नीचे से ज़मीन खिसकती दिखाई देने लगी। ओट्रम नक़ी खाँ के चेहरे को पढ़ते रहे। हताश नक़ी खाँ ने कहा कि हुजूरे आला ने आपसे यह बताने के लिए इख़्तियार दिया है कि वे ब्रिटिश सरकार के रहमों-करम पर मबनी हैं और उनकी ख़्वाहिशों को पूरा करने की भरपूर कोशिश करेंगे।
ओट्रम ने भी कहा कि नवाब की शान और इज़्ज़त का पूरा ध्यान रखा गया है। उनकी शान में बट्टा न लगे, इसकी कोशिश की गई है। उन्हें तीन दिन का समय दिया गया है। हाँ, अगर तीन दिन के अन्दर उन्होंने संधि प्रस्ताव पर दस्तख़त न किया तो ज़रूर दिक्क़त पैदा हो जायेगी। सरकार के पास कोई विकल्प नहीं रह जायेगा। उन्हें दुश्मन घोषित कर दिया जायगा। और तब....?‘क्या हुजूर को दुश्मन कहा जायगा?’ नक़ी खाँ ने पूछा।’ ‘हाँ, और तब नवाब को इसके नतीजे भुगतने ही होंगे।’ ओट्रम ने बताया। ‘हुजूरे आला और उनकी रिआया तो अँग्रेजी हुकूमत की ताकत और रज़ामंदी पर ही चल रही है’, अली नक़ी खाँ ने अपनी बात रखी। ‘हुजूरे आला की खि़दमत में यह शर्तनामा रखा जायगा और आपसे बातचीत का मक़्सद भी उन तक पहुँच जायगा।’
वज़ीर ने शर्तनामे को लिया। वे वहाँ से सीधे हुजूरे आला के पास पहुँचे। आज वे दर्बार में अधिक नहीं बैठे थे। थोड़ी देर बाद ही आरामगाह में आकर बैठ गए थे। अली नक़ी खाँ उनसे ज़बानी सब बातें बता चुके थे। आज पहुँचे तो शर्तनामा भी उनके साथ था। नवाब वाजिद अली शाह ने वज़ीर से शर्तनामा पढ़ने के लिए कहा। वे धीरे-धीरे एक-एक पंक्ति पढ़ते रहे। नवाब का चेहरा सुर्ख़ हो गया। ‘दोस्ती का यही सिला मिला।’ गुस्से से वे तमतमा उठे। ‘एक सख़्त ख़त में इसका जवाब दिया जाना चाहिए।’
दोपहर के बाद ज़र्द महल में भी विचार-विमर्श हुआ। मलिका-ए-आलिया, शाह, उनके भाई हशमत, वज़ीर नक़ी खाँ, बाल कृष्ण (वित्त मंत्री) ने शर्तनामे पर विस्तार से चर्चा की। यही तय पाया गया कि रेजीडेन्ट ओट्रम को एक ख़त में इस शर्तनामे का जवाब दिया जाय। जवाब लिखते समय लार्ड डलहौजी के ख़त का मजमून फिर खगाला गया। हुकूमत ने जिन सुधारों को लागू किया, उसके जो नतीजे मिले, उनका उल्लेख करते हुए पत्र तैयार हुआ। का़तिब ने उसकी प्रतियाँ बनाई। पत्र तैयार हो जाने पर सभी ने राहत की सांस ज़रूर ली पर दिमाग़ से अंग्रेजी हुकूमत का भूत उतरना मुश्किल था।
रात में भी मलिका-ए-आलिया, नवाब और भाई हशमत के बीच विचार होता रहा। कोई माकूल क़दम सूझ नहीं रहा था। रात बीतती रही। कभी-कभी झपकी आ जाती। आसमान में शुक्र तारा उग आया। मुर्गे की बाँग सुनाई दी। मलिका-ए-आलिया बेटों को सोने का निर्देश देकर, उठ पड़ीं। ‘या रब’ कहते सुबह हुई। ज़र्द महल में भी नौकरों, सिपाहियों का आना जाना बढ़ा। बेगमों को भी पता चला। जो बेगमें शाही महलों के बाहर रहती थीं उन तक भी ख़बर पहुँची। बेगम हज़रत महल का निवास बाहर ही था। वे विर्जीस क़द्र के साथ आ गईं। जाने आलम ही नहीं सभी का चेहरा उदास था। पीढ़ियों से चली आ रही हुकूमत एक झटके में ख़त्म हो जायगी, इसे कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था।
ओट्रम भी अपनी तैयारी में थे। शाही परिवार और आमजन की हर प्रतिक्रिया पर उनकी नज़र थी। बेलीगारद में भी देर रात तक विचार-विनिमय होता रहा। शैम्पेन के साथ नृत्य और गान के दौर चले।
ओट्रम को सबेरे शाही पत्र प्राप्त हुआ। उसमें अंग्रेजी हुकूमत की कार्यवाही पर आश्चर्य व्यक्त किया गया था। राजस्व और प्रशासन में सुधार किया गया है, इसकी चर्चा की गई थी। ओट्रम के लगा कि इस पत्र के माध्यम से नवाब पर लगे आरोपों का उत्तर देने की कोशिश की गई है। उन्हें डलहौजी का निर्देश हर संभव प्रयत्न करने के लिए बाध्य कर रहा था। मलिका-ए-आलिया से मिलकर देखा जाए। शायद वे नवाब का हस्ताक्षर कराने में मदद करें।
तीसरे प्रहर ओट्रम ने ज़र्दमहल की ओर रुख़ किया। वे मलिका-ए-आलिया से मिलने जा पहुँचे। अतिथि कक्ष में उन्हें तथा उनके साथ गए अधिकारियों को दूसरे कक्ष में बिठाया गया। मलिका-ए-आलिया की दानिशमंदी के सभी कायल थे। ओट्रम से उनकी बातचीत सौहार्दपूर्ण वातावरण में शुरू हुई। वे दुखी थीं। रातभर सोचती विचारती ही रह गई थीं। आँखें अन्दर के दर्द को बयाँ कर रही थीं।
‘नवाब ने ऐसा क्या कर दिया जिससे कम्पनी सरकार ख़फ़ा हो गई?’ राजमाता ने पूछा।
‘ब्रिटिश हुकूमत अवध हुकूमत को तंबीह करती रही है पर हुकूमत ने ग़ौर नहीं किया। कोई सुधार नहीं किया। गर हम कोई क़दम नहीं उठाते तो हम भी गुनहगार होते।’ ओट्रम ने अपना पक्ष रखा।
‘हमारी रिआया में अम्न चैन है। ठगी-डकैती पर काबू कर लिया गया है। आमद भी बढ़ाने की कोशिशें हुईं हैं फिर कम्पनी सरकार का यह क़दम?’ राजमाता हुकूमत का पक्ष रखती रहीं।
‘हमें यह तय करने का हक़ हासिल नहीं है मलिका-ए-आलिया। हम वही कर सकते हैं जो हुक्म मिला है। अपनी ओर से कोई तरमीम करना हमारे बस में नहीं है। हम यह ज़रूर भरोसा दिलाते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत नवाब के सम्बन्ध में रहमदिली से विचार करेगी। जल्दी ही नवाब हर तरह की हुकूमती फ़िक्रमंदी और जवाब देही से छुट्टी पा जाएँगे।’
‘यह तो हमें शर्तनामे से मालूम हुआ है।’ राजमाता बोल पड़ीं। ‘मलिका-ए-आलिया, नवाब को ब्रिटिश हुकूमत का शुक्र गुज़ार होना चाहिए कि उसने उन्हें सरकारी जवाब देही से छुट्टी दिला दी। अब वे जैसा चाहें अपने लोगों के बीच मौज-मस्ती कर सकते हैं। नवाब को मौज-मस्ती के लिए ही यह मौक़ा नहीं मिला था, उनकी कुछ जवाब देही भी थी। लगातार बढ़ती गुंडागर्दी और बदकिस्मती जिसने अवध की अवाम को तबाह कर दिया, की ज़िम्मेदारी नवाब की थी। इसके लिए वे अल्लाह और आमजन के प्रति ज़िम्मेदार हैं।’ ओट्रम अपने पक्ष को मजबूती देने का प्रयास करते रहे। ‘हमारे पास जो ख़बरें छन कर आईं हैं उससे पता चलता है कि अवध हुकूमत ने अच्छे क़दम उठाए हैं। अवाम हुकूमत से खुश है। अवध हुकूमत को और वक़्त मिलना चाहिए। आप इसकी सिफ़ारिश करें।’ राजमाता ने कुछ सोचते हुए कहा।
‘मलिका-ए-आलिया, मैं अवध हुकूमत की मदद कर सकता तो मुझे खुशी होती पर ऐसा करने का मुझे कोई हक़ नहीं है। मैं ऊपर के हुक्म से बँघा हूँ। अपनी ओर से कोई अलग सिफ़ारिश नहीं कर सकता।’ ओट्रम ने अपनी सफाई दी और बात ख़त्म हो गई।